‘भाजपा में लोग जानते हैं कि अर्थव्‍यवस्‍था तेज़ी से नीचे जा रही है लेकिन डर के कारण सब चुप हैं’

यशवंत सिन्हा लिखते हैं, ‘प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उन्होंने गरीबी को नज़दीक से देखा है. उनके वित्त मंत्री सुनिश्चित कर रहे हैं कि देशवासियों को भी इसे उतने ही पास से देखने का मौका मिले.’

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Jammu : Children wear Prime Minister Narendra Modi's mask and display new currency 2000 note as they welcome the demonetisation step in Jammu on Sunday. PTI Photo (PTI11_13_2016_000190B)

पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा लिखते हैं, ‘प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उन्होंने गरीबी को बहुत नज़दीक से देखा है. उनके वित्त मंत्री यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि देशवासियों को भी इसे उतने ही पास से देखने का मौका मिले.’

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(फोटो: पीटीआई)

वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था की जो दुर्गति कर रखी है, उसे लेकर मैं अगर अब नहीं बोलूंगा तो इसका मतलब होगा कि मैं देश के प्रति अपने कर्तव्य में असफल हो गया हूं. मैं ये बात भी जानता हूं कि मैं जो बोलूंगा वह भाजपा में मौजूद ढेरों लोगों सहित वे कई लोग मानते हैं, जो किसी डर की वजह से बोल नहीं रहे है.

अरुण जेटली इस सरकार में सबसे काबिल और योग्य समझे जाते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही ये तय हो चुका था अगर मोदी सरकार बनती है तो उसमें जेटली ही वित्त मंत्री होंगे. जेटली ने अमृतसर से चुनाव लड़ा और हार गए. लेकिन चुनावी हार भी उनकी नियुक्ति में बाधा नहीं बनी.

ये भी आपको याद ही होगा कि 1998 में ऐसी ही परिस्थिति में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने दो बेहद करीबी सहयोगियों जसवंत सिंह और प्रमोद महाजन को मंत्री बनाने से मना कर दिया था. अरुण जेटली की सबसे ज्यादा ज़रूरत उस समय दिखी जब प्रधानमंत्री ने उन्‍हें न सिर्फ वित्‍त मंत्रालय सौंपा बल्कि विनिवेश, रक्षा और कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय का भी प्रभार दे दिया. एक साथ चार मंत्रालय, जिनमें से तीन उनके पास अब भी हैं. मैंने वित्‍त मंत्रालय संभाला है और मैं जानता हूं कि अकेले उसी मंत्रालय को संभालने में कितनी मेहनत लगती है.

वित्त मंत्रालय का मुखिया अगर इसके सर्वश्रेष्ठ समय में सही तरीके से काम करे तो उसे इसे संभालने के लिए पूरे ध्‍यान की आवश्‍यकता होती है. मुश्किल के दौर में यह चौबीस घंटे का काम है. यहां तक कि जेटली जैसा सुपरमैन भी इस काम के साथ न्‍याय नहीं कर सकता.

जेटली उदारीकरण के बाद से अब तक के सबसे खुशकिस्मत वित्त मंत्री हैं. वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम काफी नीचे हैं. लेकिन फिर भी इस अवसर का फायदा नहीं उठाया गया. ये सच है कि ठप प्रोजेक्ट्स और बैंकों के एनपीए जैसी समस्याएं विरासत में मिली हैं. लेकिन इससे कच्चे तेल के दाम की तरह ही बेहतर ढंग से निपटा जा सकता है. न केवल कच्चे तेल की कम कीमतों से मिलने वाले फायदे को व्यर्थ किया गया, बल्कि पहले से मिली समस्याओं की स्थिति और अधिक खराब हो गयी.

Indian Prime Minister Narendra Modi (R) listens to Finance Minister Arun Jaitley during the Global Business Summit in New Delhi, India, in this January 16, 2015 file photo. After a drubbing in a state poll in November, Modi wants to overhaul his cabinet to weed out underperformers and improve his government's image. Problem is, several sources said, he can't find the right replacements. REUTERS/Anindito Mukherjee/Files
फाइल फोटो: रॉयटर्स

तो, आज भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर क्या है? निजी निवेश इतना कम हो चुका है, जितना पिछले 20 सालों में नहीं हुआ. औद्योगिक उत्पादन ढह चुका है, खेती संकट में है. निर्माण उद्योग जो एक बड़े कार्यबल को नौकरी देता है, मंदी की चपेट में है. बाकी सेवा क्षेत्रों में भी धीमी प्रगति है. निर्यात घट गया है. अर्थव्यवस्था के एक क्षेत्र के बाद दूसरा क्षेत्र मंदी की चपेट में है.

नोटबंदी एक लगातार चलने वाली आर्थिक आपदा साबित हुई, तो वहीं जीएसटी को गलत तरह से समझा गया, बेहद खराब ढंग से लागू किया गया, जिस कारण लोगों का बिजनेस डूब गया. लाखों लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा. जबकि श्रम बाज़ार में आने वाले लोगों के लिए नए अवसरों में पहले से ही मुश्किल आ रही है.

तिमाही दर तिमाही अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर गिर रही है. वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में यह गिरकर 5.7 प्रतिशत पर आ गई है, जो पिछले तीन सालों में न्यूनतम है.

सरकार के प्रवक्ताओं का कहना है कि इस मंदी के लिए नोटबंदी नहीं ज़िम्मेदार है. वह सही कह रहे हैं. मंदी की शुरुआत इससे पहले हो गई थी. नोटबंदी ने सिर्फ आग में घी का काम किया.

