उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बार कुल 55 लाख टन गेहूं ख़रीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन राज्य सरकार इसमें से 35.76 लाख टन ही गेहूं ख़रीद पाई है, जो कि लक्ष्य की तुलना में लगभग 20 लाख टन कम है.
नई दिल्ली: कोरोना महामारी के बीच उत्तर प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद के लिए रजिस्ट्रेशन कराएं 1.30 लाख से ज्यादा किसानों से खरीदी नहीं की गई है.
ये स्थिति ऐसे समय पर है जब राज्य सरकार खरीदी लक्ष्य के बराबर ही गेहूं नहीं खरीद पाई है और राज्य में गेहूं के बाजार मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चल रहे थे.
उत्तर प्रदेश सरकार ने रबी-2020 खरीद सीजन में कुल 55 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन सरकार इसमें से 35.76 लाख टन गेहूं ही खरीद पाई है, जो कि लक्ष्य की तुलना में करीब 20 लाख टन कम है.
राज्य के खाद्य एवं रसद विभाग द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों के मुताबिक, सरकारी खरीद केंद्रों पर गेहूं बेचने के लिए 794,488 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन इसमें से सिर्फ 663,364 किसानों से ही गेहूं की सरकारी खरीद हुई है.
इस तरह सरकार ने रजिस्ट्रेशन कराए 131,124 किसानों से गेहूं नहीं खरीदी है. पिछले साल (2019-20) में 7.24 लाख किसानों से 37 लाख टन से ज्यादा गेहूं की खरीदी की गई थी.
मालूम हो कि कोविड-19 महामारी के दौरान इस बात पर जोर दिया जा रहा था कि सरकार किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित कराए, ताकि वे इस संकट से लड़ सकें.
उत्तर प्रदेश के कुल 75 जिलों और 18 मंडलों में खरीदी की गई. खाद्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य के अयोध्या मंडल में कुल 35,603 किसानों ने खरीदी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन इसमें से 28,912 किसानों से ही खरीदी की गई.
इसी तरह अलीगढ़ मंडल में 64,882 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन इसमें से 61,954 किसानों से ही खरीदी की गई. आगरा मंडल में 51,333 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था और इसमें से 43,731 किसानों से ही खरीदी की गई.
इसी तरह आजमगढ़ मंडल में 34,415 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन इसमें से सिर्फ 22,020 किसानों से गेहूं खरीद हुई. कानपुर मंडल में 41,406 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया और इसमें से 38,031 किसानों से खरीदी हुई. इस मंडल में छह जिले क्रमश: इटावा, औरया, कन्नौज, कानपुर देहात, कानपुर नगर और फर्रुखाबाद आते हैं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के संसदीय क्षेत्र वाले गोरखपुर मंडल में 51,886 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन इसमें से सिर्फ 39,260 किसानों से ही गेहूं की सरकारी खरीद हुई.
इसी तरह बांदा, महोबा, हमीरपुर जिले वाले चित्रकूट मंडल में 39,732 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन इसमें से कुल 30,734 किसानों से ही सरकार ने गेहूं खरीदा. झांसी मंडल में 58,456 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था और इसमें से 40,295 किसानों से ही खरीदी की गई है.
अन्य मंडल जैसे कि बरेली, बस्ती, मेरठ, मुरादाबाद, मिर्जापुर, लखनऊ, वाराणसी और सहारनपुर का भी यही हाल है. कहीं पर भी जितने किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, उतने लोगों से खरीद नहीं हुई है.
मालूम हो कि गेहूं उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है. देश के कुल गेहूं उत्पादन में करीब 31.4 फीसदी हिस्सा उत्तर प्रदेश का है, इसके बावजूद अन्य राज्यों की तुलना में यहां खरीद काफी कम है.
एमएसपी की सिफारिश करने वाली केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश के सिर्फ सात फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है.
इसके उलट पंजाब के 80 फीसदी से ज्यादा किसानों को एमएसपी का लाभ मिलता है, जबकि यहां पर देश के करीब तीन फीसदी ही गेहूं किसान हैं.
सीएसीपी ने अपनी कई रिपोर्ट्स में ये कहा है कि किसानों को एमएसपी दिलाने और घरेलू बाजार में एमएसपी से कम मूल्य बिक्री की समस्या का समाधान करने के लिए खरीदी मशीनरी को मजबूत करने की जरूरत है.
पिछले साल उत्तर प्रदेश में कुल उत्पादन का 11.30 फीसदी ही खरीदी हुई, जबकि देश के कुल उत्पादन में सबसे ज्यादा 31.4 फीसदी हिस्सा यूपी का था. इसके उलट पंजाब में कुल उत्पाद का 72.62 फीसदी खरीदी हुई थी. हरियाणा में सबसे ज्यादा 79.97 फीसदी खरीदी हुई थी.
खास बात ये है कि उत्तर प्रदेश में कम खरीद ऐसे समय पर हुई है जब राज्य सरकार निर्धारित लक्ष्य के बराबर भी खरीद नहीं कर पाई है.
राज्य सरकार ने इस बार 55 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इसमें से करीब 35 लाख टन ही खरीदी हो पाई है. ये पहला मौका नहीं है, जब राज्य सरकार ने लक्ष्य से कम खरीद की है. राज्य की भाजपा सरकार के पिछले तीन सालों में दो बार ऐसा हुआ जब लक्ष्य से काफी कम खरीद हुई है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने वर्ष 2017-18 में 40 लाख टन, 2018-19 में 50 लाख टन और 2019-20 में 55 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा था.
