क्या भारत जलवायु परिवर्तन से जुड़े आगामी संकट के लिए तैयार है

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जारी जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट में इस बारे में विभिन्न पहलुओं को लेकर होने वाले बदलावों का आकलन किया गया है. हालांकि पर्यावरणविद मानते हैं कि इसमें कई महत्वपूर्ण बातें शामिल नहीं की गई हैं.

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Chennai: Students from various colleges and schools participate in the Global Climate Strike rally in Chennai, Sunday, Sept. 22, 2019. (PTI Photo) (PTI9_22_2019_000036B)

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जारी जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट में इस बारे में विभिन्न पहलुओं को लेकर होने वाले बदलावों का आकलन किया गया है. हालांकि पर्यावरणविद मानते हैं कि इसमें कई महत्वपूर्ण बातें शामिल नहीं की गई हैं.

Chennai: Students from various colleges and schools participate in the Global Climate Strike rally in Chennai, Sunday, Sept. 22, 2019. (PTI Photo) (PTI9_22_2019_000036B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन को लेकर तेजी से बढ़ती बहस के बीच इस साल भारत ने जलवायु परिवर्तन पर अपनी पहली रिपोर्ट जारी की है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि इस शताब्दी के अंत तक भारत में औसत तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा, जिसका सीधा असर लू, बाढ़, सूखा, चक्रवाती तूफानों और समुद्र के जलस्तर के उफानों में बढ़ोतरी के रूप में होगा.

भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का आकलन‘ नाम की इस रिपोर्ट को पिछले महीने पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने जारी किया है, जिसमें जलवायु परिवर्तन से जुड़े विभिन्न पहलुओं को लेकर हो सकने वाले बदलावों के बारे में बताया गया है.

तापमान

भारतीय क्षेत्र में तापमान के आकलन को सामने रखते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 1901-2018 के बीच भारत में औसत तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी देखी गई.

तापमान में यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से ग्रीन हाउस गैसों से होने वाली गर्मी के कारण हुई, वहीं इसके लिए आंशिक रूप से वायु प्रदूषण, धुएं और जमीन-जंगल के इस्तेमाल में होने वाले बदलावों को माना गया.

इसमें कहा गया है कि 1976-2005 के औसत तापमान की तुलना में 21वीं शताब्दी के अंत तक भारत में औसत तापमान 4.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ने का अनुमान है.

रिपोर्ट के अनुसार, साल के सबसे गर्म दिन और सबसे ठंडी रात के तापमान में हाल के 30 वर्षों (1986-2015) की अवधि में लगभग 0.63 डिग्री सेल्सियस और 0.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है.

माना जा रहा है कि ऐसे में ये तापमान शताब्दी के अंत तक क्रमशः 4.7 और 5.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकते हैं. वहीं, 1976-2005 की अवधि की तुलना में गर्म दिनों और गर्म रातों की संख्या में 55-70 फीसदी बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया है.

इसके साथ ही 1976-2005 की अवधि की तुलना में 21वीं शताब्दी में गर्मी (अप्रैल-जून) में लू की संख्या में तीन से चार गुना बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया है. वहीं, लू की घटनाओं की औसत अवधि भी अनुमानित रूप से दोगुनी होने का अनुमान है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सतह के तापमान और आर्द्रता में संयुक्त रूप से होने वाली बढ़ोतरी के कारण देशभर खासकर सिंधु-गंगा और सिंधु नदी घाटी में तापमान में बढ़ोतरी होने का अनुमान है.

वहीं, उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सतह का तापमान साल 1951-2005 के दौरान वैश्विक औसत तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियसन बढ़ोतरी की तुलना में 1 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ा.

