झारखंड: सुरक्षाबलों की गोली से युवक की मौत का आरोप, पुलिस ने इनकार किया

झारखंड के लातेहार ज़िले के एक गांव में बीते 12 जून को एक नक्सल अभियान पर निकली सुरक्षा बलों की टीम का सामना स्थानीय परपंरा के तहत शिकार पर निकले आदिवासियों के समूह से हो गया था. इस दौरान सुरक्षाबलों की गोलीबारी में एक आदिवासी की मौत हो गई. पुलिस का कहना है कि ग्रामीणों ने पहले गोली चलाई, जबकि ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस ने एकतरफ़ा कार्रवाई की.

मृतक ब्रह्मदेव के शव के पास परिजन व ग्रामीण. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

झारखंड के लातेहार ज़िले के एक गांव में बीते 12 जून को एक नक्सल अभियान पर निकली सुरक्षा बलों की टीम का सामना स्थानीय परपंरा के तहत शिकार पर निकले आदिवासियों के समूह से हो गया था. इस दौरान सुरक्षाबलों की गोलीबारी में एक आदिवासी की मौत हो गई. पुलिस का कहना है कि ग्रामीणों ने पहले गोली चलाई, जबकि ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस ने एकतरफ़ा कार्रवाई की.

मृतक ब्रह्मदेव के शव के पास परिजन व ग्रामीण. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)
मृतक ब्रह्मदेव के शव के पास परिजन व ग्रामीण. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: झारखंड के लातेहार जिले में एक 24 वर्षीय आदिवासी युवक की सुरक्षाबलों के साथ कथित मुठभेड़ में मौत पर सवाल उठने के बाद झारखंड जनाधिकार महासभा की एक फैक्ट फाइंडिंग टीम ने मामले की न्यायिक जांच की मांग की है.

हालांकि, प्रशासन का कहना है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए उसने मामले की जांच सीआईडी को सौंप दी है.

घटना जिले के गारु ब्लॉक के पिरी गांव में हुई है.

दरअसल बीते 12 जून को एक नक्सल अभियान पर निकली सुरक्षा बलों की टीम का सामना स्थानीय परंपरा के तहत शिकार करने निकले आदिवासियों के समूह से हो गया था. इस दौरान सुरक्षाबलों की गोलीबारी में एक आदिवासी की मौत हो गई.

पुलिस का कहना है कि ग्रामीणों ने पहले गोली चलाई, जबकि ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई की.

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने 17 जून को घटनास्थल का दौरा किया और ग्रामीणों तथा पीड़ितों से मुलाकात की. साथ ही स्थानीय प्रशासन व पुलिस की प्रतिक्रिया, दर्ज प्राथमिकी और स्थानीय मीडिया द्वारा की गई रिपोर्टों का भी विश्लेषण किया.

टीम ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया, ‘12 जून की घटना किसी भी प्रकार से ‘मुठभेड़’ नहीं थी. सुरक्षा बल द्वारा निर्दोष ग्रामीणों पर गोली चलाई गई. घटना से संबंधित ब्रह्मदेव समेत छह ग्रामीण हर साल की तरह गांव के सरहुल पर्व के तहत पारंपरिक शिकार करने के लिए घर से निकले ही थे. उनके पास भरटुआ बंदूक थी, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी इनके परिवारों में रही है. इस बंदूक से सिंगल फायर होता है और इसका इस्तेमाल छोटे जानवर- जैसे खरगोश, मुर्गी, सूअर आदि के शिकार एवं फसल को जानवरों से बचाने के लिए होता है.’

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जंगल में घुसते ही आदिवासियों को सुरक्षा बल के जवान दिखे जिसके बाद वे भागने लगे.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘ग्रामीणों के द्वारा उनकी भरटुआ बंदूक से फायरिंग नहीं की गई थी. उन्होंने पुलिस को देखते ही हाथ उठा दिया और चिल्लाए कि वे आम जनता हैं, माओवादी (पार्टी) नहीं हैं और गोली न चलाने का अनुरोध किया. फिर भी पुलिस द्वारा लगातार गोली चलाई गई, जो दिनेनाथ के हाथ में गोली लगी और ब्रह्मदेव के शरीर में. इसके बाद सुरक्षा बल द्वारा ब्रह्मदेव को जंगल किनारे ले जाकर फिर से गोली मारी गई और उनकी मौत सुनिश्चित की गई. ग्रामीणों के अनुसार आधे घंटे तक पुलिस की ओर से फायरिंग की गई थी.’

