केन-बेतवा लिंक: नए जल अध्ययन की मांग हुई थी ख़ारिज, 18 वर्ष पुराने आंकड़ों के पर हुआ क़रार

विवादित केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के समझौते को अंतिम रूप देते समय केन नदी में जल की मात्रा का पता लगाने के लिए नया अध्ययन कर आंकड़ों को अपडेट करने की ज़रूरत महसूस की गई. लेकिन एक अधिकारी के निर्देश पर पुराने डेटा को बरक़रार रखा गया और अंत में इसी आधार पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने क़रार पर दस्तख़त कर दिए.

/
The Union Minister for Jal Shakti, Shri Gajendra Singh Shekhawat chairing a National Conference of States/ UTs Ministers on Jal Jeevan Mission, in New Delhi on March 13, 2021.The Secretary, Ministry of Jal Shakti, Shri Pankaj Kumar is also seen.

विवादित केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के समझौते को अंतिम रूप देते समय केन नदी में जल की मात्रा का पता लगाने के लिए नया अध्ययन कर आंकड़ों को अपडेट करने की ज़रूरत महसूस की गई. लेकिन एक अधिकारी के निर्देश पर पुराने डेटा को बरक़रार रखा गया और अंत में इसी आधार पर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने क़रार पर दस्तख़त कर दिए.

The Union Minister for Jal Shakti, Shri Gajendra Singh Shekhawat chairing a National Conference of States/ UTs Ministers on Jal Jeevan Mission, in New Delhi on March 13, 2021.<br /> The Secretary, Ministry of Jal Shakti, Shri Pankaj Kumar is also seen.
जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ मंत्रालय के सचिव पंकज कुमार. (फोटो साभार: पीआईबी)

(इंटरन्यूज़ के अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के सहयोग से की गई यह रिपोर्ट केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना पर छह लेखों की शृंखला का तीसरा भाग है. पहला और दूसरा भाग यहां पढ़ सकते हैं.)

नई दिल्ली: किसी भी परियोजना के चलते पर्यावरण एवं जनमानस को नुकसान होने की संभावना को ध्यान में रखते हुए उस प्रोजेक्ट की उपयोगिता एवं उसके प्रभावों पर स्वतंत्र रूप से गंभीर अध्ययन कराने की मांग की जाती रही है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि इससे पड़ने वाले प्रभावों को कम किया जा सके व उससे हुई क्षति की उचित भरपाई हो सके.

हालांकि जिस कार्य को करने में विशेषज्ञ महीनों मेहनत करते हैं, उसे प्रशासन के अधिकारी लीपापोती करते हुए एक फोन कॉल करके कर सकते हैं. ऐसा काम मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी और ‘विनाशकारी’ का तमगा हासिल कर चुकी केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को लेकर किया गया था, जिस पर इसी साल मार्च महीने में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच क़रार पर दस्तखत किए गए हैं.

इस परियोजना के एग्रीमेंट को अंतिम रूप देने के दौरान बीच में ये महसूस किया गया था कि केन नदी पर फिर से अध्ययन कर इसके आंकड़ों को अपडेट करने की जरूरत है, लेकिन महज एक अधिकारी के निर्देश पर पुराने डेटा को ही बरकरार रखा गया और आगे चलकर सरकार ने इस पर डील साइन कर दी गई.

द वायर  द्वारा प्राप्त किए गए मंत्रालय के आंतरिक दस्तावेजों से ये जानकारी सामने आई है.

केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट इस परिकल्पना पर आधारित है कि केन बेसिन में पानी की मात्रा ज्यादा है, इसलिए केन नदी पर दौधन बांध और नहर बनाकर इस पानी को बेतवा बेसिन में डाला जा सकता है. हालांकि सरकार ने आज तक उन आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया है जिसके आधार पर उन्होंने ये दावे किए हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार इसी वजह से आंकड़े सार्वजनिक नहीं कर रही है क्योंकि उन्हें भी पता है कि केन नदी में इतना पानी नहीं है कि उसे कहीं और ले जाया जाए. आरोप है कि इस संबंध में सरकार ने जो भी अध्ययन करवाए हैं, उनमें काफी त्रुटियां हैं.

