मोदी सरकार ने अडानी समूह को 500 करोड़ का फ़ायदा पहुंचाया

सरकार ने चुपके से स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन से जुड़े नियमों में बदलाव किए, जिसका सीधा फ़ायदा अडानी समूह को पहुंचा.

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गौतम अडानी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. (फाइल फोटो: ट्विटर)

सरकार ने चुपके से स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन से जुड़े नियमों में बदलाव किए, जिसका सीधा फ़ायदा अडानी समूह को पहुंचा.

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वाइब्रेंट गुजरात समिट में गौतम अडानी के साथ प्रधानमंत्री मोदी (फाइल फोटो: ट्विटर)

हाल ही में सरकार द्वारा एक ऐसा फैसला लिया गया, जिसका मकसद गुपचुप तरीके से स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (विशेष आर्थिक क्षेत्रों) यानी सेज़ से संबंधित नियमों को बदलना था. नियमों में हुए इस बदलाव से अडानी समूह की एक कंपनी को 500 करोड़ रुपए का फायदा पहुंचेगा.

हालांकि, अडानी समूह ने उम्मीद के अनुरूप और सही फरमाया कि कंपनी ने कुछ भी ग़लत या ग़ैर क़ानूनी नहीं किया है, मगर वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों (जिनमें वित्तमंत्री अरुण जेटली भी शामिल हैं) के साथ ही उद्योग और वाणिज्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों (जिनमें मंत्रालय को संभाल रहीं राज्यमंत्री निर्मला सीतारमण भी हैं) ने लगभग एक महीने पहले इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली  द्वारा भेजी गई एक विस्तृत प्रश्नावली का अब तक कोई जवाब नहीं दिया है. इस प्रश्नावली में उनसे सरकार के इस कदम के पीछे के तर्क को समझाने को कहा गया था जो प्रकट तौर पर एक खास कंपनी को मदद पहुंचाता हुआ दिख रहा है. अडानी समूह के सर्वेसर्वा गौतम अडानी हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काफ़ी करीबी माने जाते हैं.

अगस्त, 2016 में डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स (वाणिज्य विभाग) ने स्पेशल इकोनॉमिक जोन्स रूल्स (सेज़ नियमों), 2016 में संशोधन करते हुए उसमें एक नया प्रावधान जोड़ा था, जो स्पेशल इकोनॉमिक जोन्स एक्ट (सेज़ एक्ट), 2005 के तहत रिफंड के दावों से संबंधित था. सेज़ एक्ट के तहत किए गए इस संशोधन से पहले किसी तरह के रिफंड का कोई प्रावधान नहीं था. इस लेख के लेखकों को मिली विश्वसनीय जानकारी के मुताबिक यह संशोधन खासतौर पर अडानी पावर लिमिटेड (एपीएल) को लगभग 500 करोड़ रुपए के करीब की कस्टम ड्यूटी के रिफंड का दावा करने का मौका देने के लिए किया गया था.

एपीएल का दावा है कि उसने कच्चा माल और अन्य कंज्यूमेबल्स (इनपुटों) पर यानी बिजली के उत्पादन के लिए मुख्यतः कोयले के आयात पर कस्टम ड्यूटी चुकाई है. लेकिन, ईपीडब्लू को मिले दस्तावेजों के मुताबिक दरअसल एपीएल ने मार्च 2015 के अंत में कच्चा माल और उपभोग की वस्तुओं पर बनने वाली करीब 1000 करोड़ रुपए की ड्यूटी चुकाई ही नहीं. पहली नज़र में ऐसा लगता है कि सेज़ नियमों में संशोधन करके उसमें कस्टम ड्यूटी का रिफंड मांगने का प्रावधान डालकर वाणिज्य विभाग एपीएल को एक ऐसी ड्यूटी पर रिफंड का दावा करने की इजाज़त दे रहा है, जिसका भुगतान उसके द्वारा कभी किया ही नहीं गया.

एपीएल, इंडोनेशिया से कोयले का आयात करता है. कंपनी द्वारा (साथ ही दूसरी कंपनियों, जैसे, रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर, रोज़ा पावर सप्लाई, एस्सार ग्रुप फर्म्स आदि कंपनियों के द्वारा भी) इंडोनेशिया से कोयले का आयात पिछले काफ़ी समय से डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलीजेंस (डीआरआई) की जांच के दायरे में है. मार्च,  2016 में डीआरआई (वित्त मंत्रालय में राजस्व विभाग की जांच शाखा) ने दावा किया था कि इंडोनेशिया से आयात किये जा रहे कोयले की ओवर इनवॉयसिंग (बढ़ाकर बिल बनाना) की जा रही है, ताकि देश का पैसा देश के बाहर भेजा जा सके.