रिपोर्ट में आगे कहा गया, ‘पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी से यह स्पष्ट है कि वे सच्चाई को छुपाना चाह रही है. प्राथमिकी में ब्रह्मदेव की पुलिस की गोली द्वारा हत्या का कहीं जिक्र नहीं है. इस कार्रवाई को मुठभेड़ कहा गया है. यह लिखा गया है कि हथियारबंद लोगों द्वारा पहले फायरिंग की गई और कुछ लोग जंगल में भाग गए. साथ ही मृत ब्रह्मदेव का शव जंगल किनारे मिला. यह तो तथ्यों से विपरीत है.’

रिपोर्ट में ब्रह्मदेव समेत छह आदिवासियों पर आर्म्स एक्ट समेत विभिन्न धाराओं अंतर्गत केस दर्ज करने पर भी सवाल उठाए गए हैं.

रिपोर्ट में यह भी आरोप लगाया गया कि थाने में उन लोगों से कई कागजों (कुछ सादे व कुछ लिखित) पर हस्ताक्षर करवाया गया (या अंगूठे का निशान लगवाया गया), लेकिन किसी को भी कागज में लिखी बातों को पढ़ के नहीं सुनाया गया.

द वायर  से बात करते हुए लातेहार के पुलिस अधीक्षक (एसपी) प्रशांत आनंद ने कहा, ‘12 जून को वहां पर ऑपरेशन चल रहा था और कुछ टीमें वहां गई थीं. कुछ लड़के हथियार के साथ वहां इकट्ठा हुए थे. बाद में जब मेरी भी उनमें से कुछ लड़कों से बात हुई तब उन्होंने बताया कि वो सरहुल पर्व के लिए इकट्ठा हुए थे और हथियार लेकर शिकार करने जा रहे थे.’

उन्होंने कहा, ‘पुलिस टीम ने हथियार के साथ लड़कों को देखा तो उनको चेताया, तब वे लोग भागने लगे. उन्होंने फायरिंग भी की, फिर पुलिस ने जवाबी फायरिंग की है. इसी दौरान एक लड़के को मृत पाया गया, बाकी पकड़े गए और उनके पास से सात हथियार जब्त भी हुआ है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘हथियार रखना तो कानूनी काम नहीं है न? और जंगल में शिकार करना भी कानूनी नहीं है. पुलिस की बी-टीम ने भी यह बात बताई. मेरी मृतक की पत्नी से भी बात हुई तो उन्होंने भी पहचाना कि हां वह यह वाला हथियार लेकर गए थे. हर व्यक्ति ने अपने-अपने हथियार को पहचाना.’

एसपी आनंद ने कहा, ‘पुलिस ने कभी भी किसी भी तथ्य को छिपाने या उसको गलत तरीके से परिभाषित करने का प्रयास नहीं किया. अगर कुछ भी गलत करना होता तो बाकी लड़के भी जिनके पास से हथियार बरामद किए गए उनको भी जेल भेज देते. उन्होंने भी पुलिस जांच में सहयोग करने की बात की है.’

झारखंड जनाधिकार महासभा की फैक्ट फाइंडिंग टीम. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)
झारखंड जनाधिकार महासभा की फैक्ट फाइंडिंग टीम. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

हालांकि, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस और प्रभात खबर की वेबसाइट पर 12 जून की खबर में पुलिस और सीआरपीएफ सूत्रों के हवाले से नक्सली अभियान में एक माओवादी/उग्रवादी के मारे जाने और चार हथियार बरामद होनी की जानकारी दी गई थी.

लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स की वेबसाइट पर रात 9:59 बजे प्रकाशित खबर और हिंदुस्तान अखबार और प्रभात खबर अखबार के 13 जून के स्थानीय संस्करणों में सरहुल पर्व के लिए शिकार करने गए ग्रामीणों में से एक से मौत की जानकारी दी गई.

