उत्तराखंड विधानसभा चुनाव: अस्तित्व की लड़ाई लड़ता उत्तराखंड क्रांति दल

उत्तराखंड क्रांति दल ने ही अलग उत्तराखंड राज्य की स्थापना की मांग की थी. यह क्षेत्रीय दल आज सिर्फ एक विधायक के साथ अपनी जमीन तलाश रहा है.

यूकेडी नेता नरेंद्र अधिकारी पार्टी कार्यकता के साथ (फोटो: गौरव भटनागर)

उत्तराखंड क्रांति दल ने ही अलग उत्तराखंड राज्य की स्थापना की मांग की थी. यह क्षेत्रीय दल आज सिर्फ एक विधायक के साथ अपनी जमीन तलाश रहा है.

यूकेडी नेता नरेंद्र अधिकारी पार्टी कार्यकता के साथ (फोटो: गौरव भटनागर)
यूकेडी नेता नरेंद्र अधिकारी पार्टी कार्यकता के साथ (फोटो: गौरव भटनागर)

उत्तराखंड के अलग राज्य की स्थापना के लिए संघर्ष करने वाली संगठन उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. 1994 में उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग करने की मांग यूकेडी ने उठाई थी.

यूकेडी का राजनैतिक अस्तित्व अब धंसता नज़र आ रहा है. पार्टी ने 2002 में पहले विधानसभा में 4 सीट पर जीत हासिल की थी, तो 2007 में वह 3 सीट पर सिमट गयी थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में यूकेडी महज एक सीट मिली.

इस बार उत्तराखंड के सबसे बड़े क्षेत्रीय दल यूकेडी ने 70 सीटों में से 56 सीटों पर लड़ने का फैसला किया है. यूकेडी ज्यादा ध्यान द्वाराहाट सीट पर है. यहां से पार्टी अध्यक्ष पुष्पेश त्रिपाठी चुनाव लड़ रहें है.

पार्टी दीदीहाट पर भी जोर लगा रही है, जहां से पार्टी के संस्थापक सदस्य और पार्टी नेता काशी सिंह ऐरी लड़ रहें है. यूकेडी 4 सीटों को लेकर गंभीर है और नहीं चाहती की पहली बार पार्टी का सूपड़ा प्रदेश से साफ़ हो जाए.

यूकेडी अध्यक्ष त्रिपाठी ने द्वाराहाट सीट पर 2007 में जीत दर्ज की थी, पर 2012 में कांग्रेस उम्मीद्वार मैदान सिंह बिष्ट से 3300 वोटों से हार गए. शहर में कांग्रेस विधायक बिष्ट के अलावा भाजपा उम्मीद्वार महेश नेगी और बसपा उम्मीद्वार गिरीश चौधरी के बड़े-बड़े पोस्टर बैनर लगे हुए है. त्रिपाठी की रैली में यह सब नहीं है, उनके साथ कुछ पार्टी कार्यकर्ता और कुछ पोस्टर है. त्रिपाठी के प्रचार के मुकाबले बाकी दल बड़े पैमाने पर प्रचार कर रहें है.

प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा पार्टी के दफ्तर शहर में प्रमुख जगहों पर है, तो बसपा का दफ्तर शहर को आने वाली सड़क पर है. यूकेडी का दफ्तर कुछ दुकानों का समूह के पीछे है. पार्टी के दफ्तर के पास का माहौल नहीं बताता है कि यह किसी पार्टी का दफ्तर है. जो प्रदेश में होने वाले चुनाव में 2 बड़े केंद्रीय पार्टियों को टक्कर लेने जा रही है.

यूकेडी के दफ्तर के बाहर शाम को कुछ कार्यकर्ता ठंड की वजह से आग जलाये बैठे रहते है. पार्टी के केंद्रीय सचिव नरेंद्र अधिकारी का कहना है कि यूकेडी हमेशा उत्तराखंड के विकास के लिए खड़ी है. पार्टी के पास पैसे नहीं है पर फिर भी संघर्ष जारी रखेंगे.