इससे एपीएल समेत दूसरी बिजली उत्पादक कंपनियां आयातित कोयले की नकली तरीके से बढ़ाई गई कीमत के आधार पर सरकार से बिजली के टैरिफ पर ज़्यादा मुआवजा ले रही हैं. इसके साथ ही अडानी और एस्सार समूह की कंपनियों पर आयात किए गए बिजली संयंत्र के उपकरणों की ओवर इनवॉयसिंग करने का भी आरोप है. ये जानकारियां पहली बार पिछले साल ईपीडब्लू में अप्रैल और मई में छपी थीं. ड्यूटियों (करों) की सुनियोजित चोरी का यह उदाहरण एक कदम और आगे की चीज़ है. यह एक ऐसी ड्यूटी के रिफंड की मांग से संबंधित है, जो वास्तव में चुकाई ही नहीं गई है.

गुजरात के मूंदड़ा में अवस्थित एपीएल 660 मेगावाट क्षमता वाले भारत के पहले सुपर-क्रिटिकल टेक्नोलॉजी और कोयला आधारित थर्मल बिजली घर की स्थापना का दावा करता है. मूंदड़ा पावर प्लांट (एमपीपी) जो कि अडानी पोर्ट एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (एपीएसईजेड) के भीतर ही अवस्थित है, की कुल क्षमता 4,620 मेगावाट है. एमपीपी में नौ अलग-अलग इकाइयां हैं- 330 मेगावाट क्षमता की चार और 660 मेगावाट की पांच इकाइयां.

एपीएसईजे़ड 1,50,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में स्थित कई बिजली परियोजनाओं के सबसे बड़े ऑपरेटरों में से एक है. इस 15,000 हेक्टेयर में से 6,456 हेक्टेयर को ‘सेज़’ या ‘प्रोसेसिंग’ क्षेत्र घोषित किया गया है. एपीएसईजे़ड को पहले मूंदड़ा पोर्ट एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन  लिमिटेड के नाम से जाना जाता था. 6 जनवरी, 2012 को इसने अपना नाम बदल लिया.

शुरुआती योजना के मुताबिक एक 1,320 मेगावाट के पावर प्लांट की स्थापना की जानी थी. एपीएल बाद में एक बड़ी परियोजना में एमपीपी के को-डेवलपर के तौर पर शामिल हो गया, जिसकी उत्पादन क्षमता अब 4,620 मेगावाट है.

नियमों में तोड़-मरोड़

गुजरात में एपीएसईजेड के वरिष्ठ अधिकारी, जिन्होंने गोपनीयता की शर्त पर ईपीडब्लू से बात की, के मुताबिक , ‘अडानी पावर ने एपीएसईजेड के डेवलपमेंट कमिश्नर के सामने 506 करोड़ के रिफंड का दावा करते हुए एक आवेदन दाखिल किया…वाणिज्य विभाग ने सेज़ नियमों के नियम 47 को संशोधित किया जिसका मकसद इस रिफंड को मुमकिन बनाना था. इस संशोधन के द्वारा कस्टम, एक्साइज और सर्विस टैक्स अधिकारियों को इस रिफंड आवेदन का निपटारा करने का अधिकार दिया गया.’ सेज़ नियम, 2006 को 5 अगस्त, 2016 के एक नोटिफिकेशन द्वारा संशोधित कर दिया गया और नियम 47 में उपनियम 5 जोड़ दिया गया. जो यह कहता है:

स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन्स (सेज़) एक्ट, 2005 के तहत अधिकृत ऑपरेशनों से संबंधित मामलों में  रिफंड, मांग (डिमांड), न्यायिक निर्णय, समीक्षा और अपील, जिनमें लेन-देन और वस्तु तथा सेवा भी शामिल हैं, अधिकारक्षेत्र वाले कस्टम्स एंड सेंट्रल एक्साइज अथॉरिटीज द्वारा कस्टम्स एक्ट 1962, फाइनेंस एक्ट (वित्त अधिनियम), 1994 या इनके तहत बनाए गए नियमों या जारी किए गए नोटिफिकेशनों के आधार पर किए जा सकेंगे.

एपीएल द्वारा दायर किया गया रिफंड आवेदन कच्चे मालों, मुख्यतः कोयला और सेज़ नियमों के नियम 47 (3) के तहत उपभोग की वस्तुओं या अन्य इनपुटों पर अदा की जानेवाली कस्टम ड्यूटी से संबंधित है. एपीएल का दावा है कि इसने बिजली के उत्पादन के लिए आयातित कोयले पर कस्टम ड्यूटी चुकाई है, इसलिए उसे चुकाई गई ड्यूटी पर रिफंड मांगने का अधिकार है, क्योंकि सेज़ के भीतर कंपनियों और उत्पादकों को ड्यूटी चुकाने से छूट दी गई है.

