सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह की परंपरा कानूनी पहलू से जुड़े मुद्दों पर ही विचार करेगा.
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि वह इस सवाल पर विचार नहीं करेगा कि क्या मुस्लिम पर्सनल ला के तहत तलाक की अदालतों को निगरानी करनी चाहिए क्योंकि यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है.
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर, न्यायमूर्ति एनवी रमण और न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, आप (विभिन्न पक्षों के वकील) एक साथ बैठिए और उन बिंदुओं को अंतिम रूप दीजिए जिन पर हमें विचार करना होगा. हम बिंदुओं के बारे में फैसला करने के लिए इसे परसों सूचीबद्ध कर रहे हैं.
पीठ ने संबंधित पक्षों को यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह किसी मामले विशेष के तथ्यात्मक पहलुओं पर विचार नहीं करेगा और इसकी बजाय कानूनी मुद्दे पर फैसला करेगा. पीठ ने कहा, हमारी तथ्यों में कोई दिलचस्पी नहीं है. हमारी दिलचस्पी सिर्फ कानूनी मुद्दे पर फैसला करने की है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल ला के तहत तलाक को अदालतों की निगरानी या अदालत की निगरानी वाली संस्थागत मध्यस्थता की आवश्यकता से संबंधित सवाल विधायिका के दायरे में आते हैं.
केंद्र ने मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह प्रथा का विरोध करते हुए लिंग समानता और पंथनिरपेक्षता के आधार पर इस पर नए सिरे से गौर करने की हिमायत की है.
विधि और न्याय मंत्रालय ने लिंग समानता, पंथनिरपेक्षता, अंतर्राष्ट्रीय नियम, धार्मिक परंपराओं और विभिन्न इस्लामिक देशों में प्रचलित वैवाहिक कानूनों का भी हवाला दिया है.
आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने इन परंपराओं पर नए सिरे से गौर करने की ज़रूरत बताने वाले नरेंद्र मोदी सरकार के इस दृष्टिकोण को बेतुका बताया है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने शीर्ष अदालत से कहा है कि तीन तलाक, हलाला और बहुविवाह जैसे मुद्दों के बारे में मुस्लिम पर्सनल ला में किसी प्रकार के हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं है.