राज्य प्रायोजित हिंसा के ख़िलाफ़ विमुक्त और घुमक्कड़ जनजातियों ने दिखाई एकजुटता

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बीते दिनों मनाए गए एकजुटता दिवस कार्यक्रम में जनजाति समुदायों ने बताया कि किस तरह से केवल उनकी जातीय पहचान के कारण बिना किसी वॉरंट के उन्हें हिरासत में ले लिया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है, पैसे वसूले जाते हैं और महीनों-सालों तक बंदी बनाकर रखा जाता है.

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मध्य प्रदेश के भोपाल में मनाया गया एकजुटता दिवस. (फोटो: मजल)

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में बीते दिनों मनाए गए एकजुटता दिवस कार्यक्रम में जनजाति समुदायों ने बताया कि किस तरह से केवल उनकी जातीय पहचान के कारण बिना किसी वॉरंट के उन्हें हिरासत में ले लिया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है, पैसे वसूले जाते हैं और महीनों-सालों तक बंदी बनाकर रखा जाता है.

मध्य प्रदेश के भोपाल में मनाया गया एकजुटता दिवस. (फोटो: मजल)
मध्य प्रदेश के भोपाल में मनाया गया एकजुटता दिवस. (फोटो: मजल)

भोपाल: बीते 19 जनवरी को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की राजीव नगर बस्ती में इस बस्ती में रहने वालों और आसपास के जिलों से आए विमुक्त जनजाति (डीएनटी- डी-नोटिफाइड ट्राइब) व घुमक्कड़ जनजाति (एनटी- नोमैडिक ट्राइब) समुदाय के लोगों ने एकजुटता दिवस का चौथा साल मनाया.

साल 2008 में इसी दिन 16 वर्षीय पारधी समुदाय की लड़की टिंटी बाई, पुलिसिया बर्बरता और ब्राह्मणवादी सम्पन्न समाज के उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्या को मजबूर हुई थी.

पारधी युवाओं के संगठन मजल द्वारा आयोजित किए गए इस समारोह में पारधी, कंजर, बेड़िया, सपेरा, डफाले, नट, बंजारा और अन्य विमुक्त जनजातियों के लोग शामिल थे. मजल विमुक्त और घुमक्कड़ जनजातियों की पहचान और जागरूकता से जुड़े मुद्दों के लिए काम करता है.

विमुक्त, घुमक्कड़ और अर्ध-घुमक्कड़ समुदाय के लोगों के लिए पुलिस बर्बरता तो कोई नई बात है और न ही असामान्य.

1952 में रद्द किए जाने के बावजूद 1871 का उपनिवेशकालीन आपराधिक जनजाति कानून के तहत अभी भी इन समुदायों को कलंकित करने के लिए पुलिस द्वारा उन्हें ‘हैबिचुअल ऑफेंडर’ (आदतन अपराधी) के तौर पर नामित कर दिया जाता है.

समूचे भारत में सबसे हाशिए पर रखे गए समुदायों में से एक इन्हें बार-बार बिना वॉरंट के बड़ी संख्या में हिरासत में ले लिया जाता है, जहां उन्हें प्रताड़ना दी जाती है, धमकी देकर पैसा ऐंठा जाता है और जेल में कई महीनों-सालों तक बंदी बनाकर रखा जाता है और यह सब सिर्फ इसलिए कि उनका जन्म इस समुदाय में हुआ है.

एकजुटता दिवस के समारोह में कई लोगों ने पुलिस के साथ के अपने अनुभवों को साझा किया. सूरज नगर के बंजारा समुदाय से रवि ने अपनी बस्ती में आए दिन हो रहे पुलिस के छापों के बारे में बताया, जो बिना किसी वॉरंट, बिना जानकारी के बस्ती में आकर नकली शराब बनाने के आरोप में सभी के घरों पर छापा मारते हैं.

हाल ही में हुए एक ऐसे ही छापे के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि तलाशी के दौरान चाहे पुलिस को शराब मिली या नहीं, बस्ती के हर घर के किसी न किसी सदस्य के साथ मारपीट हुई और उन्हें धमकियां दीं गईं. यह मानते हुए कि बंजारा समुदाय के लोगों ने ऐतिहासिक रूप से देशी शराब और महुआ बेचकर अपना पेट पाला है.

उन्होंने सवाल उठाया, ‘जब बड़े पूंजीपति शराब बनाएं और बेचें, उसको बिजनेस बोलते हैं, उनको लाइसेंस भी मिल जाता है. जब हम बनाते हैं, उसे अपराध? ऐसा क्यूं?’