और यहां इस बात पर गौर करने वाली बात ये है कि जीडीपी को मापने के लिए जो पैमाना वर्तमान सरकार द्वारा प्रयोग किया जा रहा है, ये 2015 में बदला गया था, जिसके परिणामस्वरूप वृद्धि दर के पिछले दर्ज किये गये वार्षिक आंकड़ों की तुलना में 200 अंकों की बढ़त देखी गई. तो, अगर जीडीपी मापने के पुराने तरीके से गणना की जाये तो 5.7 प्रतिशत की ये वृद्धि दर असल में 3.7 प्रतिशत या उससे कम होगी.

यहां तक कि सार्वजनिक क्षेत्र में देश के सबसे बड़े भारतीय स्टेट बैंक ने भी माना है कि ये मंदी अस्थायी या ‘तकनीकी’ नहीं है, ये बनी रहने वाली है. साथ ही मांग में आई गिरावट से स्थिति और ख़राब हुई है.

Jammu : Children wear Prime Minister Narendra Modi's mask and display new currency 2000 note as they welcome the demonetisation step in Jammu on Sunday. PTI Photo (PTI11_13_2016_000190B)
फाइल फोटो: पीटीआई

ये बात भाजपा अध्यक्ष की कुछ दिनों पहले पिछली तिमाही में आई गिरावट को लेकर दिए गये बयान के बिलकुल उलट है. उनका कहना था कि मंदी का कारण ‘तकनीकी’ है, जिसे जल्दी ही सुधार दिया जायेगा. स्टेट बैंक प्रमुख के अनुसार मुश्किल में चल रहे क्षेत्रों की लंबी सूची में टेलीकॉम क्षेत्र नयी एंट्री है.

इस गिरावट की वजह जान पाना इतना मुश्किल भी नहीं है, न ही ये अचानक आई है. वर्तमान संकट खड़ा करने के लिए इसे लंबे समय तक इकठ्ठा होने दिया गया. इसका अंदाज़ा लगाकर इससे निपटने के इंतज़ाम करना मुश्किल नहीं था. लेकिन इसके लिए समय निकालना होगा, मुद्दे को गंभीरता से समझना होगा और फिर इससे निपटने के तरीके पर काम करना होगा. किसी ऐसे व्यक्ति, जिसके पास पहले से ही ढेर सारी अतिरिक्त ज़िम्मेदारियां हैं, उससे इतनी उम्मीद करना शायद ज़्यादा था और इसका परिणाम हम सब के सामने ही है.

प्रधानमंत्री अब चिंता में हैं. उनके द्वारा वित्त मंत्री और उनके अधिकारियों के साथ की जाने वाली बैठक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई लगती है. वित्त मंत्री ने वृद्धि को वापस लाने के लिए पैकेज लाने का वादा किया था. हम सभी सांस रोककर इस पैकेज का इंतजार कर रहे हैं. अब तक तो ये आया नहीं है. अब तक आई नई चीज़ केवल प्रधानमंत्री की पुनर्गठित आर्थिक सलाहकार परिषद है. पांचों पांडवों की ही तरह उनसे हमारे लिए ये नया महाभारत जीतने की आशा की जा रही है.

इस साल मानसून भी कुछ ख़ास अच्छा नहीं रहा है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों का संकट और बढ़ेगा. कई राज्य सरकारों ने किसानों को ‘बड़ी’ ऋण माफ़ी दी है, जहां कई जगह उनका एक पैसे से लेकर कुछ रुपये तक का क़र्ज़ माफ़ किया गया है.

देश की 40 अग्रणी कंपनियां पहले से ही दिवालिया होने की कगार पर हैं. कई और के साथ भी यह हो सकता है. छोटे और मझोले उद्योग गहरे संकट में है. जीएसटी के तहत 95,000 करोड़ रुपये के कलेक्शन पर इनपुट टैक्स क्रेडिट की मांग 65,000 करोड़ रुपये है. सरकार ने आयकर विभाग से बड़े क्लेम करने वालों पर नज़र रखने को कहा है. कई कंपनियों खासकर छोटे और मझोले उद्योगों में कैश फ्लो (नकदी प्रवाह) की समस्याएं सामने आ चुकी हैं. लेकिन वर्तमान वित्त मंत्रालय के काम करने का यही तरीका है.

जब हम विपक्ष में थे, तब हमने ‘रेड कल्चर’ (छापे मारने) का विरोध किया था, लेकिन आज ये शासन का तरीका बन गया है. नोटबंदी के बाद आयकर विभाग पर ऐसे लाखों मामलों को जांचने का बोझ लाद दिया गया, जिनसे लाखों लोगों की किस्मत जुड़ी हुई है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई के पास भी मामलों की कोई कमी नहीं है. लोगों के दिमागों में डर पैदा करना नया खेल है.

अर्थव्यवस्था बिगड़ने में उसके बनने के मुकाबले बहुत कम वक़्त लगता है. 1998 में हमें मिली ख़राब अर्थव्यवस्था को संभालने में कड़ी मेहनत भरे चार साल लगे थे. किसी के पास अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कोई जादुई छड़ी नहीं है. अभी उठाये गये कदमों के परिणाम आने में वक़्त लगेगा. इसलिए अगले आम चुनाव तक इसके संभलने की उम्मीद कम ही है. अर्थव्यवस्था का लड़खड़ाकर गिरना तय है. अपनी पीठ थपथपाने के लिए जुमलेबाज़ी ठीक है, लेकिन हकीक़त इससे बहुत अलग है.

प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उन्होंने गरीबी को बहुत नज़दीक से देखा है. उनके वित्त मंत्री दिन-रात मेहनत करके यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि सभी देशवासियों को भी इसे उतने ही पास से देखने का मौका मिले.

यशवंत सिन्हा पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता हैं.

(यह लेख मूलतः इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में 27 सितंबर 2017 को प्रकाशित हुआ था)