जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के हैदरपोरा में बीते 15 नवंबर को हुए एनकाउंटर में मोहम्मद आमिर मागरे और तीन अन्य की मौत हो गई थी. पुलिस इनके आतंकी या उनका सहयोगी होने का दावा कर रही है. लेकिन पीड़ित परिवार का कहना है कि वे निर्दोष थे. पुलिस ने बीते नवंबर महीने में ही इस एनकाउंटर में मारे गए दो आम नागरिकों के शव उनके परिजनों को लौटा चुकी है.
श्रीनगरः जम्मू कश्मीर के रामबन जिले से लगभग 42 किलोमीट दूर स्थित थाथरका सेरीपोरा गांव के पहाड़ी इलाके में स्थित एक कच्चे घर के एक मंजिला मकान में मोहम्मद आमिर मागरे का शोकाकुल परिवार दो हफ्ते से भी अधिक समय से उनके शव का इंतजार कर रहा है.
श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में बीते 15 नवंबर को तीन मंजिला इमारत में एनकाउंटर में 23 वर्षीय आमिर और तीन अन्य की मौत हो गई थी. इनके शवों को पुलिस ने रात में ही श्रीनगर से लगभग 90 किलोमीटर दूर उत्तर कश्मीर के हंदवाड़ा के एक दूरवर्ती गांव में दफना दिया था.
आमिर की मां मुबीना बेगम ने बेटे की खबर सुनने के बाद से लगभग दो हफ्ते से ठीक से कुछ खाया नहीं है. उन्होंने अपने बेटे का शव, उसका चेहरा आखिरी बार देखे जाने तक कुछ भी खाने से इनकार कर दिया है.
वह कहती हैं, ‘यह बहुत दर्दनाक है कि वे मेरे बेटे की हत्या के बाद अब उसका शव नहीं लौटा रहे हैं. मेरा बेटा निर्दोष था. वह घर से इतनी दूर श्रीनगर में काम करने गया था. हमें उससे बहुत उम्मीदें थीं.’
एनकाउंटर से एक दिन पहले आमिर ने अपने भाइयों, बहन और मां से फोन पर बात की थी. परिवार को अंदाजा नहीं था कि 17 मिनट की यह बातचीत उससे की गई आखिरी बातचीत साबित होगी.
आमिर ने फोन पर मां के स्वास्थ्य के बारे में पूछा था और वादा किया था कि जब वह अगली बार घर आएंगे तो उनके लिए कुछ गर्म कपड़े लाएंगे.
परिवार के मुताबिक, इस साल की शुरुआत में देशव्यापी लॉकडाउन के बाद आमिर उत्तर प्रदेश के देवबंद से घर लौटे थे. वह वहां कुरान की पढ़ाई कर रहे थे. कुछ महीने घर रहने के बाद वह हैदरपोरा में डॉ. मुदसिर गुल (जिनकी इस एनकाउंटर में मौत हो गई) के ऑफिस में काम करने के लिए श्रीनगर चले गए थे. डॉ. गुल ने ही उन्हें रहने के लिए आवास भी मुहैया कराया था.
बीते 15 नवंबर को श्रीनगर के हैदरपोरा इलाके में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में आतंकियों से मुठभेड़ के दौरान दो संदिग्ध आतंकियों की मौत के साथ ही दो नागरिकों की भी मौत हुई थी. इनमें से एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के मालिक मोहम्मद अल्ताफ भट और दूसरे दंत चिकित्सक डॉ. मुदसिर गुल शामिल हैं. पुलिस ने दोनों को आतंकियों का सहयोगी होने का दावा किया है, जबकि इनके परिवारों का आरोप है कि सुरक्षा बलों ने इनका इस्तेमाल ‘मानव ढाल’ के तौर पर किया था.
आमिर पढ़ाई के साथ-साथ कमाई भी करना चाहते थे. उन्होंने 2015 में हैदरपोरा के दारुल उलूम से हाफिज कुरान का कोर्स किया था और उसके बाद बांदीपोरा के दारुल उलूम रहीमिया से आलिम कोर्स भी किया था.
