गुजरात सरकार का तौकते राहत पैकेज प्रवासी मछुआरों की वास्तविकताओं से परे है

मई 2021 में आए तौकते चक्रवात के बाद गुजरात सरकार द्वारा घोषित राहत पैकेज के वितरण में खाद्य सुरक्षा की मौजूदा प्रणालियों के ख़राब क्रियान्वयन ने कई प्रवासी मछुआरा समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया है.

गुजरात के तटीय इलाके में ताउकते. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मई 2021 में आए तौकते चक्रवात के बाद गुजरात सरकार द्वारा घोषित राहत पैकेज के वितरण में खाद्य सुरक्षा की मौजूदा प्रणालियों के ख़राब क्रियान्वयन ने कई प्रवासी मछुआरा समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया है.

गुजरात के तटीय इलाके में तौकते. (फाइल फोटो: पीटीआई)

मई के महीने में भारत के कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरते तौकते चक्रवात ने गुजरात में तबाही मचा दी थी. राज्य के मत्स्य व्यवसाय को इसके चलते अनुमानतः 160 करोड़ रुपये का भारी नुकसान झेलना पड़ा. हालांकि विशेषज्ञों का अनुमान है कि असल नुकसान इससे कई गुना ज्यादा है.

गुजरात सरकार द्वारा मछुआरों के साथ-साथ उनकी नावों एवं उपकरणों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए 105 करोड़ रुपये का राहत पैकेज जारी किया गया. जो मछुआरे ऋण लेना चाहते थे, उनके लिए भी सरकार ने वित्तीय सहायता की घोषणा की. राहत पैकेज की राशि में से सरकार ने 80 करोड़ रुपये तो जाफराबाद, नवा बंदर, सैयद राजपाड़ा एवं शियालबेत तटों पर बने बंदरगाहों की मरम्मत और इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने के लिए दिए तथा वित्तीय राहत के लिए मात्र 25 करोड़ की राशि रखे गए.

हर जगह यह विवाद है कि वितरण के लिए निर्धारित वित्तीय राशि पर्याप्त है या नहीं, लेकिन घोषित किए गए राहत पैकेज के अपर्याप्त होने और कमियों की बात कोई नहीं कर रहा. इस पैकेज की परिकल्पना में ही गंभीर कमियां हैं जो इसके जमीनी अमल में बहुत-सी चुनौतियां पैदा कर रही हैं.

तौकते चक्रवात राहत पैकेज में मुआवजा प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति के निर्धारण हेतु किसी भी प्रक्रिया या दस्तावेज का उल्लेख नहीं है. ऊपर से देखने पर ऐसा लगेगा कि यह प्रक्रिया उन लोगों के लिए थोड़ी फ्लेक्सिबल होगी, जिनके पास दस्तावेजों का अभाव है. यह सुनिश्चित करती दिखती है कि कहीं वे लोग, जो असल में मुआवजे के योग्य हैं, अपना हक़ लेने से छूट न जाएं (ख़ासकर तब जब कितने ही मछुआरों ने चक्रवात के कारण सरकार द्वारा जारी किए गए उनके पहचान दस्तावेज गंवा दिए.)

लेकिन इस अपारदर्शी प्रक्रिया का परिणाम यह हुआ कि नकद राशि सहायता और आवास क्षति का मुआवजा प्राप्त करने की पात्रता निर्धारित करने के लिए राशन कार्ड का इस्तेमाल किया जा रहा है.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 (एनएफएसए)- जिसकी शुरुआत तो खाद्य सुरक्षा की कल्याणकारी पद्धति के रूप में हुई थी, लेकिन अंतत: यह अधिकार-आधारित पद्धति में बदल गया-  के अंतर्गत सभी संबंधित राज्य सरकारों को राशन कार्ड जारी करने थे. खाद्य सुरक्षा के इस नियम के राष्ट्रीय स्तर पर लागू होने के बावजूद गुजरात सरकार ने अनेकों बार इसे टालकर, अतिरिक्त समय मांगकर 2016 में ही इसे लागू किया.

