मद्रास हाईकोर्ट ने सरकार के अधिवक्ता को यह भी कहा है कि वे बताएं कि क्या एक ऐसी ईमेल आईडी बना सकते हैं जो कम से कम समय के भीतर ‘जीवन और स्वतंत्रता’ से जुड़े मामलों का निपटारा कर सके.
नई दिल्लीः सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दायर की गईं अपीलों के त्वरित निपटान के लिए लंबे समय तक प्रभावकारी हो सकने वाले एक आदेश में मद्रास हाईकोर्ट ने एडिशनल एडवोकेट जनरल (एएजी) से आरटीआई की पहली और दूसरी अपील के निपटान के लिए ‘समयसीमा तय करने की संभावना तलाशने के लिए’ को कहा हैं.
अदालत ने एएजी को जीवन और स्वतंत्रता से जुड़े मामलों के 48 घंटों के अंदर निपटारे के लिए एक अलग ईमेल आईडी बनाने की संभावना के लिए भी निर्देश लेने को कहा है.
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस हेमलता की पीठ ने एक स्वतंत्र पत्रकार और नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल्स राइट टू इन्फॉरमेशन (एनसीपीआरआई) के सदस्य सौरव दास की याचिका पर यह आदेश दिया.
पीठ ने याचिकाकर्ता वकील एमवी स्वरूप और राज्य की ओर से पैरवी कर रहे एएजी को सुनने के बाद यह फैसला पारित किया.
मामले में प्रतिवादी केंद्र सरकार के अधीन कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी), तमिलनाडु का कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग, केंद्रीय सूचना आयोग और तमिलनाडु सूचना आयोग हैं.
अदालत ने आदेश में कहा, ‘यहां सुनवाई के दौरान महत्व के दो मुद्दे उभरकर सामने आए.’ अदालत ने आदेश में कहा, ‘पहला यह कि पहली और दूसरी अपील के निपटान के लिए समयसीमा निर्धारित हो.’
इस पहलू के संदर्भ में पीठ ने कहा, ‘एएजी को समयसीमा निर्धारित करने के निर्देश दिए जाते हैं.’
आदेश में कहा गया, ‘दूसरा जीवन और स्वतंत्रता से जुड़े मामलों की जानकारी मांगने से जुड़ा है, जिस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इस तरह के मामलों के लिए अलग से एक ईमेल आईडी बनाई जा सकती है.’
स्वरूप ने यह भी कहा कि सूचना के अधिकार एक्ट 2005 की धारा 7 (1) में भी यही आधार है.
सीपीआईओ को सीआईसी की सलाह
पीठ ने इस बात पर भी गौर किया कि याचिकाकर्ता के वकील ने अप्रैल 2020 में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) द्वारा पारित आदेश पर भरोसा जताया था, जिसमें कहा गया था, ‘एडवाइजरी पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सचिव द्वारा लॉकडाउन वापस लेने की तारीख से सात दिनों के भीतर आयोग को भेजी जा सकती है.’
सीआईसी ने कहा, ‘देश में कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से आयोग को आरटीआई आवेदनों की डाक रसीद कम होने पर नागरिकों द्वारा धारा 7 (1) के मुद्दे को उजागर करना उपयुक्त लगा. ऐसी स्थिति में सभी सार्वजनिक प्राधिकरणों को आरटीआई आवेदन ईमेल के जरिये भेजने को लेकर प्रोत्साहित करना चाहिए.’
यह सलाह दी गई कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारियों (सीपीआईओ) द्वारा इस संदर्भ में एक अलग ईमेल आईडी बनाई जाए और इसे वेबसाइट के जरिए सार्वजनिक किया जाए. इस संदर्भ में ऑनलाइन स्वीकृति के लिए आरटीआई फीस के बारे में भी सोचा गया.
आदेश में आगे कहा गया, ‘जहां तक अन्य सामान्य आरटीआई का सवाल है, तो इसके लिए आरटीआई पोर्टल का इस्तेमाल किया जा सकता है.’
सीआईसी ने कहा कि डिप्टी रजिस्ट्रार को इस आदेश को व्यापक तौर पर प्रसारित करने के निर्देश दिए गए हैं.
सीआईसी के विचार को ध्यान में रखते हुए पीठ ने एएजी को जीवन और स्वतंत्रता से जुड़े मामलों के कम से कम समय (48 घंटे) के भीतर निपटान के लिए एक अलग ईमेल आईडी बनाने के प्रावधान पर निर्देश लेने को कहा है और इस मामले पर 30 सितंबर को सुनवाई निर्धारित की.
