नशा शराब में होता तो नाचती बोतल. बिहार में उल्टा हो रहा है. बोतल नाच नहीं रही है, बोतल के पीछे बिहार नाच रहा है. बिहार में बोतल मिल रही है लेकिन विधानसभा में बोतल का मिल जाना सारी कल्पनाओं की पराकाष्ठा है.
बिहार एक अदृश्य बोतल के आतंक की गिरफ़्त में है. हर कोई सतर्क है कि कहीं बोतल न दिख जाए. बोतल मिल जाने की आशंका में हर किसी को हर जगह बोतल नज़र आ रहा है. हर कोई एक दूसरे के बग़ल में झांक रहा है कि कहीं उसके पास बोतल तो नहीं है. कोई मिलने आ रहा है तो लोगों की नज़र उसके हाथ और झोले पर है कि कहीं बोतल तो नहीं है. पार्किंग में खड़ी कार देखते ही लोग सहम जा रहे हैं कि डिक्की में बोतल तो नहीं है. स्टेशन से रिश्तेदार अटैची लिए चले आ रहे हैं, लोग डरने लग जा रहे हैं कि कहीं बोतल तो नहीं है.
एक ज़माना था जब दिल्ली में बस की सीट के पीछे लिखा था कि आपकी सीट के नीचे बम हो सकता है. बैठने वाला सीट के नीचे झांकने लगता था. बम देखने लगता था. उसी तरह बिहार के लोग बोतल देखने लगे हैं. बोतल का नहीं मिलना अब अच्छा माना जा रहा है.
विधानसभा के प्रांगण में बोतल मिल गईं. इस तरह से हंगामा हुआ, जैसे मंगल ग्रह का एक टुकड़ा आ गिरा हो. सदन के बाहर और भीतर हंगामा मच गया कि बोतल मिल गई हैं. हालांकि बोतल कई चीज़ों की होती है लेकिन बिहार में हर बोतल प्रथमदृष्टया शराब की बोतल ही समझी जा रही है.
विधानसभा में बोतलें मिलते ही तेजस्वी ट्वीट कर देते हैं कि शराबबंदी फेल हो गई है. किसी ने पी ली है. बस बोतल से सरकार को ठेस लग गई. मुख्यमंत्री सबको हड़का रहे हैं कि मामूली बात नहीं है कि यहां बोतल मिली है. जांच होगी. स्पीकर महोदय, इजाज़त दीजिए, जांच करेंगे कि आपके परिसर में बोतल कैसे मिल गई है.
ऐसे पूछने पर तो कोई भी ख़ुद पर ही शक करने लगेगा कि भाई कहीं मेरा ही नाम न आ जाए. सदस्य राम-राम जपने लगेंगे कि स्पीकर जी इजाज़त मत दीजिए. बोतल मिल गई है तो मिल गई है.
बिहार में बोतल मिल रही है लेकिन विधानसभा में बोतल का मिल जाना सारी कल्पनाओं की पराकाष्ठा है. कवि भी बोतल मिलने पर कविता लिख रहे हैं लेकिन विधानसभा में बोतल मिलेगी उनकी किसी कविता में नहीं आया है.
मेरा यह लेख पढ़कर बिहार हंस रहा है. घर-घर चोरी चुपके बोतल पहुंचाने वाले हंस रहे हैं. पीने वाले हंस रहे हैं. बोतल की तरह लुढ़क रहे हैं.लोट-पोट हो रहे हैं. कह रहे हैं कि बिहार में भगवान मिल जाएं तो मिल जाएं मगर बोतल नहीं मिलनी चाहिए.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी का ग़ुस्सा देखकर मैं भी सीरियस हो गया हूं. मैंने भी बोतलों से प्रार्थना की है कि भाई तुम कहीं दिखो लेकिन उनके सामने मत दिखो. कुछ भी है हम लोगों के सीएम हैं, बोतल देखकर ग़ुस्सा जा रहे हैं. मुझे आशंका है कि किसी दिन भाजपा ने जदयू से गठबंधन तोड़ा तो बोतल लेकर नीतीश जी को चिढ़ाने न आ जाए. ऐसा होगा तो मुझे बुरा लगेगा.