मानसून

रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 1951-2015 के बीच गर्मियों में होने वाले मानसून (जून-सितंबर) में छह फीसदी की कमी आई है, जिससे सिंधु-गंगा मैदानी भाग और पश्चिमी घाट सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, मानसून में यह कमी मध्य भारत, केरल और सुदुर पूर्ववर्ती क्षेत्रों में एक से लेकर पांच मिलीमीटर (एमएम) तक दर्ज की गई है. हालांकि, इसी दौरान जम्मू कश्मीर और पश्चिमोत्तर भारत में मानसून में बढ़ोतरी देखी गई.

आने वाले दशकों में मानसून से जुड़ी बारिश की घटनाओं में मध्यम, अत्यधिक और  अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता में वृद्धि का अनुमान लगाया गया है.

सूखा

रिपोर्ट में सूखे को लेकर कहा गया है कि पिछले छह से सात दशकों ( 1951-2016) में मौसमी ग्रीष्म मानसून वर्षा में आई कुल कमी के कारण देशभर में सूखे के मामलों में बढ़ोतरी हुई है.

इस दौरान खासकर मध्य भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट, दक्षिणी प्रायद्वीप और उत्तर-पूर्वी भारत में औसतन हर दशक में सूखे की दो से अधिक घटनाएं सामने आईं. वहीं, इस दौरान हर दशक सूखा क्षेत्र में 1.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई.

रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि मानसूनी वर्षा में होने वाले बदलाव और एक गर्म वातावरण में जल वाष्प की मांग में वृद्धि के परिणामस्वरूप 21वीं शताब्दी के अंत तक प्रति दशक दो सूखे की घटनाओं और सूखा क्षेत्र में बढ़ोतरी हो सकती है.

गर्मी के कारण वाष्पीकरण होता है, जो सीधे मिट्टी की नमी से जुड़ा है और इसी से बाढ़ आती है. इससे खाद्य उत्पादन और पेयजल की उपलब्धता में कमी आ जाती है.

बाढ़

रिपोर्ट में बताया गया है कि पूर्वी तट, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, गुजरात, कोंकण और मुंबई, चेन्नई व कोलकाता जैसे शहरों में बाढ़ का अधिक खतरा है.

वहीं, ग्लेशियरों और बर्फ के तेजी से पिघलने के कारण हिमालयी बाढ़ बेसिनों में अधिक से अधिक बाढ़ का अनुमान है. ब्रह्मपुत्र, गंगा और सिंधु में बाढ़ की बड़ी घटनाओं का अनुमान जताया गया है.

समुद्र स्तर

ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान) के कारण बर्फ पिघले हैं और तापीय प्रसार हुआ है जिससे दुनियाभर में समुद्र स्तर में बढ़ोतरी हुई है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि 1874-2004 के दौरान उत्तरी हिंद महासागर में समुद्र का स्तर सालाना 1.06-1.75 एमएम तक बढ़ा, जबकि पिछले ढाई दशकों (1992-2017) में यह गति बढ़कर 3.3 एमएम हो गई.

रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि 21वींं शताब्दी के अंत तक समुद्र स्तर में 1986-2005 की तुलना में 300 एमएम की बढ़ोतरी होगी जबकि इसी दौरान वैश्विक समुद्र स्तर में 180 एमएम की दर से बढ़ोतरी होगी.

ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात

रिपोर्ट में बताया गया है कि 20वीं शताब्दी के मध्य (1951-2018) से उत्तरी हिंदमहासागरीय क्षेत्र में सालाना उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दर में महत्वपूर्ण कमी देखी गई है.

वहीं इसके अनुपात में पिछले दो दशकों (2000-2018) के दौरान बहुत गंभीर चक्रवाती तूफानों में अच्छी खासी बढ़ोतरी देखी गई, जिसका मतलब है कि हर दशक में एक बहुत गंभीर चक्रवाती तूफान की बढ़ोतरी हुई.

