केरल में कांग्रेस नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने राज्य में 6 अप्रैल को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जारी अपने घोषणापत्र में दलित और आदिवासी छात्रों को कॉलेज और विश्वविद्यालय कैंपसों में होने वाले भेदभाव से लड़ने के लिए ‘रोहित एक्ट’ लागू करने का वादा किया है.
नई दिल्ली: केरल में कांग्रेस नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) ने राज्य में 6 अप्रैल को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जारी अपने घोषणापत्र में दलित और आदिवासी छात्रों को कॉलेज और विश्वविद्यालय कैंपसों में होने वाले भेदभाव से लड़ने के लिए ‘रोहित एक्ट’ लागू करने का वादा किया है.
गौरतलब है कि रोहित वेमुला हैदराबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र थे और साल 2016 में जातिगत भेदभाव को कथित तौर पर जिम्मेदार बताते हुए उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.
इसके बाद देशभर के कॉलेज और विश्वविद्यालय कैंपसों में जातिगत भेदभाव को लेकर बहस छिड़ गई थी और देशभर में छात्र-छात्राओं ने कैंपस में होने वाले जातीय भेदभाव के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन किए थे.
केरल में यूडीएफ के सत्ता में आने पर यह पहला ऐसा राज्य होगा जहां यह एक्ट लागू होगा.
घोषणापत्र में कहा गया, ‘हमारे स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्रों के खिलाफ जातिगत भेदभाव, रैगिंग और पक्षपात को खत्म करने के लिए हम रोहित वेमुला एक्ट लागू करेंगे.’
20 मार्च को जारी घोषणापत्र में ‘रोहित एक्ट’ डालने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रमेश चेन्नीथला ने ट्वीट कर कहा, ‘यूडीएफ घोषणापत्र में उल्लेखित रोहित वेमुला अधिनियम यह सुनिश्चित करेगा कि परिसर में छात्रों के साथ बिना किसी भेदभाव के समान व्यवहार होगा. यह स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पिछड़े वर्ग के छात्रों के हितों की रक्षा करेगा.’
"Rohit Vemula Act" mentioned in UDF manifesto will ensure that the students in campus will treated equally without any discrimination. It will further protect the interests of backward class students in schools, colleges and universities.#UDFKeralaManifesto
— Ramesh Chennithala (@chennithala) March 21, 2021
रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद से ही कैंपसों में जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए निर्भया एक्ट की तर्ज पर इस एक्ट की मांग उठने लगी थी.
वेमुला की मौत के दो दिन बाद 19 जनवरी, 2016 को कैंपस पहुंचे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दोषियों पर कार्रवाई के साथ कैंपसों में ऐसे जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए एक मजबूत कानून बनाने की मांग की थी.
इसके बाद सामाजिक न्याय पर संयुक्त कार्य समिति (जेएसी) के तहत हैदराबाद यूनिवर्सिटी के साथ ही देशभर के स्कॉलर और छात्रों ने हैदराबाद विश्वविद्यालय के कैंपस में विरोध प्रदर्शन करने हुए इसकी मांग की.
राष्ट्रीय स्तर की इस समिति का गठन वेमुला की मौत की जांच की मांग और इस एक्ट को लागू करवाने को लेकर हुआ था.
सिंतबर 2016 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के अनुसूचित जाति विभाग ने ‘रोहित एक्ट’ का मसौदा तैयार किया जिसका शीर्षक था, ‘द प्रिवेंशन ऑफ डिस्क्रिमिनेशन एंड प्रमोशन ऑफ इक्वालिटी इन हाईअर एजुकेशन इंस्टिट्यूशन बिल, 2016.’
प्रस्ताव में 47 दंडनीय अपराधों और दंडों को सूचीबद्ध करने के अलावा एक इक्विटी सेल और एक इक्विटी/सुरक्षा अधिकारी और राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के इक्विटी आयोगों की स्थापना का भी प्रस्ताव किया गया था.
एआईसीसी के सचिव डॉ. एसपी सिंह ने द वायर से बात करते हुए कहा, ‘हमने मसौदा तैयार करके सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लागू करने के लिए केंद्र सरकार को भेजा था लेकिन केंद्र ने उसे लागू नहीं किया.’
हालांकि, उन्होंने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि यूडीएफ घोषणापत्र में शामिल प्रस्ताव बिल्कुल वही हो जो हमने पास किया. उसमें राज्य की आवश्यकताओं के अनुसार बदलाव हो सकता है.
