पिछड़ों को हिंदू के नाम पर इकट्ठा कर हमारे समाज का हिस्सा लूटा जा रहा है: ओम प्रकाश राजभर

साक्षात्कार: सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर का दावा है 20 जनवरी तक कम से कम डेढ़ दर्जन मंत्री, विधायक भाजपा से इस्तीफ़ा देंगे और समाजवादी पार्टी में शामिल होंगे. आगामी चुनाव के मद्देनज़र उनसे द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.

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ओम प्रकाश राजभर और आरफ़ा ख़ानम शेरवानी. (फोटो: द वायर)

साक्षात्कार: सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर का दावा है 20 जनवरी तक कम से कम डेढ़ दर्जन मंत्री, विधायक भाजपा से इस्तीफ़ा देंगे और समाजवादी पार्टी में शामिल होंगे. आगामी चुनाव के मद्देनज़र उनसे द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.

ओम प्रकाश राजभर और आरफ़ा ख़ानम शेरवानी. (फोटो: द वायर)

उत्तर प्रदेश चुनाव में नया भूचाल आ गया है. चुनाव के तारीखों की घोषणा होने के बाद भाजपा में पिछड़ों का विद्रोह हो गया है. दो महत्वपूर्ण नेता- स्वामी प्रसाद मौर्य और कैबिनेट मंत्री दारासिंह चौहान के साथ कई विधायकों ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है. क्या ये पिछड़ों का विद्रोह है?

आपने जो कहा सौ प्रतिशत सही है. हम सब लोग मिलकर सरकार बनाए थे. सरकार बनाने के बाद जिस तरह की उपेक्षा पिछड़े, दलित, वंचित, अल्पसंख्यकों की शुरू हुई, मैं तो मंत्री था. मैंने देखा कि 2017-2018 में सात लाख बच्चे सामान्य वर्ग के थे, 25 लाख बच्चे पिछड़ी जातियों से थे तो सामान्य वर्ग के सभी बच्चों को छात्रवृत्ति देने के लिए सात सौ करोड़ रुपये बजट मंजूर हुआ. वहीं, पिछड़ी जाति के 25 लाख बच्चों यानी कि तीन गुना से भी ज्यादा थे, उनके लिए भी सात सौ करोड़ रुपये मंजूर किया गया.

इस बात को लेकर हमारा मुख्यमंत्री से विवाद शुरू हुआ. मुख्यमंत्री नहीं माने. उसके बाद मैंने जितने भी पिछड़े समाज के नेता कैबिनेट में मंत्री थे, जैसे केशव प्रसाद मौर्य, स्वामी प्रसाद मौर्य, एसपी पाल, दारासिंह चौहान, सबके यहां व्यक्तिगत तौर पर जाकर यह बात उठाई. यह घोर अन्याय है, बच्चे विद्यालयों में पढ़ रहे हैं, जो सुविधा सामान्य वर्ग को मिल रही है, वही सुविधा पिछड़ों को भी मिलना चाहिए.

लोगों ने इस बात को स्वीकार किया कि यह अन्याय है. उन्होंने कहा आप तो स्वतंत्र हैं इसलिए बोल सकते हैं लेकिन हम तो पार्टी के हैं इसलिए इस मुद्दे को पार्टी फोरम में रख सकते हैं.

उन्होंने इस मुद्दे को पार्टी फोरम में रखने का प्रयास किया लेकिन भाजपा ने किसी की बात को सुना नहीं. उसको अहंकार हो गया कि हम तो 325 सीट जीत गए हैं. अब हमारा पांच साल कोई कुछ कर नहीं सकता. हम जो चाहेंगे वही करेंगे.

आपकी सारी बातें जायज हैं. पर एक बात समझ में नहीं आती कि वो चाहे दारा सिंह हों या स्वामी प्रसाद मौर्य हों पांच साल तक सत्ता में रहे, इसी जातिवादी सरकार में मंत्री रहे और ठीक चुनाव से पहले कह दिया कि हमारे साथ ज्यादती हो रही है.