अतः राहत पैकेज को राशन कार्ड के साथ जोड़कर बुनियादी स्तर पर कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि गुजरात में खाद्य सुरक्षा की मौजूदा प्रणाली और संरचना की स्थिति अच्छी नहीं है.

एनएफएसए के खराब अमल ने चक्रवात में हुए नुकसान के मुआवजे के रूप में मिल रही नकद सहायता एवं आवास क्षति मुआवजे के राहत वितरण पर विपरीत प्रभाव डाला है.

प्रवासी मछुआरों की असल स्थिति

सैयद राजपाड़ा धाराबंदर विस्तार, गुजरात के उना तहसील का एक प्रवासी मछुआरा गांव है, जहां धाराबंदर गांव  से मछुआरा समुदाय रोजगार के लिए आते हैं. वह  मछली पकड़ने के मौसम में आकर छोटे घर और झोंंपड़ियां बनाकर रहते और फिर अपने गांव लौट जाते हैं.

अपने काम की प्रवासी प्रवृत्ति के कारण मछुआरों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. हमारे समाज की मौजूदा व्यवस्था इस समुदाय के अस्तित्व को पहचानने और इनकी दिक्कतों की ओर पर्याप्त तरीके से ध्यान देने में असमर्थ है. इसके कारण इनकी दोनों मुआवजों, नकद राशि सहायता और आवास क्षति मुआवजा, लेने की पात्रता प्रभावित हुई है.

यह मुद्दे शियालबेत, जाफराबाद, छांछ बंदरगाह, धारा बंदरगाह, गिर सोमनाथ के सैयद राजपाड़ा, नवा बंदर एवं सिमर के विभिन्न मछुआरा संगठनों ने गांधीनगर के ‘मत्स्य आयुक्त’ (फिशरीज कमिश्नर) को उनके द्वारा लिखे गए मांग पत्रों में उठाए हैं.

राहत पैकेज के तहत नकद राशि में एक हफ़्ते की अवधि के लिए वयस्कों को 100 रुपये प्रतिदिन और किशोरों को 60 रुपये प्रतिदिन मिलने चाहिए थे, लेकिन यह राशि पाने के लिए उपयुक्त व्यक्तियों की पात्रता निर्धारित करने के लिए राशन कार्ड का उपयोग हुआ, जिसके कारण कई योग्य व्यक्ति इसकी सुविधा लेने से वंचित रह गए.

सैयद राजपाड़ा धाराबंदर विस्तार में 2011 के बाद से राशन कार्ड अपडेट नहीं किए गए हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि मछुआरा समुदाय के किसी भी सदस्य को 2013 के बाद वितरित किए गए नए एनएफएसए कार्ड नहीं मिल पाए हैं.

नकद राशि सहायता का वितरण राशन कार्ड में लिखी लोगों की आयु के अनुसार हो रहा था. अतः 2011 में जो लोग बालिग नहीं थे, उन्हें उनके अधिकृत 100 रुपये प्रतिदिन की जगह केवल 60 रुपये प्रतिदिन ही मिले. इसका यह भी अर्थ हुआ कि 2011 के बाद आए परिवार के नए सदस्यों को कोई भी मुआवजा नहीं मिल पाया.

लोगों को इस तरह से बाहर रखे जाने के उदाहरण अन्य राज्यों में भी देखे गए हैं और एनएफएसए के अंतर्गत खाद्य अधिकार के कार्यान्वयन की मांग को लेकर समय-समय पर यह मुद्दे भी उठाए गए.

कुछ प्रवासी मछुआरों ने अपने धाराबंदर (जहां वह मूल रूप से रहते हैं) वाले राशन कार्ड रद्द करवा दिए थे. तब से उन्हें सैयद राजपाड़ा (जहां उन्होंने प्रवास किया है) में नए राशन कार्ड नहीं मिल पाए. इसके चलते भी कितने ही परिवार अपना मुआवजा प्राप्त करने से वंचित रह गए.

