केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले सीजन में टिड्डी हमलों के कारण राजस्थान के सात जिले और गुजरात के तीन जिले प्रभावित हुए थे.
नई दिल्ली: पिछले दो दशकों में सबसे बड़े रेगिस्तानी टिड्डी हमलों की खबरों ने देश के विभिन्न राज्यों के किसानों के लिए बहुत बड़ी चिंता खड़ी कर दी है. पिछले साल राजस्थान और गुजरात के किसान इससे प्रभावित हुए थे.
हालांकि इस साल टिड्डियों का झुंड बहुत तेजी से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों को प्रभावित करने के लिए बढ़ रहा है. टिड्डी हमलों की वजह से काफी ज्यादा मात्रा में आर्थिक नुकसान और फसलों की बर्बादी होती है, जिसका खामियाजा अंतत: किसानों को ही भुगतना पड़ता है.
इस क्षति के पैमाने का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान सिर्फ राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में ही टिड्डियों के हमले के कारण करीब दो लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई थी.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा 13 मार्च 2020 को राज्यसभा में पेश किए गए लिखित जवाब के मुताबिक 2019-20 के दौरान राजस्थान में 179,584 हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई थी. वहीं इस दौरान गुजरात में कुल 19,313 हेक्टेयर फसलों को नुकसान पहुंचा था.
पंजाब और हरियाणा सरकार ने कहा है कि टिड्डियों के हमले के कारण राज्य में कोई फसल बर्बाद नहीं हुई थी.
कृषि मंत्री द्वारा संसद में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, टिड्डियों द्वारा हमले के कारण राजस्थान में सबसे ज्यादा जैसलमेर जिला प्रभावित हुआ, जहां 54,979 हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई. वहीं जालौर जिले में टिड्डी हमले के कारण 53,682 हेक्टेयर फसल बर्बाद हुई.
इसी तरह श्रीगंगानगर जिले में 22,257 हेक्टेयर, बाड़मेर में 38,029 हेक्टेयर, बीकानेर जिले में 5,801 हेक्टेयर, जोधपुर जिले में 2,308 हेक्टेयर और सिरोही जिले में 12 हेक्टेयर फसलों को रेगिस्तानी टिड्डी (टिड्डी दल) के कारण नुकसान पहुंचा.
राजस्थान सरकार ने किसानों को राहत देने के लिए कृषि इनपुट सब्सिडी देने की घोषणा की थी. राज्य के आंकड़ों के मुताबिक सरकार ने इसके तहत 66,392 किसानों को 110 करोड़ रुपये का लाभ दिया था.
टिड्डियों द्वारा हमले के कारण फसल नुकसान की भरपाई केंद्र की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत की जानी चाहिए.
हालांकि राजस्थान ने सिर्फ बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर और जोधपुर जिलों के प्रभावित किसानों को फसल बीमा का लाभ देने के लिए योजना के मध्यावधि आपदा क्लॉज को लागू किया.
राज्य सरकार का कहना है कि बीमा देने के लिए उसने राज्य के हिस्से के प्रीमियम को बीमा कंपनियों को दे दिया है.
वहीं 2019-20 के दौरान रेगिस्तानी टिड्डी हमलों के कारण उत्तरी गुजरात का कच्छ, बनासकांठा और पाटन जिले का कुछ हिस्सा प्रभावित हुआ था.
गुजरात सरकार ने राहत पैकेज के रूप में राज्य आपदा रिस्पॉन्स फंड में से प्रभावित जिलों में 33 फीसदी या इससे ज्यादा नुकसान वाले प्रति हेक्टेयर पर किसानों को 13,500 रुपये देने की घोषणा की थी. इसके अलावा राज्य सरकार ने राज्य बजट से अतिरिक्त 5,000 रुपये प्रति हेक्टेयर देने की घोषणा की थी.
हालांकि गुजरात सरकार ने इसमें भी एक शर्त लगा रखी है कि ये राहत राशि अधिकतम दो हेक्टेयर तक ही दी जाएगी.
नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा छह मार्च 2020 को राज्यसभा में पेश किए गए लिखित जवाब के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने पहली बार तीन मई 2019 को ये सूचना दी थी कि भारत-पाकिस्तान में टिड्डियों का झुंड जा रहा है.
इसे लेकर मई 2019 से 17 फरवरी 2020 तक में राजस्थान में 393,933 हेक्टेयर और गुजरात में 9,505 हेक्टेयर क्षेत्रों को उपचारित (ट्रीट) किया गया था. एफएओ ने टिड्डियों के हमले से बचने के लिए फसलों में कीटनाशकों का इस्तेमाल करने के लिए कहा है.
कितना खतरनाक है टिड्डियों का हमला
इससे पहले 1993 में भारत में टिड्डियों का सबसे बड़ा हमला हुआ था. इसके बाद 1997, 2002, 2005, 2007, 2010 और 2016 थोड़ा-बहुत टिड्डियों द्वारा हमला किया गया था, हालांकि बाद में इसे नियंत्रित कर लिया गया था.
लेकिन पिछले साल 21 मई 2019 से राजस्थान के जैसलमेर जिले में रेगिस्तानी टिड्डियों का आगमन शुरू हुआ. ये टिड्डियां मुख्य रूप से पड़ोसी देश पाकिस्तान से आई थीं. अब धीरे-धीरे करके टिड्डियों का हमला देश में भयावह रूप लेता जा रहा है.