नोटबंदी पर बात करते हुए अधिकारी का कहना था, ‘नोटबंदी के कारण कांग्रेस और भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ा होगा क्योंकि उनके साथ शराब माफिया है. यह पार्टियां चुनाव के वक़्त मुफ्त शराब बंटवाती है, जिससे हमारा युवा ख़राब हो रहा है. नोटबंदी ने हम पर असर डाला है, क्योंकि हमे छोटी-छोटी धनराशि मदद के रूप में मिलती थी. मिलने वाली नकद मदद में भारी गिरावट भी आई है.’

अधिकारी ने कहा कि यूकेडी मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में वाहनों की मदद से प्रचार कर रही है. ‘हमारा अभियान आसपास के लोगों को प्रभावित करने पर केंद्रित है. शराब हमारे युवाओं को खराब कर रही है. जिसके लिए राज्य में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी कर रहे हैं. हम बंदरों के आतंक के खतरे पर अंकुश लगाने के लिए कार्रवाई करना चाहते हैं. बंदर हमारी फसलें ख़राब करते है, इसलिए तत्काल रूप से गांवों में शहरों से उनके स्थानांतरण का अंत चाहते हैं.’

यूकेडी की यह भी मांग है कि ग्रीष्मकालीन राजधानी को तत्काल गैरसेंण स्थानांतरित किया जाए जिससे पूरे पहाड़ी क्षेत्र के लोगों को लाभ मिल सके. इससे रोजगार, पर्यटन और निवेश में मदद मिलेगी. अधिकारी के अनुसार इससे करीब 5000 गांवों को फायदा मिलने की उम्मीद है.

यूकेडी के एक और कार्यकर्ता हरीदत्त फुुलारा ने कांग्रेस और भाजपा पर आरोप लगाया है कि 17 वर्ष स्थापना के बाद भी लोगों को पीने का पानी, सड़क और स्वास्थ्य सुविधा तक उपलब्ध कराने में दोनों दल विफल हो चुका है.

टल्लीखाली ग्राम सभा के प्रधान और स्कूल प्रधानाचार्य पूरण चंद पांडेय के अनुसार दोनों राष्ट्रीय दल पूरी तरह विफल हो चुकी है और यूकेडी का इस बार नारा है ‘न भाजपा न कांग्रेस’. पांडेय का कहना है ‘हमने कांग्रेस को सिर्फ इसलिए समर्थन दिया था, क्योंकि हम दोबारा चुनाव के खर्च का बोझ जनता पर नहीं डालना चाहते थे.’

2012 में कांग्रेस को यूकेडी का समर्थन देना नुकसानदायक साबित हुआ है. पार्टी के पास एक ही विधायक है, प्रीतम सिंह पंवार जो बाद में सरकार में बतौर मंत्री भी बनाये गए थे. इस बार पंवार धनौल्टी से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ रहे हैं.

2012 में बहुत सारे बसपा के और यूकेडी के उम्मीद्वार कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इस बात के चलते जनता असमंजस में है कि इन छोटे दलों को वोट दें या फिर दोनों राष्ट्रीय दल को.

द्वाराहाट क्रासिंग के पास मोबाइल दूकान के मालिक दीपक सिंह के अनुसार उनकी विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबला है. चौधरी कहतें है ‘हम इस बात जीत और हार में सिर्फ 200-300 वोटों का फर्क होगा.’

द्वाराहाट के निवासी और बीमा अधिकारी भारत तिवारी के अनुसार कांग्रेस अपने विधायक और मुख्यमंत्री के काम के ऊपर वोट मांग रहे है. भाजपा के पास वही पुराना नरेंद्र मोदी फार्मूला है.

यूकेडी का असर लोकल में है और वह यहां की लोकल समस्याओं पर आवाज़ उठता है. तिवारी कहतें है ‘समस्य चाहे शराब की हो, बंदरों के आतंक की हो और चाहे बेरोज़गारी की हो या फिर गांव से लोगों के पलायन की हो. हर समस्या को यूकेडी समझता है और लोगों के लिए काम भी करता है.लेकिन यह देखने की बात है कि क्या ये पर्याप्त होगा.