बता दें कि पिछले सुनवाई के दौरान जस्टिस सुंदरेश ने एएजी द्वारा अक्टूबर में सुनवाई पर जोर दिए जाने के बावजूद सितंबर में ही मामले की सुनवाई पर जोर दिया.
याचिकाकर्ताओं के विचारों से सहमत होते हुए कहा गया कि आयोगों में इस तरह के मामलों के लिए समयसीमा होनी चाहिए. उन्होंने इस मामले में केंद्रीय पक्षों के वकीलों से पूछा कि इसके लिए उचित समयसीमा क्या हो सकती है.
इस मामले में हुए घटनाक्रमों से आरटीआई कार्यकर्ता उत्साहित हैं क्योंकि ये उनकी लंबे समय से मांग रहे हैं कि मामलों और अपीलों को समयबद्ध तरीके से निपटाया जाना चाहिए.
इस मामले में याचिकाकर्ता इस तरह के निपटान के लिए डेढ़ से तीन महीने की समयसीमा निर्धारित करने की मांग कर रहे हैं.
याचिका में कहा गया कि आरटीआई एक्ट को लागू करने के पीछे विधायी मंशा प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण में पारदर्शिता लाना और जवाबदेही तय करने के साथ-साथ सूचना प्रदाता और सूचना मांगने वाले के बीच दूरी को कम करना, सार्वजनिक प्राधिकरणों के प्रशासन में दक्षता बढ़ाना, भ्रष्टाचार कम करना और सुशासन को बढ़ावा देना है.
याचिका में कहा गया, ‘आरटीआई एक्ट का मुख्य केंद्र इसकी गति है, जिस आधार पर इस पूरी मशीनरी को काम करना है ताकि नागरिकों को हमेशा पता रहे कि सरकार किस तरह उनके लिए काम करती है.’
बता दें कि आरटीआई एक्ट के तहत 30 दिनों के भीतर सार्वजनिक सूचना अधिकारी को आवेदन करने वालों को जवाब देना होता है. जीवन और स्वतंत्रता से जुडे़ मामलों में 48 घंटों के भीतर और पहली अपील पर 30 दिनों के भीतर जवाब देना होता है.
याचिका में कहा गया कि सूचना अधिकारियों के खिलाफ धारा 18 के तहत दूसरी अपील या शिकायतों के लिए कोई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई.
याचिका में कहा गया कि हालांकि इस एक्ट के तहत ‘जीवन और स्वतंत्रता’ को परिभाषित नहीं किया गया, पर यह उसी संदर्भ में इस्तेमाल होता है, जिस संदर्भ में संविधान की धारा 21 के तहत इस्तेमाल होता है. इसलिए स्वास्थ्य, अपराध,हिरासत, पुलिस कार्रवाई, निजता और वे नीतियां जिनका कोई सीधा और तत्काल प्रभाव पड़ता है, इसके अंतर्गत आती हैं.
हालांकि याचिका में यह भी कहा गया है कि ‘ऐसे आवेदनों के निपटारे में 48 घंटे की समयसीमा का उल्लंघन ही अधिक हुआ है. उसमें दिए एक उदाहरण में बताया गया है कि कैसे सीआईसी द्वारा ‘लाइफ एंड लिबर्टी’ श्रेणी में रखे गए एक मामले निस्तारण आवेदन किए जाने के तीन साल बाद हुआ था.
शिकायतों और अपीलों के लंबित होने से हो रही देरी
याचिका में कहा गया कि सतर्क नागरिक संगठन और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट कार्ड ऑफ इन्फॉर्मेशन कमिशंस इन इंडिया 2019 से पता चलता है कि औसतन सीआईसी एक अपील या शिकायत को उसके दायर की गई तारीख से 388 दिनों (एक साल से अधिक समय) में निपटान करता है.
याचिका में मामले की त्वरित निपटान की जरूरत पर जोर देते हुए कहा गया कि तय समयसीमा के अभाव में सीआईसी और तमिलनाडु एसआईसी के समक्ष लंबित मामले इतने अधिक हो जाते हैं कि उन्हें प्रबंधित करना मुश्किल हो जाता है.
याचिका में कहा गया कि अकेल सीआईसी के समक्ष छह अगस्त 2020 तक 35,737 मामले लंबित हैं और इसमें 4,804 शिकायतें और 30,933 अपीले हैं.
इन तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर याचिका में अदालत से केंद्र और राज्य सरकारों को दिशानिर्देश जारी करने और आरटीआई एक्ट की धारा 19 (3) और 18 के तहत दूसरी अपील और शिकायतों को लेकर समयसीमा निर्धारित करने का आग्रह किया गया.
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