हैदराबाद यूनिवर्सिटी में कांग्रेस के छात्र संघ एनएसयूआई की हैदराबाद शाखा के संयुक्त सचिव अमल ने द वायर को बताया, ‘जनवरी में हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी, पुदुचेरी यूनिवर्सिटी और केरल सेंट्रल यूनिवर्सिटी की एनएसयूआई इकाइयों ने केरल का घोषणापत्र तैयार करने वाली समिति के प्रमुख डॉ. शशि थरूर को सामने यह मुद्दा उठाया.’
उन्होंने कहा, ‘केरल में डॉ. शशि थरूर सहित कई नेताओं से इस संबंध में हमारी बात हुई जिसके बाद उन्होंने इसे घोषणापत्र में जगह देने का फैसला किया. हालांकि, कुछ कारणों से पुदुचेरी के घोषणापत्र में इसे शामिल नहीं किया जा सका. हम आने वाले चुनावी राज्यों में भी इसी तरह का प्रयास करेंगे.’
@INCIndia led United Democratic Front(@udfkerala)has promised in its Manifesto to implement The Rohit Vemula Act if elected to power.
A joint demand of @nsui units of PU, HCU & CUK has led to this promise.
#PeoplesManifesto #UDFManifesto#UDFKeralaManifesto pic.twitter.com/if2RPqpJnj— NSUI Pondicherry Central University (PU) (@NSUI_PondiUni) March 20, 2021
रोहित वेमुला समाज के वंचित तबके का प्रतिनिधित्व करने वाली आंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन (एएसए) के सदस्य थे.
एएसए के संगठन सचिव और हैदराबाद यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में पीएचडी कर रहे नरेश ने द वायर से कहा, ‘यह स्वागतयोग्य कदम है. ‘रोहित एक्ट’ को चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा बनाने पर एएसए यूडीएफ की प्रशंसा करता है. यह एक्ट देशभर के कैंपसों में समाज के वंचित तबके से आने वाले छात्रों को जातिगत भेदभाव लड़ने में मदद करेगा.’
उन्होंने कहा, ‘रोहित के बाद भी हमने देखा कि जेएनयू छात्र नजीब अपने हॉस्टल से लापता हो गए, महाराष्ट्र में पायल तड़वी को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा और उसके बाद आईआईटी मद्रास में केरल की फातिमा ने आत्महत्या कर ली, तो ये चीजें लगातार हो रही हैं. इसका कारण है कि कैंपसों में हो रहे भेदभाद से लड़ने के लिए कोई संस्थानिक प्रणाली नहीं है. ‘रोहित एक्ट’ उस कमी को पूरा कर सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘हमें कांग्रेस के ‘रोहित एक्ट’ के बारे में मालूम नहीं है लेकिन हम अभी ‘रोहित एक्ट’ का ड्राफ्ट तैयार करने में लगे हैं. हमारे पास उसे लेकर एक विचार है.’
हालांकि, नरेश ने बताया कि जेएसी को साल 2017 में भंग कर दिया गया था.
यही नहीं कॉलेज में जातिगत भेदभाव को जिम्मेदार बताकर आत्महत्या करने वाले रोहित वेमुला और पायल तड़वी की माताओं ने अगस्त, 2019 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर गुहार लगाई थी कि शैक्षणिक और अन्य संस्थानों में जातिगत भेदभाव खत्म करने का सशक्त और कारगर तंत्र बनाया जाए.
मुंबई के बीवाईएल नायर अस्पताल में डॉ. पायल तड़वी ने कॉलेज की ही तीन डॉक्टरों द्वारा कथित उत्पीड़न का सामना करने के बाद 22 मई, 2019 को अपने हॉस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी.
आबेदा सलीम तड़वी और राधिका वेमुला ने अपनी याचिका में 2012 के यूजीसी विनियमन का कड़ाई से पालन करने की मांग की है, जो इस तरह के भेदभाव को प्रतिबंधित करता है.
उनकी याचिका में कहा गया है कि विश्वविद्यालय और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में समान अवसर मुहैया करवाने के लिए विशेष सेल बनाए जाने के निर्देश दिए जाएं. इससे अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों, शिक्षकों या कर्मचारियों के साथ भेदभाव की आंतरिक शिकायतों के समय से निपटारे में मदद मिलेगी.
याचिका में मौलिक अधिकारों खासतौर पर समता का अधिकार, जातिगत भेदभाव के निषेध का अधिकार और जीवन का अधिकार लागू कराने की मांग की गई है.
उन्होंने केंद्र और यूजीसी को यह भी निर्देश देने की मांग की है कि वे सुनिश्चित करें कि डीम्ड विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों समेत सभी विश्वविद्यालय यूजीसी के समानता के नियमों का पालन करें.
इसके बाद सितंबर, 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार और यूजीसी को नोटिस जारी किया था. हालांकि, इसके बाद मामले में क्या हुआ इसका कोई रिकॉर्ड नहीं मिल सका.