मार्च में जब देश में कोविड संक्रमण की शुरुआत हुई, तब बिहार में बहुत कम मामले सामने आए थे, लेकिन अब आलम यह है कि राज्य में संक्रमण के बढ़ते मामलों के मद्देनज़र दोबारा लॉकडाउन लगाना पड़ा है और मुख्यमंत्री के परिजनों से लेकर कई ज़िलों के प्रशासनिक अधिकारी तक कोरोना की चपेट में आ चुके हैं.
![पटना में एनएमसीएच के बाहर बिना पीपीई किट पहने काम करते स्वास्थ्यकर्मी. (फोटो: पीटीआई)](https://hindi.thewire.in/wp-content/uploads/2020/07/Bihar-Corona-Virus-PTI-.jpg)
22 मार्च को बिहार में जब कोविड-19 का पहला मामला सामने आया था, तब तक देश के 19 राज्यों में कोरोना वायरस फैला हुआ था और ये सभी राज्य कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले में बिहार से आगे थे.
अब लगभग 4 महीने बाद कोविड-19 से संक्रमण के मामले में बिहार देश में 12वें स्थान पर पहुंच चुका है और उन गिने-चुने राज्यों में शामिल है, जहां संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है.
21 जुलाई की शाम तक सूबे में कोविड-19 मरीजों की संख्या 28,564 पर पहुंच गई है और 198 लोगों की मौत हुई है.
कोविड-19 का संक्रमण यहां इस कदर फैल चुका है कि सीएम नीतीश कुमार के परिजन, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष संजय जायसवाल, बिहार सरकार में मंत्री, विधायक, गृह विभाग के अपर सचिव आमिर सुभानी, कई डीएम, एडीएम, एसपी तक इसकी चपेट में आ चुके हैं.
200 से ज्यादा चिकित्सक और मेडिकल स्टाफ भी संक्रमित हैं. कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण के चलते सूबे में 31 जुलाई तक दोबारा लॉकडाउन लगा दिया गया है.
राज्य के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने कहा, ‘संक्रमण लगातार बढ़ रहा है, इसलिए सरकार ने लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए दोबारा लॉकडाउन लगाया.’
कोविड-19 के बढ़ते मामले और दोबारा लॉकडाउन से पता चलता है कि बिहार में कोरोना महामारी बेकाबू हो रही है, लेकिन सवाल ये है कि दो महीने के लॉकडाउन के बावजूद बिहार में हालात हाथ से कैसे निकल गए? जानकार इसकी कई वजह मानते हैं.
कई आदेशों के बावजूद कम टेस्टिंग
4 जुलाई को नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने एक ट्वीट कर बताया कि 19 राज्यों में प्रति 10 लाख लोगों पर सैंपलों की जांच की संख्या सबसे कम बिहार में है.
The high tests per million being undertaken now in Delhi must be emulated by other states. This is critical. States must be judged on testing. We can succeed against #Covid-19 only with 3T strategy of testing, tracing & treating. This is the moment to act, and to act fast. pic.twitter.com/Mrl7rqW3JN
— Amitabh Kant (@amitabhk87) July 4, 2020
आंकड़ों के अनुसार, बिहार में प्रति 10 लाख लोगों में से 2197 लोगों की जांच हो रही है, जो दिल्ली, तमिलनाडु, असम, राजस्थान, पंजाब व अन्य राज्यों के मुकाबले काफी कम है.
बिहार में जब कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले सामने आने शुरू हुए थे, तो काफी कम जांच होती थी.
1 मई से केंद्र सरकार ने मजदूरों को उनके गृह राज्यों में पहुंचाने के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने की घोषणा की थी, तो बिहार में रोजाना 1000 से 2000 के बीच सैंपलों की जांच की जाती थी.
इस अवधि में संक्रमित मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा था, लेकिन टेस्टिंग कम होती थी.
12 मई को नीतीश कुमार ने स्वास्थ्य विभाग को रोज़ 10000 सैंपलों की जांच करने को कहा था, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ और पुराने ढर्रे पर ही सैंपलों की जांच चलती रही.
30 जून को नीतीश कुमार ने प्रतिदिन 15 हजार सैंपलों की जांच करने को कहा, लेकिन तब तक उनके पुराने आदेश का भी पालन नहीं हो रहा था. जिस दिन उन्होंने यह आदेश दिया था, उस दिन महज 8,231 सैंपलों की जांच हुई थी.