लेकिन इन आपत्तियों को दरकिनार कर इस परियोजना के पहले चरण में केन नदी के पास में स्थित दौधन गांव में एक बांध बनाया जाना है, जो 77 मीटर ऊंचा और 2,031 मीटर लंबा होगा.

इसके अलावा 221 किलोमीटर लंबी केन-बेतवा लिंक नहर बनाई जाएगी, जिसके जरिये केन का पानी बेतवा बेसिन में लाया जाएगा. साथ ही 1.9 किलोमीटर और 2.5 किलोमीटर लंबी दो सुरंग भी बनाई जाएगी.

दौधन बांध के चलते 9,000 हेक्टेयर का क्षेत्र डूबेगा, जिसमें से सबसे ज्यादा 5,803 हेक्टेयर पन्ना टाइगर रिजर्व का होगा, जो कि बाघों के रहवास का प्रमुख क्षेत्र माना जाता है.

इस परियोजना के तहत मध्य प्रदेश और यूपी के बीच जल बंटवारे को लेकर भी काफी विवाद था, जिसके चलते यह प्रोजेक्ट काफी लंबे समय से लटका हुआ था.

केन नदी. (फोटो: धीरज मिश्रा/द वायर)

इसी का समाधान करने के लिए 23 अप्रैल 2018 को जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय) के सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी, जिसमें तत्कालीन सचिव यूपी सिंह ने सुझाव दिया कि नॉन-मानसून सीजन में मध्य प्रदेश को 1,796 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) और उत्तर प्रदेश को 788 एमसीएम पानी दिया जा सकता है. हालांकि यूपी ने नॉन मानसून (अक्टूबर से मई) में 935 एमसीएम पानी की मांग की थी.

एक क्यूबिक मीटर में 1,000 लीटर और एक एमसीएम में एक अरब लीटर पानी होता है. 

बहरहाल इस बैठक के करीब डेढ़ साल बाद केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना को लागू कर रही जल शक्ति मंत्रालय की एजेंसी राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (एनडब्ल्यूडीए) ने सोचा कि जिस आधार पर राज्यों को पानी का आवंटन किया जा रहा है, उसके अनुसार नदी में पानी की उपलब्धता की जांच की जानी चाहिए.

इसलिए एनडब्ल्यूडीए के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर मुजफफ्फर अहमद ने 26 नवंबर 2019 को लखनऊ स्थित अपने विभाग के चीफ इंजीनियर (नॉर्थ) को पत्र लिखा और उनसे कहा कि केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट पर तैयार किए गए व्यापक रिपोर्ट में दौधन बांध तक पानी पहुंचने के नवीनतम आंकड़ों को शामिल करते हुए उसे अपडेट कर हेडक्वार्टर को भेजें.

इस पत्र को एनडब्ल्यूडीए के ग्वालियर स्थित इन्वेस्टिगेशन सर्किल के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर और इन्वेस्टिगेशन डिविजन के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के पास भी भेजा गया था.

हालांकि दस्तावेजों से पता चलता है कि चीफ इंजीनियर (नॉर्थ) के निर्देश पर कोई नया अध्ययन नहीं कराया गया और पुराने आंकड़ों के आधार पर ही रिपोर्ट को अपडेट कर भेज दिया गया. 

विभाग ने एक अजीबोगरीब दलील देते हुए कहा कि यदि नई स्टडी कराई जाती है तो इसमें छह-आठ महीने का समय लगेगा और इससे यदि कोई नए तथ्य निकलकर आ गए तो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच जल बंटवारे को लेकर फिर से विवाद खड़ा हो जाएगा.

एग्जीक्यूटिव इंजीनियर राघवेंद्र कुमार गुप्ता ने साल 2020 के जनवरी महीने की सात तारीख को इन्वेस्टिगेशन सर्किल के सुपरिटेंडेंट इंजीनियर को एक पत्र लिखकर कहा, ‘केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत उत्तर प्रदेश के लिए नॉन-मानसून सीजन में 788 एमसीएम जल आवंटित कर नवीनतम आंकड़ों के आधार पर सिमुलेशन स्टडी (Simulation Study) एवं जल योजना इत्यादि को अपडेट कर व्यापक (कॉम्प्रिहेंसिव) रिपोर्ट में आवश्यक संशोधन एवं सुधार करने के निर्देश प्राप्त हुए हैं.’