पीड़ित परिवार दारुल उलूम रहीमिया से जारी किए गए आमिर का पहचान पत्र और सर्टिफिकेट दिखाते हैं. आमिर के कमरे में किताबों से भरी शेल्फ है और एक शेल्फ के कोने में उनका सफेद दस्तर है, जो उन्हें देवबंद से मिला था.
आमिर की बड़ी बहन महमूना, जो उनके साथ उसी कमरे में रहती थीं, मुठभेड़ से कुछ दिन पहले घर लौटी हैं.
वह कहती हैं, ‘आमिर डॉ. गुल के ऑफिस में बतौर ऑफिस सहायक के तौर पर काम करता था. वह मेज साफ करने से लेकर विजिटर्स के लिए चाय बनाने तक का काम करता था. उसे 8,000 से 10,000 रुपये मासिक वेतन मिलता था, जिसमें से वह कुछ घर भेजता था. वह अपने तीन छोटे भाइयों को भी कुछ पैसे देता था, जब उन्हें किताबें खरीदनी होती थी.’
महमूना ने कहा, ‘पुलिस जिसे (आतंकियों का) हाइडआउट (छिपने की जगह) कह रही है, वह दरअसल हमारा कमरा है, जिसमें हमारे कपड़े और अन्य सामान हैं. इमारत के पास सीआरपीएफ का एक बंकर भी है. हर सुबह सीआरपीएफ के जवान अपने कुत्तों के साथ आते हैं और इमारत के गेट से दाखिल होते हैं. एक आतंकी इतनी भारी सुरक्षा वाले स्थान पर कैसे छिप सकता है.’
मृतक आमिर के एक नाराज रिश्तेदार पूछते हैं, ‘इमारत के भीतर से सभी सीसीटीवी कैमरे कैसे हटा दिए गए? वे यह भी कह रहे हैं कि इमारत के बाहर लगे सीसीटीवी काम नहीं कर रहे थे. इस एनकाउंटर के बारे में बहुत कुछ उजागर करने वाले ये सभी कैमरे आखिर कैसे काम करना बंद कर गए.’
आमिर के छोटे भाई कहते हैं कि आमिर निर्दोष थे और उन्हें मार डाला गया.
उन्होंने कहा, ‘वे एक निर्दोष शख्स को मार सकते हैं और बाद में उसके शव के पास पिस्तौल या अन्य हथियार रख सकते हैं, लेकिन इससे वह आतंकी नहीं हो गए, जब तक कि कोई ठोस सबूत नहीं हो.’
महमूना रोते हुए कहती हैं, ‘वह वह घर चलाने के लिए कड़ी मेहनत करता था. अब हमें उसका शव सौंपने से भी मना कर दिया गया है. कृपया उसका शव हमें सौंप दें. हम आखिरी बार उसका चेहरा देखना चाहते हैं और हमारे घर के पास यहां दफनाना चाहते हैं.’
आमिर के पिता मोहम्मद लतीफ मागरे के अनुसार, जब वे एनकाउंटर के अगले दिन श्रीनगर पहुंचे और उसका शव मांगा तो स्थानीय पुलिस स्टेशन के एसएचओ ने बताया कि उनका बेटा आतंकी था और उन्होंने रात में ही उसे दफना दिया है.
मागरे कहते हैं, ‘उन्होंने मुझे बताया कि मेरा बेटा आतंकी था और वह आतंकियों को पनाह दे रहा था. मैं दुखी था और उन्हें कह रहा था कि आप जो कह रहे हैं, क्या उसका कोई सबूत है.’
पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह ने 26 नवंबर को जम्मू में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि विशेष जांच टीम (एसआईटी) हैदरपोरा एनकाउंटर की जांच कर रही है. जिन आतंकियों ने वहां पनाह ली थी, उनके बारे में साक्ष्यों के साथ एसआईटी सामने आएगी.
डीजीपी ने कहा था, ‘दुर्भाग्य से लोग हत्यारों को निर्दोष लोगों के तौर पर देख रहे हैं. कश्मीर की क्षेत्रीय पुलिस ने एसआईटी का गठन किया है. हमें कुछ समय दीजिए ताकि इस मामले पर कुछ विशेष खुलासे के साथ हम सामने आएं, क्योंकि हम अभी भी हैदरपोरा एनकाउंटर के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर काम कर रहे हैं.’