अभी रोजाना लगभग 10,000 सैंपलों की जांच हो रही है, तो भारी तादाद में संक्रमित मरीज मिल रहे हैं. 17 जुलाई को 10,273 सैंपलों की जांच की गई थी, जिनमें से 1,742 लोग कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए.
![Patna: A medic collects a sample from a woman for COVID-19 test at a collection centre, during the total lockdown, in Patna, Friday, July 17, 2020. (PTI Photo)(PTI17-07-2020_000109B)](https://hindi.thewire.in/wp-content/uploads/2020/07/Bihar-Corona-Virus-PTI-1.jpg)
10 जुलाई से 19 जुलाई के बीच 12,049 कोविड-19 संक्रमित मरीज मिले हैं, जो बिहार में दर्ज कुल मामलों का 45.67 प्रतिशत है.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के बिहार चैप्टर के सचिव डॉ राजीव रंजन ने द वायर को बताया, ‘कोविड-19 से लड़ाई में टेस्ट का अहम योगदान है. जितना ज्यादा टेस्ट होगा, उतने ज्यादा पॉजिटिव मामले सामने आएंगे. इससे संक्रमण की चेन तोड़ने में मदद मिलेगी.’
डॉ राजीव रंजन ने आगे कहा, ‘पूर्व में इस महामारी पर काबू करने के लिए जिन उपायों पर ज्यादा जोर दिया गया था, उनमें टेस्टिंग सबसे प्रमुख था. हम पिछले आंकड़ों से समझ पा रहे हैं कि अगर शुरुआत से ही टेस्ट बढ़ाए जाते, तो बिहार में काफी हद तक नियंत्रण हो सकता था. मेडिकल प्रैक्टिशनर होने के नाते मैं यही जानता हूं कि अगर इसे कंट्रोल करना है, तो टेस्ट का दायरा बढ़ाना होगा.’
1 जून के बाद नहीं हुई प्रवासियों की ट्रैकिंग
31 मई को एक पत्र जारी कर 1 जून के बाद बिहार लौटने वाले प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन नहीं करने व क्वारंटीन सेंटरों को 15 जून तक बंद करने का भी आदेश दिया गया था.
उस वक्त कुछ जनप्रतिनिधियों ने आशंका जताई थी कि इससे संक्रमण फैलना का खतरा बढ़ सकता है. ये आशंका इसलिए व्यक्ति की गई थी क्योंकि उस वक़्त प्रवासियों में कोरोना संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे थे.
विगत 6 जून तक बिहार मे कोविड-19 से संक्रमित मरीजों की संख्या 4,745 दर्ज की गई थी, जिनमें 75 फीसदी
मरीज दूसरे राज्यों से लौटे लोग थे.
क्वारंटीन सेंटर बंद करने के पीछे सरकार का तर्क था कि जितने प्रवासियों को लौटना था, वे श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से लौट चुके हैं, लेकिन हकीकत ये है कि प्रवासी मजदूरों का बिहार लौटना अब भी जारी है.
द वायर ने इस संबंध में कई जिलों के मुखिया से बात की. इस बातचीत में सभी ने स्वीकार किया कि उनके गांवों में प्रवासी मजदूर अब भी लौट रहे हैं और अपने घरों में रह रहे हैं, लेकिन उनकी ट्रैकिंग नहीं हो रही है.
रोहतास जिले के दिनारा ब्लॉक की अरंग पंचायत की मुखिया प्रमिला देवी ने बताया, ‘क्वारंटीन सेंटर बंद होने के बाद से अब तक 200 से 250 लोग बाहर से आ चुके हैं, लेकिन उनकी कोई निगरानी नहीं हो रही है. इसको लेकर हमारे पास कोई निर्देशिका भी नहीं आई है.’
यही बात अन्य कई मुखिया ने भी दोहराई. 1 जून के बाद बिहार लौटे लोगों ने भी मुखिया की बातों से सहमति जताई.
