मोदी जी ने मनमोहन सिंह पर निशाना साधते हुए कहा था, ‘जिस देश के किसान ख़ुदकुशी कर रहे हैं वहां के सत्ताधारी लोगों को नींद कैसे आ सकती है?’ अब पता नहीं उन्हें नींद कैसे आती होगी.
15 अगस्त के अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘2022 तक किसानों की आय दुगुनी हो जाएगी’. महज पांच सालों में यह संभव होगा. इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि अगले पांच सांलों में कृषिक्षेत्र की विकास दर 14 फीसदी रह सकती है.
इतिहास गवाह है कि दुनिया के किसी भी देश में यह संभव नहीं हुआ है. यानी जो दुनिया में कहीं पर नहीं हुआ, उसके बारे में प्रधानमंत्री किसानों को आश्वस्त कर रहे हैं. अगर वह इस बारे में गंभीर होते तो उनके भाषण का बहुत बड़ा हिसा इसी मुद्दे पर होना चाहिए था.
क्या कभी ऐसा हो सकता है कि प्रधानमंत्री उद्योग क्षेत्र को आश्वस्त करें कि अगले पांच सालों में उद्योग क्षेत्र की विकास दर 14 फीसदी रहेगी? जो अर्थशास्त्र की थोड़ी बहुत जानकारी रखते हैं, उन्हें यह मजाक लगेगा और तुरंत प्रधानमंत्री की विश्वसनीयता को ठेस पहुंचेगी.
शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री ऐसे वक्तव्य उद्योग क्षेत्र के बारे में नहीं देते. शायद प्रधानमंत्री ये मानते हैं कि किसानों को कुछ भी आश्वासन दिया जा सकता है. हैरत की बात यह है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है.
‘अगर हमारी सरकार बनती है तो खेती करने के लिए जितने की लागत आती है उसपर 50 फीसदी का मुनाफा दर्ज किया जाएगा और वही किसानों के उत्पाद का न्यूनतम आधार मूल्य होगा.’ प्रधानमंत्री ने लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ऐसा कहा था. लेकिन अब किसान इसके बारे में सवाल न पूछे, इसलिए 19 जुलाई को केंद्रीय कृषिमंत्री राधामोहन सिंह ने लोकसभा में कहा कि ऐसी कोई बात प्रधानमंत्री ने कही ही नही थी. यह आश्वासन दिया ही नहीं गया था.
कृषिमंत्री ने लोकसभा में सफेद झूठ बोला. क्या बिना प्रधानमंत्री की अनुमति के यह संभव है? अगर ऐसे नहीं होता तो प्रधानमंत्री तुरंत कृषिमंत्री की बात को काट देते. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और स्वतंत्रता दिवस के भाषण में उन्होंने और एक शगूफा छोड़ दिया ताकि लोग पहले दिए आश्वासन भूल जाएं.
मोदी जी, यह आर्टिकल लिखते हुए पिछले सात दिनों में मराठवाड़ा के 34 किसानों की खुदकुशी की ख़बर आ रही है. आपने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था, ‘जिस देश के किसान खुदकुशी कर रहे हैं वहां के सत्ताधारी लोगों को नींद कैसे आ सकती है?’ अब यही सवाल आपसे भी पूछा जा सकता है.
इसके दो कारण हैं. पहला, आप किसानों को आश्वासन देते हैं और उससे मुकर जाते हैं. दूसरा, किसानों की मूल समस्याओं को लेकर आपकी सरकार उदासीन और संवेदनहीन है. कई घटनाओं से यह साबित किया जा सकता है.
अरहर दाल के निर्धारित मूल्य का क्या हुआ? जिस मराठवाड़ा में किसान खुदकुशी करने के लिए मजबूर हो गए हैं, वहां पर अरहर का उत्पादन ज़्यादा होता है. आपने अरहर का उत्पादन बढ़ाने का आश्वासन देकर किसानों को बीच रास्ते में ही छोड़ दिया.
न्यूनतम आधार मूल्य बढ़ाने की तो बात छोड़ ही दीजिए, आपने जो भाव घोषित किए वह भी नहीं मिले. किसानों से कितनी अरहर की दाल खरीदी, इसके आकंड़े आप छाती ठोंककर बताते हैं, लेकिन कितने किसानों की दाल आपने निर्धारित मूल्य देकर खरीद ली है, यह भी आप बताएं, आप इस बात को नजरअंदाज कैसे कर सकते है?
असफल हुए नोटबंदी की आप प्रशंसा करते हैं. लेकिन इसका सबसे ज़्यादा नुकसान किसानों को हुआ है. नोटबंदी के समय किसानों ने अपने उत्पाद को चवन्नी के दाम में बेचा है. शहरों में क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने वाले लोगों को ज़्यादा नुकसान नहीं झेलना पड़ा. वह इस फैसले को सही मानते हुए नहीं थके. लेकिन प्रधानमंत्री के भाषण में किसानों को हुई कठिनाइयों और नुकसान के बारे में एक भी शब्द न कहा जाना, क्या दर्शाता है?
जिस देश के ज़्यादातर लोग कृषिक्षेत्र पर निर्भर हैं, वहां कृषि का उत्पादन नहीं बढ़ेगा, उससे फायदा नहीं होगा तो विकास होने की अनुभूति कैसे होगी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशों में घूम-घूमकर भारत में निवेश लाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. विदेशी निवेश आना ज़रूरी है, लेकिन फिलहाल ज़रूरत है किसानों के उत्पाद बढ़ाने की. क्या विदेश निवेश से किसानों के उत्पाद का निर्यात बढ़ेगा? फिर किसानों को इसका फायदा क्या? वह सिर्फ आपके विदेश यात्रा की बातें ही सुनते आ रहे हैं.
मोदी आज देश के सबसे प्रबल नेता माने जाते हैं. वह कितने हिम्मती हैं, यह नोटबंदी के फैसले से दिखाई दिया. लेकिन वे यही हिम्मत कृषि क्षेत्र की नीति निर्धारित करते हुए क्यों नहीं दिखाते?
निर्यात न रोकने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाते? यह करने के बजाए शायद उन्होंने किसानों को सिर्फ बड़े बड़े आश्वासन देने का रास्ता चुना है. उन्हें इसमें ही खुशी मिल रही है. (14 फीसदी की आर्थिक वृद्धि दर का मतलब किसानों को समझ में आने वाला नहीं है, आप कुछ भी आश्वासन दें.)
जब तक देश का किसान अपने सवाल सीधे नहीं पूछता, तब तक किसानों को खोखले आश्वासन देने का राजनेताओं का सिलसिला जारी रहेगा. 2022 में आज के कृषि मंत्री रहेंगे तो वह यह भी कह सकते हैं कि पांच सालों में कृषि उत्पाद दुगुना करने का आश्वासन प्रधानमंत्री ने कभी दिया ही नहीं था.
(मिलिंद मुरुगकर आर्थिक और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.)