विशेष रिपोर्ट: बाजार मूल्य की जानकारी देने वाले कृषि मंत्रालय के पोर्टल से मिले आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि अक्टूबर-नवंबर में एमएसपी से कम दाम पर कृषि उपजों की बिक्री से किसानों को क़रीब 1,881 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों की प्रमुख मांग एमएसपी को क़ानूनी अधिकार बनाने की है.
नई दिल्ली: मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे देशव्यापी आंदोलन और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी अधिकार बनाने की बहस के बीच किसानों को पिछले दो महीने (अक्टूबर और नवंबर) में एमएसपी से कम कीमत पर कृषि उपजों की बिक्री होने पर कम से कम 1,881 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है.
दूसरे शब्दों में कहें, तो ये राशि किसानों के जेब में जानी चाहिए थी, लेकिन केंद्र द्वारा घोषित एमएसपी न मिलने पर वे इससे महरूम रह गए.
द वायर द्वारा बाजार मूल्य की जानकारी देने वाले कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के पोर्टल एगमार्कनेट पर उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण से ये जानकारी सामने आई है.
एगमार्कनेट देश भर की 3000 से ज्यादा थोक मंडियों में कृषि उत्पादों की आवक एवं उनके बिक्री मूल्यों की जानकारी देता है.
सबसे ज्यादा नुकसान मक्का किसानों को हुआ है, जहां बाजार मूल्य सिर्फ 1,100 और 1,550 के बीच रहा, जबकि इसकी एमएसपी 1,850 रुपये प्रति क्विंटल है. इसके चलते अक्टूबर और नवंबर महीने में इन किसानों को सीधे 485 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है.
वहीं देश भर के मूंगफली किसानों को एमएसपी से नीचे बिक्री होने पर 333 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
दालें एवं तिलहन के अलावा धान की भी एमएसपी से नीचे के मूल्य पर बिक्री हुई है. इसके चलते पंजाब और हरियाणा को छोड़कर अन्य प्रमुख धान उत्पादक राज्यों के किसानों को 220 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है.
इन राज्यों- छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना- में धान का बाजार मूल्य एमएसपी से लगभग 15 फीसदी नीचे था.
इस विश्लेषण के लिए एगमार्कनेट पर उपलब्ध राज्य स्तर पर फसलों की औसत मासिक कीमतों और राज्यवार बेची गई उपज की मात्रा का इस्तेमाल किया गया है.
राज्य की मंडियों में मासिक औसत मूल्य और एमएसपी के बीच का अंतर प्रत्येक राज्य में बेची गई कृषि उपज की मात्रा से गुणा किया गया, ताकि प्रत्येक राज्य में प्रत्येक फसल के लिए किसानों को हुए नुकसान या लाभ का आंकड़ा निकल सके.
राष्ट्रीय स्तर पर हुए कुल नुकसान के आंकड़े पर पहुंचने के लिए केवल उन्हीं राज्यों की विभिन्न फसलों को लिया है, जहां औसत कीमतें एमएसपी से नीचे थीं, क्योंकि यह एमएसपी से नीचे की गई बिक्री के कारण हुए नुकसान का अधिक सटीक आकलन होगा.
यदि उन राज्यों को भी शामिल करते हैं, जहां कुछ राज्यों में लाभ हुआ है- विशेषकर पंजाब एवं हरियाणा में धान बिक्री- को पिछले दो महीने में राष्ट्रीय स्तर पर किसानों को 1400 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
इसके अलावा हमने सिर्फ उन्हीं राज्यों को शामिल किया है जहां 95 फीसदी या इससे ज्यादा संबंधित कृषि उत्पाद की बिक्री हुई है.
वर्तमान में चल रहे कृषि आंदोलनों में किसानों की प्रमुख मांगों में से एक यह है कि एमएसपी को कानूनी अधिकार बनाया जाएगा.
इसके पीछे की प्रमुख वजह ये है कि वैसे तो 23 फसलों के लिए एमएसपी घोषित की जाती है, लेकिन मुख्य रूप से दो फसलों- धान एवं गेहूं- और वो भी सिर्फ दो राज्यों पंजाब और हरियाणा- में एमएसपी या इससे अधिक पर बिक्री हो पाती है.
और यही कारण है कि यदि एमएसपी पर खरीद बंद की जाती है तो इन्हीं दो राज्यों के किसानों के सबसे ज्यादा नुकसान होगा.