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के टिड्डी नियंत्रण एवं अनुसंधान विभाग के मुताबिक टिड्डियों द्वारा की गई क्षति और नुकसान का दायरा बहुत बड़ा है, क्योंकि इनकी बहुत अधिक खाने की क्षमता के कारण भुखमरी तक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
विभाग के मुताबिक, ‘औसत रूप से एक छोटा टिड्डी का झुंड एक दिन में इतना खाना खा जाता है जितना दस हाथी, 25 ऊंट या 2500 व्यक्ति खा सकते हैं. टिड्डियां पत्ते, फूल, फल, बीज, तने और उगते हुए पौधों को खाकर नुकसान पहुंचाती हैं और जब ये समूह में पेड़ों पर बैठती हैं तो इनके भार से पेड़ तक टूट जाते हैं.’
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक एक वर्ग किलोमीटर में फैले टिड्डियों का झुंड एक दिन में 35,000 लोगों के बराबर खाना खा सकता है. एक टिड्डी एक दिन में अपने वजन के बराबर यानी कि लगभग दो ग्राम भोजन खा सकता है.
भारत में केवल चार प्रजातियां अर्थात रेगिस्तानी टिड्डी, प्रवासी टिड्डी, बोम्बे टिड्डी और वृक्ष टिड्डी (ऐनेक्रिडियम प्रजाति) पाई जाती हैं. रेगिस्तानी टिड्डी भारत में और इसके साथ-साथ अन्य महाद्वीपों के बीच सबसे प्रमुख नाशीजीव प्रजाति है.
रेगिस्तानी टिड्डी के प्रकोप से प्रभावित क्षेत्र लगभग तीन करोड़ वर्ग किलोमीटर है, जिसमें लगभग 64 देशों का सम्पू्र्ण भाग या उनके कुछ भाग शामिल हैं. इनमें उत्तर पश्चिमी और पूर्वी अफ्रीकन देश, अरेबियन पेनिन्सुला, दक्षिणी सोवियत रूस गणराज्य , ईरान, अफगानिस्तान और भारतीय उप-महाद्वीप देश शामिल हैं.
टिड्डी नियंत्रण एवं अनुसंधान विभाग के मुताबिक 1962 के बाद देश में कोई टिड्डी प्लेग चक्र नहीं पाया गया. साल 1978 और 1993 के दौरान बड़े स्तर पर टिड्डी प्रकोप की सूचना प्राप्त हुई थी. इसके चलते साल 1978 में दो लाख रुपये तथा 1993 में 7.18 लाख रुपये के लगभग क्षति हुई थी.
टिड्डी चेतावनी संगठन, वनस्पति संरक्षण, संगरोध एवं संग्रह निदेशालय, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को रेगिस्तानी क्षेत्रों विशेष रूप से राजस्थाान और गुजरात राज्यों में रेगिस्तानी टिड्डी पर निगरानी, सर्वेक्षण और नियंत्रण का उत्तरदायित्व सौंपा गया है.
भारत दक्षिण पश्चिम एशिया में रेगिस्तानी टिड्डी नियंत्रण आयोग (एडब्ल्यूएसी, एफएओ) का सदस्य है और टिड्डी हमलों को रोकने के लिए एफएओ के साथ को-ऑर्डिनेट करता है. इसके सदस्य देशों ने बचाव के लिए जो रणनीति अपनाई है वह टिड्डियों के आगमन के बारे में जल्द चेतावनी और जल्द प्रतिक्रिया देने पर आधारित है.
जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ा टिड्डियों का हमला
भारत में बढ़ते टिड्डियों के हमले को लेकर कई वैज्ञानिक और विशेषज्ञ ये दावा कर रहे हैं कि असामयिक टिड्डियों का आना जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है.
भारत के टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) के मुताबिक इस साल का हमला बहुत असामयिक है और अन्य दिनों के मुकाबले टिड्डियां काफी पहले आ गईं और ज्यादा दूर तक फैल गई हैं.
संयंत्र संरक्षण, क्वारंटीन और भंडारण निदेशालय में उप निदेशक केएल गुर्जर ने द वायर को बताया था, ‘इस बार टिड्डियां मई महीने में आ गईं. ऐसा सामान्यत: कभी नहीं होता. हो सकता है कि इस सीजन में उन्हें प्रजनन का ज्यादा सही स्थान मिल गया हो.’
रेगिस्तानी टिड्डों के प्रजनन के लिए अनुकूल परिस्थितियों में नम रेत और हरी वनस्पतियां शामिल हैं.
द वायर की रिपोर्ट के मुताबिक ये अनुकूल परिस्थितियां अफ्रीका के रेगिस्तानी क्षेत्र और अरब प्रायद्वीप में टिड्डियों को भारी वर्षा के कारण उपलब्ध हो गईं, क्योंकि इस क्षेत्र में 2019 में काफी ज्यादा वर्षा हुई थी. इस तरह वे ईरान और पाकिस्तान के रास्ते भारत आए.
पश्चिमी हिंद महासागर में असामान्य रूप से गर्म पानी के कारण 2019 के अंत में भारी वर्षा हुई थी. जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस महासागर का पानी गर्म हुआ था.
बेमौसम बारिश भी भारत में टिड्डियों के आने की प्रमुख वजहों में से एक है. मानसून से पहले बारिश होने के कारण असामान्य मौसम पैटर्न बन रहा है. इस कारण टिड्डियों के प्रजनन का स्थान भी बदल रहा है और देश को समय से पहले टिड्डियों के हमले का सामना करना पड़ रहा है.