जिस हवा में भारतीय सांस लेते हैं, वह दिन-ब-दिन जहरीली होती जा रही है. एक नए शोध में कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण हर दिन औसतन दो लोग मारे जाते हैं.
मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट’ के अनुसार, हर साल वायु प्रदूषण के कारण 10 लाख से ज्यादा भारतीय मारे जाते हैं और दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से कुछ शहर भारत में हैं.
इस हुए जारी हुआ यह अध्ययन वर्ष 2010 के आंकड़ों पर आधारित है. इसमें कहा गया है कि वैश्विक तौर पर 27 से 34 लाख समय पूर्व जन्म के मामलों को पीएम 2.5 के प्रभाव से जोड़ा जा सकता है और इन मामलों में सबसे बुरी तरह दक्षिण एशिया प्रभावित होता है. यहां 16 लाख जन्म समय पूर्व होते हैं.
पीएम 2.5 बहुत ही सूक्ष्म कण होते हैं जो वायु प्रदूषण के कारक हैं. ये इतने छोटे होते हैं कि सांस के रास्ते फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं और सांस संबंधी बीमारियों जैसे की अस्थमा को जन्म देते हैं. इसके अलावा इन कणों से वातावरण में दृश्यता कम हो जाती है. इसके अलावा खून में मिलकर दिल से संबंधित बीमारियों को भी जन्म देते हैं.
शोध में कहा गया है कि वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण विस्तृत तौर पर एक-दूसरे से जुड़े हैं और इनसे एक साथ निपटे जाने की जरूरत है. उत्तर भारत में छाई धुंध पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा रही है. हर मिनट भारत में दो ज़िंदगियां वायु प्रदूषण के कारण चली जाती हैं.
अध्ययन कहता है कि वायु प्रदूषण सभी प्रदूषणों का सबसे घातक रूप बनकर उभरा है. दुनियाभर में समय से पहले होने वाली मौतों के क्रम में यह चौथा सबसे बड़ा खतरा बनकर सामने आया है. 48 प्रमुख वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन जारी किया और पाया कि पीएम 2.5 के स्तर या सूक्ष्म कणमय पदार्थ (फाइन पार्टिक्युलेट मैटर) के संदर्भ में पटना और नई दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर हैं. ये कण दिल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं.
एक आकलन के मुताबिक वायु प्रदूषण की चपेट में आने पर हर दिन 18 हज़ार लोग मारे जाते हैं. इस तरह यह स्वास्थ्य पर मंडराने वाला दुनिया का एकमात्र सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा बन गया है. विश्व बैंक का आकलन है कि यह श्रम के कारण होने वाली आय के नुकसान के क्रम में वैश्विक अर्थव्यवस्था को 225 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचाता है.
कई भारतीय रिपोर्टों से विरोधाभास रखते हुए द लांसेट ने कहा कि कोयले से संचालित होने वाले बिजली संयंत्र वायु प्रदूषण में 50 प्रतिशत का योगदान देते हैं.
अध्ययन में दुनियाभर से जानकारी ली गई है. लगभग 16 संस्थान इस पहल के अकादमिक साझेदार हैं. इनमें यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, सिंगुआ यूनिवर्सिटी और सेंटर फॉर क्लाइमेट एंड सिक्योरिटी आदि शामिल हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन में स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन के प्रमुख डॉ. डी. कैंपबेल-लेंड्रम ने कहा, डब्ल्यूएचओ विभिन्न देशों को उनके सामने मौजूद स्वास्थ्य संबंधी खतरों, कम कार्बन वाले भविष्य से जुड़े अवसरों और आज के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे से निपटने के लिए जरूरी सहयोग के साक्ष्य उपलब्ध कराने के लिए मिलकर काम कर रहा है.