नियम 47 (3) के तहत सेज़ के भीतर बिजली के उत्पादन में इस्तेमाल में आनेवाले या उत्पादकों द्वारा खरीदे गए इनपुटों और कच्चे माल पर उस सूरत में कस्टम ड्यूटी चुकाने की बात की गई है, जब ऐसे बिजली संयंत्रों में उत्पादित बिजली सेज़ से बाहर डोमेस्टिक टैरिफ एरिया (डीटीए) में भेजी गई हो. यह ड्यूटी तब लगाई जाती है, जब नियम 47(3) के तहत रखी गई शर्तें पूरी होती हैं.

दूसरे शब्दों में, नियम 47(3) कहता है कि अगर सेज़ के भीतर स्थित कोई बिजली उत्पादक फालतू बिजली को डीटीए में भेजता है, तब पावर प्लांट को उन इनपुटों और कच्चे मालों पर कस्टम ड्यूटी चुकानी होगी, जिन्हें बिना कस्टम ड्यूटी चुकाए खरीदा गया था और जिनका इस्तेमाल बिजली के उत्पादन के लिए किया गया.

इस तरह, एपीएल उस सीमा तक कच्चे माल, मुख्यतः कोयला और अन्य इनपुटों पर ड्यूटी चुकाने के लिए बाध्य है, जिस सीमा तक इनका प्रयोग डीटीए में स्थित कंपनियों (निजी और सरकारी) को बिजली आपूर्ति करने के लिए बिजली उत्पादन के लिए किया गया.

एपीएल ने अडानी पावर लिमिटेड बनाम भारत सरकार केस में कोयले पर चुकाई गई ड्यूटी से संबंधित तथ्य गुजरात हाईकोर्ट में जमा कराए हैं. लेकिन, ईपीडब्लू को विश्वसनीय सूत्रों से हासिल दस्तावेजों के मुताबिक, ‘कच्चे माल और अन्य वस्तुओं पर कोई कर नहीं चुकाया गया है, जो कि सेज़ क़ानून के मुताबिक अनिवार्य है.’

एपीएल ने कच्चे मालों और अन्य वस्तुओं पर 2015 के मार्च के अंत तक करों में करीब 1,000 करोड़ रुपए के करीब की छूट ली थी. यह पैसा चुकाया जाना चाहिए, मगर कभी चुकाया नहीं गया.

सेज़ को मिलने वाली रियायतें

विशेष आर्थिक क्षेत्र यानी सेज़ देश के भीतर विशिष्ट तौर पर निर्धारित किये गए क्षेत्र हैं, जिन पर देश के बाकी क्षेत्रों से अलग क़ानूनी और आर्थिक नियम लागू होते हैं. ऐसी नीति बनाने और किसी क्षेत्र की पहचान सेज़ के तौर पर करने के पीछे मकसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना है. इन क्षेत्रों के भीतर काम करनेवाली कंपनियों को बाकी फायदों के अलावा कर में छूट मिलती है. इन्हें बाजार के चालू दर से करों (कस्टम ड्यूटी समेत) का भुगतान नहीं करना पड़ता है.

कस्टम्स एक्ट, 1962, में यह प्रावधान किया गया है कि सरकार के पास यह अधिकार है कि वह व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए कुछ खास वस्तुओं पर ‘या तो सामान्य तौर पर पूरी तरह से या कुछ शर्तों के अधीन (जिन्हें क्लीयरेंस से पहले या बाद में पूरा करना होगा)’ आम तौर पर लगने वाली कस्टम ड्यूटी न लेकर या तो उसे पूरी तरह से कस्टम ड्यूटी से छूट दे सकती है या पूरी राशि के एक हिस्से की छूट दे सकती है.

सेज़ एक्ट, 2005 के अनुच्छेद 26 में उन शर्तों का उल्लेख किया गया है जिनके तहत किसी कंपनी को सेज़ में आयातित या वहां से निर्यातित वस्तुओं और सेवाओं पर कस्टम ड्यूटी चुकाने से छूट दी गई है. लेकिन, सेज़ एक्ट का अनुच्छेद 30 केंद्र सरकार को सेज़ से बाहर या डीटीए में स्थानांतरित किए गए क्रियाकलापों, वस्तुओं और सेवाओं पर कस्टम ड्यूटी लगाने का अधिकार भी देता है.

सेज़ एक्ट के मुताबिक, वैसा कोई भी क्षेत्र जो सेज़ के तौर पर पहचान किए गए भू-भाग से बाहर पड़ता है, डोमेस्टिक टैरिफ एरिया या घरेलू टैरिफ क्षेत्र (डीटीए) के तौर पर जाना जाता है. इसके अलावा, सेज़ एक्ट और सेज़ नियम साफ़ तौर पर उन विशिष्ट छूटों और टैरिफ रियायतों का जिक्र करते हैं, जो सेज़ से डीटीए में कार्यरत किसी कंपनी को वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री या हस्तांतरण पर मिलती हैं.

अडानी समूह का पावर प्लांट मुख्य तौर पर इंडोनेशिया से (कस्टम ड्यूटी में कुछ छूट मिलने के बाद) कोयला खरीदता है और बिजली उत्पादन करके सेज़ के भीतर की दूसरी इकाइयों और कंपनियों के अलावा सेज़ से बाहर की कंपनियों, मुख्यतौर पर बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) को बेच देता है. इनमें से कई बिजली वितरण कंपनियां राज्य सरकारों के स्वामित्व वाली हैं, जिनमें से कुछ डीटीए में काम करती हैं.

2010 की फरवरी तक, सरकारी नियमों के तहत बिजली उत्पादक कंपनियों को बिजली उत्पादन में लगनेवाले कोयले और अन्य इनपुटों के लिए कस्टम ड्यूटी चुकाना ज़रूरी था. 27 फरवरी, 2010 को आए कस्टम नोटिफिकेशन 25/2010 के बाद सेज़ के अंदर काम करनेवाले बिजली उत्पादकों को डीटीए की कंपनियों को बेची गई बिजली पर कस्टम ड्यूटी चुकाने का प्रावधान कर दिया गया. वह भी 26 जून, 2009 से पहले की तारीख से.

इन कंपनियों पर इस तारीख से 16 फीसदी का एडवलोरेम (इनवॉयस में दर्ज मूल्य का निश्चित प्रतिशत) कर लगाया गया. आखिरकार इसे घटकार तीन पैसे प्रति यूनिट या किलोवाट घंटे कर दिया गया (टेबल 1 देखें). सवाल उठता है कि क्या तीन पैसे प्रति यूनिट की दर से लगाई गई इस ड्यूटी से कोयले और दूसरे इनपुटों पर लगनेवाली ड्यूटी के हुए नुकसान की भरपाई हो सकती है, जिसे पहले सेज़ नियमों के नियम 47 (3) के तहत वसूला जाता था?

इसका जवाब स्पष्ट तौर पर ‘नहीं’ है.

इस संदर्भ में ध्यान देनेवाली दूसरी बात ये है कि 16 फरवरी, 2016 की तारीख वाले नोटिफिकेशन 9/2016 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि 1000 मेगावाट से ज़्यादा क्षमतावाले देश के सबसे बड़े बिजली घरों को, जिन्हें, 27 फरवरी, 2009 से पहले सेज़ के भीतर पावर प्लांट लगाने की अनुमति मिली थी, उन्हें ड्यूटी चुकाने से पूरी तरह छूट दी जाती है. हालांकि, छोटे बिजलीघरों (1000 मेगावाट से कम स्थापित क्षमतावाले) कर के दायरे में बने रहे. ऐसा लगता है नियम में इस बदलाव का मकसद एपीएल जैसी कंपनियों को फायदा पहुंचाना था.

टेबल-1 : सेज़ को लेकर नियमों में लगातार बदलाव

नोटिफिकेशन संख्या प्रभाव में आने की तारीख प्रभाव
1 21/2008-कस्टम्स 10 मार्च, 2008 इसने 01 मार्च, 2002 की तारीख वाले नोटिफिकेशन संख्या 21/2002-कस्टम्स को संशोधित किया और उसमें एक सीरियल नंबर 573 जोड़ दिया, जिसके द्वारा सीटीएच (कस्टम टैरिफ हेडिंग) 27160000 के तहत  आयात की जानेवाली सभी वस्तुओं को कस्टम ड्यूटी से मुक्त कर दिया.
2 25/2010-कस्टम्स (जनरल  स्टेचुटरी रूल्स) जीएसआर(ई)

तारीख- 27 फ़रवरी, 2010

26 जून, 2009

(पहले की तरीख से)

इसके द्वारा टेबल के सीरियल नंबर  573 को दो भागों में बांट दिया गया. यह नोटिफिकेशन निकाला गया कि पीछे के तारीख 26 जून 2009 से सेज़ से बाहर भेजी गयी बिजली पर 16 फीसदी की दर से कस्टम ड्यूटी लगाई जाएगी. आयात को करों से दी जानेवाली छूट को जारी रखा गया.
3 60/2010 10 मई, 2010 नोटिफिकेशन 25/2010-कस्टम्स को निष्प्रभावी बना दिया गया.
4 91/2010 06 सितंबर 2010 इसके जरिये 01 मार्च 2002 की तारीख वाले नोटिफिकेशन संख्या 21/2002 को संशोधित किया गया ताकि आयातित कोयले का इस्तेमाल करनेवाले 1000 मेगावाट से ज़्यादा क्षमता वाले पावर प्लांटों पर 10 पैसे प्रति यूनिट की दर से ड्यूटी लगाई जा सके और अन्य प्लांटों पर 4 पैसे प्रति यूनिट की दर से ड्यूटी लगायी जा सके.
5 12/2012 17 मार्च, 2012 नोटिफिकेशन संख्या 21/2002-कस्टम्स को अप्रभावी बना दिया गया जिसके तहत आयातित कोयले का इस्तेमाल करनेवाले 1000 मेगावाट से बड़े पावर प्लांटों पर 10 पैसे प्रति यूनिट और अन्य प्लांटों पर 4 पैसे प्रति यूनिट की दर से ड्यूटी लगाने का प्रावधान किया गया था, उस बिजली पर जिसे सेज़ से बाहर भेजा गया हो. (सीरियल नंबर 145 और 146 के सन्दर्भ में)
6 26/2012 18 अप्रैल, 2012 इसके द्वारा नोटिफिकेशन संख्या 12/2012-कस्टम्स को संशोधित किया गया ताकि 1000 मेगावाट से ज़्यादा क्षमता वाले पावर प्लांटों पर लगने वाली ड्यूटी घटाकर 3 पैसे कर दी जाए और छोटे प्लांटों को ड्यूटी से छूट दे दी जाए.
7 9/2016 16 फरवरी 2016 सेज के भीतर स्थापित 1000 मेगावाट के उन पावर प्लांटों को पूरी तरह से ड्यूटी चुकाने से छूट दे दी गयी, जिनको प्लांट लगाने की अनुमति 27 फ़रवरी, 2009 से पहले मिल गयी थी. लेकिन छोटे प्लांटों पर कर पहले की तरह जारी रहा.


अडानी पावर बनाम भारत सरकार

एपीएल ने नोटिफिकेशन संख्या 25/2010 की संवैधानिकता और वैधता को चुनौती देते हुए गुजरात हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की. इस नोटिफिकेशन के जरिए सरकार ने सेज़ से घरेलू टैरिफ क्षेत्र और/या सेज़ के ‘नॉन प्रोसेसिंग’ (गैर-उत्पादक) क्षेत्रों में भेजी गई बिजली पर 16 फीसदी एडवलोरेम की दर से कस्टम ड्यूटी लगाने की बात की थी. यह ड्यूटी पीछे की तारीख 26 जून, 2009 से लगाई जानी थी.

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि अगर मूंदड़ा सेज़ में एपीएल के पावर प्लांट से घरेलू टैरिफ क्षेत्र में आनेवाले विभिन्न राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों और निजी इकाइयों को बेची गई बिजली पर ड्यूटी लगाई जाती है, तो यह डबल टैक्सेशन (दोहरे कराधान) का मामल बन जाएगा, क्योंकि कंपनी पर पहले ही सेज़ नियमों के नियम 47(3) के तहत कच्चे मालों और अन्य इनपुटों पर कर चुकाने का दायित्व है.

इसके अलावा, चूंकि इस नोटिफिकेशन के द्वारा 26 जून, 2009 की बीती तारीख से कर लगाने का आदेश दिया गया है, इसलिए याचिकाकर्ता को 26 जून 2009 और 15 सितंबर, 2010 के बीच सेज़ के भीतर के पावर प्लांट से डीटीए में आपूर्ति की गई बिजली पर भी कस्टम ड्यूटी चुकानी पड़ेगी.

कस्टम नोटिफिकेशनों में बार-बार बदलाव 

केंद्र सरकार ने 1 मार्च, 2008 की तारीख वाले एक नोटिफिकेशन (सं. 21/2008) के द्वारा पहले के एक नोटिफिकेशन (21/2002-कस्टम्स) को संशोधित कर दिया और यह प्रावधान किया कि जब ‘विद्युत ऊर्जा’ का आयात किया जाएगा, तो इस पर कोई कस्टम ड्यूटी नहीं यानी शून्य कस्टम ड्यूटी लगेगी.

2002 के नोटिफिकेशन में बिजली के उत्पादन में इस्तेमाल में लाई जानेवाली सारी वस्तुओं पर कोई अतिरिक्त ड्यूटी चुकाने से छूट दी गई थी जबकि कस्टम ड्यूटी की मानक दर एडवलोरेम (इनवॉयस राशि का निश्चित प्रतिशत) थी.

2010 में 27 फरवरी, 2010 की तारीख वाले एक दूसरे नोटिफिकेशन (सं. 25/2010-कस्टम्स) के द्वारा सरकार ने यह स्पष्ट किया कि कस्टम्स टैरिफ एक्ट भारत में आयातित बिजली पर पूरी तरह से सीमा-शुल्क चुकाने से छूट देता है. हालांकि, सरकार ने इस नोटिफिकेशन में यह शर्त जोड़ दी कि जब विद्युत ऊर्जा को सेज़ से बाहर डीटीए में या सेज़ के भीतर ही प्रोसेसिंग क्षेत्र से नॉन-प्रोसेसिंग क्षेत्र में भेजा जाएगा तब यह छूट नहीं दी जाएगी.