इस संबंध में उन्होंने आगे कहा, ‘तदोपरांत मुख्य अभियंता (उत्तर) द्वारा दूरभाष पर उक्त अध्ययन को साल 2003-04 के आंकड़ों के आधार पर बिना अपडेट किए ही सिमुलेशन स्टडी एवं जल योजना को संशोधित कर व्यापक रिपोर्ट को संशोधित करने के निर्देश प्राप्त हुए हैं.’

हाइड्रोलॉजिकल स्टडी न कराने के संबंध में राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण के अधिशासी अभियंता द्वारा लिखा गया पत्र.

सिमुलेशन स्टडी के जरिये नदी के विभिन्न स्थानों पर इसके बहाव, पानी की मात्रा इत्यादि का पता लगाया जाता है. 

गुप्ता ने कहा कि यदि व्यापक रिपोर्ट 2019 तक के आंकड़ों के आधार पर अपडेट करानी है, तो इसके लिए पूरी हाइड्रोलॉजिकल स्टडी (जल वैज्ञानिक अध्ययन) पुन: संपादित करानी होगी, जिसके लिए रुड़की के राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (एनआईएच) को भी अध्ययन में शामिल करने की आवश्यकता होगी.

उन्होंने कहा, ‘जिसके कारण उक्त कार्य को पूर्ण करने में लगभग 6-8 महीने का समय लगेगा. साथ ही यह भी लिखा है कि 6,590 एमसीएम 75% डिपेंडेबल यील्ड [Dependable Yield] पर दोनों राज्य सहमत हैं और यह मुद्दा Settled है.’

75% डिपेंडेबल यील्ड का अर्थ है कि नदी में पानी की मात्रा को जानने के लिए जितने सालों का अध्ययन कराया गया है, उसमें से 75 फीसदी समय नदी में इतना पानी था. केंद्र का दावा है कि इस फार्मूला के आधार पर दौधन बांध में एक साल में 6,590 एमसीएम पानी इकट्ठा होगा.

एग्जीक्यूटिव इंजीनियर ने कहा कि हाइड्रोलॉजिकल स्टडी को 2019 तक अपडेट कराने के बाद 75% डिपेंडेबल यील्ड में यदि कोई परिवर्तन आता है तो उस दशा में उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के बीच प्रस्तावित समझौता प्रक्रिया में नया मोड़ आ सकता है और जल बंटवारे को लेकर फिर से गंभीर समस्या पैदा हो सकती है.

चूंकि पुरानी रिपोर्ट साल 1981-82 से 2003-04 के आंकड़ों पर आधारित थी, इसलिए विभाग से कहा गया था कि वे केन नदी पर बनी व्यापक रिपोर्ट को साल 2003-04 से 2018-19 (15 साल) तक के आंकड़ों के आधार पर अपडेट करें.

इसके तहत विभिन्न डेटा इकट्ठा करना था, जिसमें बारिश के आंकड़े, नदी के ऊपरी क्षेत्रों में पानी का इस्तेमाल, क्षेत्र के मौजूदा, निर्माणाधीन और प्रस्तावित योजनाओं के आंकड़े, लैंड यूज डेटा तथा केन बेसिन के कैचमेंट से बांदा तक फसल पैटर्न के आंकड़े इत्यादि शामिल थे.

इसके अलावा केन बेसिन के कैचमेंट से बांदा तक सिंचाई के लिए साल 2050 तक की पानी की जरूरतों का आकलन करने को कहा गया था. इसके साथ ही नदी की हाइड्रोलॉजिकल स्टडी- जिसमें नदी में बहाव, उससे पानी के इस्तेमाल, पानी की मात्रा इत्यादि का आकलन किया जाता है, करने को कहा गया था. इस काम को रूड़की के एनआईएच को सौंपने पर विचार किया गया था.

केन नदी पर नई स्टडी नहीं करने की दलील देता एनडब्ल्यूडीए का ये नोट.

हालांकि विभाग ने कहा कि चूंकि इस काम में छह से आठ महीने का समय लगेगा और वर्तमान में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच जल बंटवारे का मामला तय किया जा चुका है, इसलिए ऐसे मोड़ पर पुराने अध्ययन को अपडेट नहीं किया जाना चाहिए.

