नारदा स्टिंग मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्य के क़ानून मंत्री मलय घटक की याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई होनी थी, जिससे जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने ख़ुद को अलग कर लिया. जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस दिनेश माहेश्वर की पीठ अब इस पर 25 को जून पर सुनवाई करेगी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने मंगलवार को नारदा स्टिंग टेप मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्य के कानून मंत्री मलय घटक की याचिकाओं पर सुनवाई से स्वयं को अलग कर लिया. मामले में सीबीआई द्वारा तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं को गिरफ्तार किए जाने के दिन दोनों की भूमिकाओं के संबंध में याचिकाएं दाखिल की गईं.
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस बोस की अवकाशकालीन पीठ जैसे ही मंगलवार की सुनवाई शुरू करने के लिए बैठी जस्टिस गुप्ता ने कहा कि उनके साथी न्यायाधीश खुद को इन अपीलों पर सुनवाई से अलग कर रहे हैं.
पीठ की अध्यक्षता करते हुए जस्टिस गुप्ता ने कहा कि अब इस विषय को प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना के समक्ष रखा गया, जिन्होंने इस मामले को दूसरी पीठ को सौंप दिया.
इसके बाद जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस दिनेश माहेश्वर की पीठ ने अपराह्न इस विषय पर सुनवाई शुरू की. जस्टिस सरन ने प्रारंभ में ही कह दिया कि चूंकि यह मामला इस पीठ के लिए नया है , इसलिए उसे सुनवाई करने से पहले फाइलों पर नजर दौड़ाने की जरूरत है.
इस पीठ को जब यह बताया गया कि शीर्ष अदालत ने पहले उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि जब तक वह इन अपीलों पर फैसला नहीं कर लेती है तब तक वह (उच्च न्यायालय) अपनी सुनवाई टाल दे, इस पर उसने (जस्टिस सरन एवं जस्टिस माहेश्वरी की पीठ ने) कहा कि वह भी यही आदेश देगी.
पीठ ने कहा कि वह भी उच्च न्यायालय में इस मामले की 23 जून को निर्धारित सुनवाई दो दिन के लिए और स्थगित करने का अनुरोध करेगी.
नई पीठ ने तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता तथा वरिष्ठ वकीलों- राकेश द्विवेदी और विकास सिंह से सवाल किया कि क्या वे शुक्रवार को अपनी दलीलें पूरी कर लेंगे तब वकीलों ने ‘हां’ में जवाब दिया.
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘पहले उच्चतम न्यायालय ने 18 जून को कहा था कि उच्च न्यायालय 21 और 22 को इस मामले पर सुनवाई नहीं कर सकता है. चूंकि इस मामले मंगलवार को सुनवाई नहीं हो पाई इसलिए, हम आशा करते हैं कि उच्च न्यायालय ने 25 से पहले किसी भी तारीख पर इस मामले पर सुनवाई नहीं करेगा.’
शीर्ष अदालत को तीन याचिकाओं पर सुनवाई करनी थी जिनमें एक याचिका राज्य सरकार की है. इन याचिकाओं में 17 मई को सीबीआई द्वारा नारदा टेप मामले में तृणमूल कांग्रेस के चार नेताओं की गिरफ्तारी के बाद ममता बनर्जी और पश्चिम बंगाल के कानून मंत्री को उनकी भूमिकाओं पर हलफनामे दाखिल करने से इनकार करने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई है.
आरोप हैं कि पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं ने सीबीआई को मामले में चार नेताओं की गिरफ्तारी के बाद उसका कानूनी कामकाज करने से रोकने में अहम भूमिका अदा की.
राज्य सरकार और कानून मंत्री ने शीर्ष अदालत में अपीलें पहले दायर की थी और मुख्यमंत्री ने उच्च न्यायालय के नौ जून के आदेश के खिलाफ अपील बाद में दायर की.
उच्चतम न्यायालय ने 18 जून को उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह शीर्ष अदालत द्वारा आदेश के खिलाफ राज्य सरकार और घटक की याचिका पर विचार करने के एक दिन बाद मामले की सुनवाई करे.
नारदा स्टिंग टेप मामले को विशेष सीबीआई अदालत से उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने के अनुरोध वाली एजेंसी की याचिका पर सुनवाई करने वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने नौ जून को कहा था कि इस मुद्दे पर बाद में विचार किया जाएगा.
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बनर्जी और घटक के हलफनामे पर बाद में विचार करने का फैसला किया था.
घटक और राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवकता राकेश द्विवेद्वी और विकास सिंह ने कहा था कि हलफनामों को उच्च न्यायालय की जानकारी में लाना आवश्यक है क्योंकि 17 मई को व्यक्तियों की भूमिका के मामले को वह देख रहा है.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने देरी होने के आधार पर बनर्जी और घटक के हलफनामों को स्वीकार करने पर आपत्ति जताते हुए दावा किया था कि उनकी दलीलें पूरी होने के बाद हलफनामे दायर किए गए थे.
सीबीआई ने अपने आवेदन में मुख्यमंत्री और कानून मंत्री को पक्षकार बनाया है. एजेंसी ने दावा किया कि चारों आरोपियों की गिरफ्तारी के तुरंत बाद मुख्यमंत्री कोलकाता में सीबीआई कार्यालय में धरने पर बैठ गई थीं, वहीं घटक 17 मई को विशेष सीबीआई अदालत के समक्ष मामले की डिजिटल सुनवाई के दौरान अदालत परिसर में मौजूद थे.
चारों आरोपियों में मंत्री सुब्रत मुखर्जी और एफ हकीम के अलावा तृणमूल कांग्रेस के विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व महापौर सोवन चटर्जी शामिल हैं.