लगभग 50 इतिहासकारों और वास्तुकारों ने प्राचीन स्मारक, पुरातत्व स्थलों और अवशेष अधिनियम, 2010 में और संशोधन न करने के लिए केंद्र से गुहार लगाई है.
ऐतिहासिक स्मारक और प्राचीन स्थलों के आस-पास निर्माण कार्यों से पहुंचने वाली क्षति पर चिंता जताते हुए लगभग 50 इतिहासकारों और वास्तुकारों ने प्राचीन स्मारक, पुरातत्व स्थलों और अवशेष अधिनियम, 2010 (एन्शिएन्ट मोन्यूमेंट एंड आर्केलोजिकल साइट्स एंड रिमेन्स एक्ट) में और संशोधन न करने के लिए केंद्र से गुहार लगाई है.
सफ़दर हाशमी मेमोरीयल ट्रस्ट के बयान पर हस्ताक्षर करने वाले इन इतिहासकारों व वास्तुकारों की अपील है कि केंद्र सरकार इस विधेयक में संशोधन करने पर रोक लगाए.
इतिहासकारों के अनुसार, ‘यदि इन क्षेत्रों में नया निर्माण शुरू हो जाएगा तो आगे और कोई अनुसंधान संभव नहीं होगा. इन इमारतों को इस अधिनियम के लागू होने से काफी क्षति पहुंचेगी और साथ ही उन स्मारकों का इतिहास वहीं दबा रह जाएगा.’
इस अधिमियम में प्रस्तावित संशोधन संरक्षित स्मारकों के आसपास 100 मीटर के दायरे में निर्माण कार्यों की अनुमति देता है. ये अधिनियम 2010 में पारित हुआ था जिसका उद्देश्य सभी प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों को सुरक्षित रखना और उसके आस पास के 300 मीटर के क्षेत्र (सभी दिशाओं की ओर) को भी संरक्षित करने का था.
इतिहासकारों के अनुसार इस एक्ट में और संशोधन करते हुए निर्माण कार्यों की अनुमति देने से ऐतिहासिक संरचनाओं और प्राचीन इमारतों को अपरिवर्तनीय क्षति पहुंचेगी.
इस मामले में ‘सफ़दर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट’ द्वारा जारी किए गए बयान पर पर्यटन विभाग के पूर्व महानिदेशक और राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण के सदस्य, एम सलीम बेग, इतिहासकार रोमिला थापर और इरफान हबीब सहित अन्य कई लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं.
वहीं केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्राचीन स्मारकों, पुरातत्व स्थलों और अवशेष अधिनियम (2010) में संशोधन करने की अनुमति दे दी है. साथ ही केंद्र द्वारा वित्त सहायता प्राप्त परियोजनाओं को राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों के दायरे में आने वाले प्रतिबंधित क्षेत्र में स्थापित करने की अनुमति भी दे दी गई है.
सफ़दर हाशमी मेमोरियल ट्रस्ट के बयान के अनुसार, ‘ये अधिनियम एएमएएसआर (अमेंडमेंट एंड वैलिडेशन) आर्डिनेंस की जगह लाया गया है. इस आर्डिनेंस को राष्ट्रपति ने 23 जनवरी, 2010 को लागू किया था.’
‘स्मारकों के बचाव और रख रखाव के लिए जो निहित था वो कमेटी की रिपोर्ट में और जॉन रस्किन के शब्दों में संक्षित्प तरीके से इस प्रकार रखा गया है, ‘हम इन ऐतिहासिक स्मारकों को किसी फायदे या भावनाओं के आधार पर नहीं बचाएंगे. बल्कि हमारा तो कोई हक़ ही नहीं है उन्हें छूने का, वो हमारी जागीर नहीं है. जिन्होंने इन्हें बनाया था, ये उनके हैं और आने वाली पीढ़ी के हैं. भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में भी ऐतिहासिक इमारतों को सार्वजनिक विरासत माना गया है.’
इतिहासकारों ने इन स्मारकों के आस-पास होने वाले निर्माण और अन्य प्रक्रियाओं पर चिंता जताते हुए कहा, ‘इमारत के आसपास 100 मीटर के दायरे को पहले प्रतिबंधित क्षेत्र माना जाता था. अगर ये नया संशोधन लागू हुआ तो इन इमारतों के आस-पास और तरह-तरह की इमारतें बनाई जाएंगी. ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातात्विक अवशेष पर कम्पन, रासायनिक प्रभाव या फिर यांत्रिक तनाव का सबसे जल्दी और सबसे ज़्यादा असर होता है. कई जगहों पर इन इमारतों के प्रतिबंधित इलाके के दायरे में खुदे हुए अवशेष भी होते हैं जो भविष्य में अनुसंधान और खोज के लिए ज़रूरी होते हैं, ये इमारतें, ये ऐतिहासिक स्थल न सिर्फ हमारे देश के गौरवशाली इतिहास के प्रतीक हैं बल्कि पूरे विश्व की धरोहर हैं और हमें इन सांस्कृतिक सम्पदाओं को बचाना, संरक्षित करना बेहद ज़रूरी है.’
इन सभी हस्ताक्षर करने वाले लोगों ने केंद्र सरकार से इस संशोधन पर रोक लगाने की अपील की है. हस्ताक्षर करने वाले लोगों में एम सलीम बेग, भारत भूषण, रोमिला थापर, प्रभात पटनायक और इरफान हबीब सहित अन्य कई इतिहासकार व वास्तुकार शामिल हैं.