आमिर के पिता मागरे ने कहा कि अगर उनका ठीक तरह से मार्गदर्शन किया जाता या उन्हें अन्य परिवारों के बारे में बताया जाता जो अपने प्रियजनों के शवों की मांग करते हुए श्रीनगर के प्रेस एन्क्लेव में धरने पर बैठे हैं तो हम भी उनके साथ इस मांग में शामिल होते.
उन्होंने कहा, ‘हम सभी दुखी और बेचैन थे. हम श्रीनगर से वाकिफ नहीं हैं और हमने मुश्किल से ही संबंधित पुलिस स्टेशन का पता लगाया था.’
उन्होंने हाल ही में हैदरपोरा एनकाउंटर की जांच कर रही एसआईटी के समक्ष अपना बयान दर्ज कराया था और पुलिस को कहा था कि वह उन्हें साक्ष्य दिखाएं कि उनका बेटा ‘आतंकी’ था.
उन्होंने अधिकारियों से अपने बेटे के शव को वापस करने का बार-बार आग्रह करते हुए कहा, ‘अगर उसका (आमिर) शव हमें वापस करने के बाद वह आतंकवादी साबित हो जाता है तो वे यहां कब्र से उसका शव वापस ले सकते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘अब जब वह मर चुका है तो हम उसे अपने करीब दफनाना चाहते हैं ताकि हम यहां उसकी कब्र पर जा सकें और समय-समय पर उसके लिए प्रार्थना कर सकें.’
पीड़ित परिवार एनकाउंटर की स्वतंत्र न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं.
आमिर की बहन का कहना है कि पुलिस ने आमिर की हत्या को लेकर अपने बयान बदले हैं. पुलिस अपने बयानों और प्रेस कॉन्फ्रेंस में उसे ‘आतंकियों का सहयोगी’, ‘हाइब्रिड आतंकी’ आदि सहित अलग-अलग नामों से बुला रही है और इस तरह अपने बयान बदल रही है.
वह विनती करते हुए कहती हैं, ‘कृपया हमारे परिवार पर अब तो थोड़ी दया करें. अगर उन्होंने अन्य दो शवों को लौटा दिया है तो वे मेरे भाई के शव को क्यों नहीं लौटा सकते.’
मालूम हो कि हैदरपोरा मुठभेड़ में मारे गए दो आम नागरिक मोहम्मद अल्ताफ भट और डॉ. मुदसिर गुल के शवों को परिजनों के प्रदर्शन के बाद पुलिस प्रशासन ने उन्हें लौटा दिया था. परिजनों ने बीते 18 नवंबर की देर रात को उनके शवों को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया था.
आमिर के पिता ने कहा, ‘जब तक कि उसका शव हमें लौटा नहीं दिया जाता, हम कुछ भी खाने और आराम करने में असमर्थ हैं. अगर किसी आतंकी को भी मारा जाता है तो उसके परिवार के पास उसके शव को वापस लेने का पूरा अधिकार है.’
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि वे आमिर पर हमेशा गर्व करते थे, क्योंकि वह जो भी करता था, सभी में अच्छा था. ग्रामीण और पड़ोसी आमिर को एक विनम्र, मेहनती युवक के रूप में याद करते हैं, जो गांव में हर किसी की मदद करता था.
परिवार के एक पड़ोसी कहते हैं, ‘हमने इस गांव के सबसे अच्छे युवाओं में से एक को खो दिया है. हम सभी ने मस्जिद में उसके लिए दुआ मांगी है. अब हम उसके शव के आने का इंतजार कर रहे हैं, ताकि उसके लिए दुआ मांग सकें.’
बीते दो हफ्तों से आमिर की मां दवाइयों पर निर्भर हैं. वह हाई ब्लड प्रेशर से जूझ रही हैं. उन्हें रात को थोड़ी बहुत नींद आती है. वह आधी नींद में चिल्लाती हैं, ‘क्या मेरा आमिर लौटा? मेरे आमिर को लौटा दो.’
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