क्या भाजपा के लिए गाय सिर्फ सियासी धंधा है?

हमारी आंखों के सामने रोज़ गायें मर रही हैं. हम हैं कि हिंदू-मुसलमान कर रहे हैं. गाय से इतना बड़ा राजनीतिक धोखा कैसे हो सकता है?

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हमारी आंखों के सामने रोज़ गायें मर रही हैं. हम हैं कि हिंदू-मुसलमान कर रहे हैं. गाय से इतना बड़ा राजनीतिक धोखा कैसे हो सकता है?

Jaipur: Cattle in pathetic condition at Hingonia Gaushala on the outskirts of Jaipur on Saturday. PTI Photo(PTI8_6_2016_000176B)
(फोटो: पीटीआई)

छत्तीसगढ़ में 200 से अधिक गायों की भूख और कुपोषण से मौत पर कोई ललकार ही नहीं रहा है कि मैं क्यों चुप हूं. लाखों गायें रोज़ सड़कों पर प्लास्टिक खाकर मर रही हैं. कैंसर से भी पीड़ित हैं. उनके बारे में भी कुछ नहीं हो रहा है. जबकि गायों के लिए वाकई कुछ अच्छा किया जाना चाहिए.

सारी ऊर्जा गाय के नाम पर बेवकूफ बनाने और नफ़रत की राजनीति फैलाने के लिए ख़र्च हो रही है. गाय के नाम पर आयोग बन गए, मंत्रालय बन गए मगर गाय का भला नहीं हो रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस में एक तस्वीर छपी है. गेट पर बड़ा सा कमल निशान बना है. जिसके अंदर अलग-अलग ख़बरों के अनुसार 200 से 500 गायों के मरने का दावा किया जा रहा है.

गोशाला चलाने वाला हरीश वर्मा भाजपा के जमुल नगर पंचायत का उपाध्यक्ष है. इसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज हुई है और गिरफ्तार हुआ है. क्योंकि इसकी गोशाला में बड़ी संख्या में गायें भूख और प्यास से मर गईं हैं.

गोशालाओं में वैसे ही अशक्त हो चुकी गायें लाई जाती हैं उन्हें चारा न मिले तो कैसे तड़प कर मर जाती होंगी, सोच कर ही आंसू निकल जाते हैं. और ये बात मैं नाटकीयता पैदा करने के लिए नहीं कह रहा.

गाय दूहने से लेकर जीभ का दाना छुड़ाने के लिए दवा भी रगड़ सकता हूं. मैं इस बात से हिल गया हूं कि गाय भूख और प्यास से मर सकती है और उसके यहां मर सकती है जिनका हर बड़ा नेता चुनाव आते ही गाय गाय करने लगता है.

एक्सप्रेस ने लिखा है कि गौशाला के भीतर मरी हुई गायें बिखरी पड़ी हैं. उनके कंकाल निकलने लगे हैं और सडांध फैल रही है. गायों के मांस आवारा कुत्ते खा रहे हैं. पिछले साल भी हरीश वर्मा की गोशाला का मामला स्थानीय मीडिया में ख़ूब उछला था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में ‘सरपंच पति’ शिवराम साहू ने बयान दिया है कि जब वे भीतर गए तो देखा कि गायों के लिए न तो चारा था, न पानी. वर्मा ने सरकार की एजेंसी पर ही आरोप मढ़ा है कि सतर्क किया था कि गौशाला के पास कैश नहीं है. जैसे गोरखपुर में आक्सीजन के लिए कैश नहीं था.

छत्तीसगढ़ से सोमेश पटेल का व्हाट्स अप मेसेज आया है. बेमेतरा ज़िला के परपोड़ी थाना के गोटमर्रा में फूलचंद गोशाला है. यहां 100 से अधिक गायों की मौत हुई है. गोशाला संचालक ने ईंट भट्टे में छुपाने का प्रयास किया है.

गोसेवक आयोग के अध्यक्ष गीतेश्वर पटेल ने किया निरीक्षण. 13 गायों की मौत का लोकर परपोड़ी थाने में मामला दर्ज. ज़िला प्रशासन मामले से बेख़बर. ये अलग घटना है. इसका संबंध हरीश वर्मा की गोशाला से नहीं है.

