पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी समेत आठ लोग सोमवार को ‘दलित अत्याचार और निदान’ विषय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस और गोष्ठी करने जा रहे थे, तभी उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया.
हम लोगों ने सोमवार 12 बजे से चार बजे से लखनऊ प्रेस क्लब में ‘दलित अत्याचार और निदान’ विषय पर एक विचार गोष्ठी रखी थी. इसमें गुजरात से कुछ दलित लोग आ रहे थे, उनको शामिल होना था और उत्तर प्रदेश के कुछ दलित संगठनों को शामिल होना था.
ये प्रोग्राम उत्तर प्रदेश के दलित संगठनों की ओर से आयोजित था. जो लोग गुजरात से आए थे, उनको प्रशासन ने झांसी में ही रोककर वहीं से वापस कर दिया. अपने कार्यक्रम के मुताबिक, हम लोग जब 11 बजे के करीब प्रेसक्लब पहुंचे तो हमने देखा कि वहां पर पहले से पुलिस मौजूद है.
हमने प्रेस क्लब के प्रबंधन से पूछा तो उन्होंने कहा कि आप लोगों को प्रेसक्लब का जो एलॉटमेंट हुआ था, सरकार के दबाव में वह कैंसिल कर दिया गया है. अब आप लोग यहां प्रोग्राम नहीं कर सकते. हम लोगों ने कहा कि ठीक है अगर कैंसिल हो गया तो हम लोग प्रोग्राम नहीं करेंगे.
इसके बाद हम सभी आठ लोग वहीं बैठकर आपस में बातचीत करने लगे कि अब आगे हमें क्या करना चाहिए. हम बातचीत कर ही रहे थे कि एक पुलिस अधिकारी हमारे पास आया और कहने लगा कि आप लोग यहां बिना अनुमति के प्रोग्राम करने जा रहे थे. आप लोगों ने धारा 144 का उल्लंघन किया है, आप लोगों ने शांति भंग की है.
मैंने उनको बताया कि प्रेसक्लब के अंदर किसी परमिशन की जरूरत नहीं है. हम विचार गोष्ठी कर रहे हैं, हम प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं, हमने प्रेस को भी आमंत्रित किया है.
दूसरे, धारा 144 किसी बिल्डिंग के अंदर नहीं लगती है. वो बाहर होती है. हम लोग बाहर निकले नहीं. हम सड़क पर नहीं गए. न हमने रैली निकाली. हमने कोई कानून नहीं तोड़ा.
अधिकारी ने कहा, नहीं, आप लोगों के द्वारा ऐसा किए जाने की संभावना है, लाइकली टू डू इट. हमने कहा कि यह तो आपकी कल्पना है, फिर तो आप ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं. कल्पना आप कर सकते हैं. लेकिन कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं था. लेकिन वे लोग हमारी गिरफ़्तारी करने पर अड़े रहे.
मुझे लगता है कि उन्हें ऊपर से ऐसा करने का निर्देश मिला हुआ था. हम लोगों को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया, वहां से पुलिस लाइन में ले गए. डेढ़ बजे ले गए और साढ़े पांच बजे तक बंद रखा.
वहां पर औपचारिक तौर पर हमें गिरफ़्तार किया गया. हम पर 151, 158, 160 समेत कई धाराएं लगाईं. हम सभी से प्रतिव्यक्ति 20 हजार रुपये का जमानत के मुचलके के तौर पर पर्सनल बॉन्ड भरवाया गया, फिर हमें छोड़ा गया.
ऐसा यूपी प्रशासन ने तब किया, जब न हमने कोई शांति भंग की थी, न कोई कानून तोड़ा था, न हमारा ऐसा कोई प्रोग्राम था. प्रशासन ने कल्पना की कि हमारे द्वारा शांति भंग किए जाने की संभावना है. गिरफ्तार करने के लिए कोई कारण चाहिए तो प्रशासन ने यह कारण दिया कि शांति भंग किए जाने की संभावना है.
सरकार सभी प्रकार के विरोध को, सभी प्रकार की आवाजों को दबा देने पर लगी हुई है. सरकार हम लोगों की गिरफ्तारी करके एक तरह का आतंक, एक तरह का भय पैदा करना चाहती है ताकि कोई दूसरे लोग भी इस प्रकार के विरोध करने की या बयान देने की हिम्मत न कर सकें.
एक पूर्व आईपीएस की हैसियत से अगर मैं गिरफ्तार होता हूं तो निश्चित तौर पर जनता में एक संदेश जाता है. दोनों तरह का संदेश जा सकता है कि लोग डर भी सकते हैं और उत्साहित भी हो सकते हैं.
मेरे ख्याल से तो यही है कि सरकार का इरादा भय पैदा करने का है. कहीं कोई विरोध न होने दिया जाए, कहीं कोई मीटिंग न होने दी जाए. योगी सरकार का दावा है कि वे कानून व्यवस्था को बहुत सख्ती से संभाल रहे हैं. वे सख्ती करके कानून व्यवस्था संभाल रहे हैं. हमारी गिरफ्तारी इसी दिशा में उनका एक कदम है.
हमारे साथ 23 लोग और थे जो एक दिन पहले लखनऊ पहुंचे थे. उनको हमने नेहरू युवा केंद्र में ठहराया था. उन्हें दो तारीख को रात में ही पुलिस ने घेर लिया और नजरबंद कर लिया था. तीन तारीख को दिन भर उन्हें नजरबंद रखा, शाम को छोड़ा गया.
सरकार हर तरह के कार्यकर्ताओं को, चाहे वह सामाजिक कार्यकर्ता हो, राजनीतिक कार्यकर्ता हो या मानवाधिकार कार्यकर्ता हो, यह मैसेज देना चाहती है कि विरोध करने पर कार्रवाई होगी. सरकार चाहती है कि सबको इतना आतंकित कर दो कि विरोध की कोई आवाज न उठे.
(कृष्णकांत से बातचीत पर आधारित)