पारधी युवाओं ने मजल द्वारा की गई जांच के दौरान सामने आए केसों पर चर्चा की. बैतूल के निवासी शंकर, जो सपेरा समुदाय से हैं, को पुलिस ने इतनी बेरहमी से पीटा कि बीस दिन के भीतर अस्पताल में उनकी मौत हो गई.

पारधी समुदाय की उनकी पत्नी बिजली बाई को बैतूल के सभी वरिष्ठ पुलिस अफसरों ने अनसुना कर भगा दिया. अब वो भोपाल में अपने बच्चों के साथ हैं, ताकि कोई उनकी बात सुने और उनके पति के साथ हुई पुलिसिया हिंसा और मौत का केस दर्ज हो पाए.

राजस्थान में पंद्रह साल की एक पारधी लड़की को मोबाइल चुराने के झूठे आरोप में हिरासत में लिया गया. जब उसकी मां, सोयना, जो गर्भवती थीं, थाने में अपनी बेटी को छुड़ाने की अर्जी लेकर गईं तो उनको भी हिरासत में रख कर, उलटा लटकाकर लगभग मृत हालत तक मारा गया. एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल रेफर किए जाने के बीच सोयना का देहांत पिछले साल 7 दिसंबर को हो गया.

भोपाल के गांधी नगर पारधी बस्ती की गीता बाई ने अपनी बहन इंद्रमल बाई की हत्या के न्याय की लंबी लड़ाई के बारे में बात रखी, जो अभी भी जारी है.

नवंबर, 2017 में इंद्रमल बाई पुलिस द्वारा लगातार प्रताड़ित होने के कारण आत्मदाह करने पर मजबूर हुईं, पुलिस वाले इंद्रमल बाई को जबरन पैसे की वसूली के लिए लगातार धमकियां दे रहे थे.

जब तीन दिन बाद इंद्रामल बाई की जलने के घांवों की वजह से मौत हुई तब पुलिस ने सबूतों को दबाने और अपनी भूमिका को छुपाने के लिए दावा किया कि इंद्रामल बाई की साड़ी तब जल गई, जब वो कचरे के ढेर को जला रही थीं.

प्रदर्शनों और धरनों के बाद इस संबंध में केस दर्ज किया गया और 2019 में  मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 2019 में सीबीआई जांच का आदेश दिया. पिछले साल सीबीआई ने दो पुलिस अफसरों पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया और तीसरे आरोपी पुलिस अफसर की भूमिका को लेकर विभागीय जांच का आदेश दिया.

पुलिसिया हिंसा या आत्महत्या के कारण अपनी जान गंवाने वाले विमुक्त या घुमक्कड़ जनजाति के लोग. (फोटो: मजल)
पुलिसिया हिंसा या आत्महत्या के कारण अपनी जान गंवाने वाले विमुक्त या घुमक्कड़ जनजाति के लोग. (फोटो: मजल)

युवा कवि-कार्यकर्ता और मजल समूह के शुरुआती सदस्य सदस्यों में से एक तस्वीर ने कहा, ‘अगर हम दस साल पहले ये हिम्मत कर पाते, तो शायद टिंटी बाई की लड़ाई भी आगे ले जाते.’

ये चंद मामले तो पुलिस और इस वर्गीय, जातिवादी समाज द्वारा उत्पीड़न से हो रहीं विमुक्त जनजातियों में हत्याओं और बर्बरता के कुछ ही उदाहरण हैं.

संस्थागत अत्याचार और हाशियाकरण सिर्फ पुलिस द्वारा हिंसा और आपराधिक कानूनों में बार-बार फंसाने के बहुत आगे भी जाता है.

समारोह में मौजूद लोगों की एक प्रमुख मांग जाति प्रमाण पत्र की थी. विजयराम नानोरिया, जो कंजर समुदाय से हैं, ने डीएनटी समूहों के वर्गीकरण की जटिलता की समस्या साझा की.

भोपाल, सिहोर, और रायसेन जिलों में डीएनटी समूहों (जैसे पारधी) का नाम न तो अनुसूचित जाति में आता है, न ही अनुसूचित जनजाति में.

वहीं, जो समुदाय हाशिये पर हैं और जिनको अवसर, सुविधाओं और प्रतिनिधित्व की बेहद जरूरत है, उन्हें संस्थागत तरह से राज्य की योजनाओं से दूर किया जा रहा है.

अनेकों सरकारों ने डीएनटी समुदायों से बार-बार वादे दोहराए हैं, लेकिन कुछ भी सुधार नहीं आया है. इस कारण, शिक्षा और रोजगार के अवसर में वे सबसे पीछे धकेले गए हैं और वे अपने इलाके के ब्राह्मणवादी सम्पन्न समाज द्वारा हिंसा और पुलिस प्रताड़ना के सामने अधिक कमजोर हैं.