एनडब्ल्यूडीए की वेबसाइट पर केन-बेतवा लिंक परियोजना को लेकर अक्टूबर 2018 में आई व्यापक रिपोर्ट ही उपलब्ध है और इसी आधार पर मध्य प्रदेश और यूपी के बीच एग्रीमेंट साइन कराया गया है. इसमें हाइड्रोलॉजिकल स्टडी के 2003-04 तक के ही आंकड़े हैं.

इस पहले अप्रैल 2010 में इस परियोजना की डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) प्रकाशित की गई थी.

सरकार ने कहा है कि दौधन बांध तक केन बेसिन में करीब 6,590 एमसीएम पानी इकट्ठा होगा, जिसमें से बेसिन के ऊपरी क्षेत्र (मध्य प्रदेश) में उपयोग के लिए 2,266 एमसीएम पानी रखने के बाद मध्य प्रदेश को 2,350 एमसीएम और उत्तर प्रदेश को 1,700 एमसीएम पानी दिया जाएगा.

इसमें से नॉन-मानसून सीजन में मध्य प्रदेश को 1,834 एमसीएम और उत्तर प्रदेश को 750 एमसीएम पानी दिया जाएगा. हालांकि किस आधार पर यूपी को 750 एमसीएम पानी का फैसला किया गया है, इसका कोई स्पष्ट आधार नहीं बताया गया है.

जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग के सचिव की अध्यक्षता में तीन सितंबर 2020 को हुई एक बैठक के मिनट्स के मुताबिक, केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी), राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण और यूपी सरकार के अधिकारियों की एक संयुक्त टीम उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नॉन-मानसून सीजन में 935 एमसीएम पानी मांगने के दावों की पड़ताल करने गई थी.

टीम ने पाया कि यूपी की मांग सही है और उन्हें सिंचाई के लिए क्षेत्र में इतने पानी की जरूरत है. हालांकि केंद्र ने ये निर्णय लिया कि यूपी को 750 एमसीएम पानी दिया जाएगा और उनकी बाकी की जरूरतों को मानसून सीजन के दौरान क्षेत्र के खाली टैंकों/स्टोरेज को भरकर किया जाएगा.

लेकिन दस्तावेजों से पता चलता है कि मध्य प्रदेश और यूपी के लिए जल बंटवारा करते हुए नवीनतम आंकड़ों के साथ कोई अध्ययन नहीं किया गया कि जितना पानी उन्हें आवंटित किया जा रहा है, उतना नदी में है भी या नहीं.

साल 2003-04 तक के ही आंकड़ों के आधार पर इसी साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने दोनों राज्यों के बीच डील साइन करवा दी.

खुद एनडब्ल्यूडीए भी इस तथ्य को लेकर आश्वस्त नहीं है कि दौधन बांध में 6590 एमसीएम पानी इकट्ठा होगा. द वायर  द्वारा प्राप्त किए एग्रीमेंट के ड्राफ्ट से पता चलता है एजेंसी का कहना था कि यहां पर 6,188 एमसीएम पानी इकट्ठा होगा.

इसे लेकर जब मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सवाल ने उठाया कि अप्रैल 2010 के डीपीआर में कहा गया है कि यहां पर 6,590 एमसीएम पानी जमा होगा, तो इस पर एनडब्ल्यूडीए ने कहा कि नदी की हाइड्रोलॉजी बदलती रहती है, इसलिए इसी आंकड़े को ही रखना ठीक होगा. यह दोनों राज्यों की जरूरतों को पूरी कर देगा.

केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट पर किए गए एग्रीमेंट के अनुसार दोनों राज्यों की जरूरतों को पूरी करने के लिए कम से कम 6,316 एमसीएम (2,266 एमसीएम (मध्य प्रदेश अपस्ट्रीम) +2,350 एमसीएम (मध्य प्रदेश)+ 1,700 एमसीएम (उत्तर प्रदेश)) पानी की जरूरत होगी, इसलिए एनडब्ल्यूडीए के मुताबिक दौधन बांध में 6,188 एमसीएम पानी इकट्ठा होने के आंकड़े के अनुसार यह दोनों राज्यों की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकेगा, जो पूरी परियोजना को ही निष्फल साबित कर देगा.