हम एक महिला से मिले, जिन्होंने बताया कि क्योंकि उन्होंने दो महीने तक राशन नहीं लिया, इसलिए उनका राशन कार्ड रद्द कर दिया गया जिसके कारण अब उन्हें नकद सहायता भी नहीं मिल पाई. ऐसे कितने ही प्रवासी मछुआरे होंगे, जिनका राशन न लेने के कारण राशन कार्ड रद्द कर दिया गया होगा. अगर उन्होंने नया राशन कार्ड नहीं बनवाया होगा, तो वह राहत मुआवजा प्राप्त करने से वंचित रह गए होंगे.

आवास क्षति मुआवजे में समस्याएं

चक्रवात राहत पैकेज में आवास क्षति मुआवजे में एक बड़ी त्रुटि यह है कि इसमें राहत वितरण के लिए ‘अधिकृत इकाई’ (यूनिट ऑफ एंटाइटलमेंट) या ‘पारिवारिक इकाई’ को परिभाषित नहीं किया गया है. इसका लाभ लेने की पात्रता के निर्धारण हेतु एक बार फिर राशन कार्ड को ही पैमाना माना गया.

इन क्षेत्रों में मछुआरा समुदाय प्रवासी प्रकृति के होते हैं, यानी इनके दो निवास स्थान होते हैं. एक, उनके गांव में उनका घर और दूसरा, उस जगह पर, जहां वे प्रवास करते हैं. हालांकि राज्य सरकार ने सर्वेक्षण करवाने तथा स्थिति को आंककर, जिनके घरों को क्षति पहुंची है, उन्हें वित्तीय सहायता देनेका वादा किया था, लेकिन अब तक वह पूरा नहीं हुआ है.

बहुत से क्षेत्रों में सर्वेक्षण करवाया ही नहीं गया, जिनमें करवाया भी गया, मुआवजे के लिए सिर्फ उन घरों को सम्मिलित किया गया, जिसका पता राशन कार्ड में दर्ज है. यदि कोई ऐसा घर था, जिसका राशन कार्ड में उल्लेख नहीं था, चक्रवात में उसके टूटने पर या क्षति पहुंचने पर वह मुआवजा का पात्र नहीं बन सका. कुछ परिवार संयुक्त राशन कार्ड के साथ अलग आवासीय इकाई बनकर रहते हैं, उन्हें भी केवल एक ही घर के लिए मुआवजा मिल पाया.

‘एक देश एक राशन कार्ड’ योजना की बात करें, तो गुजरात द्वारा इस योजना को अत्यंत महत्वाकांक्षी तरीके से अपनाया गया था. केंद्र सरकार की इस पहल का उद्देश्य देशभर में एक ही राशन कार्ड की मान्यता को निश्चित करना था, किंतु एनएफएसए के खराब क्रियान्वयन ने अन्य कार्यक्रमों और योजनाओं को प्रभावित किया है.

अगर एनएफएसए सही तरीके से कार्यान्वित की जाती, तब ‘अधिकृत इकाई’ के निर्धारण के लिए राशन कार्ड का उपयोग करना उपयुक्त होता. इसके अभाव में यदि किसी भी अधिकार के लिए राशन कार्ड पात्रता का आधार बनेगा, तो इससे दिक्कतें और प्रभावित समुदायों की विपत्तियां और बढ़ेंगी ही. अतः अपने प्रारूप में प्रत्यक्ष खामियों के साथ बने इस राहत पैकेज ने कितने ही योग्य और पात्र लोगों को उनके हक़ से वंचित रखा है.

(लेखक सेंटर फॉर सोशल जस्टिस से संबद्ध हैं और गुजरात, झारखंड और छत्तीसगढ़ में वंचित समुदायों को क़ानूनी मदद देते हैं.)

(मूल अंग्रेजी लेख से प्रेरणा पुरी द्वारा अनूदित)