देश में अब तक कुल 16 चरणों में चुनावी बॉन्ड की बिक्री हुई है. एसबीआई ने एक आरटीआई आवेदन के जवाब में बताया है कि इस साल जनवरी में 15वें चरण में 42.10 करोड़ रुपये और अप्रैल में 16वें चरण में 695.34 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं. इस दौरान सर्वाधिक बॉन्ड पश्चिम बंगाल के कोलकता शाखा से बिके.
नई दिल्ली: देश के चार राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में मार्च-अप्रैल में हुए विधानसभा चुनावों के बीच 695 करोड़ रुपये से अधिक का विवादित एवं गोपनीय चुनावी बॉन्ड बेचा गया था. भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने एक आरटीआई आवेदन के जवाब में ये जानकारी दी है.
अब तक कुल 16 चरणों में चुनावी बॉन्ड की बिक्री हुई है. आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक, 15वें चरण में एक जनवरी से 10 जनवरी के बीच एसबीआई ने कुल 42.10 करोड़ रुपये के 151 बॉन्ड बेचे थे.
बिहार के निवासी कन्हैया कुमार ने 16 अप्रैल को इस संबंध में एक आरटीआई आवेदन दायर कर 15वें और 16वें चरण में चुनावी बॉन्ड की बिक्री की जानकारी मांगी थी.
इसके मुताबिक, एसबीआई ने 16वें चरण में एक अप्रैल से 10 अप्रैल के बीच कुल 974 चुनावी बॉन्ड बेचे थे, जिसकी कुल कीमत 695.34 करोड़ रुपये है. यह 15वें चरण में बेचे गए कुल चुनावी बॉन्ड की तुलना में करीब 16 गुना अधिक है.
दस्तावेजों से ये भी पता चलता है सबसे ज्यादा चुनावी बॉन्ड विधानसभा चुनाव वाले पश्चिम बंगाल में एसबीआई के कोलकाता मेन ब्रांच से बेचे गए हैं. यहां से 15वें चरण में कुल 110 बॉन्ड और 16वें चरण में 348 बॉन्ड बेचे गए, जिसकी कीमत क्रमश: 35.75 करोड़ रुपये और 176.19 करोड़ रुपये है.
इसी तरह 15वें चरण में केरल के तिरुवनंतपुरम ब्रांच से 9.10 लाख रुपये के 19 बॉन्ड, जयपुर मेन ब्रांच से पांच करोड़ रुपये के 14 बॉन्ड और नई दिल्ली मेन शाखा से 1.25 करोड़ रुपये के आठ बॉन्ड बेचे गए थे.
एसबीआई ने बताया है कि 15वें चरण में बेचे गए कुल बॉन्ड में से एक लाख रुपये वाले तीन बॉन्ड को छोड़कर बाकी सभी 148 बॉन्ड भुना लिए गए हैं.
इसी 16वें चरण में कोलकाता के अलावा तमिलनाडु के चेन्नई मेन ब्रांच में 156 बॉन्ड बेचे गए, जिसमें से 140 बॉन्ड एक करोड़ रुपये और 10 बॉन्ड 10 लाख रुपये के थे.
इस बीच नई दिल्ली ब्रांच में कुल 199 बॉन्ड बेचे गए, जिसमें से 165 बॉन्ड एक करोड़ रुपये, 24 बॉन्ड 10 लाख रुपये और 10 बॉन्ड एक लाख रुपये के थे. असम के गुवाहाटी ब्रांच में भी 37 चुनावी बॉन्ड बेचे गए, जिसमें एक बॉन्ड एक करोड़ रुपये, 31 बॉन्ड 10 लाख रुपये और पांच बॉन्ड एक लाख रुपये के थे.
इन शाखाओं के अलावा गांधीनगर शाखा ने 24 बॉन्ड, हैदराबाद मेन शाखा ने 96 बॉन्ड, मुंबई में शाखा ने 106 बॉन्ड और पणजी शाखा ने तीन बॉन्ड बेचे थे.
एसबीआई द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से यह भी पता चला है कि चेन्नई और मुंबई शाखा में बेचे गए 1,000 रुपये के दो बॉन्ड को छोड़कर, अन्य सभी बॉन्ड को भुनाया गया है.
इसके अलावा आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी ये भी पता चला है कि 15वें चरण में करीब 80 फीसदी राशि एक करोड़ रुपये बॉन्ड से आई. इस दौरान एक करोड़ रुपये के 34 बॉन्ड, 10 लाख रुपये के 78 बॉन्ड, एक लाख रुपये के 29 बॉन्ड और 10 रुपये के 10 बॉन्ड बेचे गए थे.
