अमेरिका में बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए एंटी-ट्रस्ट क़ानूनों में बड़े बदलाव किए गए हैं, लेकिन भारत में कॉम्पिटीशन कमीशन ने डेटा और डिजिटल कारोबार क्षेत्र में वर्चस्व के दुरुपयोग की बस संभावना जताई है. डिजिटल एकाधिकार के लिए कोई तय नियम न होने से ऐसी कोई घटना होने के बाद कार्रवाई करना कठिन हो सकता है.
बिग डेटा कंपनियां हर स्तर पर उपभोक्ता व्यवहार पर वर्चस्व स्थापित कर रही हैं और उसे निर्देशित कर रही हैं, मगर इन बिग डेटा सर्वाधिकारवादी कंपनियों के नुकसानदेह प्रभावों की ओर अभी तक दुनियाभर के विनियामकों की नजर नहीं गई है.
इन दिनों किसी दोस्त के साथ आपके पसंदीदा रंग और कपड़ों को लेकर किया ई-मेल संवाद भी आप तक किसी ऑनलाइन रिटेलर द्वारा 30 फीसदी छूट के ऑफर की शक्ल में लौट आता है. यह आज एक सामान्य बात है.
भारत में, यह संभावना हकीकत बनने वाली है कि फेसबुक और गूगल जैसी दिग्गज आईटी कंपनियों के साथ रणनीतिक साझेदारी में काम कर रहीं रिलायंस जियो जैसी बड़ी टेलीकॉम कंपनियां 50-60 करोड़ भारतीय भारतीय उपभोक्ताओं की बेहद निजी जानकारियों पर पूरा नियंत्रण रखें.
अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के एक पैनल ने एमेजॉन, एप्पल, गूगल और फेसबुक जैसी बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों द्वारा एकाधिकार का दुरुपयोग की जांच 15 महीनों तक करने के बाद एंटी ट्रस्ट कानूनों में कुछ आमूलचूल बदलाव करने का फैसला किया है.
इस तरह के बदलाव 50 सालों में कभी नहीं देखे गए हैं. यह एक महत्वपूर्ण फैसला है अैर दुनिया के दूसरे हिस्सों में इन कंपनियों की गतिविधियों को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करेगा, क्योंकि टेक्नोलॉजी क्षेत्र की ये दिग्गज कंपनियां भौगोलिक सीमा के परे बिना किसी रुकावट के काम करती हैं.
भारत के लिए इसके निहितार्थ की बात करें, तो भारत को भी अपने यहां गूगल, फेसबुक तथा अन्य कंपनियों के कामकाज की ओर ध्यान देना होगा. और पिछले कुछ महीनों से क्या हो रहा है?
एक बात तो यह हुई है कि ये कंपनियां रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी एक भारतीय एकाधिकारवादी कंपनी के प्रति निष्ठा दिखाने होड़ लगा रही हैं. रिलायंस ने तेल के व्यवसाय से अपना साम्राज्य खड़ा किया और अब इसने अपनी निगाहें डेटा, रिटेल और टेक्नोलॉजी पर जमा दी हैं.
कई विशेषज्ञों का मानना है कि रिलायंस जियो भारतीय उपभोक्ता की जेब के इकलौते निकास बिंदु (गेटवे) के तौर पर उभरने की कोशिश रहा है. फिर चाहे वह किराने की दुकान से रोज की खरीददारी का सवाल हो या मीडिया एंटरटेनमेंट से लेकर अन्य फुटकर सेवाओं का.
सेर का सवा सेर से मिलना
जियो ने हाल ही में काफी सोच-विचारकर किए गए सौदों की बदौलत फेसबुक और गूगल से रणनीतिक निवेश हासिल किया है.
अरबपति मुकेश अंबानी ने कहा कि फेसबुक के साथ सहयोग सबसे बड़े टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर और ब्रॉडबैंड नेटवर्क वाले जियो को फेसबुक से 40 करोड़ वॉट्सऐप उपयोगकर्ताओं की बेहद निजी जानकारी पाने में मदद करेगा.
यह और कुछ नहीं बिग डेटा और उससे भी बड़े- बिगर डेटा का मिलन है. जियो के पास 30 करोड़ फोन सब्सक्राइबर्स हैं और वॉट्सऐप के पास 40 करोड़ यूजर्स हैं.
जियो का लक्ष्य वॉट्सऐप इस्तेमाल करनेवाले करीब 30 से 50 लाख रिटेल दुकानदारों की निजी जानकारी हासिल करना और इन किराना दुकानों को रिलायंस रिटेल सेना का प्यादा बनाना है.
दूसरी तरफ गूगल रिलायंस के साथ सहयोग का इस्तेमाल 20-30 करोड़ सस्ते स्मार्टफोन का निर्माण और उनकी मार्केटिंग करने के लिए करेगा, जो अपेक्षाकृत गरीब भारतीयों के फीचर फोनों की जगह लेंगे.
दुनिया में भारत एकमात्र देश है, जहां फेसबुक और गूगल ने एक साथ मिलकर एक इकाई के तौर पर काम करने के लिए हाथ मिलाया है.
