टीवी ने लोकतंत्र का मतलब ही बदल दिया है. जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए नहीं. नेता का, नेता के द्वारा और नेता के लिए हो गया है.
किसी के पास पैसे हैं, मुझे सिर्फ शशि थरूर का पीछा करने के लिए चैनल खोलना है. नाम होगा थरूर का पीछा. इसके संपादक का नाम होगा, थरूर इन चीफ़. राजनीतिक संपादक का नाम होगा चीफ़ थरूर चेज़र.
ब्यूरो चीफ का नाम होगा ग्राउंड थरूर चेज़र. रिपोर्टर का नाम होगा, ग्राउंड ज़ीरो थरूर चेज़र. कम से कम सौ ग्राउंड ज़ीरो थरूर चेज़र होंगे. जो संवाददाता बाथरूम में घुसकर शौच करते वक्त थरूर की बाइट ले आएगा उसे ज्यादा इंक्रिमेंट मिलेगा.
लाखों शिक्षा मित्र, बीटीसी अभ्यर्थी, किसान, महंगे अस्पतालों के शिकार लोग, थानों अदालतों से परेशान लोग इंतज़ार कर रहे हैं कि उनकी आवाज़ सरकार तक मीडिया पहुंचा दे.
सरकार से पूछा जा सके कि कब ठीक होगा, क्यों हुआ ये सब. टीवी ने सबसे पहले और अब आपके हिंदी अखबारों ने भी जनता के लिए अपना दरवाज़ा बंद कर दिया है. 2010 के साल से इसकी प्रक्रिया शुरू हुई थी जब मीडिया को सरकार ने ठेके देने शुरू कर दिए. अब यह शबाब पर है.
मुझे हैरानी होती है कि आप अब भी मीडिया के लिए इतने पैसे खर्च कर रहे हैं. जबकि सारे चैनल आपकी बेबसी का मज़ाक उड़ा रहे हैं. उन्हें पता है कि वो आपकी आदत में शामिल हो गए. आप जाएंगे कहां. और आप भी चैनल-चैनल बदलकर दिल बहला रहे हैं. ये चैनल वो चैनल की बात नहीं है दोस्तों. सब चैनल की बात है.
The kind of bullying that @ShashiTharoor faces at the hands of this #DigitalToiletRoll channel deserves only 1 response: #കടക്ക്പുറത്ത് ! pic.twitter.com/B4AlEs46mT
— The Last Caveman (@CarDroidusMax) August 3, 2017
ध्यान से सुनिये और लिखकर जेब में रख लीजिए. मुझे पता है कि मुझे इसका नुकसान उठाना पड़ेगा, पड़ भी रहा है फिर भी बोल देता हूं. ये टीवी ग़रीब विरोधी तो है ही, लोकतंत्र विरोधी भी हो गया है. ये जनता की हत्या करवा रहा है.
आपकी आवाज़ को आपकी देहरी पर ही दबा रहा है ताकि सत्ता और सरकार तक पहुंचे ही न. टीवी ने लोकतंत्र का मतलब ही बदल दिया है. जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए नहीं. नेता का, नेता के द्वारा और नेता के लिए हो गया है.
भारत के लोकतंत्र से प्यार करते हैं तो अपने घरों से टीवी का कनेक्शन कटवा दीजिए. आज़ादी के सत्तर साल में गोदी मीडिया की गुलामी से मुक्त कर लीजिए ख़ुद को. आम जनता तरस रही है. वो सरकार तक खुद को पहुंचाना चाहती है ताकि उस ओर भी ध्यान जाए.
टीवी के खेल को समझना अब सबके बस की बात नहीं है. हम लोग तो ग़म ए रोज़गार के लिए फंसे हैं यहां, आप तो नहीं फंसे हैं. आप क्यों अपना पैसा और वक्त बर्बाद कर रहे हैं. इसलिए कि फ्री डिश में कुछ भी आता है. बताने के भी जोखिम हैं पर बता दे रहा हूं.
(यह लेख मूलत: रवीश कुमार के फेसबुक अकाउंट पर प्रकाशित हुआ है)