इस सवाल पर कि क्या ग्रामीणों के पास से जिस तरह के हथियार बरामद किए गए वे आम तौर पर नक्सलियों के पास पाए जाते हैं? एसपी प्रशांत आनंद ने कहा, ‘हथियार क्या, देसी बंदूक है. आपराधिक घटनाओं में भी इसका इस्तेमाल होता है. उनके पास हथियार थे, उसमें से एक गोली भी चली है. उस हथियार का बारूद उतना ही घातक होता है, किसी को लग जाए तो पक्का मरेगा. अगर दूर से देखेंगे तो राइफल और उसमें बहुत अंतर नहीं होता है. अगर एक समूह सात-सात हथियार लेकर चलेगा तो आपको या मुझे क्या करना चाहिए?’

फैक्ट फाइंडिंग टीम द्वारा जारी एक वीडियो में ब्रह्मदेव के बड़े भाई बलराम सिहं कहते हैं, ‘प्रशासन की ओर से हमें 35 हजार रुपये नकद राशि और चावल दिया गया. उन्होंने हमसे कहा कि वह लोग गलत भी हैं और हाथ जोड़कर माफी मांगी.’

उन्होंने कहा, ‘प्रशासन ने हमसे कुछ कागजों पर साइन करवाया, लेकिन हमें कोई कागज नहीं दिया. कागज पर जो कुछ लिखा था, वह हमें पढ़कर नहीं समझाया गया कि उसमें क्या लिखा है.’

टीम ने मामले की न्यायिक जांच कराने, ब्रह्मदेव की पत्नी को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने और उनके बेटे की परवरिश, शिक्षा और रोजगार की पूरी जिम्मेदारी लेने के साथ ही बाकी पांचों पीड़ितों को पुलिस द्वारा उत्पीड़न के लिए मुआवजा दिए जाने की मांग की.

फैक्ट फाइंडिंग टीम ने यह भी मांग की कि किसी भी गांव की सीमा में सर्च अभियान चलाने से पहले पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में ग्राम सभा व पारंपरिक ग्राम प्रधानों एवं अन्य क्षेत्रों में पंचायत प्रतिनिधियों की सहमति ली जाए. पांचवीं अनुसूची प्रावधानों और पेसा को पूर्ण रूप से लागू किया जाए.

इस पर एसपी आनंद कहते हैं, ‘अगर हम अभियान जानकारी दे देंगे तो अभियान कैसे होगा. पूछा तो यह जाना चाहिए कि क्या उन लोगों ने यह जानकारी दी कि हम हथियार लेकर शिकार खेलने जा रहे हैं. पुलिस का पहला काम है कि जिसके पास भी ऐसा अवैध हथियार है, उसको जब्त किया जाए. ऐसी गतिविधि को कभी मंजूरी नहीं दी जा सकती है.’

टीम ने यह भी मांग की कि मामले के निष्पक्ष जांच के लिए न्यायिक कमीशन का गठन हो. ब्रह्मदेव की हत्या और ग्रामीणों पर गोली चलाने के लिए जिम्मेदार सुरक्षा बल के जवानों और पदाधिकारियों पर प्राथमिकी दर्ज की जाए. पुलिस द्वारा ब्रह्मदेव समेत छह आदिवासियों पर दर्ज प्राथमिकी को रद्द किया जाए.

इस पर एसपी आनंद कहते हैं, ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार हमने कार्रवाई की है. हमने सीआईडी को जांच के लिए भी लिखा है.’

द वायर  ने लातेहार के उपायुक्त अबू इमरान से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. उनसे बातचीत होने पर उनके बयान को इस रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा.

फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट में इस बात पर भी चिंता जताई गई कि पिछली भाजपा सरकार की दमनकारी और जन विरोधी नीतियों के विरुद्ध मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में महागठबंधन को स्पष्ट जनादेश मिलने के बावजूद अभी भी मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं एवं आदिवासियों पर प्रशासनिक हिंसा और पुलिसिया दमन थमा नहीं है.