राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, इस साल प्रदेश में विदेशी पर्यटकों की संख्या में 2019 की तुलना में 59.54 फीसदी की गिरावट आई है. लॉकडाउन के कारण राजस्थान के होटल कारोबारियों, लोक कलाकारों, वाहन चालकों और टूरिस्ट गाइड आदि के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है.
जयपुरः बमुश्किल ही ऐसा कोई उद्योग या शख्स होगा जिस पर कोरोना वायरस की वजह से लगाए गए लॉकडाउन का असर न पड़ा हो, लेकिन पर्यटन उद्योग को इससे सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है.
कोरोना वायरस की वजह से लगाया गया लॉकडाउन हटाए जाने के बावजूद कनेक्टिविटी पूरी तरह से बहाल नहीं हो पाई है. यात्रा अभी भी प्रतिबंधित है, सिर्फ जरूरी मामलों में ही यात्रा की अनुमति है, जिस वजह से देशभर में पर्यटन सेक्टर में तेज गिरावट आई है.
जीवंत परिदृश्य और शाही विरासत को राजस्थान के ऐतिहासिक किलों और महलों, सदियों पुराने मंदिरों और थार के रेगिस्तान की वजह से देश के सबसे अधिक लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है.
हालांकि, मार्च महीने से राजस्थान में पर्यटकों के आगमन में गिरावट देखी गई है.
राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से द वायर के साथ साझा किए गए पर्यटकों के आगमन आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 में राज्य में भारतीय पर्यटकों के आगमन में 69.3 फीसदी की गिरावट आई है.
पिछले साल तकरीबन चार करोड़ (39,685,822) भारतीय पर्यटकों ने राजस्थान के विभिन्न स्थानों का दौरा किया था, जबकि इस साल यह संख्या घटकर 1.21 करोड़ (12,175,524) हो गई है.
इसी तरह इस साल विदेशी पर्यटकों की संख्या में 2019 की तुलना में 59.54 फीसदी की गिरावट आई है.
पिछले साल 10.92 लाख विदेशी नागरिकों ने राजस्थान का दौरा किया था जबकि 4.42 लाख विदेशी इस साल आ सके, वो भी मार्च में लगे लॉकडाउन से पहले.
सितंबर 2020 तक राजस्थान आने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या 1.12 करोड़ (12,175,524) रही, जिसमें इस साल जनवरी और मार्च के बीच कुल 1.14 करोड़ (11,426,296) भारतीय पर्यटक राजस्थान पहुंचे थे.
पर्यटकों की संख्या में बेतहाशा कमी से पर्यटन उद्योग पर प्रभाव पड़ा है.
राजस्थान के जैसलमेर स्थित केके रिसॉर्ट्स के मालिक कैलाश व्यास ने बताया कि लॉकडाउन हटाए जाने के बाद रिसॉर्ट और होटल दोबारा खुले लेकिन पर्यटकों के कम आने से उनका बहुत बड़ा नुकसान हुआ है.
व्यास ने द वायर को बताया, ‘हमने लॉकडाउन के बाद कारोबार शुरू किया लेकिन अपने स्टाफ को वेतन का भुगतान करने के लिए पैसा तक नहीं जुटा सके. जुलाई और सितंबर के महीने में मेरे रिसॉर्ट के 52 कमरों में से सिर्फ दो कमरे ही बुक हो पाए.’
कनेक्टिविटी न होने की वजह से दिल्ली, मुंबई और पश्चिम बंगाल के पर्यटक भी राजस्थान नहीं पहुंच सके.
जैसलमेर के सूर्य विलास होटल के मालिक कुंदन भाटी ने कहा, ‘सितंबर से सिर्फ आसपास के इलाकों के पर्यटक ही राजस्थान पहुंच रहे हैं, उनमें से भी अधिकतर पर्यटक गुजरात से हैं, जहां से आने में सिर्फ एक दिन लगता है.’
यहां तक कि राज्य का पर्यटन विभाग भी सिर्फ आसपास के इलाकों से ही पर्यटन को बढ़ावा दे रहा है.
फाइनेंशियल एक्सप्रेस से बातचीत में राजस्थान सरकार के पर्यटन विभाग के मुख्य सचिव आलोक गुप्ता ने बताया, ‘शॉर्ट स्टे, सेफ स्टे कॉन्सेप्ट का मतलब यह सुनिश्चित करना है कि आसपास के राज्यों के यात्री सुरक्षित और अच्छे माहौल में आकर खुद को तरोताजा करें.’
पर्यटक अब अपने निजी वाहनों में यात्रा करना पसंद कर रहे हैं, इस वजह से स्थानीय टैक्सी चालकों को भी अपनी आजीविका को लेकर मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
अधिकतर पर्यटक ट्रेन या विमान से आते हैं. दोनों मामलों में उन्हें शहर में घूमने के लिए स्थानीय टैक्सी की जरूरत है.
विशेष रूप से जैसलमेर में दो सबसे आकर्षक पर्यटक स्थल सैंड ड्यून और तनोट माता का मंदिर है, जो शहर से लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर है, जहां या तो निजी वाहन से या फिर स्थानीय टैक्सी से ही पहुंचा जा सकता है.
जैसलमेर के टैक्सी मालिक भानू सिंह ने कहा, ‘जैसलमेर में कोई ओला या उबर कैब सुविधा नहीं है, जिसकी वजह से पर्यटक स्थानीय टैक्सी पर निर्भर है.’
टैक्सियों की मांग में भारी कमी की वजह से कॉन्ट्रैक्टशिप कि तहत काम कर रहे कई टैक्सी चालक अपने काम से हाथ धो बैठे हैं.
सिंह ने कहा, ‘काम नहीं होने से कोई कमाई नहीं है. ठेकेदार अपनी कारों को मासिक किश्त तक नहीं दे पा रहे इस वजह से वे चालकों को उनके काम से हटा रहे हैं.’
राजस्थान में ऊंट की सवारी अधिकतर पर्यटक स्थलों पर महत्वपूर्ण है, लेकिन कम पर्यटकों के आने से ऊंट चालक अपने पालतू ऊंट का ध्यान नहीं रख पा रहे हैं.
जैसलमेर के सैंड ड्यून में 50 ऊंट के मालिक खुदा बख्श (40) बीते 25 सालों से इस काम में हैं, लेकिन उन्होंने कभी इस तरह का आर्थिक संकट नहीं देखा.
बख्श ने द वायर को बताया, ‘कभी भी स्थिति इतनी खराब नहीं रही. मैंने मार्च के बाद से अपने ऊंटों को खाना खिलाने के लिए अपनी जिंदगी भर की पूंजी लगा दी, लेकिन अब मेरे पास पैसे खत्म हो गए हैं. अगर पर्यटक ही नहीं आएंगे तो मुझे अपने ऊंट बेचने पड़ सकते हैं.’
कोरोना महामारी का लोक संगीतकारों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.
राजस्थान में मांगणियार समुदाय के लोग पैसे और भोजन के लिए पूरी तरह से पर्यटकों और अन्य उच्च जाति के लोगों पर निर्भर हैं.
मांगणियार पेशवर गायकों का एक मुस्लिम समुदाय है, जो शादी समारोह सहित हर स्थानीय अवसरों पर परफॉर्म करता है. राजस्थानी कला एवं संस्कृति को जीवंत रखने के लिए धनी जमींदार और ऊंची जाति के हिंदू परिवार मांगणियारों को पीढ़ियों से समर्थन करते आए हैं. हर मांगणियार गांव के एक परिवार से जुड़ा है, जो उसे खाना और कुछ पैसे देते हैं.
मेहमानों का स्वागत करने के लिए होटल एवं रिसॉर्ट मांगणियार का कार्यक्रम का आयोजन करते हैं. उन्हें 20,000 से लेकर 40,000 रुपये के बीच मासिक स्टाइपेंड दिया जाता है. हालांकि, इस साल पर्यटकों के कम आने से इनमें से कई के आय का स्रोत खत्म हो गया है.
राजस्थान के जैसलमेर के कनोई गांव के मांगणियार बिस्मिल्लाह खान का कहना है कि उन्हें अब सिर्फ परफॉर्मेंस के अनुसार ही पैसा मिलता है. कोरोना से पहले वह होटलों में परफॉर्म कर 40,000 रुपये महीना कमा लेते थे.
खान ने बताया, ‘आजीविका के लिए हम शादियों या होटलों में परफॉर्म करते हैं लेकिन अब न तो कोई परिवार हमें बुला रहा है और न ही होटलों मे मेहमान हैं जिनके सामने हम परफॉर्म कर सकें.’
उन्होंने कहा कि कई मांगणियारों को इन दिनों अपने खाने का इंतजाम करने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
पर्यटन सेक्टर में काम करने वाले लोगों के लिए आवाज उठाने वाली संस्था सैम कैंप रिसॉर्ट वेलफेयर सोसाइटी के प्रमुख कैलाश व्यास का कहना है कि सरकार ने पर्यटन उद्योग पर निर्भर दिहाड़ी मजदूरों को किसी तरह की राहत नहीं दी है.
व्यास ने कहा, ‘चालकों, गाइड और लोक कलाकारों को बिना किसी बाधा के ऋण सुविधा प्रदान करने की हमारी मांग के बावजूद सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.’
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