पेगासस प्रोजेक्ट: सर्विलांस के लिए न केवल राहुल गांधी बल्कि उनके पांच दोस्तों और पार्टी के मसलों पर उनके साथ काम करने वाले दो क़रीबी सहयोगियों के फोन भी चुने गए थे.
नई दिल्ली: भारत में सिर्फ पत्रकार ही नहीं बल्कि विपक्षी दल के नेताओं के फोन पर भी नजर रखी जा रही थी. यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अपने राजनीतिक विरोधियों की हैकिंग कराने के लिए सत्ता किस स्तर तक पहुंच गई है.
पेगासस प्रोजेक्ट के तहत द वायर और इसके मीडिया पार्टनर इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी का कम से कम दो मोबाइल फोन भारत के उन 300 प्रमाणित नंबरों की सूची में शामिल हैं, जिनकी निगरानी करने के लिए इजराइल के एनएसओ ग्रुप के एक भारतीय क्लाइंट द्वारा पेगासस स्पायवेयर का इस्तेमाल करने की योजना बनाई गई थी.
गांधी की हैंकिग करने की सनक इस स्तर तक थी कि उनके पांच करीबियों पर भी निशाना बनाने की तैयारी की गई थी, जबकि इन पांचों में से कोई भी राजनीतिक या सार्वजनिक कामों संबंधी भूमिका में नहीं है.
वैसे तो गांधी अब इस नंबर का इस्तेमाल नहीं करते हैं, लेकिन यह नंबर लीक हुए उस बड़े डेटाबेस का हिस्सा है, जिसे फ्रांसीसी मीडिया नॉन-प्रॉफिट फॉरबिडेन स्टोरीज ने प्राप्त किया है और इसे 16 न्यूज संस्थानों के साथ साझा किया है, जिसमें द वायर, द गार्जियन, वॉशिंगटन पोस्ट, ल मोंद इत्यादि शामिल हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल के तकनीकी लैब द्वारा इस सूची में शामिल फोन पर की गई फॉरेंसिक जांच से यह स्पष्ट हुआ है कि इसमें से 37 डिवाइस में पेगासस स्पायवेयर था, जिसमें से 10 भारतीय व्यक्तियों से जुड़े हुए हैं.
राहुल गांधी के फोन की फॉरेंसिक जांच नहीं हो पाई है, क्योंकि फिलहाल वे उस हैंडसेट का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, जिसे वे 2018 के मध्य और 2019 के बीच किया करते थे और इसी दौरान उनका नंबर निगरानी सूची में शामिल किया गया था.
फॉरेंसिक जांच नहीं हो पाने के चलते यह स्पष्ट रूप से बताना संभव नहीं है कि गांधी के फोन में पेगासस डाला गया था या नहीं, लेकिन उनके करीबियों से जुड़े कम से कम नौ नंबरों को निगरानी डेटाबेस में पाया जाना ये दर्शाता है कि इसमें राहुल गांधी की मौजूदगी महज इत्तेफाक नहीं है.
गांधी ने द वायर को बताया कि पूर्व में उन्हें संदिग्ध वॉट्सऐप मैसेज प्राप्त हुए थे, जिसके बाद उन्होंने तत्काल अपने नंबर और फोन बदल दिए, ताकि उन्हें निशाना बनाना आसान न हो.
एनएसओ ग्रुप का कहना है कि वे अपने स्पायवेयर सिर्फ सरकार को बेचते हैं. वैसे तो कंपनी ने ये नहीं बताया है कि उसके ग्राहक कौन लोग हैं, लेकिन पेगासस प्रोजेक्ट और इससे पहले सिटिजन लैब द्वारा किए गए इन्वेस्टिगेशन इस ओर इशारा करते हैं कि एक या इससे अधिक आधिकारिक एजेंसियां लोगों की निगरानी करने के लिए पेगासस का इस्तेमाल कर रही हैं.