विश्व हिंदू परिषद के सह प्रान्त संयोजक ओमेश बिशन से फोन पर बात हुई, उनकी बातचीत को लिखने के लिए अनुमति ले चुका हूं. ओमेश बिशन जी ने बताया कि हरीश वर्मा का पास तालाब है जिसमें मांगुर मछली पलती है. यह मछली मांस खाती है इसलिए मरी हुई गायों को तालाब में डाल देता था और लोगों को पता नहीं चलता था. हम लोगों ने उस तालाब को बंद करवाया इसलिए भी लोगों को मरी हुई गायें बाहर दिख रही हैं.

ओमेश जी कहते हैं कि हरीश की गोशाला को 93 लाख का पेमेंट भी हुआ है मगर हरीश का कहना है कि दो साल से पेमेंट नहीं हुआ. सरकार ने एक साल का दस लाख नहीं दिया. वेटनरी डॉक्टर कह रहे हैं कि दो दिन में 27 गायों का पोस्टमार्टम किया है.

एक्सप्रेस कह रहा है कि 30 कंकाल तो खुद ही उसके संवाददाता ने गिने हैं. हरीश का कहना है कि 16 गायें मरी हैं और दीवार गिरने से. पुलिस कह रही है कि 250 गायें मरी हैं. क्या 27 गायों का भूख से मरना शर्मनाक घटना नहीं है. जब एक गाय के नाम पर आदमी मार दिया जा रहा है तो 27 गायों की संख्या कैसे 200 या 500 के आगे छोटी हो जाती है.

हमने ओमेश जी से कई सवाल पूछे. मैं हैरान था कि एक साल में दो लाख गायों के मरने का आंकड़ा उनके पास कहां से आया है. वे कहने लगे कि अकेले रायपुर में हर दिन सड़क दुर्घटना और पोलिथिन खाकर साठ से अस्सी गायें मरती हैं.

सरकार में बैठे लोग मौज कर रहे हैं. कोई कुछ नहीं करता है. मैंने कहा भी ओमेश जी, लिख दूं तो कहा कि बिल्कुल लिखिये. मुझे भी ध्यान नहीं था कि सड़क दुर्घटना से मरने वाली गायों की संख्या को लेकर तो कोई हिसाब ही नहीं होता है.

ओमेश जी से जब मैंने पूछा कि गायों को लेकर क्या हो रहा है तब, इतनी राजनीति होती है, मारपीट होती है, तो फिर लाभ क्या हुआ. उनका जवाब था, गायों के लिए कुछ नहीं हुआ.

गोरक्षा के तमाम पहलू हैं. ओमेश जी अपनी समझ के अनुसार गाय के प्रति समर्पित लगे. कोई उनसे असहमत भी हो सकता है, यह सवाल बनता भी है कि बीफ पर बैन से कमज़ोर गायों की संख्या बढ़ेगी, उनका लालन पालन नहीं होगा और किसान अपनी गायों को भूखा मारने के लिए छोड़ देता है क्योंकि उसकी आर्थिक शक्ति नहीं होती है.

यह सब सवाल हैं मगर ओमेश का कहना है कि समाज का बड़ा तबका गायों की रक्षा के लिए लगा हुआ है मगर सरकार ही कुछ नहीं करती है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

ओमेश जी ने कहा कि सड़क दुर्घटना और पोलिथिन खाकर मरने वाली गायों का मेरे पास रिकॉर्ड है. मैंने पचास हज़ार ऐसी गायों की तस्वीर और वीडियो बनाई है. हो सकता है कि उनकी बातों में अतिरेक हो मगर बंदे ने कह दिया कि रायपुर का वो मैदान भी दिखा सकता हूं जहां इन गायों को दफनाया है.

फिर बात चारागाह की ज़मीन को लेकर होने लगी तो उन्होंने ही कहा कि कुछ नहीं हुआ है इस मामले में भी. खुद सरकार चारागाह की ज़मीन पर कब्ज़ा करती है वहां कालोनी बनाती है, सरकारी इमारत बनाती है. नया रायपुर बना है, उसके लिए बड़ी मात्रा में चारागाह की ज़मीन पर कब्ज़ा हो गया है.

ओमेश ने कहा कि आप बेशक ये बात लिख सकते हैं, हम लोगों ने ख़ूब पत्र लिखे हैं. मैं उनसे सबूत के तौर पर मीडिया में छपी ख़बरों की क्लिपिंग मांगने लगा तो उनका जवाब था कि वे रायपुर से सौ किमी दूर हैं, वरना दे देते. जांच में लीपापोती होती रहेगी मगर गोशालाओं की हालत ख़राब है इससे कौन इंकार कर सकता है.

