द वायर द्वारा प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि उत्तराखंड राज्य ने अप्रैल और मई महीने में लगभग 1.38 लाख बच्चों को मिड-डे मील मुहैया नहीं कराया है. राज्य ने इस दौरान 66 कार्य दिवसों में से 48 कार्य दिवसों पर ही बच्चों को राशन दिया.
नई दिल्ली: लॉकडाउन के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अप्रैल को देश के नाम संबोधन में कहा था कि कोरोना महामारी के समय गरीबों को सबसे अधिक भोजन संकट का सामना करना पड़ रहा है.
उन्होंने दवाइयां, राशन और जरूरी सामान उपलब्ध कराने का आश्वासन देते हुए अपील की थी कि सक्षम लोग गरीबों का ध्यान रखें और खासकर उनकी खाद्यान्न जरूरतों को पूरी करें.
हालांकि मोदी के इस कथन को राज्यों में उनकी ही पार्टी की सरकारों द्वारा लागू किया जाता नहीं दिख रहा है. आलम ये है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुवाई वाली उत्तराखंड सरकार ने कोरोना महामारी के दो महीनों में सवा लाख से भी ज्यादा बच्चों को मिडे-डे मील मुहैया नहीं कराया है.
दूसरे शब्दों में कहें तो राज्य के पांच में से एक बच्चे को इस दौरान मिड-डे मील योजना का लाभ नहीं मिला है.
द वायर द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि उत्तराखंड राज्य ने अप्रैल और मई महीने में लगभग 1.38 लाख बच्चों को मिड-डे मील मुहैया नहीं कराया है.
इसके अलावा राज्य सरकार ने 13 मार्च से 17 मई 2020 के बीच कुल 66 कार्य दिवसों में से सिर्फ 48 कार्य दिवसों पर ही बच्चों को राशन मुहैया कराया है.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) ने 20 मार्च 2020 को सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र लिखकर कहा था कि कोविड-19 संकट के कारण बंद हुए स्कूलों के सभी बच्चों को मिड-डे मील योजना के तहत पका हुआ भोजना या खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया जाना चाहिए.
संयुक्त सचिव आरसी मीणा द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया कि सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों और समग्र शिक्षा के तहत सहयोग प्राप्त स्पेशल ट्रेनिंग सेंटर, मदरसा तथा मकतबा में मिड-डे मील योजना के तहत खाद्य सामग्री दी जाए.
मिड-डे मील नियम, 2015 की धारा नौ के मुताबिक यदि किसी स्कूल में किसी भी दिन खाद्यान्न या भोजन पकाने की राशि या ईंधन न होने या रसोइयां के उपलब्ध न होने के चलते बच्चों को पका हुआ भोजन नहीं दिया जाता है तो इसके बदले में राज्य सरकार को ‘खाद्य सुरक्षा भत्ता’ देना होता है, जिसमें खाद्यान्न और भोजन पकाने की राशि शामिल होता है.
इस संबंध में उत्तराखंड के अपर राज्य परियोजना निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने एमएचआरडी में मिड-डे मिल के निदेशक जी. विजय भास्कर को पत्र लिखकर राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का लेखा-जोखा पेश किया.
15 मई 2020 की तारीख में लिखे पत्र के मुताबिक उत्तराखंड के 17,045 सरकारी स्कूलों में कुल 689,437 बच्चे हैं, जिसमें से प्राथमिक स्तर पर 405,009 और उच्च प्राथमिक स्तर पर 284,428 बच्चे हैं.
लेकिन अप्रैल महीने में इसमें से 551,550 बच्चों को ही मिड-डे मील योजना के तहत खाद्य सुरक्षा भत्ता, जिसमें खाद्यान्न और भोजन पकाने की राशि शामिल होती है, दिया गया.
इस तरह अप्रैल में 137,887 बच्चों को पका भोजन या खाद्य भत्ता नहीं दिया गया. यानी कि हर पांच बच्चों में से एक को कोरोना संकट के दौरान राज्य में मिड-डे मील योजना का लाभ नहीं मिल पाया है.
मई महीने का भी यही हाल रहा. इस दौरान करीब 20 फीसदी बच्चों को मिड-मील योजना का लाभ नहीं दिया गया. प्राप्त दस्तावेज के मुताबिक इस महीने में 689,437 बच्चों में से 551,550 बच्चों को ही खाद्यान्न और भोजन पकाने की राशि दी गई है.
वहीं मार्च महीने में 17,045 स्कूलों के सभी 689,437 बच्चों को मिड-डे मील योजना का लाभ दिया गया था.
खास बात ये है कि मौजूदा मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल उत्तराखंड से ही आते हैं और मिड-डे मील योजना की उन्हीं की अगुवाई में लागू की जा रही है.