भाई आप गठबंधन तोड़िए, आपका हक़ है लेकिन बोतल से नीतीश जी का मज़ाक़ मत उड़ाइए. भाजपा वालों से अनुरोध है कि राजनीति में गठबंधन तो बनते टूटते हैं लेकिन जब भी ऐसा हो बोतल लेकर कोई प्रदर्शन न करें.
क्या ऐसा हो सकता है कि भाजपा के नेता ख़ुद बोतल लेकर न चिढ़ाए, किसी और संगठन को आगे कर नीतीश जी के घर के आगे बोतल फिंकवा दें.
मन में तरह-तरह की आशंकाएं पैदा होती रहती हैं. शुभ-शुभ बोलिए रवीश कुमार. ऐसा मत कहिए. बोतल से कहिए कि बिहार में रहे लेकिन मुख्यमंत्री के आस-पास न रहे. अरे ये क्या कह दिया. बोतल से कहिए कि बिहार में भी न रहे.
ख़याल तो ख़याल है. पता चला हमारे सीएम दिल्ली में किसी बारात में आए हुए हैं और लोग बोतल लेकर फोटो खिंचाने आ गए हैं. मैं तो सलाह दूंगा कि नीतीश जी साथ में एक हंटर लेकर भी चलें. दिल्ली की शादी में जो भी बोतल लेकर फोटो खिंचाने आए- मार हंटर, मार हंटर वहीं पर उसका हाथ बेहाल कर दें.
दरअसल, राजनीति में बोतल इस तरह उपस्थित है कि उसकी अनुपस्थिति को लेकर आप आश्वस्त नहीं हो सकते हैं. बोतल ही है, कहीं से आ सकती है. किसी के पास से मिल सकती है.
मुझे आशा है कि आप बोतल का मतलब शराब की बोतल ही समझ रहे हैं. वैसे बिहार में बोतल का एक और मतलब बेवकूफ होता है. बिहार में लोग किसी को बोतल बुला दें तो उसे बुरा लग जाता है. दोस्तों के बीच बोतल समझा जाना बहुत बुरा माना जाता है. उस बिहार में जहां बोतल से इतनी विरक्ति हो, बोतल मिल जाए तो लोग बोतल हो जा रहे हैं. उछल-कूद मचाने लगे हैं.
बोतल दिखते ही मेरा बिहार बोतल हो जा रहा है. सहम जाता है. आप किसी चलती-फिरती सड़क पर जाइए. बीच सड़क पर बोतल रख दीजिए, देखिए अफरातफरी मचने लगेगी. लोग कार से कूदकर भाग जाएंगे कि कहीं पुलिस न देख ले कि उनकी कार के सामने बोतल रखी हुई है. इससे शक हो सकता है कि कार वाले ने पीने के बाद बीच सड़क पर बोतल रख दी हो. लोग रात भर जाग रहे हैं कि कोई अहाते में बोतल न फेंक जाए. सुबह होते ही पता चला कि जेल चले गए.
शादियों में जो लोग छिपकर बोतल पीते थे, वे अब बोतल देखते ही छिप जा रहे हैं. हर कोई बोतल से छिप रहा है जबकि लोग पहले इस बोतल को बाजू में रखकर छिपा लेते थे. नशा शराब में होता तो नाचती बोतल. बिहार में उल्टा हो रहा है. बोतल नाच नहीं रही है. बोतल के पीछे बिहार नाच रहा है.
शराब का नशा तो सीमा से लगे राज्यों में है. केवल बोतल है जो बिहार में है. जहां बोतल नहीं है वहां भी लोग बोतल देख रहे हैं. बिहार में बोतल आ गया है और बोतल में बिहार समा गया है. नीतीश जी को बोतलों से बचाना है. हमने तो अब यही ठाना है.
(यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के फेसबुक पेज पर प्रकाशित हुआ है.)