रोहतास निवासी दिलीप जायसवाल 3 जून को घर लौटे थे. उन्होंने कहा, ‘मुझसे कोई भी पूछने नहीं आया था कि मैं कहां से आया हूं और मुझमें कोई लक्षण है कि नहीं. 25 जून को बुखार और खांसी की शिकायत पर मैं अनुमंडल अस्पताल में गया. वहां से मुझे पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (एनएमसीएच) जाने को कहा. वहां मुझे भर्ती ले लिया गया और जांच की गई, तो मैं कोरोना पॉजिटिव निकला.’
जायसवाल 11 जुलाई को अस्पताल से ठीक होकर लौटे हैं.
रोहतास के नटवार में बाहर से लौटे 4 मजदूर घर पर ही रहे रहे थे. किसी ने स्थानीय सरकारी अस्पताल को इसकी जानकारी दे दी.
जानकारी मिलने पर उनकी जांच हुई, तो उनमें कोरोना का संक्रमण मिला. इसके बाद उनके संपर्क में आने वाले 196 लोगों का सैंपल लिया गया. इनमें से 16 लोग कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए.
नटवार के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर द वायर को बताया, ‘हालांकि संक्रमित लोगों का कहना है कि वे लोग उन चारों के संपर्क में नहीं आए थे, लेकिन हमें लगता है कि वे जरूर उनके संपर्क में आकर ही संक्रमित हुए होंगे क्योंकि उनका सैंपल चारों की कॉन्टैक्ट हिस्ट्री के आधार पर ही लिया गया था.’
गौरतलब है कि 1 मई के बाद जब बिहार में प्रवासी मजदूरों-कामगारों का आना शुरू हुआ था, तो स्वास्थ्य विभाग ने संक्रमण की आशंका के मद्देनजर रेड जोन से आनेवाले लोगों की टेस्टिंग अनिवार्य कर दी थी.
इससे भारी तादाद में प्रवासी मजदूर-कामगारों में कोविड-19 पॉजिटिव की पुष्टि हुई, लेकिन उस वक्त संक्रमण की चेन बहुत लंबी नहीं होती थी, क्योंकि वे लोग क्वारंटीन सेंटरों में रहते थे.
लेकिन अब संक्रमण इस कदर फैला हुआ है कि कई मामलों में संक्रमण के असल स्रोतों का पता भी नहीं चल पा रहा है.
पटना के सिविल सर्जन डॉ. राजकिशोर चौधरी ने द वायर को बताया, ‘अब कोरोना पूरी सोसाइटी में फैल गया है. किस व्यक्ति से संक्रमण फैल रहा है, ये पता नहीं चल पा रहा है. हमलोग हर पॉजिटिव मरीज के संपर्क में आए लोगों की जांच करवा रहे हैं.’
बदलते गए जांच के नियम
पिछले तीन महीनों में बिहार में कोविड-19 के संदिग्धों की जांच के नियम कई बार बदले गए और इन बदलावों से भी कहीं न कहीं कोरोना के खिलाफ लड़ाई कमजोर पड़ी.
मार्च के चौथे हफ्ते में जब कोरोना का पहला मामला सामने आया था, तो विदेश से लौटने वालों की जांच की जाती थी और उनमें संक्रमण की पुष्टि होने पर उनके संपर्क में आने वाले लोगों का सैंपल लिया जाता था.
जब श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से प्रवासी कामगारों का लौटना शुरू हुआ, तो नियम बना कि रेड जोन से आने वाले सभी कामगारों की जांच होगी.
कुछ दिन बाद इसमें बदलाव किया गया और 11 शहरों से लौटने वाले प्रवासी कामगारों को ही क्वारंटीन सेंटरों में रखने का आदेश दिया गया.
चूंकि 80 प्रतिशत मामलों में संक्रमितों में किसी तरह का लक्षण नहीं दिखता है, तो ऐसा भी हुआ होगा कि संक्रमित मरीज भी टेस्ट से बच गए होंगे.
1 जून से जब प्रवासी मजदूरों का रजिस्ट्रेशन बंद हुआ, तो एक और नया नियम शुरू हुआ. इसमें जांच के लिए तीन कैटेगरी पूल-1, पूल-2 और पूल-3 बनाई गई.
