जन्माष्टमी पर योगी आदित्यनाथ के बयान ने सोचने के लिए मजबूर कर दिया. कंस की याद आई जिसने अपनी बहन देवकी की सभी संतानों को मार डाला था.
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौतों के बीच योगीजी ने जन्माष्टमी मनाने का सुझाव ही नहीं दिया बल्कि शासनादेश जारी कर दिया की हर थाने में इसे धूमधाम से मनाया जाए.
कई लोगों ने उनके संविधान के ज्ञान के अभाव पर चिंता व्यक्त की लेकिन उनकी संवेदनशीलता के अभाव पर अधिक चिंता व्यक्त करने की आवश्यकता है.
उनके इस अभाव की बात ने उस समय और भी ज़्यादा व्यथा पैदा की जब गोरखपुर से लगे गांव बिछियपुर में ख़ुशी के मां-बाप ज़ाहिद और रेहाना के दुख का एहसास करने का मौक़ा मिला.
ज़ाहिद बताने लगे कि वह इतनी प्यारी बच्ची थी कि उसका नाम ही ख़ुशी पड़ गया. इतनी छोटी सी थी फिर भी अपने हाथ से मुझे चाय पिलाती थी.
चार दिन के पोते की मौत ने उसकी जंगहा में रहने वाली दादी को झकझोर के रख दिया. दो पोतियों के बाद रक्षा बंधन के दिन उनका यह लाल पैदा हुआ था.
ज़ाहिद ने ख़ुशी को 10 अगस्त की रात में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया था. आॅक्सीजन लगते ही उसकी स्थिति में सुधार होने लगा लेकिन छह बजे सुबह उसकी हालत बिगड़ गई.
डॉक्टरों ने कहा आक्सीजन ख़त्म हो गया है, पंप चलाओ. और हाथ में अंबु पंप थमा दिया. उसने घंटों पंप चलाया और अपनी बच्ची के सांस लेने के संघर्ष को तब तक देखता रहा जब तक उस छोटी सी जान ने हार न मान ली.
उधर, दादी अपने पोते की लेकर 11 अगस्त की सुबह अस्पताल पहुंची. आॅक्सीजन ख़त्म हो चुका था तो पहुंचते ही उन्हें भी पंप पकड़ा दिया गया. चलाते-चलाते उनके हाथ दर्द करने लगे लेकिन बच्चा नहीं बचा.
दादी और ज़ाहिद की माने तो उस वार्ड में 50-60 बच्चे थे. उनमें से एक भी नहीं बचा.
जन्माष्टमी के बारे में योगी के बयान ने इस त्योहार के बारे में मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया. बचपन में देखी झांकियां याद आईं. गोपाल के जन्म की ख़ुशी में खाए लड्डू याद आए.
फिर जन्माष्टमी की कहानी में कुछ कड़वाहट भी थी इसका एहसास हुआ. एक मित्र का मेल मिला जिसने दबी यादों को कुरेदा.
फिर याद आया कि कृष्ण की मां देवकी राजा कंस की बहन थी. उसके बच्चों को मार डालने की कसम कंस ने खाई थी. उसे पति वासुदेव के साथ क़ैद में रखा गया और उसके सात बच्चों को मार डाला गया.
जब कृष्ण का जन्म हुआ तो रात के अंधेरे में वासुदेव उसे नंदगांव में यशोदा के पास छोड़कर चले आए. तो सुबह उन दोनों ने कंस को क्या समझाया की रात में पैदा हुआ बच्चा कहां गया?
समझाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी. उस रात को यशोदा की बेटी पैदा हुई थी. वह अपनी सोई हुई मां के पास सो रही थी. वासुदेव ने गोपाल को उसकी जगह लिटाकर उसे अपने साथ लेकर लौट गया.
वही बच्ची सुबह कंस के हाथ लगी. उसी को ज़मीन पर कंस ने पटका. कोई कहता है मर गई कोई कहता है पंछी बन उड़ गई. बस इतना तय है कि एक बच्चा जी गया और एक बच्ची नहीं रही.
जन्माष्टमी भी इसी तरह मनाई गई. किसी ने बच्चे के जन्म की ख़ुशी में व्रत रखा और कोई बच्चे की मौत के ग़म में भूखा रहा.
(लेखिका कम्युनिस्ट पार्टी आॅफ इंडिया की सदस्य और आॅल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमेंस एसोसिएशन की अध्यक्ष है.)