भारत के 45वें प्रधान न्यायाधीश बने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा पटना उच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं.

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न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा पटना उच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं.

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सोमवार को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा को पद की शपथ दिलाई. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा ने सोमवार को भारत के 45वें प्रधान न्यायाधीश सीजेआई के रूप में शपथ ग्रहण की. वह उस पीठ का हिस्सा थे जिसने 16 दिसंबर को हुए सामूहिक बलात्कार मामले में चार दोषियों को मौत की सजा की पुष्टि की थी और सिनेमाघरों में राष्ट्रगान को अनिवार्य बनाने का आदेश पारित किया था.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में एक सादे समारोह में न्यायमूर्ति मिश्रा को पद की शपथ दिलाई. न्यायमूर्ति मिश्रा ने ईश्वर के नाम शपथ अंग्रेज़ी में ली.

न्यायमूर्ति जेएस खेहर के रविवार को सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायमूर्ति मिश्रा (64) ने यह पद संभाला है. न्यायमूर्ति मिश्रा दो अक्तूबर 2018 तक इस पद पर अपनी सेवाएं देंगे. स्थापित परिपाटी के अनुसार न्यायमूर्ति जेएस खेहर ने पिछले महीने मिश्रा को देश का आगामी प्रधान न्यायाधीश नामित किया था.

वह पटना उच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं. अक्तूबर 2011 में वह शीर्ष अदालत में आ गए थे. वर्ष 1977 में वकालत शुरू करने वाले न्यायमूर्ति मिश्रा ने उड़ीसा उच्च न्यायालय में संवैधानिक, दीवानी, फौजदारी, राजस्व, सेवा और बिक्री कर मामलों में प्रैक्टिस शुरू की.

उन्हें 17 जनवरी, 1996 को उड़ीसा उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति मिली. उन्होंने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में भी सेवाएं दी. वह 19 दिसंबर 1997 में स्थायी न्यायाधीश बने.

न्यायमूर्ति मिश्रा वर्तमान में उस पीठ की अध्यक्षता कर रहे हैं जो कावेरी और कृष्णा नदी जल विवाद, बीसीसीआई सुधार और सहारा मामले समेत कई अन्य मामलों की सुनवाई कर रही है. उनकी ही अध्यक्षता में एक पीठ ने देशभर के सिनेमाघरों में राष्ट्रगान को अनिवार्य बनाने का आदेश दिया था.

वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 16 दिसंबर 2012 सामूहिक बलात्कार मामले में दोषियों की मौत की सज़ा बरक़रार रखी थी.

न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति पीसी पंत ने मई माह में मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने से इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा था कि अभिव्यक्ति के अधिकार का यह मतलब नहीं है कि कोई भी किसी की भी मानहानि कर सकता है. इस अपराध में दो वर्ष के कारावास और जुर्माने का प्रावधान है.

शपथ ग्रहण समारोह में उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई केंद्रीय मंत्री मौजूद थे. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद भी इस समारोह में शामिल हुए.

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