कृषि मंत्रालय से आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक़ 2019-20 रबी सीज़न के लिए फसल बीमा योजना के तहत कुल 3,750 करोड़ रुपये के दावे किए गए थे, जिसमें समयसीमा बीत जाने के बाद भी अब तक केवल 775 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है.
नई दिल्ली: कोरोना महामारी के चलते जहां तक तरफ कृषि जगत को इसका भारी खामियाजा चुकाना पड़ रहा है, वहीं दूसरी तरफ किसानों को रबी 2019-20 सीजन के कुल फसल बीमा दावों का सिर्फ 20 फीसदी राशि का भुगतान किया गया है.
फसल नष्ट होने की स्थिति में किसानों को भरपाई करने के लिए लाई गई मोदी सरकार की बेहद महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) तथा पुनर्गठित फसल आधारित मौसम बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईए) तहत इस सीजन में कुल 3,750 करोड़ रुपये का दावा किया गया था.
द वायर द्वारा सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्राप्त दस्तावेजों से पता चलता है कि 17 अगस्त तक किसानों को इसमें से सिर्फ 775 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है.
खास बात ये है कि बीमा कंपनियों द्वारा किसानों को दावा भुगतान करने की समयसीमा को खत्म हुए करीब डेढ़ महीने से ज्यादा का समय हो चुका है.
पिछले कई सालों से किसान, खासकर छोटे एवं सीमांत किसान कह रहे हैं कि दावा भुगतान में देरी के कारण अगले सीजन की बुवाई काफी प्रभावित होती है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बीते 15 मई को तथाकथित ’20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज’ की तीसरी किस्त की घोषणा करते हुए दावा किया था कि पिछले दो महीनों में 6,400 करोड़ रुपये के फसल बीमा दावों का भुगतान किया गया है.
हालांकि सीतारमण ने अपने आंकड़ों में ये स्पष्ट नहीं किया कि जिन भुगतान की वो बात कर रही हैं वे रबी 2019-20 सीजन के हैं या इस योजना के तहत पिछले बकायों का भुगतान.
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, केंद्र के इन दो फसल बीमा योजनाओं के तहत रबी 2019-20 सीजन में कुल 1.8 किसानों का बीमा किया गया था और कुल बीमित राशि 70,000 करोड़ रुपये थी.
इस दौरान बीमा कंपनियों ने कुल 7,764 करोड़ रुपये का बीमा वसूला, जिसमें से 1,317 करोड़ रुपये यानी 17 फीसदी बीमा राशि का भुगतान किसानों ने किया. बाकी राशि को केंद्र एवं राज्य सरकारों ने करीब 50:50 फीसदी के अनुपात में अदा किया.
केंद्र की बहुप्रचारित और महत्वाकांक्षी पीएमएफबीवाई के तहत देश के अधिकतर भू-भाग पर किसानों का फसल बीमा किया जाता है.
रबी 2019-20 के दौरान देश भर में कुल बीमित राशि में 93 फीसदी हिस्सा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का था. परिणामस्वरूप, कुल बीमा दावों में 83 फीसदी हिस्सेदारी इस योजना की थी.
पीएमएफबीवाई की गाइडलाइन के मुताबिक किसी सीजन की अंतिम कटाई पूरी हो जाने के दो महीने के भीतर दावों का निपटारा कर दिया जाना चाहिए.
नियम के मुताबिक यदि बीमा कंपनियां इस समयसीमा के भीतर किसानों को भुगतान नहीं करती हैं, तो उन्हें 12 फीसदी की दर से ब्याज भरना होगा.
हालांकि पिछले कुछ सालों में ये देखने में आया है कि इस नियम का पालन नहीं हो रहा है और आमतौर पर काफी देरी से ही किसानों को उनके दावों का भुगतान किया गया है.
रबी 2019-20 सीजन में फसलों की कटाई अप्रैल-मई 2020 तक समाप्त हो जाती है. इसका मतलब है कि बीमा कंपनियों को जून-जुलाई 2020 तक दावों का भुगतान कर देना चाहिए था.
हालांकि केंद्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक 17 अगस्त तक पीएमएफबीवाई के तहत इस सीजन में कुल प्राप्त दावों का करीब 75 फीसदी यानी 2,371 करोड़ रुपये का भुगतान अब तक नहीं किया गया है.
