दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने पांच सितारा अशोका होटल में हाईकोर्ट के जजों, न्यायिक अधिकारियों और उनके परिवारों के लिए एक विशेष कोविड हेल्थ केयर केंद्र स्थापित करने का फैसला लिया है. महामारी के दौर में जब आम नागरिकों के लिए बेड और ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हैं, तब जजों के लिए ऐसी सुविधा पर लोग सवाल उठा रहे हैं.
नई दिल्ली: एक ऐसे समय में जब लोग अपने परिजनों के लिए अस्पतालों में बेड या ऑक्सीजन पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तब एक फाइव स्टार होटल में विशेष रूप से दिल्ली हाईकोर्ट के जजों, न्यायिक अधिकारियों और उनके परिवारों के लिए एक विशेष कोविड हेल्थ केयर सुविधा केंद्र स्थापित करने का दिल्ली सरकार का फैसला, ऐसी सुविधा की मांग और सरकार द्वारा उसे स्वीकार किए जाने पर सवाल उठाता है.
जहां वरिष्ठ वकीलों ने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि हाईकोर्ट फ्रंटलाइन पर काम करता है, जिसमें कम से कम छह जज बीमार पड़ गए और दो न्यायिक अधिकारियों की मृत्यु हो गई, इसलिए उन्हें ऐसी सुविधा का अधिकार है तो वहीं एक अन्य वकील ने दावा किया कि यह भेदभावपूर्ण है, क्योंकि ऐसे समय में सभी को समान इलाज और सुविधाओं का अधिकार है.
दरअसल बीते 25 अप्रैल को चाणक्यपुरी की सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) गीता ग्रोवर ने चाणक्यपुरी के अशोका होटल में 100 रूम अलग करने और एक कोविड हेल्थ केयर सुविधा केंद्र में तब्दील करने के लिए उन्हें प्राइमस अस्पताल को सौंपने का एक आदेश जारी किया.
एसडीएम ग्रोवर के आदेश में कहा गया, ‘दिल्ली हाईकोर्ट के माननीय न्यायाधीशों और अन्य न्यायिक अधिकारियों और उनके परिवारों के लिए सीएचसी (कोविड स्वास्थ्य केंद्र) सुविधा स्थापित करने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट से अनुरोध प्राप्त हुआ है. इसलिए माननीय न्यायाधीशों, अन्य अधिकारियों और उनके परिजनों के उपयोग के लिए कोविड स्वास्थ्य सुविधा केंद्र की स्थापना और तत्काल प्रभाव से नई दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित प्राइमस अस्पताल में शामिल करने के लिए नई दिल्ली स्थित अशोका होटल के 100 कमरों की आवश्यकता है.’
हाउसकीपिंग, कीटाणुशोधन और रोगियों के लिए भोजन अस्पताल द्वारा मुहैया कराया जाएगा.
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उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि इस आदेश का पालन न करने पर आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के साथ महामारी रोग अधिनियम, 1897 और आईपीसी की धारा 188 के प्रावधानों के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी.
सोशल मीडिया पर इस फैसले पर बहस शुरू हो गई, जिसमें कई लोगों ने जब आम नागरिकों के लिए बेड और ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हैं तब जजों के लिए फाइल स्टार सुविधाओं पर सवाल उठाए.
इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वरिष्ठ वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल ने ट्वीट कर कहा कि दिल्ली सरकार बताना चाहती है कि वे बहुत ही खास लोगों का ख्याल रखते हैं.
फैसला पूरी तरह से अनैतिक, अस्वीकार्य है
द वायर से बात करते हुए अग्रवाल ने कहा, ‘जब इस तरह के भेदभाव होते हैं तो वे संविधान पर धब्बा होते हैं.’
उन्होंने जोर देते हुए कहा, ‘ऐसे समय पर किसी भी प्रकार का भेदभाव- चाहे वह श्मशान का हो, अस्पताल का हो या किसी भी सुविधा का हो, बिल्कुल अनैतिक और अस्वीकार्य है. आपको सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करना होगा.’