इस तरह से कस्टम नोटिफिकेशन 25/2010 ने यह स्पष्ट किया कि अगर डीटीए में किसी खरीदार को बिजली बेची जाती है, तो कस्टम ड्यूटी भरनी पड़ेगी. अगर बिजली डीटीए से बाहर यानी उसी सेज़ के भीतर किसी दूसरी इकाई या कंपनी को, या दूसरे सेज़ के भीतर किसी कंपनी को बेची जाती है या विदेशी बाजार में इसका निर्यात किया जाता है, तो कस्टम ड्यूटी पर मिलनेवाली छूट जारी रहेगी.

लेकिन, इस नीति की उम्र ज़्यादा नहीं थी. एक महीने के बाद फाइनेंस एक्ट (वित्त अधिनियम), 2010 के जरिए सरकार ने कस्टम टैक्स की अपनी नीति को फिर संशोधित कर दिया. पहले की तारीख से लागू होनेवाले इस संशोधन ने उपनियम 60 के जरिए कस्टम ड्यूटी को शून्य से बढ़ाकर 16 प्रतिशत कर दिया.

इस तथ्य के मद्देनज़र कि इस संशोधन को पीछे की तारीख से लागू करने की बात की गई थी, एपीएल ने इसे कोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी कि उसे डीटीए को बेची गई बिजली पर 16 प्रतिशत की कस्टम ड्यूटी भरनी पड़ेगी. सरकार ने 10 मई, 2010 की तारीख वाले कस्टम नोटिफिकेशन 60/2010 और नोटिफिकेशन संख्या 25/2010 को निरस्त कर दिया था.

सरकार ने फाइनेंस एक्ट, 2010 में संशोधन को 6 सितंबर, 2010 की तारीख के एक और नोटिफिकेशन (सं. 91/2010)7 के जरिए सुधारने की कोशिश की, जो कुछ शर्तें पूरी करने की स्थिति में सेज़ के भीतर उत्पादन के बाद इसे डीटीए या सेज़ के नॉन-प्रोसेसिंग क्षेत्र को भेजे जाने की स्थिति में कस्टम ड्यूटी चुकाने से छूट देता था. सरकार ने कस्टम्स नोटिफिकेशन सं. 91/2010 के द्वारा केस आधारित या कच्चे माल के स्रोत के आधार पर कर और टैरिफ की एक नई व्यवस्था कायम करने की कोशिश की.

गुजरात हाईकोर्ट का फैसला

27 फरवरी, 2010 की तारीख वाले कस्टम नोटिफिकेशन सं. 25/2010 को अमान्य करार देते हुए और इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 265 का उल्लंघन बताते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने इस नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया. एपीएल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने यह माना कि सेज़ से डीटीए को बिजली भेजने पर 16 प्रतिशत की दर से कस्टम ड्यूटी लगाना याचिकाकर्ता पर दोहरे कराधान (डबल टैक्सेशन) के समान है. कोर्ट ने कहा:

हमें याचिकाकर्ता की इस दलील में दम नज़र आता है कि याचिकाकर्ता पर दोहरे कराधान का बोझ नहीं डाला जा सकता. और अगर याचिकाकर्ता से उसके द्वारा आपूर्ति की गई बिजली पर कस्टम चुकाने के लिए कहा जाता है तो याचिकाकर्ता पर कच्चे मालों पर या अन्य इनपुटों पर कोई अन्य अन्य ड्यूटी नहीं लगाई जानी चाहिए और याचिकाकर्ता ने कच्चे मालों पर जो ड्यूटी चुकाई है, वह उसे लौटाई जानी चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता है तो सेज़ से घरेलू टैरिफ क्षेत्र को आपूर्ति की गई बिजली पर लगाई गई ड्यूटी को दोहरा कराधान (डबल टैक्सेशन) माना जाएगा. यह संविधान के अनुच्छेद 265 का उल्लंघन होगा.

हाई कोर्ट ने पीछे की तारीख से कस्टम ड्यूटी लगाए जाने को ग़ैर क़ानूनी और मनमाना करार दिया. इस तरह याचिकाकर्ता 26 जून, 2009 से 15 सितंबर, 2010 के बीच सेज़ के अपने पावर प्लांट से घरेलू टैरिफ क्षेत्र को भेजी गई बिजली पर ड्यूटी की छूट का हकदार था.