इसके अलावा द वायर  के साथ बातचीत में एनडब्ल्यूडीए के महानिदेशक भोपाल सिंह ने कहा है प्राकृतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक साल में 494 एमसीएम पानी की आवश्यकता होगी.

इस तरह यदि 6,590 एमसीएम पानी के आंकड़े को भी ले लिया जाए, तो भी यह परियोजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहेगा क्योंकि प्राकृतिक जरूरतों को मिलाकर 6,810 एमसीएम जल की आवश्यकता होगी.

वो स्थान जहां केन नदी पर दौधन बांध बनाया जाना है. (फोटो: धीरज मिश्रा/द वायर)

यह सरकार के उस दावे पर गंभीर सवालिया निशान खड़े करता है, जहां उन्होंने कहा है कि केन नदी में पानी की उपलब्धता ज्यादा है.

हालांकि एनडब्ल्यूडीए के महानिदेशक सिंह ने दावा किया है इस प्रोजेक्ट के चलते इकोलॉजिकल जरूरतों के लिए अतिरिक्त पानी मिलेगा.

उन्होंने कहा, ‘इस क्षेत्र की इकोलॉजिकल जरूरतों को पूरी करने के लिए 494 एमसीएम पानी की आवश्यकता होगी, इसलिए इस परियोजना के तहत मध्य प्रदेश को 2,350 एमसीएम और उत्तर प्रदेश को 1,700 एमसीएम पानी देने के बाद बाकी बचे हुए जल को इस दिशा में इस्तेमाल किया जा सकेगा.’

लेकिन भोपाल सिंह ने ये नहीं बताया कि किस आधार पर वे अतिरिक्त पानी होने का दावा कर रहे हैं.

वैसे भी साल 1982 से लेकर 2010 के बीच सरकारी विभागों द्वारा ही केन नदी पर कई अध्ययन कराए गए हैं, जिसमें पानी की उपलब्धता को लेकर अलग-अलग आंकड़े सामने निकल कर आए हैं. 

इसमें से सबसे कम 4,490 एमसीएम से लेकर 6,590 एमसीएम तक पानी इकट्ठा होने के दावे किए गए हैं. विशेषज्ञों ने सवाल उठाया है कि आखिर इसमें से कौन से आंकड़े को सही माना जाए? इनकी स्वतंत्र विशेषज्ञों के जरिये जांच भी नहीं कराई गई है.

साल 2018 में केन नदी को डॉक्यूमेंट करने और उससे जुड़े लोगों की कहानियां रिकॉर्ड करने के लिए इसके एक छोर से दूसरे छोर तक पैदल यात्रा करने वाले एक्टिविस्ट और रिसर्चर सिद्धार्थ अग्रवाल कहते हैं कि कोई भी यदि इन इलाकों में जाएगा, वो आसानी से बता सकता है कि यहां इतना पानी नहीं है कि इसे कहीं और ले जाया जाए.

उन्होंने कहा, ‘पहली बात तो ये है कि केन नदी से जुड़े गांवों के काफी लोगों को ये पता ही नहीं है कि ऐसी कोई परियोजना आने वाली है. जिनको पता भी है, उसमें से भी बहुत कम को सही बात पता है. ज्यादातर लोगों को ये लगता है कि नदी जोड़ने के बाद केन का पानी बेतवा और बेतवा का पानी केन में जाएगा. इस तरह जहां पानी कम होगा, उसकी भरपाई दूसरी नदी से हो जाएगी. जबकि हकीकत में ऐसा है ही नहीं.’

अग्रवाल ने कहा कि जब लोगों को इस परियोजना की हकीकतों से रूबरू कराया गया तो ज्यादातर लोगों ने यही कहा कि इससे तो नदी बुरी तरह प्रभावित होगी. 

उन्होंने कहा कि इसमें एक समस्या ये भी है कि पन्ना टाइगर रिजर्व के ऊपरी क्षेत्र में जो लोग जैविक खेती करते हैं, जिसमें से अधिकतर आदिवासी हैं, उनके विकास के बारे में नहीं सोचा गया है और इस प्रोजेक्ट से उन्हें रासायनिक खेती की ओर धकेला जाएगा, जो बेहद घातक साबित होगा.