हमारा विश्लेषण कोई नई बात नहीं है, बल्कि वही बताता है जो खुले तौर पर आम जनमानस को पता है.
एमएसपी की घोषणा सरकारी दस्तावेजों तक ही सीमित है और उचित खरीद व्यवस्था- पंजाब और हरियाणा को छोड़कर- न होने के कारण किसानों को अपनी उपजों को एमएसपी से काफी कम और औने-पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
उदाहरण के तौर पर, कर्नाटक में बाजरे का औसत मूल्य अक्टूबर में एमएसपी से 45 फीसदी कम और नवंबर में एमएसपी से 42 फीसदी कम था. इसी तरह मध्य प्रदेश में ज्वार अक्टूबर में एमएसपी से 56 फीसदी कम और नवंबर में एमएसपी से 33 फीसदी कम मूल्य पर बेचा गया.
हालांकि तिल एकमात्र अपवाद है, जिसकी औसत राज्य स्तर की कीमतें एमएसपी की तुलना में काफी अधिक थी. हालांकि इस उपज की काफी कम खरीद हुई है.
इसी तरह महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में अक्टूबर और नवंबर दोनों महीनों में उड़द की कीमतें एमएसपी से लगभग 10 फीसदी अधिक थीं.
अरहर को भी महाराष्ट्र और कर्नाटक में लगभग 1,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर नवंबर के महीने में उच्च कीमतें प्राप्त होना शुरू हो गई थीं, लेकिन मध्य प्रदेश में इसकी कीमतें एमएसपी की तुलना में कम ही रहीं, जहां खरीद का एक बड़ा हिस्सा है.
इन फसलों के अलावा केवल पंजाब और हरियाणा में धान अक्टूबर और नवंबर महीने में एमएसपी से करीब एक फीसदी अधिक औसत कीमतों पर बिकी थी.
यदि राज्यवार आंकड़े देखें, तो कर्नाटक में किसानों को सबसे ज्यादा 403 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. यहां पर मक्का, सोयाबीन, मूंगफली, मूंग, बाजरा, कपास, ज्वार, रागी और धान की कीमतें दोनों महीने एमएसपी से कम रहीं.
वैसे तो कर्नाटक में अरहर की कीमतें दोनों महीने एमएसपी अधिक थीं, चूंकि ये राज्य अरहर के मामले में काफी छोटा उत्पादक है इसलिए इससे राष्ट्रीय स्तर की तस्वीर में कोई खास परिवर्तन नहीं आता है.
कर्नाटक मक्का का बड़ा उत्पादक है और यहां की मंडियों में अक्टूबर और नवंबर महीने में मिलाकर सबसे ज्यादा इसकी आवक हुई थी. लेकिन राज्य के मक्का उत्पादक किसानों को 130 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है क्योंकि अक्टूबर में इसका मूल्य एमएसपी से 21 फीसदी कम और नवंबर में 16 फीसदी कम था.
इसी तरह एमएसपी से कम पर बिक्री होने के कारण राज्य के सोयाबीन किसानों को कम से कम 82 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है.
मध्य प्रदेश में मक्का, कपास, सोयबीन, अरहर, ज्वार और मूंगफली की औसत कीमतें एमएसपी से काफी कम रहीं.
आलम ये है कि राज्य में मक्का, जिसकी कीमतें इस साल देश भर में आंशिक रूप से मुर्गी पालन उद्योग के पतन के कारण प्रभावित हुई हैं- का औसत मूल्य अक्टूबर में एमएसपी से 39 फीसदी और नवंबर में 29 फीसदी कम था.
गुजरात के कपास और मूंगफली किसानों को बाजार मूल्य एमएसपी से कम रहने के कारण 100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इस राज्य की मंडियों में इन दोनों फसलों की सबसे ज्यादा आवक हुई थी.
जैसा कि उपर्युक्त में बताया गया है कि केवल पंजाब और हरियाणा ही ऐसे राज्य हैं जहां पिछले दो महीने में धान की खरीदी में किसानों को लाभ हुआ है क्योंकि यहां पर मंडियों का जाल अच्छी तरह से बिछाया गया है.
हालांकि पंजाब में भी मक्का और कपास के किसानों को अपनी उपज को एमएसपी से कम पर बेचना पड़ा है, जिसके चलते उन्हें नुकसान हुआ है.