2018 में जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की घोषणा के बाद आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने अक्टूबर 2019 में राष्ट्रपति भवन में आरटीआई याचिका दायर कर 18 बिंदुओं पर जवाब मांगा था. केंद्रीय सूचना आयोग का कहना है कि राष्ट्रपति भवन ने बिना उचित कारण बताए गोपनीयता का हवाला देकर इसका जवाब देने से इनकार किया है.
नई दिल्लीः केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) का कहना है कि राष्ट्रपति भवन ने 2018 में जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की घोषणा और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन बिल 2019 को लेकर सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत पूछे गए सवाल पर जवाब देने से छूट का दावा किया है.
सीआईसी का कहना है कि राष्ट्रपति भवन ने बिना उचित कारण और औचित्य बताए गोपनीयता का हवाला देकर जवाब देने से इनकार किया है.
सीआईसी ने हालांकि, केंद्रीय जन सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) और राष्ट्रपति भवन सचिवालय में विशेष ड्यूटी पर तैनात अधिकारी को आरटीआई आवेदन की दोबारा जांच करने और इसका उचित जवाब देने के निर्देश दिए हैं.
मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) वाईके सिन्हा का यह आदेश आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक की याचिका पर आया है.
2018 में जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की घोषणा के बाद नायक ने अक्टूबर 2019 में राष्ट्रपति भवन में आरटीआई याचिका दायर कर 18 बिंदुओं पर जवाब मांगा था.
आवेदन में मांगी गई जानकारी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने से जुडे़ घटनाक्रमों और जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो केंद्रशासित प्रदेशों में पुनर्गठन से जुड़ी जानकारी मांगी गई थी.
जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के ऐलान का इतिहास
यह ध्यान देने योग्य है कि जम्मू कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ गठबंधन से भाजपा के बाहर निकलने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने 19 जून 2018 को राज्यपाल एनएन वोहरा को अपना इस्तीफा भेज दिया था.
राज्य में अगली सरकार के गठन के लिए किसी पार्टी या गठबंधन के पास पर्याप्त संख्याबल नहीं होने की वजह से राज्यपाल ने 20 जून को राष्ट्रपति की सहमति के साथ जम्मू कश्मीर के संविधान की धारा 92 के तहत एक घोषणा की थी.
इसके साथ ही छह महीने के लिए राज्यपाल शासन लगा दिया गया था और राज्यपाल द्वारा की गई घोषणा 19 दिसंबर 2018 को समाप्त हो गई थी. जम्मू कश्मीर के संविधान की धारा 92 के तहत छह महीने के बाद इस तरह की घोषणा को जारी रखने का कोई प्रावधान नहीं है.
राज्यपाल की सिफारिश पर और राज्य की मौजूदा स्थिति के संबंध में देश के राष्ट्रपति ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की घोषणा की थी.
राष्ट्रपति की घोषणा को मंजूरी देने वाला प्रस्ताव 28 दिसंबर 2018 को लोकसभा और तीन जनवरी 2019 को राज्यसभा में पारित किया गया. था.
आवेदन में मांगी गई जानकारी
नायक ने अपने आवेदन में उस सटीक तारीख और समय की जानकारी मांगी थी, जब 19 दिसंबर 2018 की घोषणा और संविधान (जम्मू कश्मीर में लागू) आदेश 2019 जारी करने की सिफारिश संबंधी फाइलें राष्ट्रपति के समक्ष रखी गई और इस आदेश पर राष्ट्रपति ने कब हस्ताक्षर किए.
आरटीआई कार्यकर्ता ने यह जानकारी भी मांगी कि राष्ट्रपति सचिवालय से जम्मू कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 का मसौदा कब प्राप्त हुआ था और इसे राष्ट्रपति के विचार के लिए कब रखा गया और उन्होंने इस पर कब हस्ताक्षर किए.
नायक की आरटीआई 31 अक्टूबर 2019 को जमा हुई थी और सीपीआईओ ने दो दिसंबर 2019 को इसका जवाब दिया था.
जवाब से संतुष्ट न होने पर नायक ने 27 जनवरी 2020 को पहली अपील दायर की थी, लेकिन 25 फरवरी को प्रथम अपीलीय प्राधिकारी ने सीपीआईओ का जवाब ही दोहराया. इससे असंतुष्ट नायक ने दूसरी अपील के साथ आयोग का रुख किया था.
इस महीने की शुरुआत में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये हुई सुनवाई के दौरान नायक ने कहा था कि उन्होंने सचिवालय द्वारा प्राप्त विभिन्न फाइलों की तारीख और समय की सामान्य जानकारी मांगी थी कि राष्ट्रपति के समक्ष ये फाइलें कब पेश की गईं और कब इन फाइलों पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हुए.
नायक का कहना है कि बिना किसी कारण या औचित्य के आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 8 (1)(ई) के तहत जवाब नहीं देने की छूट का गलत दावा किया गया.
नायक ने कहा कि उनके द्वारा मांगी गई जानकारी को लोक प्राधिकरण द्वारा डाक एंड फाइल मूवमेंट रजिस्टर और ई-ऑफिस सिस्टम में नियमित तौर पर रखा जाता है. उन्होंने कहा कि उनके द्वारा मांगी गई जानकारी को थोड़े से समय और ऊर्जा खर्च कर डेटाबेस से एक क्लिक कर आसानी से हासिल किया जा सकता है.
राष्ट्रपति भवन की ओर से सुनवाई में मुख्य जनसूचना अधिकारी और ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी आरके शर्मा और संवैधानिक मामलों के सहायक अनुभाग अधिकारी रत्नेश कुमार ने हिस्सा लिया.
सीआईसी सिन्हा के आदेश के मुताबिक, ‘इन्होंने कहा कि अपीलकर्ता द्वारा मांगी गई जानकारी में गोपनीयता के तत्व थे इसलिए धारा 8 (1) (ई) के तहत जवाब देने से छूट ली गई.’
शर्मा ने कहा कि राष्ट्रपति की सहमति वाले बिलों की जानकारी सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं और जिस तारीख को राष्ट्रपति ने सहमति जताई, वह भी मुहैया कराई गई है.
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