सुप्रीम कोर्ट कमेटी ने उठाए थे सवाल

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) ने केन-बेतवा लिंक की विस्तृत जांच कर 30 अगस्त 2019 को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि यदि इस परियोजना का लागू किया जाता है तो 10,500 हेक्टेयर में फैले पूरे वन्यजीवों का घर उजाड़ हो जाएगा, जो पन्ना टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र है.

इस प्रोजेक्ट के तहत वन भूमि के 6,017 हेक्टेयर भूभाग को खत्म किया जाएगा, जिसके चलते कम से कम 23 लाख पेड़ कटेंगे. इसके साथ-साथ घड़ियाल अभयारण्य और गिद्धों का प्रजनन केंद्र भी गंभीर रूप से प्रभावित होगा.

ऐसे कई दुष्प्रभावों को संज्ञान में लेते हुए समिति ने कहा था कि सरकार अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाश सकती है. 

सरकार का दावा है इसके जरिये कुल 9.04 लाख हेक्टेयर की सिंचाई होगी, जिसमें से 6.53 लाख हेक्टेयर मध्य प्रदेश और 2.51 लाख हेक्टेयर उत्तर प्रदेश का क्षेत्र सिंचित होगा. इसके अलावा दोनों राज्यों के 62 लाख लोगों को पेयजल मुहैया कराने का भी प्रावधान किया गया है.

इस पर सीईसी ने कहा कि केन बेसिन में पहले से ही 11 बड़े और मध्यम परियोजनाएं तथा 171 छोटी सिंचाई परियोजनाएं चल रही हैं, इन्हीं का क्षमता विस्तार कर इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है.

केन नदी पर बना गंगऊ बांध. इससे थोड़ी दूरी पर ही दौधन बांध बनाया जाना है. (फोटो: धीरज मिश्रा/द वायर)

सुप्रीम कोर्ट कमेटी ने इस पूरे प्रोजेक्ट की डिजाइन पर ही सवाल उठाते हुए कहा था कि डीपीआर के मुताबिक अपर बेतवा बेसिन में अनुमानित 384 एमसीएम पानी की कमी इसी वजह से है क्योंकि बेतवा बेसिन में बनाए गए पूर्ववर्ती सिंचाई परियोजनाओं के तहत यही वादा किया गया था कि बेतवा बेसिन में इकट्ठा होने वाले पूरे पानी को इसके निचले क्षेत्रों में भेजा जाएगा. 

सीईसी ने कहा कि अपर बेतवा बेसिन की कीमत पर निचले बेतवा बेसिन में सिंचाई व्यवस्था करने की त्रुटिपूर्ण प्लानिंग से सबक लेकर इस परियोजना के तहत ऐसी किसी गुंजाइश को खत्म करने पर विचार किया जाना चाहिए.

समिति ने कहा कि सरकार केन नदी के पानी को इसके निचले क्षेत्रों और बेतवा के अपर बेसिन में भेजने का जो दावा कर रही है, उसके चलते अपर केन बेसिन के किसान जरूर जल से वंचित हो जाएंगे, नतीजन इस प्रोजेक्ट की उन्हें भारी कीमत चुकानी होगी.

इसलिए केन बेसिन के ऊपरी क्षेत्रों में सिंचाई की बेहतर सुविधा करने की संभावनाओं को तलाशे बिना ये कहना कि केन बेसिन के ‘अतिरिक्त’ पानी को बेतवा बेसिन में भेजा जा सकता है, यह अपरिपक्व प्रतीत होता है जबकि इस परियोजना के तहत करदाताओं के बेतहाशा पैसे खर्च होने वाले हैं. 

इसके अलावा समिति ने कहा था कि केन और बेतवा नदी के क्षेत्र में औसतन करीब 90 सेमी ही वर्षा होती है, इसलिए सूखे के समय इसके गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं क्योंकि तब दोनों नदियों के बेसिन में उतना पानी इकट्ठा नहीं होगा, जितना की विभिन्न अध्ययनों में बताया गया है.

हालांकि केंद्र ने इन सभी चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया है.