कोर्ट की कार्यवाही पर सवाल

नाम न छापने की शर्त पर ईपीडब्लू से बात करनेवाले एक स्रोत के मुताबिक, ‘कच्चे मालों और दूसरे इनपुटों पर कोई कर अदा ही नहीं किया गया, जो कि सेज़ क़ानून के तहत अनिवार्य है.’ इस स्रोत का आरोप है कि एपीएल ने गुजरात हाईकोर्ट के सामने यह कहा कि सेज़ से घरेलू टैरिफ क्षेत्र को बेची गई बिजली पर कस्टम ड्यूटी लगाना, दोहरे कराधान के समान था, क्योंकि एपीएल कच्चे मालों और दूसरे इनपुटों पर पहले ही कर चुका दिया था. लेकिन, हकीकत यह है कि करीब 1000 करोड़ से ज़्यादा का कर चुकाया ही नहीं गया है.

इसके अलावा, इस स्रोत ने दावा किया कि ‘सेज़ के अधिकारियों ने कच्चे मालों और दूसरे इनपुटों पर कभी कोई कर वसूल नहीं किया है.’ यानी कोर्ट को यह कह कर गुमराह किया गया और उसके सामने इस बारे में ग़लत दस्तावेज पेश किए गए कि सेज़ से डीटीए को की गई बिजली की आपूर्ति पर लगाई गई कस्टम ड्यूटी क़ानून सम्मत नहीं है, क्योंकि यह डबल टैक्सेशन का मामला बनता है.

गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ दायर की गई याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर, 2015 को ख़ारिज कर दिया. 21 अप्रैल, 2016 को दायर की गई एक पुनर्विचार याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया.

यह बेहद हैरत की बात है कि गुजरात हाईकोर्ट के फैसले में एपीएल के द्वारा जमा किए गए उस सबूत का कोई संदर्भ नहीं था, जिससे तथाकथित तौर पर यह साबित होता था कि उसने कोयले के आयात के वक्त ज़रूरी कस्टम ड्यूटी चुकाई थी. आश्चर्य की बात ये भी है कि भारत सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल ने भी इस बारे में कोई आपत्ति नहीं की.

इसके अलावा उस स्रोत ने दावा भी किया कि चूंकि, ‘सेज़ अधिकारियों ने कभी भी कच्चे मालों और दूसरे इनपुटों पर कोई कर नहीं वसूला’ इसका मतलब है कि हाईकोर्ट को गुमराह किया गया और उसे यह ग़लत जानकारी दी गई कि कच्चे माल पर ड्यूटी चुकाई जा चुकी है.

एपीएल को भारी मुनाफा

सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम्स (सीबीईसी) की वेबसाइट से इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक सीबीईसी की मूंदड़ा कमिश्नरी में एपीएल के रिफंड के तीन आवेदन लंबित पड़े हैं. 11 अगस्त, 2016 के पहले आवेदन (सं. 1172) में 487.75 करोड़ के रिफंड की मांग की गई है.

12 अगस्त, 2016 के दूसरे रिफंड आवेदन में (सं. 1175) ने 2.30 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की गई है. 12 अगस्त, 2016 की तारीख के एक तीसरे रिफंड आवेदन (सं. 1175) में, 84.37 लाख के रिफंड की मांग की गई है.

इस तरह, सीबीईसी पर एपीएल ने (अगस्त-सितंबर 2016 तक उपलब्ध आंकड़े के मुताबिक) कुल 490.89 करोड़ के रिफंड का दावा किया है.

हालांकि, सीबीईसी की वेबसाइट से डाउनलोड की गई अक्टूबर, 2016 की रिफंड रिपोर्ट के मुताबिक जहां आवेदन संख्या 1174 और 1175 में कोई बदलाव नहीं हुआ था, आवेदन संख्या 1172 (जो 11 अगस्त, 2016 को किया गया था) ने बेहद कम रिफंड राशि (पहले के 487.75 करोड़ के दावे की तुलना में) का दावा किया.

इस तरह अक्टूबर की रिपोर्ट के आधार पर एपीएल ने सीबीईसी पर कुल 30.14 करोड़ की रिफंड राशि का दावा किया था. ये तीनों आवेदन सीबीईसी की वेबसाइट पर नवंबर और दिसंबर के महीने के लिए उपलब्ध रिफंड आंकड़ों में शामिल नहीं थे, न ही सीबीईसी के आंकड़े ही एपीएल की तरफ से किसी नए रिफंड आवेदन की ओर इशारा करते हैं.

आखिर अडानी समूह की कंपनियों के इन आवेदनों का क्या हुआ? क्या रिफंड स्वीकृत कर दिया गया? हमें इसके बारे में ठीक-ठीक कुछ भी नहीं पता, क्योंकि वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने ईपीडब्लू  द्वारा भेजी गई प्रश्नावली का कोई जवाब नहीं दिया है.

हमारा यकीन है कि कस्टम अधिकारी एपीएल को 500 करोड़ रुपए का रिफंड दे रहे हैं, इस तथ्य से आंखें मूंदते हुए कि उन्होंने कंपनी से 1000 करोड़ रुपये की ड्यूटी नहीं वसूली है.

