करीब 15 साल पहले पारित किए गए आपदा प्रबंधन अधिनियम में ये प्रावधान दिया गया है कि आम जनता या संस्थान नेशनल डिज़ास्टर रिस्पॉन्स फंड (एनडीआरएफ) में अनुदान दे सकते हैं, लेकिन इसे लेकर अब तक कोई अकाउंट नहीं बनाया गया है. पीएम केयर्स के विपरीत इस फंड पर आरटीआई एक्ट लागू है और इसकी ऑडिटिंग कैग करता है.
नई दिल्ली: कोरोना वायरस के चलते देशव्यापी लॉकडाउन लगाने के साथ ही भारत सरकार ने आपात स्थिति का हवाला देकर जनता से आर्थिक मदद प्राप्त करने के लिए पीएम केयर्स फंड की घोषणा की. सरकार ने कहा कि इसमें प्राप्त धनराशि इस महामारी से लड़ने में इस्तेमाल की जाएगी.
हालांकि ये फंड अपने गठन से ही विवादों में घिरा हुआ है. इसकी प्रमुख वजह इसकी अपारदर्शी कार्यप्रणाली है. अब प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने ये भी कहा है कि यह फंड सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून, 2005 के दायरे से भी बाहर है.
इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर ये मांग की गई है पीएम केयर्स फंड में प्राप्त हुई पूरी राशि को नेशनल डिज़ास्टर रिस्पॉन्स फंड (एनडीआरएफ) में ट्रांसफर किया जाए.
याचिकाकर्ता ने ये दलील दी है कि एनडीआरएफ एक पारदर्शी व्यवस्था है और इसमें प्राप्त राशि को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा ऑडिट किया जाता है.
हालांकि खास बात ये है कि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत बनाए गए एनडीआरएफ में पहले से ही ये प्रावधान है कि इसमें आम जनता या संस्थान अनुदान दे सकते हैं, जिसका इस्तेमाल आपात स्थितियों से निपटने में किया जाएगा.
लेकिन इस एक्ट के बनने के 15 साल के बाद भी इस संबंध में आज तक कोई अकाउंट नहीं खोला गया है, जिसमें लोग डोनेशन दे सकें.
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 46(1) में आपात परिस्थितियों या किसी आपदा से निपटने के लिए नेशनल डिज़ास्टर रिस्पॉन्स फंड (एनडीआरएफ) के गठन का प्रावधान दिया गया है. एक्ट की धारा 46(1)(ए) के तहत केंद्र सरकार हर साल इस फंड में पैसे डालती है, जिसका इस्तेमाल आपदा राहत में किया जाता है.
वहीं धारा 46(1)(बी) में कहा गया है कि आपदा प्रबंधन के लिए कोई भी व्यक्ति या संस्थान अनुदान दे सकता है. हालांकि इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा अब तक कोई अकाउंट नहीं खोला जा सका है, जिसमें जनता पैसा डाल सके.
ध्यान देने वाली बात ये है कि आपात परिस्थितियों के दौरान आर्थिक मदद प्राप्त करने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय आपदा कोष (पीएमएनआरएफ) बनाया हुआ है, जो कि आरटीआई एक्ट के दायरे में नहीं है और इसकी ऑडिटिंग एक स्वतंत्र ऑडिटर के जरिये कराई जाती है.
इसी तरह से पीएम केयर्स फंड बनाया गया है, जिसकी कार्यप्रणाली काफी अपारदर्शी है. प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना है कि चूंकि यह पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट है और यह किसी सरकारी आदेश नहीं बल्कि प्रधानमंत्री की अपील पर बनाया गया है, इसलिए इस पर आरटीआई एक्ट लागू नहीं होता है.
पीएम केयर्स के संबंध में सामान्य जानकारी जैसे कि इसमें कितनी राशि प्राप्त हुई, इससे कितनी राशि खर्च की गई और किन कार्यों के लिए ये राशि खर्च की गई- ये सब भी नहीं बताया जा रहा है.
इसके उलट एनडीआरएफ संसद द्वारा पारित एक्ट के तहत बनाया गया है, इसलिए यह फंड आरटीआई एक्ट के दायरे में भी है और इसकी ऑडिटिंग राष्ट्रीय ऑडिटर कैग करता है.
पीएमएनआरएफ और पीएम केयर्स फंड के विपरीत एनडीआरएफ की व्यवस्था पारदर्शी है और जनता इसके संबंध में सरकार से सवाल-जवाब कर सकती है.