हालांकि राज्य सरकार इन वर्षों के दौरान क्रमश: 36.99 लाख टन, 52.92 लाख टन और 37.04 लाख टन गेहूं ही खरीद पाई. सरकार द्वारा कृषि उपज की खरीदी इसलिए जरूरी है ताकि किसानों को बाजारों में एमएसपी से कम दाम पर प्राइवेट ट्रेडर्स को अपनी उपज न बेचना पड़े और उन्हें उचित मूल्य मिल पाए.
इसके अलावा सरकारी खरीद इसलिए भी आवश्यक है, ताकि बाजार मूल्य को एमएसपी के बराबर या इससे ज्यादा पर लाया जा सके.
लक्ष्य से कम खरीदी को लेकर विधानसभा में सवाल पूछा गया था कि ऐसा होने पर क्या सरकार कोई कार्रवाई करेगी.
इसे लेकर आदित्यनाथ ने कहा था, ‘बाजार मूल्य अधिक हो जाने तथा खरीद केंद्रों पर गेहूं की आवक कम होने के कारण निर्धारित लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पाता है. अत: लक्ष्य से कम खरीद करने के आधार पर कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही का औचित्य नहीं बनता है.’
हालांकि मुख्यमंत्री की ये दलीलें आंकड़ों से मेल नहीं खाते हैं. बाजार मूल्य की जानकारी देने वाली सरकारी एजेंसी एगमार्कनेट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में मई और जून महीने में बाजारों में गेहूं के दाम एमएसपी से कम थे.
रबी-2020 सीजन में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,925 रुपये थे. हालांकि आंकड़े दर्शाते हैं कि राज्य में कई जगहों पर किसानों को 1,800 से 1,900 के बीच में अपने उत्पाद को बेचना पड़ा है.
प्रतिदिन दो किसानों से भी खरीदी नहीं कर पाए खरीद केंद्र
उत्तर प्रदेश में गेहूं की सरकारी खरीद की रफ्तार इस कदर धीमी रही कि राज्य के खरीद केंद्र एक दिन में दो किसानों से भी गेहूं नहीं खरीद पाए.
खाद्य एवं रसद विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में गेहूं खरीद के लिए 10 एजेंसियों के कुल 5,954 खरीद केंद्र लगाए गए थे. इन केंद्रों ने मिलकर कुल 663,364 किसानों से खरीद की है. यानी कि एक खरीद केंद्र ने करीब 112 किसानों से खरीदी की है.
चूंकि इस साल 15 अप्रैल से लेकर 30 जून तक (कुल 75 दिन) गेहूं की सरकारी खरीद हुई है, इस तरह एक खरीद केंद्र ने एक दिन में औसतन मात्र 1.5 किसानों से गेहूं खरीदा है, जो दो किसानों से भी कम है.
वहीं अगर गेहूं खरीद की मात्रा से तुलना की जाए तो उत्तर प्रदेश में कुल 35.76 लाख टन गेहूं खरीद के अनुसार एक खरीद केंद्र ने 75 दिनों में करीब 600 टन गेहूं खरीदा है. इस तरह एक खरीद केंद्र ने एक दिन में महज आठ टन गेहूं खरीदा है.
कृषि विशेषज्ञों और किसानों का कहना है कि ये काफी कम खरीदी है, जिसका खामियाजा किसान को अपने उत्पाद को औने-पौने दाम पर बेचकर भुगतना पड़ता है.
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, इस बार एक किसान से औसतन 53 क्विंटल या 5.3 टन गेहूं खरीदा गया है.
सबसे ज्यादा खरीद एजेंसी उत्तर प्रदेश सहकारी संघ (पीसीएफ) ने 330,283 किसानों से 15.61 लाख टन गेहूं की खरीदी की है. दूसरे नंबर पर खाद्य विभाग की विपणन शाखा है, जिसने 138,992 लाख किसानों से 7.46 लाख टन गेहूं खरीदा है.
वहीं एक अन्य खरीद एजेंसी उत्तर प्रदेश को-ऑपरेटिव यूनियन (यूपीसीयू) ने 62,861 किसानों से 4.22 लाख टन गेहूं खरीदा है. उत्तर प्रदेश उपभोक्ता सहकारी संघ (यूपीएसएस) ने 42,562 किसानों से 2.67 लाख टन गेहूं की खरीदी की है.
रबी खरीदी सीजन 2020-21 में देश में रिकॉर्ड करीब 382 लाख टन गेहूं की खरीदी हुई है, जिसमें सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में 129 लाख टन की खरीद हुई है. पंजाब में 127 लाख टन और हरियाणा में 74 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है.
भारत सरकार हर साल एक निश्चित समय के दौरान रबी और खरीफ की फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदती है. इस खाद्यान्न का केंद्र की खाद्य सुरक्षा योजना (एनएफएसए), मिड-डे मील, पोषण कार्यक्रम इत्यादि के तहत वितरण किया जाता है.
इसमें से एक स्तर तक बफर स्टॉक भी रखा जाता है, जिसका इस्तेमाल कोरोना वायरस जैसे किसी आपदा के समय लोगों को भोजन मुहैया कराने के लिए किया जाता है.
मुख्य रूप से दो तरीके से खरीदी की जाती है. पहला ये कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) अपनी और राज्य एजेंसियों के जरिये सेंट्रल पूल के लिए खाद्यान्न खरीदती है.
दूसरा, विकेंद्रीकृत खरीद प्रणाली (डीसीपी) है, जिसके तहत राज्य में खाद्यान्न की खरीद, भंडारण और वितरण राज्य सरकारें खुद ही करती हैं और राज्य में चल रही कल्याणकारी योजनाओं के लिए खाद्यान्न का आवंटन करने के बाद जितना सरप्लस बच जाता है, उसे एफसीआई के सेंट्रल पूल में भेज दिया जाता है.