कोविड-19 जांच से जुड़े एक ब्लॉक स्तरीय अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, ‘पूल-1 में उन लोगों की जांच होती है, जो बाहर से आए हुए हैं. पूल-2 के अंतर्गत उनके परिवार के सदस्यों और आसपास के कम से कम 10 घरों के लोगों का सैंपल लेकर जांच करते हैं और पूल-3 के तहत फल, सब्जी, विक्रेता, परचून दुकान के दुकानदार और ड्राइवरों की जांच होती है.’
लेकिन, पूल-1 और पूल-2 के मामले में खामी ये है कि इनके सैंपल तभी लिए जा सकते हैं, जब ये खुद इसके लिए तैयार हों.
उक्त अधिकारी बताते हैं, ‘पहले तो हम लोग एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (आशा), मुखिया और वार्ड सदस्यों से संपर्क कर उन लोगों की सूची तैयार करते हैं, जो हाल में दूसरे राज्यों से लौटे हैं. इसके बाद उन लोगों से कहा जाता है कि वे सैंपल दें. अगर वे सैंपल देना चाहते हैं, तभी हम सैंपल ले सकते हैं. उन्हें मजबूर नहीं कर सकते हैं.’
‘पिछले दिनों मेरे इलाके में ही हम लोग कुछ लोगों का सैंपल लेने गए थे. लेकिन उन लोगों ने सैंपल देने से इनकार कर दिया, लिहाजा हम बैरंग लौट आए’, उन्होंने बताया.
उक्त अधिकारी मानते हैं कि क्वारंटीन सेंटर बंद होने से संक्रमण के फैलने का खतरा बढ़ा है. उन्होंने कहा, ‘क्वारंटीन सेंटर संचालित होने से संक्रमण का खतरा क्वारंटीन सेंटरों तक ही सीमित रहता था, लेकिन अब संक्रमण फैलने का ज्यादा खतरा है क्योंकि संक्रमित लोग अपने घरों पर रहते हैं और आसपास के लोगों से मिलते-जुलते हैं.’
![Patna: A medic wearing a protective suit takes a swab sample of a security guard during a nationwide lockdown in the wake of coronavirus pandemic, in Patna, Wednesday, April 22, 2020. (PTI Photo)(PTI22-04-2020_000110B)](https://hindi.thewire.in/wp-content/uploads/2020/04/Corona-Lockdown-PTI-60.jpg)
बदहाल व्यवस्थाएं
संक्रमण फैलने में तमाम वजहों के साथ-साथ लचर चिकित्सा व्यवस्था की भी इसमें बड़ी भूमिका दिख रही है. पिछले कुछ दिनों में ऐसी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुए, जो बताते हैं कि सरकार की तैयारी कितनी खराब है.
10 जुलाई को बारिश के कारण आरा सदर अस्पताल में बारिश का पानी भर गया था, जिससे 300 से ज्यादा कोविड-19 जांच के सैंपल पानी में बह गए थे.
सुपौल की निर्मली नगर पंचायत में कोविड केयर सेंटर ऐसी जगह बना दिया गया, जहां बारिश में जलजमाव हो जाता है. बारिश का पानी जमने से डॉक्टर को ठेले पर सवार होकर सेंटर तक जाना पड़ा था.
कोविड स्पेशल अस्पताल नालंदा मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (एनएमसीएच) के कोरोना वार्ड से पिछले दिनों वायरल हुए एक वीडियो ने अस्पताल की तैयारी पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया.
8 जुलाई को एक वीडियो सोशल मीडिया पर डालकर बताया गया था कि कोविड-19 वार्ड में कोरोना से दो मरीजों की मौत हो गई थी, लेकिन 24 घंटे तक उक्त शवों नहीं हटाया गया.
उसी दरम्यान एनएनसीएच में भर्ती रहे एक कोविड-19 मरीज के रिश्तेदार प्रकाश (बदला हुआ नाम) ने द वायर को बताया, ‘अस्पताल में कोविड-19 मरीजों के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी. मृतकों के शव के पास ही जीवित मरीजों का खाना रख दिया जाता था. दोनों शवों को दो दिन बाद हटाया गया था. डॉक्टर और नर्स भी नियमित चेकअप के लिए नहीं आते थे. हम लोगों को ही देखभाल करनी पड़ती थी.’
प्रकाश के चाचा मोतिहारी के रहने वाले थे. प्रकाश अपने चाचा की मौत के लिए अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही को जिम्मेदार मानते हैं.