जियो और फेसबुक के बीच करार को स्वीकृति प्रदान करते हुए भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग (कॉम्पिटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) ने फिलहाल दोनों पक्षों की तरफ से दिए गए वचन पर भरोसा जताया है कि उपयोगकर्ताओं की सूचना (यूजर इंफॉर्मेशन) का कोई अधिग्रहण नहीं होगा, और (ई-कॉमर्स खरीद-फरोख्त को आसान करने के लिए) डेटा का कोई भी आदान प्रदान ‘सीमित’ और ‘आनुपातिक’ होगा.
जो भी हो, इसने भविष्य में डेटा और डिजिटल कारोबार के क्षेत्र में वर्चस्व के दुरुपयोग की संभावना को दर्ज अवश्य किया है.
आयोग ने अपने एक विस्तृत फैसले में जो इस महीने की शुरुआत में सार्वजनिक किया गया, कहा है,
‘टेलीकम्युनिकेशन कारोबार और ओटीटी कंटेंट/एप्लिकेशन यूजर्स के बीच सहसंबंध के मद्देनजर- आर जियो समेत अन्य जियो प्लेटफॉर्म और फेसबुक ग्रुप के अधिकार वाला यूजर डेटा एक दूसरे का पूरक है. इस तरह भविष्य में किसी तरह से डेटा साझा करने से उपजने वाले किसी भी प्रतिस्पर्धा विरोधी आचरण का आयोग द्वारा एक्ट के अनुच्छेद 3 और/या 4 के तहत संज्ञान में लिया जा सकता है, जिसमें सबंधित बाजारों के स्वभाव और पार्टियों के पक्ष का समुचित तरीके से ध्यान रखा जाएगा…’
लेकिन सीसीआई ने ऐसी किसी भी घटना पर कार्रवाई नहीं की है या इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया है. कहने का मतलब यह है कि जब मामला डिजिटल एकाधिकार का आता है, तो ऐसी किसी घटना के घटने के बाद कार्रवाई करना कठिन हो सकता है.
कुछ हाथों में सिमटता रिटेल क्षेत्र
इस बीच रिलायंस इंडस्ट्रीज ऑनलाइन और ऑफलाइन रिटेल क्षेत्र पर अपनी स्थिति को मजबूत कर रही है जिसका मकसद रिटेल कारोबारियों और उपभोक्ताओं के बड़े हिस्से के व्यवहार पर नियंत्रण करना है. इसने हाल ही में किशोर बियानी के स्वामित्व वाले फ्यूचर रिटेल की ग्रॉसरी (किराना) और ऐपेरल (परिधान) कारोबार का अधिग्रहण किया है.
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि एमेजॉन ने रिलायंस को कानूनी नोटिस भेजा, जिसमें कहा गया है कि इसने पहले फ्यूचर ग्रुप में निवेश किया था और इसकी एक शर्त यह थी कि फ्यूचर एमेजॉन को फर्स्ट राइट ऑफ रिफ्यूजल यानी पहले इनकार करने का अधिकार दिए बगैर अपने कारोबार को रिलायंस को नहीं बेच सकता है.
एमेजॉन एक बहुत बड़ी और वैश्विक कंपनी है. रिलायंस को यह पता है कि यह एमेजॉन से इतने हल्के में नहीं ले सकता. खबरों के मुताबिक हाल ही में रिलायंस ने अपने रिटेल कारोबार में 20 अरब अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी एमेजॉन को बेचने की पेशकश की.
यह संभव है कि जेफ बेजोस आखिर में रिलायंस के साथ करार पर तैयार हो जाएं ताकि दोनों मिलकर भारतीय उपभोक्ताओं की जेब पर नियंत्रण रख सकें. भविष्य में क्या होगा, यह जानने का हमारे पास कोई साधन नहीं है.
लेकिन यह स्पष्ट है बिग डेटा- और उपभोक्ता बाजार पर- पर नियंत्रण रखने वाले टेक्नोलॉजी दिग्गजों के विनियमन के लिए वैश्विक खाके की जरूरत पड़ेगी.
भारत में रिलायंस जियो, रिलायंस रिटेल, फेसबुक और गूगल का एक साथ आना एक तरह से अमेरिका में ऑफलाइन और ऑनलाइन रिटेल कारोबार पर कब्ज़ा जमाने के लिए वालमार्ट, एटी एंड टी, फेसबुक और गूगल के आपस में हाथ मिलाने की तरह है.
इसके बारे में बस सोचकर देखिए. क्या अमेरिका के एंटी ट्रस्ट कानून कभी भी ऐसा होने की इजाजत देंगे?
और ऐसे बिग डेटा साम्राज्य का राजनीति, चुनाव और लोकतंत्र पर क्या असर पड़ सकता है यह बिल्कुल ही अलग बहस है. वास्तव में बड़े महारथियों का खेल बस शुरू ही हुआ है. यह देखना अभी बाकी है कि नीचे रहने वाले छोटे लोगों का क्या होगा?
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)