मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में महिलाओं के अधिकारों के हनन पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई

सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर ग़ौर किया, जिसमें कहा गया है कि सरकार द्वारा संचालित मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में रह रहीं महिलाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इन समस्याओं में सैनिटरी नैपकिन की कमी, निजता की कमी, सिर का मुंडन कर देने, विकलांगता पेंशन जारी करने की कमी आदि शामिल हैं.

(फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर ग़ौर किया, जिसमें कहा गया है कि सरकार द्वारा संचालित मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में रह रहीं महिलाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इन समस्याओं में सैनिटरी नैपकिन की कमी, निजता की कमी, सिर का मुंडन कर देने, विकलांगता पेंशन जारी करने की कमी आदि शामिल हैं.

(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में रह रहीं महिलाओं के सिर का मुंडन करने, निजता का ख्याल नहीं रखे जाने जैसे मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन पर बुधवार को ‘गंभीर चिंता’ व्यक्त की और ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए केंद्र से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के समक्ष इन मुद्दों को तुरंत उठाने के लिए कहा.

शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों और अन्य लोगों के साथ मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में रह रहे सभी व्यक्तियों का समयबद्ध तरीके से कोविड​​-19 टीकाकरण सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निमहांस) द्वारा 2016 में और राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा 2020 में किए गए कुछ अध्ययनों के आधार पर यह उल्लेख किया गया है कि देश भर में सरकार द्वारा संचालित मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में महिलाओं को कई अपमानजनक स्थितियों और मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है.

पीठ ने कहा कि याचिका में जिन मुद्दों को उठाया गया है, वे गंभीर चिंता का विषय हैं. यह निर्देश दिया जाता है कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय अध्ययनों में व्यक्त की गई उन सभी चिंताओं को समाधान के लिए राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों के समक्ष उठाए.

शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाएं कि अध्ययन में जिन समस्याओं को उजागर किया गया है, उन्हें आवश्यक उपाय करके राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा दूर किया जाए.

पीठ ने अधिवक्ता गौरव बंसल के निवदेन पर गौर किया, जिन्होंने एक अर्जी में कहा कि तीन अध्ययनों में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सरकार द्वारा संचालित मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में रह रहीं महिलाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

वर्ष 2014 में गैर सरकारी संगठन ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’, 2016 में निमहांस और 2020 में राष्ट्रीय महिला आयोग ने यह अध्ययन किया था.

बंसल ने कहा कि इन महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन की कमी, निजता की कमी, सिर का मुंडन, पहचान पत्र जारी करने की कमी (जैसे यूआईडीएआई, आधार कार्ड), विकलांगता प्रमाण पत्र जारी करने की कमी और विकलांगता पेंशन जारी करने की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.

इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने राज्यों द्वारा वृद्धाश्रमों और अन्य आश्रय संस्थानों को मानसिक बीमारी से ठीक हुए लोगों के लिए पुनर्वास गृह के रूप में नामित करने की परंपरा को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह पुनर्वास के उद्देश्य को पूरा नहीं करेगा.

पीठ ने कहा कि देशभर में राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा ठीक हो चुके लोगों के पुनर्वास के लिए सक्रियता से आश्रय स्थल तैयार करना चाहिए और केवल मौजूदा आश्रय स्थलों को इसके लिए निर्धारित करने से उद्देश्य पूरा नहीं होगा.

शीर्ष अदालत ने उल्लेख किया कि महाराष्ट्र ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में अधिक समय तक रहने वाले 186 व्यक्तियों को भिखारियों के घरों या अन्य आश्रय स्थलों में भेजने का फैसला किया है.

पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र ने कहा है कि पुनर्वास गृह बनाने की कवायद छह महीने के भीतर पूरी कर ली जाएगी. पीठ ने निर्देश दिया कि महाराष्ट्र सरकार को छह महीने की अवधि के भीतर पुनर्वास गृहों की स्थापना के निर्देश का पालन करने के लिए कदम उठाने चाहिए.

उत्तर प्रदेश के मामले में पीठ ने कहा कि केंद्र द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि राज्य सरकार ने 75 जिलों में से प्रत्येक में वृद्धाश्रम को पुनर्वास गृह के रूप में फिर से नामित करने के एक पैटर्न का पालन किया है. पीठ ने कहा कि सभी 75 जिलों में इन आश्रय स्थलों का महज नाम बदलने से उद्देश्य पूरा नहीं होगा.

अदालत ने कहा कि यह उचित होगा कि केंद्र प्रगति की निगरानी करे और समय-समय पर अदालत को इससे अवगत कराए, ताकि प्रगति का आकलन करने के लिए प्रत्येक राज्य के मामले को अलग से देखने की आवश्यकता न हो.

पीठ ने कहा कि समाज कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय को अदालत के पिछले और वर्तमान आदेशों के अनुसार पुनर्वास गृह की स्थापना और मानसिक बीमारी से ठीक हुए व्यक्तियों के पुनर्वास की प्रगति की निगरानी के लिए हर महीने बैठकें करनी चाहिए.

पीठ ने मामले में सुनवाई को दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दिया और केंद्र से राज्यों से सभी विवरणों और पुनर्वास गृह की स्थापना में हुई प्रगति के साथ एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा.