भाजपा के पक्ष में छपे जागरण के एक्ज़िट पोल के पीछे कौन है?

दैनिक जागरण में प्रकाशित एग्जिट पोल के लिए संपादक को बलि का बकरा नहीं बनाया जाना चाहिए, जिसके पीछे शायद उससे कहीं ज़्यादा ताकतवर लोगों का हाथ रहा हो.

उस एग्जिट पोल के लिए संपादक को बलि का बकरा नहीं बनाया जाना चाहिए, जिसके पीछे शायद उससे कहीं ज़्यादा ताकतवर लोगों का हाथ रहा हो.

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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों के पहले चरण के बाद दैनिक जागरण द्वारा प्रकाशित एग्जिट पोल का स्क्रीनशॉट. इसे बाद में वेबसाइट से हटा दिया गया था.

12 फरवरी, 2017 को जब दैनिक जागरण ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदान के ठीक अगले दिन भाजपा की जीत का दावा करने वाला एक्ज़िट पोल अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया, तो यह उनका एकमात्र अपराध नहीं था.  कई चरणों में होने वाले चुनाव के बीच में इस तरह से एक्ज़िट पोल का प्रकाशन और प्रसार चुनाव आयोग द्वारा जारी गाइडलाइन का स्पष्ट उल्लंघन हैं.

चुनाव आयोग द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार, ‘पहले चरण के चुनाव खत्म होने के 48 घंटे पहले से लेकर सभी राज्यों में अंतिम चरण का मतदान खत्म होने तक किसी भी तरह का एक्ज़िट पोल प्रकाशित, प्रसारित नहीं किया जा सकता है.’ उत्तर प्रदेश में मतदान के पहले चरण के बाद एक्ज़िट पोल का प्रकाशित करके दैनिक जागरण ने जानबूझकर चुनाव आयोग की गाइडलाइन की अवहेलना की है, जबकि अभी कई चरणों का मतदान बाकी है.

दूसरा, चुनाव आयोग द्वारा 2017 के लिए जारी गाइडलाइन भी इस तरह के एक्ज़िट पोल पर रोक लगाती है. जब हाल में इस गाइडलाइन पर रोक लगाने के लिए गोवा के एक मीडिया हाउस ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो अदालत ने राहत देने से इंकार कर दिया. इसी तरह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मतदान केंद्र से बाहर निकल रहे मतदाताओं से एक्ज़िट पोल संबंधी सवाल पूछना चुनाव आयोग द्वारा जारी गाइडलाइड का उल्लंघन है. जिस एजेंसी ने यह एक्ज़िट पोल करवाया उसने भी चुनाव आयोग की इस गाइडलाइन की अवहेलना की.

तीसरा, एक्ज़िट पोल का प्रकाशन, जिसके बारे में दैनिक जागरण के सीईओ और संपादक संजय गुप्ता का यह कहना कि यह हमारे विज्ञापन विभाग द्वारा प्रकाशित किया गया है, पेड न्यूज का एक उदाहरण था. किसी विज्ञापन को जानबूझकर समाचार की तरह प्रकाशित करने को पेड न्यूज कहते हैं. इसका मकसद पाठकों को बेवकूफ बनाना होता है ताकि इसमें दी गई जानकारी पर संपादकीय प्रमाणिकता की छाप दिखे और यह किसी स्वार्थ के तहत प्रायोजित न लगे.

चौथा, जब हम यह जान गए हैं कि यह एक्ज़िट पोल पेड न्यूज था तो ज़रूरत इस बात की है कि वो व्यक्ति या संस्था चुनाव आयोग के सामने इस बात का खुलासा करे कि कितना भुगतान किया गया और उसका तरीका क्या था? अगर वो ये करने में असफल रहते हैं तो यह चुनाव आयोग के नियमों का उल्लंघन होगा लेकिन इस तरह की घोषणा करना लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम का उल्लंघन करने की एक स्वीकारोक्ति के समान होगा जो राजनीतिक पार्टी या प्रत्याशी के लिए गंभीर अपराध जैसा है.

क्या विज्ञापन के लिए संपादक उत्तरदायी है?

चुनाव आयोग की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस ने मंगलवार को दैनिक जागरण की वेबसाइट के संपादक को गिरफ्तार कर लिया. उन पर लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 126ए व 126बी के उल्लंघन और भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मामला दर्ज किया. अब तक समाचारपत्र के मालिक और मैनेजरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है, बगैर उनकी भागीदारी के इस तरह के विज्ञापन का प्रसारण संभव ही नहीं है.

विडंबना यह है कि भारत में जिस तरह से मीडिया संस्थान संचालित हो रहे हैं उसमें विज्ञापन विभाग द्वारा जारी किसी सामग्री पर सलाह लेने के लिए संपादक आखिरी व्यक्ति होता है. प्रेस और पुस्तक पंजीकरण (पीआरबी) अधिनियम के तहत अखबार में किसी भी तरह के कंटेट के प्रकाशन के लिए तकनीकी रूप से संपादक जिम्मेदार होता है. चाहे वह संपादकीय सामग्री हो या फिर विज्ञापन.

लेकिन वेबसाइट पीआरबी एक्ट के तहत संचालित नहीं होते हैं इसलिए संपादक को वेबसाइट में प्रकाशित किसी सामग्री के लिए सीधे तौर पर जिम्मेेदार नहीं ठहराया जा सकता है. वास्तव में, जब मालिक ने यह स्वीकार कर लिया है कि यह एक्ज़िट पोल विज्ञापन विभाग द्वारा प्रकाशित किया गया है तो इस बात की पुष्टि हो जाती है कि एक्ज़िट पोल को प्रकाशित करने का निर्णय संपादकीय विभाग द्वारा नहीं, विज्ञापन विभाग द्वारा लिया गया था.