1950 के दशक से पहले बंगाल की खाड़ी में 94 गंभीर चक्रवाती तूफान आते थे जो 1950 के दशक के बाद बढ़कर 140 हो गए. वहीं, इसी दौरान अरब सागर में आने वाले गंभीर चक्रवाती तूफानों की संख्या 29 से बढ़कर 44 हो गई.

अब अनुमान जताया गया है कि 21वीं शताब्दी में उत्तरी हिंदमहासागरीय घाटी में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता में वृद्धि देखने को मिलेगी.

हिमालय

हिमालय क्षेत्र में आए बदलाव को बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 1951-2014 के दौरान हिंदू कुश हिमालय के तापमान में 1.3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है जिसका मतलब है कि हर दशक में तापमान करीब 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया.

इसके कारण ही हाल के दशकों में हिंदू कुश के कई क्षेत्रों में बर्फबारी और ग्लेशियरों कमी देखी गई है.

इसकी तुलना में अधिक ऊंचाई वाले कराकोरम हिमालय में सर्दियों में अधिक हिमपात हुआ हुआ, जिसने इस क्षेत्र को ग्लेशियर जल निकासी से बचा लिया है.

रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि 21वीं शताब्दी के अंत तक हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में वार्षिक औसत सतह तापमान 5.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा जबकि इस दौरान बर्फपात में कमी आएगी.

क्या कहते हैं पर्यावरणविद?

पर्यावरणविद इसे जलवायु पर भारत की पहली रिपोर्ट नहीं मानते हैं और इसमें लंबे समय से चली आ रही कई कमियों को शामिल नहीं किए जाने पर नाराज भी हैं.

द वायर  से बात करते हुए पर्यावरणविद हिमांशु ठक्कर ने कहा, ‘इसे जलवायु परिवर्तन पर भारत की पहली रिपोर्ट कहना गलत होगा. इससे पहले 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना का गठन किया था. इसके बाद पर्यावरण मंत्रालय ने भारत के जलवायु परिवर्तन पर एक रिपोर्ट निकाली थी, जिसे 4 X 4 रिपोर्ट कहा जाता था. उसमें भारत को चार भागों में बांटकर और चार नए मानदंडों के साथ रिपोर्ट तैयार की गई थी.’

वे कहते हैं, ‘हम एक तरफ जंगल खत्म कर रहे हैं और दूसरी तरफ कह रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है और ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, ग्रीन हाउस गैस भी बढ़ रही हैं. हम कोयले का उपयोग ही नहीं बढ़ा रहे हैं बल्कि उसे निर्यात भी कर रहे हैं. इसलिए साथ-साथ हमें अपनी गतिविधियां भी देखनी होगी.’

ठक्कर ने कहा, ‘समस्या यह है सरकार यह स्पष्ट नहीं कर रही है कि हम पर्यावरण का क्या नुकसान कर रहे हैं. इन तीनों ही रिपोर्टों में इस बात पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया है कि इससे जनसंख्या का कौन-सा हिस्सा सबसे अधिक प्रभावित हो रहा है.’

वह कहते हैं, ‘बारिश में कोई कमी नहीं है लेकिन उसका सही से वितरण नहीं हो पा रहा है. यही कारण है कि सूखे की संख्या भी बढ़ रही है और इसके साथ ही विनाशकारी बाढ़ की संख्या में भी बढ़ोतरी हो रही है. इस साल अभी तक पश्चिमोत्तर भारत में कम बारिश हुई है लेकिन देश के कुछ महत्वपूर्ण सूखाग्रस्त क्षेत्रों में सामान्य से अधिक बारिश हुई है.’

ठक्कर आगे कहते हैं कि हम बारिश पर कम बल्कि स्थानीय प्रणाली पर अधिक निर्भर हैं. लेकिन भूमिगत जल के प्रमुख संसाधनों को प्रक्रियागत तरीके से बर्बाद कर रहे हैं. जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए हमें स्थानीय प्रणाली को अधिक सुरक्षित करने और उनकी क्षमता बढ़ाने की जरूरत है.