गांधी परिवार मौजूदा स्थिति में कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना नहीं चाहता क्योंकि राजनीतिक रूप से यह परिवार बहुत कमज़ोर स्थिति में हैं और अगर इस वक़्त पार्टी हाथ से निकल गई, तो इसके परिणाम दूरगामी होंगे.
जून महीने के आख़िर तक कांग्रेस पार्टी को नया अध्यक्ष नियुक्त करना था. कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रस्ताव रखा कि कोरोना महामारी के चलते हमें कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव कुछ वक्त के लिए स्थगित कर देना चाहिए.
अशोक गहलोत की बात का कई वरिष्ठ नेताओं ने भी समर्थन किया. आख़िरकार एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव टाल दिया गया. समर्थन करने वाले नेताओं में जी-23 के सदस्य भी शामिल थे, जो पहले से ही ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस अध्यक्ष पद तक के चुनाव करवाने की मांग करते रहे हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव की हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया था और तब से सोनिया गांधी ही कांग्रेस की अंतरिम राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी हुई हैं. दो साल के बाद भी कांग्रेस अपने लिए एक पूर्णकालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष तक नहीं ढूंढ पाई है.
दरअसल, अगर संगठन में चुनाव नहीं होगा, तो सोनिया गांधी ही अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष बनी रहेंगीं. लेकिन मेरी समझ के मुताबिक़, अगर चुनाव होता तब भी कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर सोनिया गांधी ही क़ाबिज़ रहतीं.
और इसकी एक बड़ी वजह है, और वह वजह हैं राहुल गांधी. जिस दिन पांच राज्यों के चुनावी नतीजे आए थे यह तब ही साफ हो गया था कि चुनाव हो या न हो, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के अलावा और कोई नहीं बनेगा.
दरअसल इसके पीछे राज यह है कि गांधी परिवार आज की राजनीतिक स्थिति में कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना नहीं चाहता. क्योंकि गांधी परिवार राजनीतिक रूप से बहुत कमजोर स्थिति में हैं और इस वक्त अगर पार्टी हाथ से निकल गई तो इसके परिणाम दूरगामी हो सकते हैं और नेहरू-गांधी की विरासत हमेशा के लिए ख़त्म हो सकती है.
राहुल गांधी की चुनौती
जब राहुल गांधी खुद ही कहते हैं कि गांधी परिवार के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए, और गांधी परिवार कोई नाम नहीं सुझाएगा, उनके इस वक्तव्य में एक चुनौती छुपी हुई है.
जब राहुल गांधी यह बात कहते हैं कि गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को कांग्रेस अध्यक्ष बना लीजिए और हम किसी का नाम नहीं बताएंगे, तो इसका सीधा मतलब यह है कि वे चुनौती दे रहे हैं कि गांधी परिवार के बिना पार्टी चलाकर दिखाओ!
सनद रहे कि 2019 के लोकसभा चुनाव की हार के बाद जब राहुल गांधी ने हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया था, तब उन्हें उम्मीद थी कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, कांग्रेस कार्य समिति और राज्यों के अध्यक्ष भी इस्तीफा देंगे; लेकिन ऐसा नहीं हुआ. किसी भी पदाधिकारी ने इस्तीफा नहीं दिया.
हार के बाद जो कांग्रेस की पहली कार्य समिति की बैठक बुलाई गई, उसमें राहुल गांधी ने कहा था, गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को अध्यक्ष चुन लीजिए हम किसी का नाम नहीं सुझाएंगे.
गांधी परिवार को इस बात का अच्छे से एहसास है कि जब तक परिवार किसी नेता के सिर पर हाथ नहीं रखेगा, तब तक वह व्यक्ति अध्यक्ष नहीं बन सकता. यही वजह थी कि जब राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ा, सोनिया गांधी को दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालनी पड़ी.
अब आज के परिप्रेक्ष्य में सोनिया गांधी चाहती हैं कि जब वे कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ें, तो राहुल गांधी ही पार्टी के अध्यक्ष बनें. लेकिन राहुल की सबसे बड़ी समस्या हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन है.
2022 में जिन राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और गुजरात के विधानसभा चुनाव में भी कोई अप्रत्याशित नतीजों की ज़्यादा उम्मीद नहीं है. राहुल गांधी, चाहे दिखावे के लिए ही सही, अगर संगठन के चुनाव जीतकर ही अध्यक्ष बनना चाहते है तो उनका रास्ता आसान नहीं है.
अब ऐसी स्थिति में उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद तक इंतज़ार करना पड़ सकता है.
ज़रूरी नहीं है कि युद्ध जीतकर ही राजा बना जाए
कोरोना महामारी के इस दौर में राहुल गांधी और उनकी टीम देश के अंतिम व्यक्ति तक अपनी बात पहुंचाकर भी अपनी बिगड़ी छवि में सुधार कर सकती है. कोरोना ने देश में तबाही मचाई है. हर तीसरा व्यक्ति सरकार के कुप्रबंधन और अव्यवस्था से नाराज़ है.
राहुल गांधी के बारे में कहा जाता है कि वे एक अच्छे इंसान हैं. गरीब लोगों के बारे में चिंतित रहते हैं, दूरदर्शी भी हैं, करुणमय भी लेकिन यह सब देश की आम जनता में उनकी छवि से बहुत दूर है.
कांग्रेस के ही कुछ नेता दबी आवाज़ में कहते हैं कि अगर राहुल गांधी कह दें कि वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं है, तो पार्टी के अंदर उनकी स्वीकार्यता और मज़बूत होगी. नेताओं और कार्यकर्ताओं में उनका क़द और बढ़ जाएगा.
जिस तरीक़े से सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद छोड़कर अपना नाम इतिहास में दर्ज करा लिया, उसी तरह से राहुल गांधी को भी एक अदद मनमोहन सिंह की ज़रूरत है.
याद कीजिए, कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नरसिम्हा राव और उसके बाद सीताराम केसरी का दौर. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी राजनीति में नहीं आना चाहती थीं. उनके बच्चे भी छोटे थे.
उस वक़्त नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी. नरसिम्हा राव ने जब कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ा तो सीताराम केसरी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था.
लेकिन जब 1998 में कांग्रेस के एक बड़े खेमे ने सोनिया गांधी को राजनीति में आने के लिए राज़ी कर लिया, तो सीताराम केसरी ने सोनिया गांधी के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ने से इनकार कर दिया था. उसके बाद का घटनाक्रम सबको मालूम है.
अख़िर में पूरी बात का सार यह है कि कांग्रेस के किसी भी गुट के नेता या फिर गांधी परिवार से नज़दीकी रखने वाले नेता, जो रोज़ कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सपना देखते हैं, उन्हें अपने सपनों विराम देना चाहिए क्योंकि सच्चाई यह है कि गांधी परिवार अभी कांग्रेस की कमान छोड़ने वाला नहीं है.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)