इसके बाद संपादक पर मामला दर्ज करना कुछ समझ में नहीं आता है. पुलिस और चुनाव आयोग संपादक को बलि का बकरा बना रहे हैं जबकि वास्तविक दोषी अभी भी बाहर घूम रहे हैं. लेकिन यहां वास्तविक दोषी कौन है? चुनाव आयोग और पुलिस को यह सवाल पूछना चाहिए कि एक्ज़िट पोल कराने के लिए पैसा किसने दिया. सही दोषी वहीं से पकड़ में आएंगे.

जब दैनिक जागरण के एक्ज़िट पोल वाली रिपोर्ट पर ‘द वायर’ ने ध्यान दिलाया कि यह चुनाव आयोग का उल्लंघन है तो हड़बड़ी में इसे हटा दिया गया है. इससे कुछ संदेह पैदा होता है. इस रिपोर्ट के अनुसार एक्ज़िट पोल ‘रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल’ द्वारा किया गया है इसलिए चुनाव आयोग ने भी आॅर्गनाइजेशन का नाम लिया है और पुलिस ने भी इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज किया है.

पर अब इस नाम की एक कंपनी सामने आई है और उसका दावा है कि इस एक्ज़िट पोल में उसकी किसी तरह की संलिप्तता नहीं है. रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव गुप्ता ने ‘द वायर’ को एक ईमेल भेजा है. ईमेल में साफ तौर पर उन्होंने कहा,’रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल इंडिया (प्राइवेट) लिमिटेड या इसकी ओर से कोई भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के किसी भी एक्ज़िट पोल में शामिल नहीं है और न ही किसी तरह से इसका जुड़ाव है. ‘

अपनी कंपनी के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी मैनपॉवर और ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट जैसे मुद्दों पर काम करती है. चुनावी सर्वेक्षण करने का कंपनी का कोई इतिहास इंटरनेट पर तो नहीं मिलता. इसलिए राजीव गुप्ता विश्वसनीय लगते हैं, उनकी कही बात सच हो सकती है. तब दैनिक जागरण ने कौन-से रिसोर्स डेवलपमेंट इंटरनेशनल के हवाले से एक्ज़िट पोल प्रकाशित किया? यह वह एक सबसे ज़रूरी सवाल है जो पुलिस और चुनाव आयोग को दैनिक जागरण के मालिकान से पूछना चाहिए.

यहां यह जानना दिलचस्प है कि आरडीआई- रिसर्च एंड डेवलपमेंट इनिशिएटिव के नाम से एक और संसथान भी है. इस संस्थान का चुनावी सर्वेक्षण कराने का इतिहास रहा है और यह भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा भी रहा है.

इस आरडीआई को चुनाव विश्लेषक देवेंद्र कुमार चलाते हैं. ‘इंडिया टुडे’ की 2013 में की गई एक स्टोरी के अनुसार, ‘कई पोलिंग एजेंसियां भाजपा के साथ काम कर रही है… देवेंद्र कुमार की रिसर्च एंड डेवलपमेंट इनिशिएटिव वसुंधरा राजे और अरुण जेटली के साथ काम कर रही है.’

देवेंद्र कुमार जाने-माने लेखक और स्तंभकार है. वेबसाइट ‘डेलीओ’ पर उनके नाम से कई लेख हैं. इन लेखों के शीर्षक सीधे तौर पर इशारा करते है कि वह किस राजनीतिक विचारधारा से जुड़े हुए हैं. ‘डिमोनेटाइजेशन विल रिस्टैबलिश द क्रेडिबिलिटी आॅफ इंडियन स्टेट’, ‘मोदी गवर्नमेंट टेकिंग सीरियस इनिशिएटिव फॉर वेलफेयर आॅफ दलित्स’, ‘कांग्रेस अ बंच आॅफ स्नेक्स, वेनडेटा इन इट्स डीएनए’, ‘हेडलीज़ रिवेलेशन आॅन इशरत जहां एक्सपोज़ सेक्यूलर्स’ जैसे आलेख कुछ उदाहरण मात्र हैं.

हालांकि कुमार ने ‘द वायर’ से कहा कि दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ एक्ज़िट पोल उनके संस्थान द्वारा नहीं किया गया है. पर ऐसा सुना जा रहा था कि वे वह उत्तर प्रदेश विधासभा चुनावों के मद्देनज़र भाजपा के चुनावी अभियान में करीब से जुड़े हुए हैं. इकोनॉमिक टाइम्स की सीनियर एडिटर रोहिणी सिंह ने मंगलवार को लखनऊ स्थित भाजपा मुख्यालय में उन्हें देखा भी था.

कुमार शायद सही कह रहे हो लेकिन वास्तविक तथ्य का पता लगाने के लिए चुनाव आयोग को जांच कराने की जरूरत है. चुनाव आयोग को यह पता लगाना है कि किस ‘आरडीआई’ ने यह गैरकानूनी एक्ज़िट पोल किया और उससे भी ज्यादा किस राजनीतिक दल (अगर कोई है) की शह पर यह सर्वेक्षण किया गया है.

एक पहलू यह भी हो सकता है कि यह एक्ज़िट पोल भाजपा के विरोधियों की साज़िश हो, जो पार्टी को किसी तरह से बदनाम करना चाहते हैं. या फिर एक्ज़िट पोल खुद भाजपा द्वारा प्रकाशित किया गया हो जो पहले चरण में पिछड़ने के बाद अपनी छवि में सुधार करना चाहती हो. सच्चाई क्या है यह तो केवल एक विश्वसनीय जांच में ही सामने आ सकता है.

 

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