गुजरात सेज़ में काम कर रहे एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘इस बात में कोई शक नहीं है कि कच्चे माल तथा अन्य इनपुट, ड्यूटी में किसी तरह की छूट के काबिल नहीं हैं. यह बात तब साबित हो जाती है, जब सेज़ अधिनियम, 2005 के अनुच्छेद 6(सी) को सेज़ नियमों के नियम 27(3) और 53 के साथ मिला कर पढ़ा जाता है. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपर किन अन्य दायित्वों से बंधा है.’

इसके अलावा, एपीएल के वकील ने कोर्ट में इस दावे के पक्ष में कि कंपनी पर दोबारा कर लगाया जा रहा है, यह दलील दी कि कंपनी ने कच्चे माल (कोयला) पर कर चुकाया था. एपीएल के वकीलों के दावे चाहे कुछ भी हों, गुजरात हाई कोर्ट के फैसले से यह साफ नहीं है कि कोर्ट ने क्या कोई सबूत मांगा या उसके सामने कोई ऐसा सबूत पेश किया गया, जिससे जजों को यह यकीन हो गया कि एपीएल ने वास्तव में अपने दावे के अनुसार ही ड्यूटी चुकाई थी.

वाणिज्य विभाग द्वारा जब-तब, बार-बार और पीछे की तारीख से नियमों और प्रक्रियाओं में किए गए संशोधन न सिर्फ अजीब हैं, बल्कि कई सवाल छोड़ जाते हैं. सवाल उठता है कि क्या नियमों में यह बदलाव एक रसूखदार व्यक्ति की कंपनी को मदद पहुंचाने के लिए किया गया.

इपीडब्लू ने 24 मई को ई-मेल और नियमित डाक से एक ब्यौरेवार प्रश्नावली निम्नलिखित लोगों को भेजी: वित्तमंत्री अरुण जेटली, राजस्व सचिव हसमुख अधिया, डीआरआई के (अतिरिक्त कार्यभार संभाल रहे) डायरेक्टर जनरल देबी प्रसाद दाश, मूंदड़ा पोर्ट और सेज़ के कस्टम के मुख्य कलेक्टर पीवी रेड्डी, वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्व सचिव रीत तेवतिया. इस लेख के प्रकाशन तक इनमें से किसी की भी तरफ से कोई जवाब नहीं आया था. अगर और जब उनके जवाब आते हैं, उन्हें इस लेख में शामिल किया जाएगा.

उसी दिन एक प्रश्नावली ई-मेल और चिट्ठी के जरिए, अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी को भेजी गई. 10 जून को अडानी समूह के चीफ लीगल ऑफिसर जतिन जलंधरवाला की तरफ से एक जवाब आया, जिसमें कहा गया:

….मैं यह सूचित करना/जानकारी देना  चाहूंगा कि माननीय गुजरात हाई कोर्ट ने जुलाई, 2015 में यह फैसला सुनाया कि सेज़ से डीटीए को भेजी गई बिजली पर कोई कस्टम ड्यूटी नहीं चुकाई जानी थी. सुप्रीम कोर्ट भी नंवबर, 2015 और अप्रैल, 2016 के फैसलों के द्वारा भारत सरकार द्वारा दायर की गई क्रमशः सिविल अपील और पुनर्विचार याचिका को ख़ारिज करके इस फैसले पर अपनी मुहर लगा चुका है. इस तरह इस सवाल पर अंतिम तरीके से फैसला हो चुका है कि सेज़ से डीटीए को भेजी गई बिजली पर कोई ड्यूटी बकाया नहीं है. हम यह भी जोड़ना चाहेंगे कि सेज़ के प्रोसेसिंग एरिया में एपीएल के पावर प्लांट को 27.02.2009 से पहले ही स्वीकृति दी गई थी. सेज़ एक्ट डेवलपर्स को कुछ निश्चित छूट और रियायतें देता है. उनके हिसाब से सेज़ में अधिकृत कामकाज करने के लिए आयातित या खरीदी गई किसी वस्तु पर कोई कर या लेवी नहीं लगाने का प्रावधान है. इसलिए हमारी समझ के अनुसार हमें सेज़ में आयातित या खरीदी गई किसी वस्तु के लिए कोई कर या लेवी चुकाने की कोई ज़रूरत नहीं है. हमें उम्मीद है कि ये स्पष्टीकरण इस विषय पर आपकी शंकाओं को दूर करने के लिए काफ़ी होगा. इसलिए हमें यह लगता है कि इससे आगे कोई और सूचना/ब्यौरा ज़रूरी नहीं है.

प्रंजॉय गुहा ठाकुरता ([email protected]) ईपीडब्लू के संपादक हैं. अद्वैत राव पलेपू ([email protected]) और शिंजनी जैन ([email protected]) स्वतंत्र रिसर्चर हैं. अबीर दासगुप्ता ([email protected]ईपीडब्लू से जुड़े हैं.

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