एनजीटी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार से गंगा और उसकी सहायक नदियों के घाट पर धार्मिक क्रियाकलापों के लिए दिशा-निर्देश बनाने को भी कहा है.
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए हरिद्वार और उन्नाव के बीच गंगा नदी के तट से 100 मीटर के दायरे को नो डेवलपमेंट ज़ोन (ग़ैर-निर्माण क्षेत्र) घोषित किया और नदी तट से 500 मीटर के दायरे में कचरा डालने पर जुर्माना लगाने जैसे कई निर्देश जारी किए हैं.
एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस स्वतंत्र कुमार के नेतृत्व वाली पीठ ने 13 जुलाई को कहा कि गंगा नदी में किसी भी प्रकार का कचरा डालने वाले को 50 हजार रूपए पर्यावरण हर्जाना देना होगा.
साथ ही एनजीटी ने कचरा निस्तारण संयंत्र के निर्माण और नालियों की सफाई के लिए सभी संबंधित विभागों से दो वर्ष के भीतर विभिन्न परियोजनाओं को पूरा करने के निर्देश दिए हैं.
इस संस्था ने उत्तर प्रदेश सरकार को उसकी ज़िम्मेदारी समझाते हुए चमड़े के कारखानों को 6 हफ़्तों के अंदर जाजमऊ से उन्नाव के चमड़ा पार्कों या राज्य द्वारा उचित समझे जा रहे किसी भी स्थान पर स्थानांतरित करने को कहा है.
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को गंगा और उसकी सहायक नदियों के घाटों पर धार्मिक क्रियाकलापों के लिए दिशा-निर्देश बनाने के लिए भी कहा है.
एनजीटी ने यह भी कहा कि शून्य तरल रिसाव और सहायक नदी की ऑनलाइन निगरानी की शर्त औद्योगिक इकाइयों पर लागू नहीं होनी चाहिए.
इसके अलावा एनजीटी ने 543 पन्नों वाले अपने फैसले के पालन की निगरानी करने और इस संबंध में रिपोर्ट पेश करने के लिए एक पर्यवेक्षक समिति का गठन किया. साथ ही इस समिति को नियमित अंतराल पर रिपोर्ट देने के भी निर्देश दिए हैं.
इससे पहले अधिकरण ने 31 मई को इस संबंध में अपना आदेश सुरक्षित करने से पहले केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कई पक्षकरों की दलीलों को सुना था.
एनजीटी ने गंगा नदी की सफाई के काम को गोमुख से हरिद्वार (पहला चरण), हरिद्वार से उन्नाव (पहले चरण का खंड बी), उन्नाव से उत्तर प्रदेश की सीमा, उत्तर प्रदेश सीमा से झारखंड की सीमा और फिर झारखंड सीमा से बंगाल की खाड़ी तक कई खंडों में बांटा है.