इस अंदेशा को और बल मिलता है क्योंकि मोदी सरकार ने इस मामले में स्पष्ट प्रतिक्रिया देने से बार-बार इनकार किया है, जिसमें पेगासस प्रोजेक्ट का भी सवाल शामिल है कि भारत सरकार ने पेगासस का इस्तेमाल किया है या नहीं.
राहुल गांधी पर निगरानी करने की योजना ऐसे समय पर बनाना, जब वे विपक्षी कांग्रेस के अध्यक्ष थे और नरेंद्र मोदी के खिलाफ साल 2019 के आम चुनाव में अपनी पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे, पूरी चुनावी प्रक्रिया की अखंडता पर गंभीर सवाल खड़े करता है.
साल 1972 में अमेरिका में रिचर्ड निक्सन ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के कार्यालयों पर जासूसी कराने की कोशिश की थी, जिसे वॉटरगेट स्कैंडल के नाम से जाना जाता है. इसके कारण बाद में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.
इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए गांधी ने पेगासस प्रोजेक्ट को बताया, ‘जैसा आप बता रहे हैं, यदि इस तरह की निगरानी मेरी या किसी भी विपक्षी नेता या फिर किसी भी नागरिक की गई है, तो यह बिल्कुल ही गैरकानूनी और निंदनीय है. यदि आपकी जानकारी सही है, तो इस स्तर की निगरानी व्यक्तियों की गोपनीयता पर हमले से आगे की बात है. यह हमारे देश की लोकतांत्रिक नींव पर हमला है. इसकी गहन जांच होनी चाहिए और जिम्मेदार लोगों की पहचान कर उन्हें सजा दी जाए.’
राहुल गांधी के निजी फोन के अलावा उनके दो करीबी सहयोगियों- अलंकार सवाई और सचिन राव- के नंबर भी लीक हुए डेटाबेस में शामिल हैं.
राव कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य हैं, जो वर्तमान में पार्टी कैडर को ट्रेनिंग देते हैं. जबकि सवाई राहुल गांधी के कार्यालय से जुड़े हुए हैं और आमतौर पर अपना अधिकांश समय उनके साथ ही बिताते हैं. सवाई का फोन 2019 में चोरी हो गया था और इस तरह अब यह फॉरेंसिक जांच के लिए उपलब्ध नहीं है, जबकि राव ने कहा कि उनका फोन खराब हो गया है और अब यह स्विच ऑन नहीं होता है.
द वायर ने गांधी के प्रत्येक मित्र और करीबियों को लीक हुए डेटाबेस में निगरानी से संबंधित सूची में उनकी उपस्थिति के बारे में सूचित करने के लिए संपर्क किया. पांच में से तीन इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए सहमत हुए, जबकि बाकी के दो लोगों ने इससे इनकार किया, क्योंकि वे लोगों का ध्यान उनकी ओर जाने का जोखिम नहीं लेना चाहते थे.
जिन तीन दोस्तों ने द वायर से बात की, उसमें से दो महिलाएं हैं, वे निगरानी के लिए निशाना बनाए जाने के विचार से काफी चिंतित थीं और उन्होंने पेगासस जैसे स्पायवेयर से खुद को बचाने के बारे में सलाह मांगी.
वे हैरान थीं कि आखिर क्यों किसी आधिकारिक एजेंसी ने उन्हें 2019 के मध्य में निशाना बनाने के लिए चिह्नित किया था. उन्हें इसका कोई कारण समझ नहीं आया.
तीन में से दो अब उस हैंडसेट का इस्तेमाल नहीं करते हैं, जबकि तीसरे ने कहा कि वे अपने मौजूदा डिवाइस की फॉरेंसिक जांच करवाने के बजाय अपना फोन बदलना पसंद करेंगे.
चूंकि राहुल गांधी के इन पांच करीबियों में से कोई भी सार्वजनिक जीवन में नहीं है, इसलिए उनके अनुरोध पर उनकी निजता की रक्षा के लिए पेगासस प्रोजेक्ट उनके नामों को सार्वजनिक नहीं कर रहा है.