दस्तावेजों से यह भी पता चलता है कि राज्य में मार्च महीने में 14 दिन, अप्रैल में 21 दिन और मई में 13 दिन खाद्यान्न दिया है. इस तरह इन तीन महीनों के कुल 66 कार्य दिवसों में से 48 दिनों में ही मिड-डे मील के तहत खाद्यान्न सुरक्षा दी गई है.
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भारत सरकार के मानक के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर 100 ग्राम एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर 150 ग्राम खाद्यान्न प्रति छात्र प्रतिदिन के हिसाब से उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
इसके अलावा एक अप्रैल से लागू किए गए नए नियमों के मुताबिक भोजन पकाने के लिए प्राथमिक स्तर पर 4.97 रुपये और उच्च स्तर पर 7.45 रुपये की धनराशि प्रति छात्र प्रतिदिन उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जिसमें दाल, सब्जी, तेल, नमक ईंधन आदि का मूल्य शामिल है.
उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में सबसे ज्यादा बच्चों को मिड-डे मील के तहत राशन नहीं दिया गया है. राज्य सरकार के दस्तावेजों के मुताबिक यहां के 1,073 स्कूलों में कुल 153,006 छात्र हैं और इसमें से 122,405 छात्रों को ही मिड-डे मील का लाभ दिया गया.
इस तरह अप्रैल और मई महीने में इस जिले के कुल 30,601 बच्चों को मिड-डे मील के तहत खाद्यान्न उपलब्ध नहीं कराया गया.
दूसरे नंबर पर उधम सिंह नगर जिला है, जहां के 1276 स्कूलों के 22,597 बच्चों को मिड-डे मील का लाभ नहीं मिला है. यहां के 112,982 बच्चों में से 90,385 बच्चों को ही खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया गया.
इसी तरह मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के विधानसभा क्षेत्र वाले देहरादून जिले के 1390 स्कूलों के 14,659 बच्चों और नैनीताल के 1397 स्कूलों के 11,940 बच्चों को मिड-डे मील योजना के तहत खाद्य सुरक्षा भत्ता नहीं दिया गया.
अल्मोड़ा जिले में कुल 1762 स्कूलों में 41,234 बच्चे हैं, लेकिन कोरोना महामारी के अप्रैल और मई महीने में यहां के 32,987 बच्चों को ही खाद्यान्न और भोजन पकाने की राशि दी गई. इस तरह अल्मोड़ा में ही 8,247 बच्चों को मिड-डे मील योजना का लाभ नहीं दिया गया.
इसी तरह बागेश्वर जिले के 791 स्कूलों में कुल 20,567 बच्चे हैं लेकिन इसमें से 4,113 बच्चों को अप्रैल और मई महीनों में मिड-डे मील के तहत भोजन नहीं मुहैया कराया गया.
चमोली जिले के 1356 स्कूलों के 6,724 बच्चों, चंपावत जिले में 682 स्कूलों के 4,327 बच्चों, गढ़वाल जिले के 8,133 बच्चों, टिहरी गढ़वाल में 1905 स्कूलों के 9,964 बच्चों को मिड-डे मील का लाभ नहीं दिया गया है.
पिछले महीने 28 अप्रैल 2020 एमएचआरडी मंत्री रमेश पोखरियाल ने राज्यों के साथ मिलकर फैसला लिया कि गर्मी के छुट्टियों के समय में भी बच्चों को मिड-डे मील या खाद्य सुरक्षा भत्ता दिया जाएगा, ताकि कोरोना महामारी के समय बेहद जरूरी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने के लिए पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा किया जा सके.
उत्तराखंड में 27 मई से लेकर 30 जून तक गर्मी की छुट्टियां चलेंगी. इस दौरान कुल 35 कार्य दिवस में से राज्य ने 30 कार्य दिवस के लिए मिड-डे मील का लाभ देने की योजना बनाई है.
इसके लिए राज्य सरकार ने पांच मई को पत्र लिखकर केंद्र सरकार से फंड और खाद्यान्न आवंटित करने की मांग की है. उत्तराखंड सरकार ने गर्मी की छुट्टियों में मिड-डे मील योजना चलाने के लिए एमएचआरडी से 2494.95 टन खाद्यान्न, 12.39 करोड़ रुपये खाना पकाने का खर्च और 58.60 लाख रुपये यातायात खर्च के लिए मांगा है.
द वायर ने उत्तराखंड में मिड-डे मील योजना के राज्य परियोजना निदेशक/सचिव, शिक्षा विभाग और संयुक्त निदेशक को सवालों की सूची भेजी है. अगर कोई जवाब वहां से आता है तो उसे स्टोरी में शामिल कर लिया जाएगा.