इसी तरह 16वें चरण में करीब 70 फीसदी राशि एक रुपये के बॉन्ड से प्राप्त हुई. इस दौरान एक करोड़ रुपये के 671 बॉन्ड, 10 लाख रुपये के 237 बॉन्ड, एक लाख रुपये के 64 बॉन्ड और 1000 रुपये के दो बॉन्ड बेचे गए थे.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की ब्रिक्री पर रोक लगाने का अनुरोध करने वाली याचिका को खारिज कर दिया था.
कोर्ट ने कहा था कि चूंकि बिना हस्तक्षेप किए साल 2018 और 2019 में चुनावी बॉन्ड के बिक्री की इजाजत दी गई थी और इस संबंध में पहले से ही पर्याप्त सुरक्षा मौजूद है, इसलिए फिलहाल चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने की कोई तुक नहीं बनती है.
गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) ने एक याचिका दायर कर इसकी मांग की थी और दावा किया था कि इस बात की गंभीर आशंका है कि पश्चिम बंगाल और असम समेत कुछ राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड की आगे और बिक्री से ‘फर्जी कंपनियों के जरिये राजनीतिक दलों का अवैध और गैर कानूनी चंदा और बढ़ेगा.’
मालूम हो कि 27 मार्च से असम में तीन चरणों और पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में चुनाव हुआ था. वहीं तमिलनाडु, केरल और पुदुचेरी में एक ही चरण में एक ही दिन छह अप्रैल को चुनाव हुआ था.
चुनावी बॉन्ड को लेकर क्यों है विवाद
चुनाव नियमों के मुताबिक यदि कोई व्यक्ति या संस्थान 2,000 रुपये या इससे अधिक का चंदा किसी पार्टी को देता है तो राजनीतिक दल को दानकर्ता के बारे में पूरी जानकारी देनी पड़ती है.
हालांकि चुनावी बॉन्ड ने इस बाधा को समाप्त कर दिया है. अब कोई भी एक हजार से लेकर एक करोड़ रुपये तक के चुनावी बॉन्ड के जरिये पार्टियों को चंदा दे सकता है और उसकी पहचान बिल्कुल गोपनीय रहेगी.
इस माध्यम से चंदा लेने पर राजनीतिक दलों को सिर्फ ये बताना होता है कि चुनावी बॉन्ड के जरिये उन्हें कितना चंदा प्राप्त हुआ.
इसलिए चुनावी बॉन्ड को पारदर्शिता के लिए एक बहुत बड़ा खतरा माना जा रहा है. इस योजना के आने के बाद से बड़े राजनीतिक दलों को अन्य माध्यमों (जैसे चेक इत्यादि) से मिलने वाले चंदे में गिरावट आई है और चुनावी बॉन्ड के जरिये मिल रहे चंदे में बढ़ोतरी हो रही है.
साल 2018-19 में भाजपा को कुल चंदे का 60 फीसदी हिस्सा चुनावी बॉन्ड से प्राप्त हुआ था. इससे भाजपा को कुल 1,450 करोड़ रुपये की आय हुई थी. वहीं वित्त वर्ष 2017-2018 में भाजपा ने चुनावी बॉन्ड से 210 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त होने का ऐलान किया था.
चुनावी बॉन्ड योजना को लागू करने के लिए मोदी सरकार ने साल 2017 में विभिन्न कानूनों में संशोधन किया था. चुनाव सुधार की दिशा में काम कर एडीआर ने इन्हीं संशोधनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. हालांकि कई बार से इस सुनवाई को लगातार टाला जाता रहा है.
याचिका में कहा गया है कि इन संशोधनों की वजह से विदेशी कंपनियों से असीमित राजनीतिक चंदे के दरवाजे खुल गए हैं और बड़े पैमाने पर चुनावी भ्रष्टाचार को वैधता प्राप्त हो गई है. साथ ही इस तरह के राजनीतिक चंदे में पूरी तरह अपारदर्शिता है.
साल 2019 में चुनावी बॉन्ड के संबंध में कई सारे खुलासे हुए थे, जिसमें ये पता चला कि आरबीआई, चुनाव आयोग, कानून मंत्रालय, आरबीआई गवर्नर, मुख्य चुनाव आयुक्त और कई राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इस योजना पर आपत्ति जताई थी.
हालांकि वित्त मंत्रालय ने इन सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को पारित किया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)