डफाले समुदाय से बानो बाजी ने कहा, ‘हमारा तो अस्तित्व ही नहीं मानते, चाहे शिक्षा हो या रोजगार और ना ही कोई हमारी बात कर रहा है.’

जीवनयापन के मौकों में सरकार की मदद और ज्यादा जरूरी दिखती है, क्योंकि उनके पैतृक कारोबारों में से अधिकांश को अपराध घोषित कर दिए जाने के कारण, ज्यादातर लोगों के पास कोई अन्य पेशा अपनाने का साधन नहीं है.

किरण, जो बेड़िया समुदाय से हैं, ने कहा, ‘बेड़िया समुदाय की लड़कियां डांस करती हैं. हमको बदनाम करते हैं, कहते हैं की ये लोग लड़कियों से धंधा करवा रहे हैं, लेकिन हम और क्या काम करेंगे? हम मजबूर हैं, हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है.’ 

विमुक्त और घूमंतु समुदाय के ज्यादातर सदस्य जो शहरों में आकर रहने पर मजबूर हुए, सिर्फ कचरा बीनने का पेशा ही अपना पा रहे हैं. राजीव नगर बस्ती की कैलाशी बाई ने कहा, ‘बस कचरा बीन रहें हैं, उसमें भी ये पैसा निकलवाने के लिए मारते हैं.’

जहां प्राइमरी शिक्षा की पहुंच कम और उच्च शिक्षा न के बराबर और हर दिन की कमाई निकालने के लिए भी सत्ताधारियों से इतना संघर्ष, इतना अत्याचार सहना हो, वहां बदलाव की बहुत जरूरत दिखती है.

भोपाल के एक्टिविस्ट शिवानी और पल्लव ने समारोह में 2008 में पेश की गई रेणके आयोग की सिफारिशों को लागू करने की बात की है. इस आयोग की एक प्रमुख सिफारिश एक खास डीएनटी सेल का निर्माण भी थी, जो उपरोक्त उठाए कई मुद्दों को संबोधित करने का एक पहला कदम होगा.

समुदाय के युवा साथियों ने एकजुट होने और मजबूती से एकता की आवाज उठाने की बात की- साथ ही, बस्ती में जात पंचायत के पितृसत्तात्मक और पाखंडी तरीकों की भी आलोचना की.

पारधी युवा और मजल की शुरुआती सदस्यों में से एक सानिश कहती हैं, ‘सब चीज का करता-धरता पंचायत बन गई है, पहले की पंचायत बीड़ी पीकर बात सुलझा लेती थी, लेकिन अब पचास-पचास हजार रुपये मांगते हैं? इसलिए तो चोरी करनी पड़ती है!’

16 साल की पुष्पा ने फ्रिज़्बी खेल के प्रति अपने जज़्बे के बारे में बताया, जिसे खेलने अलग-अलग बस्तियों के बच्चे कुछ सालों से साथ आ रहे हैं.

वे कहती हैं, ‘हम जब लाल ग्राउंड (भोपाल) में प्रैक्टिस कर रहे होते हैं तब पुलिस पूछने आती है, कौन हो? कहा से हो? तो हम उनको गर्व से कहते हैं कि हां, हम पारधी हैं, हम चोर नहीं हैं. ये हमारी टीम है और हम दिल्ली जाकर टूर्नामेंट में खेल आए हैं और हम प्रैक्टिस कर रहे है लेकिन इसके लिए आपको लड़कियों को घर से निकलने देना पड़ेगा- सिर्फ काम मत कराओ उनसे.’

एक और युवा समूह ने थियेटर को आंदोलन-प्रचार का माध्यम बनाने के अपने अनुभव साझा किए और एक लघु नाटक से विमुक्त जनजातियों को खास दबाने की मानसिकता से बने वन विभाग और वन-संरक्षण कानूनों के पाखंडीपन और अत्याचार को दर्शाया.

जीनु ने कहा, ‘थियेटर हमारे लिए न सिर्फ एक कला है, बल्कि हमारी मुश्किल व्यक्त करने का एक जरिया भी है.’

एकजुटता दिवस का समारोह बंजारा समुदाय के युवाओं द्वारा प्रस्तुत किए कबीर भजनों से हुआ. समापन से पहले सबका मत एक ही था- एकजुटता दिवस महज एक दिन की बात नहीं, बल्कि एक-दूसरे से सीखते और एक-दूसरे को सहारा देते हुए हर दिन के संघर्ष की बात है. हमारी मुक्ति हमारी एकता में ही है.

(लेखक मजल के सदस्य हैं. हेमन ओझा और ध्रुव देसाई के इनपुट के साथ)

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