पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव ने टीका लगवाने में हिचक के लिए ग़लत सूचना के प्रसार, इसे लेकर लोगों में स्थिति स्पष्ट न होने और कोरोना मामलों में गिरावट की वजह से बेसब्री ख़त्म होने को प्रमुख कारण बताया है. राव ने नियामक से टीके को लेकर उपयुक्त डाटा साझा करने और अभियान में निजी क्षेत्र को जोड़ने की वकालत भी की है.
नयी दिल्ली: देश में कोरोना वायरस से निपटने के लिए टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन टीकाकरण के पहले महीने में ही टीका लगवाने को लेकर लोगों में हिचकिचाहट सामने आई है, जिस वजह से कुल टीकाकरण का 57 फीसदी केवल आठ राज्यों में ही हुआ है.
पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव ने इसके लिए गलत सूचना के प्रसार, टीके के बारे में लोगों में स्थिति स्पष्ट नहीं होने और कोरोना मामलों में गिरावट की वजह से बेसब्री खत्म होने को प्रमुख कारण बताया है. राव ने नियामक से टीके को लेकर उपयुक्त डाटा साझा करने एवं अभियान में निजी क्षेत्र को जोड़ने की वकालत भी की है.
कोविड-19 से मुकाबले में टीकाकरण का क्या महत्व है? टीकाकरण के पहले महीने के नतीजों को आप कितना सार्थक मानती हैं?
टीकाकरण का मतलब सिर्फ 100 फीसदी सुरक्षा से नहीं है, बल्कि ज्यादातर लोगों में एंटीबॉडी विकसित होने से हैं. ऐसे में अधिक से अधिक संख्या में लोगों को टीका लगने से कोरोना वायरस के खिलाफ दीवार खड़ी की जा सकेगी, ताकि वायरस की अगली लहर से सुरक्षा प्रदान की जा सके.
कोरोना से जंग में टीकाकरण महत्वपूर्ण है. कोविड-19 टीकाकरण के पहले 34 दिनों में एक करोड़ से अधिक लोगों को टीका लगाया गया, हालांकि यह सरकार के लक्ष्य से पीछे हैं. इसमें भी कुल टीकाकरण का 57 फीसदी केवल आठ राज्यों से हैं . इससे स्पष्ट है कि लोगों में टीका लगावाने के प्रति हिचक है.
कोरोना वायरस का टीका लगाने में हिचकिचाहट का क्या कारण है?
पहले महीने में लोगों में टीका लगवाने के प्रति हिचक देखने को मिली है. इस हिचक के पीछे लोगों के बीच महामारी एवं टीके के बारे में गलत सूचना के प्रसार को वजह माना जा रहा हैं. सरकार ने दो टीके कोविशिल्ड और कोवैक्सीन को मंजूरी दी है. किसे कोवैक्सीन टीका लगेगा और किसे कोविशिल्ड टीका इस बारे में लोगों में स्थिति स्पष्ट नहीं है.
कोवैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल पूरा नहीं हुआ है, इस वजह से भी लोगों के अंदर हिचक पैदा हुई. एक और वजह यह है कि पिछले काफी दिनों से भारत में कोरोना के मामले लगातार गिर रहे हैं, इस वजह से भी लोगों में वैक्सीन को लेकर पहले जैसा इंतजार और बेसब्री नहीं है. ऐसे में टीके को लेकर नियामक को उपयुक्त डाटा सामने रखना चाहिए.
टीकाकरण का ज्यादातर काम देश के करीब एक दर्जन राज्यों में ही हुआ है, ऐसे में इस अभियान से निजी क्षेत्र को जोड़ने की कई विशेषज्ञों की राय को आप कैसे देखती हैं?
यह सही है कि कोविड-19 महामारी फैलने के बाद शुरुआत में जांच का काम सरकारी स्तर पर हुआ, लेकिन बाद में निजी क्षेत्र को इस कार्य से जोड़ा गया, जिसके परिणामस्वरूप अधिक जांच हुई. ऐसे में कोविड-19 टीकाकरण अभियान में निजी क्षेत्र की पहुंच का उपयोग किया जा सकता है.
हालांकि, कोरोना वायरस संक्रमण के उपचार का निजी क्षेत्र का अनुभव कई स्थानों पर बहुत अच्छा नहीं रहा और इलाज में बहुत अधिक पैसे लेने की बात भी सामने आई, इसलिए उपयुक्त नियमन व्यवस्था के तहत निजी क्षेत्र को जोड़ा जा सकता है.
कोविड-19 टीकाकरण अभियान की संपूर्ण व्यवस्था और ढांचे को आप कैसे देखती हैं? क्या इसमें किसी बदलाव की जरूरत है?
कोविड-19 टीकाकरण की वर्तमान व्यवस्था के तहत पहले स्वास्थ्यकर्मियों, इसके बाद फ्रंटलाइन वर्कर्स, तीसरे चरण में 50 वर्ष से अधिक आयु के लोग और फिर 50 वर्ष से कम आयु के लोगों को टीके लगाए जा रहे हैं.
हालांकि टीकाकरण की संपूर्ण व्यवस्था महामारी विज्ञान पर आधारित होनी चाहिए और जिस स्थान पर बीमारी या संक्रमण का प्रभाव अधिक हो, उस बिंदु को पहले घेरे में लेना चाहिए. इसमें अधिक खतरे की स्थिति वाले लोगों को पहले चरण में टीकाकारण के दायरे में लाना चाहिए.
अधिक से अधिक संख्या में लोग टीका लगवाएं, इसके लिए किस प्रकार की रणनीति की जरूरत है?
टीकाकरण के लाभार्थियों की संख्या बढ़ाने के लिए व्यापक स्तर पर कार्ययोजना बनाकर नोडल अधिकारियों को सक्रिय करना पड़ेगा. साथ ही लोगों के मन से भ्रम दूर करने के लिए भी व्यापक स्तर पर अभियान चलाने होंगे.
सरकार को सामुदायिक जागरूकता पर ध्यान देने की ज़रूरत है. लोगों की टीके से जुड़ी आशंकाओं को दूर करने की पहल करनी होगी.
फिलहाल हर दिन के टीकाकरण का डेटा जारी कर सरकार ने पारदर्शिता अपनाई है, लेकिन इसके साथ-साथ स्वास्थ्य देखभालकर्मियों सहित अन्य वर्गों के प्रबुद्ध लोगों के जरिये जागरूकता फैलाने की जरूरत है.