अग्रवाल ने कहा, ‘यदि कोई व्यक्ति कोविड से पीड़ित है और जीवित रहने के लिए फेफड़ों या ऑक्सीजन में संक्रमण के लिए उपचार की आवश्यकता है, तो आप यह नहीं कह सकते हैं कि यह व्यक्ति उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है, इसलिए उसे पहले और बाद में अन्य को ऑक्सीजन दिया जाएगा.’
उन्होंने कहा कि यह समय जब सरकार को अनैतिक तरीकों को छोड़ने का समय था. उन्होंने कहा, ‘पहले से ही हमने बहुत सी चीजों को खो दिया है और अब हम सभी अनैतिक तरीकों को अपनाकर और भी अधिक खोने की प्रक्रिया में हैं. यह अनैतिक रवैया रोकने का समय है, कम से कम सरकार की ओर से. उन्हें सभी अनैतिक प्रथाओं को रोकना चाहिए.’
अग्रवाल ने राममनोहर लोहिया अस्पताल के एक रेजिडेंट डॉक्टर के वीडियो की ओर इशारा किया, जिसमें उसने दावा किया था कि वीआईपी लोग अस्पताल के कोविड सुविधा केंद्र में प्रवेश पा जा रहे हैं तो वहीं खुद बीमार होने पर भी उन्हें बेड नहीं मिला.
उन्होंने कहा, ‘यह दुखद है कि ये सरकारी संस्थान केवल शासकों की सेवा करते हैं जब उन्हें वास्तव में (सामान्य) लोगों की सेवा करनी चाहिए.’
हाईकोर्ट में कई लोग कोविड से प्रभावित, यह एक प्रशासनिक फैसला
हालांकि, एक अन्य वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने दिल्ली सरकार के फैसले का बचाव किया है.
यह पूछे जाने पर कि क्या इस तरह की सुविधा ऑक्सीजन और बेड जैसे संसाधनों को कुछ चुनिंदा लोगों की सुविधा के लिए निर्धारित हो जाएंगी तब हेगड़े ने कहा, ‘नहीं, एक विशेष सुविधा नहीं बनाई गई है. अगर आप भौगोलिक स्थिति देखें तो अशोका और प्राइमस दो किलोमीटर के आस-पास में हैं. तो यह एक प्रशासनिक कॉल है.’
हेगड़े ने स्वीकार किया कि यह सुविधा एक खास समूह के लिए है लेकिन बचाव करते हुए उन्होंने कहा, ‘वे एक फ्रंटलाइन समूह हैं और कोर्ट रूम के कई कर्मचारियों सहित हाईकोर्ट के कम से कम छह जज संक्रमित पाए जा चुके हैं. वहीं, दो अधीनस्थ न्यायाधीशों का निधन हो गया.’
उन्होंने कहा, ‘दिल्ली हाईकोर्ट ने कोविड हेल्थ सेंटर की मांग की थी. यह एक उचित अनुरोध है, क्योंकि उच्च न्यायालय और उसके कर्मचारी, हर कोई बड़ी संख्या में जनता के साथ व्यवहार करता है. वे फ्रंटलाइन पर हैं. ऐसा लगता है कि दिल्ली सरकार ने नजदीकी अस्पताल में इन कई कमरों को मुहैया कराकर करके मांग पूरी की है. यह फैसला दिल्ली सरकार का है. ऐसा नहीं लगता कि उन्होंने कहा कि आप हमें यह होटल या वह होटल दें.’
दिल्ली हाईकोर्ट में कोविड के साथ कई मामलों में दिल्ली सरकार के पक्षकार होने पर वह कहते हैं, ‘कुछ भी गलत नहीं है क्योंकि सरकार ने उच्च न्यायालय के भीतर सुविधा मुहैया कराने की पेशकश नहीं की है या अपने डॉक्टरों को वहां भेजने की पेशकश नहीं की है. यह निर्णय दिल्ली सरकार का है, जो इन दिनों उपराज्यपाल का भी है.’
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