हालांकि एनडीआरएफ में जनता/संस्थानों से अनुदान प्राप्त करने के लिए अभी तक कोई अकाउंट नहीं खोला गया है या कोई अन्य व्यवस्था स्थापित नहीं की गई है, जिससे लोग इसमें अनुदान दे सके.
इस संबंध में द वायर और कोमोडोर लोकश बत्रा (रिटायर्ड) ने विभिन्न विभागों में आरटीआई आवेदन दायर कर एनडीआरएफ में जनता द्वारा अनुदान देने की प्रक्रिया के बारे में पूछा था.
इसके अलावा इस संबंध में बनाए गए किसी नियम/प्रकिया या कार्यप्रणाली की सत्यापित प्रति मांगी गई थी.
हालांकि कई दिनों तक इस संबंध में कोई जवाब नहीं आया. कुछ दिन इंतजार के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय के आपदा प्रबंधन विभाग ने नौ जून 2020 को बत्रा को एक जवाब भेजकर कहा कि ये मामला वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग को देखना है.
आपदा प्रबंधन विभाग ने अपने जवाब में कहा, ‘मांगी गई जानकारी इस ऑफिस के रिकॉर्ड में नहीं है. इस संबंध में यह सूचित किया जाता है कि चूंकि एनडीआरएफ के बजट प्रावधान और सेस/कर के कलेक्शन को व्यय विभाग, वित्त मंत्रालय देखता है. इस तरह मांग गई जानकारी व्यय विभाग के अधिकार क्षेत्र में है.’
इसके बाद संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए व्यय विभाग में आरटीआई आवेदन दायर किया गया, हालांकि वहां से अब तक जवाब नहीं आया.
इसके बाद द वायर ने केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला, व्यय सचिव डॉ. टीवी सोमनाथन और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सदस्य सचिव जीवीवी सरमा को पत्र लिखकर जानकारी मांगी कि क्या कोई ऐसी व्यवस्था तैयार की गई है जिसके तहत कोई व्यक्ति/संस्थान एनडीआरएफ में अनुदान दे सकता है.
इसके अलावा उनसे यह भी पूछा गया कि इसके संबंध में बनाए गए नियमों या प्रक्रियाओं की सत्यापित प्रति मुहैया कराई जाए.
इसे लेकर गृह सचिव और एनडीएमए के सदस्य सचिव ने अब तक कोई जवाब नहीं दिया है. हालांकि व्यय सचिव के ऑफिस ने जवाब दिया है, ‘ये मामला केंद्रीय मंत्रालय द्वारा देखा जाना है.’
चूंकि गृह मंत्रालय ने आरटीआई के तहत ऑन-रिकॉर्ड कहा था कि एनडीआरएफ से जुड़ा ये मामला व्यय विभाग द्वारा देखा जाएगा, इस पर द वायर ने गृह मंत्रालय के जवाब को संलग्न करते हुए व्यय सचिव को एक और पत्र लिखा और उन्हें गृह मंत्रालय के जवाब से अवगत कराते हुए एनडीआरएफ में जनता द्वारा अनुदान देने के बारे में उनसे जवाब मांगा.
इस बार व्यय सचिव का कोई जवाब नहीं आया. हालांकि सूत्रों ने द वायर को पुष्टि की है कि आरटीआई आवेदन और पत्र लिखे जाने के बाद व्यय विभाग ने एनडीआरएफ में जनता/संस्थानों से अनुदान प्राप्त करने के लिए कार्यप्रणाली को मंजूदी दे दी है और गृह मंत्रालय में अकाउंट खोलने के लिए उन्हें ऑफिस मेमोरैंडम (ओएम) जारी किया गया है.
विभाग ने स्टेट डिज़ास्टर रिस्पॉन्स फंड (एसडीआरएफ) के संबंध में भी यही करने को कहा है.
सूत्र ने कहा, ‘अगर हमें जनता से पैसा मिलता है तो यह और अच्छा होगा. हमारे पास फंड की कमी हो रही है. पहले हमें सेस से काफी पैसा मिल जाता था, जिसे हम एनडीआरएफ में खर्च करते थे, लेकिन जीएसटी आने के बाद सेस का स्कोप काफी कम हो गया है और काफी कुछ बजट से खर्च करना पड़ता है.’
अब अकाउंट खोलने के संबंध में गृह मंत्रालय को अंतिम फैसला लेना है.
मालूम हो कि बीते बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने पीएम केयर्स फंड को एनडीआरएफ में ट्रांसफर करने को लेकर दायर याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि आपदा प्रबंधन कानून, 2005 के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा रहा है और एनडीआरएफ के होते हुए पीएम केयर्स जैसी अपारदर्शी व्यवस्था बनाई गई है.