मंत्रालय ने यह भी कहा है कि ‘दावों की गणना और उसके भुगतान का लेखा-जोखा तैयार करने की प्रक्रिया अभी अपने प्रारंभिक दौर में है और ये आंकड़े 17 अगस्त 2020 तक बीमा कंपनियों द्वारा भारत सरकार को दी गई जानकारी पर आधारित हैं.’
मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम न लिखने की शर्त पर द वायर को बताया कि कोरोना महामारी के कारण इस बार फसल कटाई प्रयोगों (क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट या सीसीई) कराने में काफी देरी हुई है. फसलों की क्षति का आकलन करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा सीसीई कराया जाता है.
अधिकारी ने कहा, ‘देश भर में विभिन्न जगहों पर अलग-अलग तरह के प्रतिबंध लगाए हैं, जिसके कारण सीसीई कराने में मुश्किल हो रही है. इसी कारण से देर हुई है.’
इस बार जो देरी हुई है वो आमतौर पर राज्य सरकारों द्वारा की जाने वाली देरी के अतिरिक्त है, जहां केंद्र एवं बीमा कंपनियों ने कई बार आरोप लगाया है कि राज्य सरकारें प्रीमियम भुगतान तथा सीसीई डेटा देने में देरी करती हैं.
अधिकारी ने कहा, ‘फसल बीमा योजना के साथ ये समस्या लंबे समय से बनी हुई है. योजना के तीन साल बीत जाने के बाद भी कुछ राज्यों ने अपने सिस्टम में सुधार नहीं किया है.’
द वायर ने पिछले दो सालों में कई रिपोर्ट्स के जरिये बताया है कि किस तरह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों के दावा भुगतान में देरी होना इस योजना का एक अभिन्न अंग बना हुआ है.
साल 2018-19 में समयसीमा बीतने के तीन महीने बाद भी 5,171 करोड़ रुपये के बीमा दावे का भुगतान नहीं हुआ था, वहीं, साल 2019-20 में डेडलाइन के सात महीने बाद भी 3,000 करोड़ रुपये दावे का भुगतान नही हुआ .
इससे पहले साल 2017-18 में समयसीमा के सात महीने बीत जाने के बाद भी 2,829 करोड़ रुपये के दावों का किसानों को भुगतान नहीं किया गया था.
और अब फसल बीमा के दावे का भुगतान करने की समयसीमा करीब डेढ़ महीने बीत जाने के बाद भी अभी तक किसानों को 2,371 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया गया है.
इस देरी की समस्या को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने साल 2018 में घोषणा की थी कि यदि कटाई के बाद दो महीने की समयसीमा में दावे का भुगतान नहीं किया जाता है, तो बीमा कंपनियों पर 12 फीसदी ब्याज की पेनाल्टी लगाई जाएगी.
लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. द वायर ने इसी साल जून महीने में रिपोर्ट कर बताया था कि केंद्र ने खुद इस पेनाल्टी प्रावधान को लागू नहीं किया है.
आखिरी बार रबी 2017-18 सीजन में सरकार ने बीमा कंपनियों पर पेनाल्टी लगाया था, वो भी यह बीमा भुगतान में देरी करने को दंडात्मक बनाने के लिए बीमा कंपनियों पर ब्याज लगाने के प्रावधान की घोषणा से पहले की बात है.
हालांकि बावजूद इसके अभी तक बीमा कंपनियों ने 4.21 करोड़ रुपये जुर्माने का भुगतान नहीं किया है.
पीएमएफबीवाई के तहत बीमा भुगतान में देरी होने के कारण किसान पिछले कुछ सालों से मांग कर रहे थे कि इस योजना को स्वैच्छिक बनाया जाए, क्योंकि पहले किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के जरिये लोन लेने वाले सभी किसानों का अनिवार्य रूप से उनका बीमा कर दिया जाता और उनके खाते से प्रीमियम के पैसे काट लिए जाते थे.
पिछले साल केंद्र सरकार ने इस मांग को स्वीकार किया और योजना में कई बदलाव करते हुए बीमा कराने की प्रक्रिया को स्वैच्छिक बनाया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)