हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान जताया था कि भारत की जीडीपी 2020 में -10.3 फीसदी रह सकती है जबकि उनके अनुमान के मुताबिक़ साल 2021 में प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बांग्लादेश भारत को पीछे छोड़ देगा.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार दावा किया है कि भारत ने आर्थिक सुधार के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए कोरोना से मृत्यु दर को कम रखकर बड़ी सफलता हासिल की है. क्या उनका यह दावा आंकड़ों पर आधारित है?
बीते दिनों विश्व बैंक के पूर्व अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने तुलना किए जा सकने वाले कई एशियाई देशों के कुछ आंकड़ो के दो सेट ट्वीट किए- एक था अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा 2020 के लिए विकास दर का अनुमान और दूसरा कोरोना से हुई मौतों का प्रति दस लाख का आंकड़ा.
उन्होंने मोदी के इन दावों पर संदेह जताया कि भारत ने कोरोना से मृत्यु दर को कम रखकर सफलता हासिल की है. प्रधानमंत्री मोदी ने मई महीने में अनुमान जताया था कि भारत वैश्विक आर्थिक सुधार का नेतृत्व करेगा.
आंकड़ों से पता चलता है कि एशिया में सर्वाधिक मृत्यु दर भारत की है. इसके साथ ही भारत की जीडीपी दर का अनुमान भी सबसे कम जताया गया है. दोनों पैमानों पर भारत ने ख़राब प्रदर्शन किया है.
Even a few years ago none could have imagined India’s economy being where it is. A part of this is caused by Covid, but only a part—see Table. Lessons: Don’t be in data denial. Mistakes happen—admit & take corrective action. Use the talent & expertise available in the country. pic.twitter.com/5HbWgwufGW
— Kaushik Basu (@kaushikcbasu) October 19, 2020
भारत में प्रति दस लाख आबादी पर कोरोना से 83 मौतें हुई जबकि एशियाई देशों में चीन में तीन मौतें, बांग्लादेश (34), वियतनाम (0.4), नेपाल (25), पाकिस्तान (30), थाईलैंड (0.8) श्रीलंका (0.6), मलेशिया (6), इंडोनेशिया (46) मौतें हुई हैं. भारत में इंडोनेशिया की तुलना में मौतें लगभग दोगुनी है.
2020-2021 के लिए जीडीपी दर के अनुमानों में भारत की जीडीपी दर का अनुमान -10 फीसदी है जबकि चीन, बांग्लादेश और वियतनाम में यह दर सकारात्मक है. बांग्लादेश ने सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है क्योंकि प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर आईएमएफ आंकड़ों से पता चला है कि इस साल बांग्लादेश ने भारत को पीछे छोड़ दिया है.
भारत की जीडीपी के अनुमान में 10 फीसदी की कमी आई है. मोदी सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने तर्क दिया है कि भले ही बांग्लादेश ने डॉलर के संदर्भ में भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी आय को पार कर लिया है लेकिन भारत की स्थिति उस समय बेहतर होती, जब प्रति व्यक्ति आय की खरीद शक्ति समानता (पीपीपी) के संदर्भ में गणना की जाती.
भारत का गैर डॉलर कारोबार और सेवाओं में अधिक व्यापक आधार है तो इसलिए पीपीपी के आधार पर भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी अधिक होती.
पीपीपी गणना में नाई, प्लंबर और मजदूरों द्वारा की गई स्थानीय सेवाओं को आमतौर पर डॉलर मूल्य पर मेहनताना दिया जाता है जो अमेरिका में समान सेवा के समान है और इस तरह भारत की जीडीपी डॉलर जीडीपी के तीन गुना हो गई.
ऐसा ही बांग्लादेश की जीडीपी के साथ हुआ लेकिन भारत के साथ ऐसा नहीं है, जिसकी घरेलू सेवाओं का आधार अधिक व्यापक है. लेकिन सामाजिक और राजनीतिक कारकों ने आर्थिक विकास पर गहरा असर डाला है भले ही जीडीपी की तुलना पीपीपी में की जाए या डॉलर के संदर्भ में.
वास्तव में सुब्रमणमयन ने खुद कहा है कि सामाजिक सद्भाव की कमी और समाज में बढ़ रहे पहचान विभाजन का आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.
हाल ही में जोसेफ स्टिग्लिट्ज ने भारत के प्रमुख जोखिम कारक के रूप में विभाजन पर जोर दिया. बसु ने भी हाल ही में द वायर को दिए साक्षात्कार में इस बारे में बात की.
बांग्लादेश प्रति व्यक्ति डॉलर संदर्भ में भी भारत से बेहतर कर रहा है इसलिए हमें इसे चेतावनी के तौर पर लेना चाहिए.
चीन, वियतनाम और बांग्लादेश जैसे एशियाई देशों को श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी के संदर्भ में लाभ है.
अधिकतर एशियाई देश जिनकी विकास दर अच्छी रही है और अधिकतर एशियाई देश जिनकी अर्थव्यवस्थाओं ने अच्छा काम किया है और कोरोना के नकारात्मक प्रभावों पर काबू पाया है, वहां श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी 38 से 60 फीसदी है.
बांग्लादेश का मजबूत निर्यात काफी हद तक महिला कामगारों की उत्पादकता पर आधारित है.
एनएसएसओ के सर्वे के मुताबिक, भारत में महिलाओं की भागीदारी 17 फीसदी है. 15 साल से अधिक उम्र की सिर्फ 17 फीसदी महिलाएं काम की तलाश में हैं. हिंदी भाषी राज्यों में श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी सबसे निचले स्तर 4 से सात फीसदी है.
इसकी कल्पना भी नहीं का जा सकती कि उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे घनी आबादी वाले राज्य किस तरह विकास दर बढ़ा सकते हैं, फिर चाहे वह पीपीपी के संदर्भ में हो या डॉलर के संदर्भ में. 90 फीसदी से अधिक महिलाएं काम की तलाश नहीं कर रही.
वास्तव में भारत में अभी भी पर्याप्त शोध नहीं हुआ है कि किस तरह जाति, सांप्रदायिकता और लैंगिक भेदभाव दीर्घावधि में विकास की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है. कोरोना ने इन जोखिमों को और बढ़ाया है.
यह द इंडिया केबल में प्रकाशित वास्तविक लेख का संशोधित रूप है.
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