कोर्ट ने शहरी बेघरों के लिए दिए गए धन का आॅडिट कराने की हिमायत करते हुए कहा, कार्य विशेष के पैसे का उपयोग दूसरे काम में नहीं होना चाहिए.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को शहरी बेघरों के लिए बसेरे उपलब्ध कराने के निमित्त सरकारी धन के उपयोग का आॅडिट कराने की हिमायत करते हुए कहा कि राज्य इस मद पर धन खर्च नहीं कर रहे हैं और इस वजह से बेघर लोग परेशान हो रहे हैं.
शीर्ष अदालत ने केंद्र द्वारा राज्यों को राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत दिए गए धन के आॅडिट की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि यह काम संभवत: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से कराया जा सकता है. न्यायालय ने कहा कि एक कार्य विशेष के लिए उपलब्ध कराए गए धन का उपयोग दूसरे काम में नहीं किया जाना चाहिए.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि इस तरह का आॅडिट जरूरी है क्योंकि शीर्ष अदालत द्वारा पूर्व न्यायाधीश कैलाश गंभीर की अध्यक्षता में नियुक्त समिति इस पहलू पर गौर नहीं करेगी.
न्यायालय ने इस तरह के बसेरों की उपलब्धता की सत्यता का पता लगाने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर की अध्यक्षता में यह समिति गठित की है.
सॉलिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने अदालत के समक्ष कहा कि राज्यों द्वारा पिछली अवधि में इस मद में 412 करोड़ रुपये खर्च नहीं किए जबकि केंद्र ने 2017-18 के लिए 228 करोड़ रुपये जारी किए हैं.
पीठ ने कहा, एक बात तो यह है कि आप (केंद्र सरकार) धन देते हैं और राज्य उसे खर्च नहीं करते हैं. वर्ष 2017-18 के लिए आपने 228 करोड़ रुपये दिए हैं. आप राज्यों से कहें कि हम आपको धन दे रहे हैं और आप इसे खर्च नहीं कर रहे हैं. अत: हम आपको और धन क्यों दें.
पीठ ने यह भी कहा, राज्यों ने यह धन खर्च नहीं किया और बेघर लोग परेशान हो रहे हैं. आप यह कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं कि धन खर्च हुआ है? यह धन दूसरे कार्यों में नहीं लगाया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक विशेष प्रयोजन के लिए दिया गया है.
सुनवाई के दौरान कुमार ने कहा कि केंद्र इस योजना के लिए 60 प्रतिशत धन का योगदान करता है जबकि शेष राशि राज्यों को वहन करनी है. जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए यह अनुपात 90 और 10 का है.
पीठ ने कहा, आॅडिट आवश्यक है. समिति खातों का आॅडिट नहीं करेगी. यह काम संभवत: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक कर सकते हैं. न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि इस योजना के तहत 790 शहर आते हैं और सारे शहरों की निगरानी संभव नहीं होगी.
पीठ ने सॉलिसीटर जनरल से कहा, हम दो काम कर सकते हैं. पहला तो यह कि उच्च न्यायालयों से अपने राज्यों का हाल देखने के लिए कहा जाए. दूसरा विकल्प यह है कि उच्च न्यायालय से कहने की बजाय हम खुद इसे देखें.
इस पर कुमार ने कहा कि उच्च न्यायालय से इन पर गौर करने के लिए कहना बेहतर विकल्प होगा क्योंकि वे सरकार और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सहायता भी ले सकते हैं. न्यायालय इस मामले में अब 13 अक्तूबर को आगे विचार करेगा.