एक आरटीआई कार्यकर्ता सीआईसी के समक्ष एक याचिका दायर की थी, क्योंकि उन्हें इसके बारे में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से संतोषजनक जवाब नहीं मिला था. उन्होंने आरोग्य सेतु ऐप के निर्माण से जुड़ी पूरी फाइल और इस प्रक्रिया में शामिल कंपनियों, लोगों और सरकारी विभागों का ब्योरा मांगा था.
नई दिल्ली: आरोग्य सेतु ऐप से संबंधित जानकारी की उपलब्धता के बारे में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के समक्ष केंद्र सरकार के विभागों और मंत्रालयों के सभी केंद्रीय सूचना अधिकारियों (सीपीआईओ) की ओर से गैर जिम्मेदाराना प्रस्तुतियां देने के मामले में ‘बिना शर्त माफी’ मांगी गई थी.
इससे पहले सीआईसी ने आरोग्य सेतु ऐप के गठन के बारे में जानकारी नहीं होने का दावा करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की खिंचाई की थी, बावजूद इसके बाद में दावा किया कि सारी जानकारी सार्वजनिक डोमेन में थी.
सरकार के कोविड-19 दिशानिर्देशों के तहत यात्रा और कई अन्य गतिविधियों के लिए आरोग्य सेतु ऐप को अनिवार्य कर दिया गया था.
जनहित के कारण तत्काल सुनवाई की मांग
मामले में याचिकाकर्ता आरटीआई कार्यकर्ता सौरव दास ने 1 अगस्त को सीआईसी के समक्ष एक याचिका दायर की थी, क्योंकि उन्हें ऐप के विवरण के बारे में मंत्रालय से संतोषजनक जवाब नहीं मिला था.
अन्य चीजों के साथ उन्होंने आरोग्य सेतु ऐप के निर्माण से जुड़ी पूरी फाइल और इस प्रक्रिया में शामिल कंपनियों, लोगों और सरकारी विभागों का ब्योरा मांगा था. दास ने उस कानून का विवरण भी मांगा था जिसके तहत ऐप बनाया गया था और उसे संभाला जा रहा था.
आरटीआई कार्यकर्ता ने सीआईसी से कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 7 अगस्त को जवाब दिया और कहा कि आवेदन को मंत्रालय के नेशनल ई-गवर्नेंस डिवीजन के सीपीआईओ को फॉरवर्ड कर दिया, लेकिन उनके सवालों का जवाब नहीं दिया.
नेशनल ई-गवर्नेंस डिवीजन ने 2 अक्टूबर को जवाब दिया कि उनके सवालों से संबंधित जवाब उनके पास नहीं हैं.
इस तरह दास ने यह कहते हुए तत्काल सुनवाई की मांग की कि मामला भारी जनहित का है और तत्काल सार्वजनिक जांच की जरूरत है.
याचिकाकर्ता ने इस ओर भी इशारा किया कि जनअधिकारियों द्वारा प्रोटोकॉल, 2020 के तहत अपना कर्तव्य निभाने में किसी तरह की विफलता और लोगों के व्यक्तिगत और उपयोगकर्ता डेटा के उपयोग को सूचित करने में इसकी विफलता से निजता के अधिकार और जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर गंभीर और अपरिवर्तनीय हानिकारक प्रभाव पड़ेगा.
सीआईसी ने मामले को निजता के अधिकार से जुड़ा माना
आयोग ने स्वीकार किया कि मामला निजता के अधिकार से संबंधित है जो कि जीवन एवं स्वतंत्रता का सार है जिसके कारण यह प्रारंभिक सुनवाई का अवसर प्रदान करने के लिए सही है.
केंद्रीय सूचना आयुक्त वनजा एन. सरना ने इस आदेश में यह भी कहा है कि आरटीआई कार्यकर्ता दास ने इसे ‘बहुत ही आश्चर्यजनक’ कहा था कि यह जानकारी एनआईसी (नेशनल इनफॉरमेटिक्स सेंटर) द्वारा यह कहते हुए प्रदान नहीं की गई थी कि ऐप के विकास से संबंधित होने के बावजूद वह जानकारी नहीं रखता है.
सीआईसी के अंतरिम आदेश में इस बात को भी रिकॉर्ड पर लिया गया कि शिकायतकर्ता की मांग है कि इस मामले में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वरिष्ठ स्तर के एक अधिकारी को सीपीआईओ के रूप में मान्यता दी जाए और इस शिकायत ने बताया कि विभिन्न मीडिया रिपोर्टों ने आरोग्य सेतु ऐप और इसके निर्माण और संचालन पर सवाल उठाए थे.
ऐप के गठन के बारे में मंत्रालय को कोई जानकारी नहीं
सीआईसी के आदेश में यह भी कहा गया कि मंत्रालय के सीपीआईओ ने ऐप के गठन में नीति आयोग के शामिल होने के अलावा कोई और जानकारी नहीं दी और वह यह नहीं समझा सका कि यह कैसे संभव है कि ऐप बनाया गया और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को इसके मूल के बारे में कोई जानकारी नहीं है.
इसके बाद आयोग ने एनआईसी के सीपीआईओ को यह स्पष्ट करने का आदेश दिया कि अगर उन्हें कोई जानकारी नहीं है तो वेबसाइट कैसे जीओवीडॉटइन (gov.in) के डोमेन से बनाया गया.
इसके साथ ही उसने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स, नेशनल ई-गवर्नेंस डिवीजन और एनआईसी के सीपीआईओ को भी नोटिस जारी किया और पूछा कि सूचना के प्रथम दृष्टया अवरोध के लिए जुर्माना क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए और एक स्पष्ट जवाब मांगा. फिर मामले को 24 नवंबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया.
सीपीआईओ ने जवाबों को गैरजिम्मेदाराना माना
सुनवाई के दिन नेशनल ई-गवर्नेंस डिवीजन के सीपीआईओ और महाप्रबंधक शिलोमा राव संबंधित सीपीआईओ की तरफ से आयोग के समक्ष उसकी गैरजिम्मेदाराना जवाबों के लिए बिना शर्त माफी मांगी.
सरना ने आदेश में दर्ज किया कि उन्होंने स्वीकार किया कि विषय महत्वपूर्ण है और अनावश्यक रूप से अधिकारियों द्वारा आरटीआई आवेदन को खराब तरीके से नियंत्रित किया गया था, जो कि टालने वाला जवाब दिखाई देता है.
हालांकि, अधिकारी ने जोर देकर कहा कि वास्तव में छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है और इस एप्लीकेशन का निर्माण एक सकारात्मक कदम था और वास्तव में महामारी को नियंत्रित करने में काफी मदद की थी.उन्होंने यह भी कहा कि सभी अपेक्षित दस्तावेज इस वर्ष अप्रैल में ही पोर्टल पर उपलब्ध कराए गए थे.
उत्तर में कहा गया कि ऐप के संबंध में 10 से अधिक सार्वजनिक सम्मेलन आयोजित किए गए थे और बग बाउंटिंग कार्यक्रम भी लॉन्च किया गया था, ताकि यदि किसी को ऐप में कोई खराबी मिले तो उन्हें पुरस्कृत किया जा सके.
एप्लीकेशन से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देने के लिए अधिकारी नामित
खामी के लिए विभिन्न सीपीआईओ में समन्वय की कमी को दोष देते हुए उन्होंने कहा कि एक सीपीआईओ बनाने के लिए 11 नवंबर को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा एक परिपत्र जारी किया गया था.
इसके तहत इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के ई-गवर्नमेंट डिवीजन के एक डिप्टी डायरेक्टर डीके सागर को ऐप से संबंधित आरटीआई को संभालने की जिम्मेदारी दी गई.
मंत्रालय के जवाब में यह भी कहा गया कि आरोग्य सेतु को कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने के लिए एक राष्ट्रीय ऐप के रूप में बनाया गया था.
जवाब में कहा गया, ‘यह ऐप सरकार को बिना किसी खर्च के तीन सप्ताह से कम समय के रिकॉर्ड समय में बनाया गया था और 2 अप्रैल, 2020 को लॉन्च किया गया था. ऐप के लॉन्च होने के 13 दिनों के भीतर ही इसके पांच करोड़ से अधिक उपयोगकर्ता थे, जो किसी भी मोबाइल ऐप के लिए पांच करोड़ उपयोगकर्ताओं तक पहुंचने का सबसे तेज समय का विश्व रिकॉर्ड था.’
यह भी प्रस्तुत किया गया था कि ऐप में 16.4 करोड़ से अधिक उपयोगकर्ता हैं, जो दुनिया में अन्य सभी कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप के संयुक्त उपयोगकर्ताओं से अधिक है.
यूजर्स का डेटा पूरी तरह से सुरक्षित
डेटा की सुरक्षा के मुद्दे पर जवाब में कहा गया कि ऐप को एक गोपनीयता नीति के साथ डिजाइन किया गया है और उपयोगकर्ताओं का पूरा डेटा पूरी तरह से सुरक्षित है.
अधिकांश डेटा उपयोगकर्ताओं के मोबाइल फोन पर रहता है और यदि संबंधित व्यक्ति कोविड-19 पॉजिटिव नहीं है तो 30 दिनों के बाद ऑटो डिलीट हो जाता है.
केवल उन लोगों का डेटा जो पॉजिटिव टेस्ट किए जाते हैं, उन्हें सर्वर पर भेज दिया जाता है. यहां तक कि इस तरह के डेटा को उस व्यक्ति के रिकवर होने के बाद अधिकतम 60 दिनों के बाद हटा दिया जाता है.
सरकार के जवाब को सुनकर आयोग ने माना कि चूंकि सीपीआईओ के मौखिक और लिखित उत्तरों में जानकारी को छिपाने के लिए कोई भी दुर्भावना या इरादा नहीं पाया गया है, इसलिए आयोग उन पर कोई जुर्माना लगाने के लिए इच्छुक नहीं है. उसने इस मामले में कारण बताओ नोटिस की कार्यवाही को भी खत्म कर दिया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)