उन्होंने कहा, ’14 जुलाई को ऑक्सीजन सिलेंडर लीक होने लगा था. उन्हें ऑक्सीजन मास्क लगा हुआ था. हम लोगों ने किसी तरह सिलेंडर के लीकेज को ठीक करने की कोशिश की. इसके एकदिन बाद ही उनकी मौत हो गई. एनएमसीएच कहने को कोविड-19 अस्पताल है, लेकिन वहां व्यवस्था बेहद खराब है.’
वहीं कटिहार में कथित तौर पर ऑक्सीजन सिलेंडर न होने से एक कोरोना संक्रमित मरीज की मौत हो गई. कटिहार में ही कुछ लोगों को बिना सैंपल लिए ही बता दिया गया कि उनका रिजल्ट नेगेटिव आया है.
इतना ही नहीं, लोगों को सैंपलों की जांच के लिए भी पापड़ बेलने पड़ रहे हैं. हिन्दुस्तान अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भागलपुर जिले के कोरोना पॉजिटिव मरीजों के परिजनों को अपनी जांच कराने के लिए अस्पतालों का चक्कर लगाना पड़ रहा है.
वहीं, दूसरी तरफ सैंपलों का रिजल्ट भी देर से आ रहा है. रोहतास के नटवार में 4 जुलाई को 196 लोगों का सैंपल लिया गया था, जिसकी रिपोर्ट 8 दिनों के बाद आई. जांच में 16 लोग पॉजिटिव पाए गए.
जांच से जुड़े एक चिकित्सक ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, ‘कुछ सैंपल पहले चले गए थे और कुछ सैंपल बाद में गए थे, सबका रिजल्ट एक ही दिन देना था, इसलिए देर हो गई.’
जिन 16 लोगों का रिजल्ट पॉजिटिव आया है, वे एक हफ्ते तक लोगों से मिलते-जुलते रहे होंगे, ऐसे में आशंका है कि उन्होंने और लोगों को भी संक्रमित किया होगा. इस पर उक्त चिकित्सक ने कहा, ‘उनके संपर्क में आए लोगों का भी सैंपल लिया जाएगा.’
अस्पताल प्रबंधन की कोताही की कहानी यहीं खत्म नहीं होती. एनएमसीएच से दो हफ्ते से एक कोरोना पॉजिटिव मरीज लापता है, लेकिन उनके परिजनों को न तो अस्पताल कोई जवाब दे रहा है और न पुलिस.
पटना के शेखपुरा का रहने वाले एक 55 वर्षीय कोविड-19 पॉजिटिव मरीज 3 जुलाई को एनएमसीएच में भर्ती हुए थे.
उनकी पत्नी ने द वायर को बताया, ‘6 जुलाई को अस्पताल गए, तो हमें बताया गया कि वह लापता हैं. हमने अस्पताल प्रबंधन से भी मुलाकात की, लेकिन कोई मदद नहीं कर रहा है. पुलिस के पास गए, तो पुलिस ने केस दर्ज करने से इनकार कर दिया.’
वे फोन पर सुबकते हुए कहती हैं, ‘अस्पताल में डॉक्टर रहते हैं, नर्स रहती हैं, सिक्योरिटी गार्ड रहते हैं, फिर कोई कैसे भाग सकता है? कोई हमारा सहयोग करने को तैयार नहीं है.’
इस संबंध में अस्पताल के मैनेजर प्रणय कुमार ने द वायर से कहा, ‘ये आश्चर्य की बात है. मरीज की शिनाख्त के लिए पुलिस की मदद ली है, लेकिन कुछ पता नहीं चला. कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई मरीज ‘लामा’ (‘लीव अगेंस्ट मेडिकल एडवाइज’ यानी अस्पताल न छोड़ने की चिकित्सकीय सलाह के बावजूद अस्पताल छोड़ देना) हो जाता है.’
कोविड-19 संक्रमण को लेकर भाजपा के कोटे से स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को फोन किया गया, तो उन्होंने फोन काट दिया.
बाद में उनके पीए ने कॉल किया और कहा कि वह स्वास्थ्य मंत्री से बात करवाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री कार्यालय को मेल से सवाल भेजे गए हैं, जिनका जवाब आने पर रिपोर्ट अपडेट की जाएगी.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)