राजस्थान के जालौर ज़िले से इसी 27 जुलाई को हिन्दुस्तान टाइम्स ने ख़बर छापी. भारी वर्षा के कारण 700 गायें मर गईं. गायें इतनी अशक्त हो गईं कि उठ ही नहीं सकी. जहां बैठी थीं वहीं पानी कीचड़ में सन गईं और मर गईं. बारिश के कारण चारा नष्ट हो गया. 3,300 गायें घायल हो गईं जिनका इलाज चल रहा है. पिछले साल जुलाई में जयपुर के हिंगोनिया गौशाला में 5,00 गायों की मौत हो गई थी.

इसका मतलब है कि गायों को रखने के लिए कोई बुनियादी ढांचा नहीं खड़ा किया गया या पहले के ढांचे को बेहतर ही नहीं किया गया. चारागाह की ज़मीन पर कब्ज़ा हो गया है. इस पर किसी का ध्यान नहीं है. क्योंकि इससे गांव-गांव, शहर-शहर में बवाल हो जाएगा.

हिंदुओं की आस्था के नाम पर दुकान चलाने वालों का खोंमचा उजड़ जाएगा. इसलिए गाय को लेकर भावनाओं को भड़काओं और भावनाओं को मुसलमानों की तरफ ठेल दो. नफ़रत फैल कर वोट बनेगा वो तो बोनस होगा ही.

हरियाणा में गोपाल दास दो महीने से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. अनशन भी करते हैं. गिरफ्तार भी होते रहते हैं. इनके लोग व्हाट्स अप सूचना भेजते रहते हैं. एक अख़बार की क्लिपिंग भेजी है. छपी हुई ख़बर में गोपालदास ने दावा किया है कि सत्तर हज़ार एकड़ गोचरण की ज़मीन पर कब्ज़ा हो गया है. सरकार हटाने का कोई प्रयास नहीं कर रही है.

इसी रिपोर्ट में सांसद के सचिव का बयान छपा है कि हमारे पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है. ऐसा हो है सकता है क्या? अनुराग अग्रवाल नाम के रिपोर्टर ने लिखा है कि हरियाणा में 368 गोशालाएं हैं. 212 लाख गायें हैं. 1950-52 में चकबंदी के दौरान पंचायती ज़मीन में गोचरान के लिए ज़मीन छोड़ी गई जिस पर कब्जा हो गया. पंचायत और विकास विभाग के पास कब्ज़े की रिपोर्ट भी है लेकिन कोई इस पर कार्रवाई नहीं करना चाहता.

ये तीनों भाजपा शासित राज्य हैं. जब यहां गायों की हालत इतनी बुरी है, तो बाकी राज्यों में क्या हालत होगी? गोरक्षा के नाम पर आम लोगों को वहशी भीड़ में बदला जा रहा है. जबकि गाय भूख और प्यास से मर रही है. उसकी हालत में कुछ सुधार नहीं हुआ.

गाय के लिए वाकई कुछ करने की ज़रूरत है. हमारी आंखों के सामने रोज़ गायें मर रही हैं. हम हैं कि हिंदू- मुसलमान कर रहे हैं. गाय से इतना बड़ा राजनीतिक धोखा कैसे हो सकता है?

हरीश वर्मा तो गिरफ्तार हुआ है मगर गाय के चरने की ज़मीन कब कब्ज़े से मुक्त होगी, उसके जीने के लिए कब व्यवस्था होगा. गोरक्षा के नाम पर चीखने वाले ही उसकी हत्या में शामिल हैं. मेरे जैसे लाखों लोग गोरक्षा के लिए दुकान दान देते हैं, उनके साथ भी धोखा है. पता नहीं उन पैसों का क्या होता होगा.

कुछ गोशालाएं अच्छी भी हैं मगर वो राजनीति से दूर चुपचाप अच्छा काम रही हैं. बेरोज़गारी और बुनियादी समस्याओं से भटकाने के लिए गाय का राजनीतिक इस्तमाल हो रहा है. गाय वोट देती है. वोट का फर्ज़ अदा कर रहे हैं, दूध का कर्ज़ नहीं. भाजपा से सवाल करने का वक्त है क्या उसके लिए गाय सिर्फ एक सियासी धंधा है?

(यह लेख मूलत: रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा पर प्रकाशित हुआ है.)