एनजीओ ‘वर्ल्ड विज़न एशिया पैसिफ़िक’ द्वारा जारी सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि लॉकडाउन की सबसे अधिक मार दिहाड़ी मज़दूरों पर पड़ी और इसके चलते छिनी आजीविका ग्रामीण और शहरी ग़रीबों के लिए सबसे बड़ी चिंता बन गई.
नई दिल्ली: कोविड-19 के दौरान उत्पन्न चुनौतियों को लेकर किए गए एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि एक अप्रैल से लेकर 15 मई तक के बीच 24 राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों में करीब 55 फीसदी परिवार दिन में महज दो वक्त का खाना ही जुटा पाए. देश में 5,568 परिवारों पर किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई है.
बच्चों के अधिकारों के लिए कार्यरत गैर सरकारी संगठन ‘वर्ल्ड विजन एशिया पैसिफिक’ द्वारा जारी ‘एशियाज़ मोस्ट वल्नरेबल चिल्ड्रेन ऑन द ब्रिंक ड्यू टू कोविड 19’ नाम के आकलन में पाया गया कि भारतीयों परिवारों पर पड़े आर्थिक, मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक दबाव ने बच्चों के कल्याण के सभी पहलुओं पर असर डाला- जिनमें खाद्य, पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, जरूरी दवाएं, स्वच्छता आदि तक पहुंच और बाल अधिकार एवं सुरक्षा जैसे पहलू शामिल हैं.
इस अध्ययन में एक अप्रैल से लेकर 15 मई तक 24 राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों (दिल्ली तथा जम्मू कश्मीर) के 119 जिलों में 5,668 परिवारों पर सर्वेक्षण किया गया, जिसमें मुख्य रूप से सामने आया कि कोविड-19 के चलते 60 प्रतिशत से अधिक अभिभावकों/देखभाल करने वाले पारिवारिक सदस्यों की आजीविका पूरी तरह या गंभीर रूप से प्रभावित हुई.
सर्वेक्षण के दौरान पाया गया कि लॉकडाउन की सबसे अधिक मार दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ी और इसके चलते छिनी आजीविका ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिए सबसे बड़ी चिंता बन गई. दिहाड़ी मजदूर इस सर्वेक्षण का सबसे बड़ा हिस्सा थे.
Loss of livelihood is the top-most concern for the rural and urban poor, which in turn negatively affects all the other aspects of child well-being.
PRESS RELEASE: https://t.co/Uu7JvUefel#COVID19 pic.twitter.com/VMKEPXLq8x
— World Vision Asia-Pacific (@WVAsia) July 14, 2020
अध्ययन में कहा गया है, ‘करीब 67 फीसदी शहरी अभिभावकों/देखभाल करने वाले पारिवारिक सदस्यों ने पिछले हफ्तों में काम छूट जाने या आय में कमी आने की बात कही है.’
इस रिपोर्ट के निष्कर्ष से खुलासा हुआ है कि सर्वेक्षण में शामिल परिवारों में से 55.1 फीसदी परिवार दिन में महज दो वक्त का खाना ही जुटा पाए जो सामर्थ्य चुनौती के कारण भोजन आपूर्ति तक उनकी सीमित पहुंच को दर्शाता है.
अध्ययन में सामने आया है कि केवल 56 फीसदी लोग ही हमेशा स्वच्छता संबंधी चीजें जुटा पाए, जबकि 40 फीसदी कभी-कभार ऐसा कर पाए.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पर्याप्त पानी एवं स्वच्छता तक पहुंच एक चुनौती है जिससे कुपोषण एवं कोविड-19 समेत बीमारियों के प्रसार का खतरा बढ़ जाता है.’
इसमें कहा गया है, ‘आय चले जाने, स्कूल की कमी, बच्चों के आचरण में बदलाव से परिवार पर आए दबाव के चलते बच्चों को शारीरिक सजा एवं भावनात्मक उत्पीड़न से दो-चार होना पड़ा.’