लगभग सालभर पहले वार्ताएं हो चुकी थीं लेकिन हमने राजनीतिक अध्ययन किया. इसमें ये हुआ कि अभी आप लोग पार्टी छोड़ोगे तो आपके पीछे ईडी, सीबीआई लगेगा. पार्टी केस लगेगा, मुकदमा लिखेंगे. जो हमारी मंशा है, हमारी सोच है, वंचित, पिछड़े, दलितों को अधिकार दिलाने की, उसमें हम लोग कहीं न कहीं फेल हो जाएंगे. ऐसा कोई उपाय लगाया जाए.

उसके बाद सबने ये कहा कि जब अचार संहिता लागू हो जाएगा तब बारी-बारी से हम लोग आप लोगों के साथ आ जाएंगे. यह बात सही है क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे ही पार्टी से इस्तीफा देते हैं, दूसरे दिन उनको कोर्ट से नोटिस आ जाती है. पांच साल से मंत्री थे तो उस दौरान नोटिस क्यों नहीं दिया गया. क्या कारण था? इससे बचने के लिए हमने पहले ही उपाय किया था.

पिछले नवंबर महीने में ही उन लोगों ने मन बना लिया था. हमने तय किया कि आचार संहिता लगने के बाद सब लोग बारी-बारी से पार्टी से इस्तीफा दे दीजिएगा.

ये बात मैंने तमाम चैनलों में बोला था कि दो महीने बाद जिस दिन आचार संहिता लगेगी उसके दो दिन के बाद देखिएगा डेढ़ दर्जन मंत्री समाजवादी पार्टी का दामन थामेंगे. वे खासतौर पर पिछड़े वर्ग के नेता होंगे. जिनकी बात पिछले पांच साल से नहीं सुनी जा रही थी, वे वहां घुटन महसूस कर रहे थे.

हिटलरशाही का रवैया था. वे सिर्फ अपने ऊपर मुकदमे न लिखे जाएं, किसी फर्जी केस में न फंसा दें, इससे बचने के लिए वहां रुके हुए थे.

आप कह रहे हैं कि ये सब रणनीति के तहत किया गया था पर खबरें छपी हैं कि आप भाजपा नेताओं से मिले हुए हैं. बृजेश पाठक ने बाकायदा ये दावा किया कि जयंत चौधरी और आप भाजपा में वापस आएंगे. इसमें कितनी सच्चाई है?

देखिए, भाजपा सौ प्रतिशत झूठ बोलने वाली , यूज़ एंड थ्रो करने वाली पार्टी है. पिछड़े, दलित, वंचित समाज को गुमराह करके वोट लेने वाली पार्टी है. ऐसा कुछ नहीं है. आपने बृजेश पाठक के बयान को सुना होगा तो उन्होंने कहा कि हमारी उनसे मुलाकत होती है. हम प्रयास करते हैं.

जहां तक आप दूसरे नेता की बात कर रहे हैं तो उस नेता का आपस में लड़ाई हो रही है पति-पत्नी का. अखबार में समाचार आपने देखा होगा दयाशंकर जी का. दोनों सरोजिनीनगर से टिकट मांग रहें हैं. दयाशंकर सिंह लंबे समय से भाजपा में मेहनत की है. लेकिन उनको कुछ नहीं मिला तो इस बार उनकी चुनाव लड़ने की पूरी मंशा है.

इस नाते वे मेरे यहां आए थे कि या तो आप मुझे लड़ा दो या समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव जी से बात करके हमें कहीं से टिकट दिला दो. पहले सरोजिनीनगर की बात किए, हमने कहा चलो भैया हम करवा देते हैं. आप जहां भी जाओ हम भी 15-20 हजार वोट दिलवा देते हैं. उन्होंने कहा कि बात कर लो इस बार कैसे भी हमें चुनाव लड़ना है. यही बात है.

दूसरी बात ये है कि दुनिया पर लोग यकीन न करें, मैं मान लेता हूं. ओम प्रकाश राजभर को अगर सत्ता का सुख भोगना होता तो मैं 18 महीने बाद इस्तीफा नहीं देता. हमारी लड़ाई भाजपा से अपने लिए नहीं लड़ी थी.

उन्होंने जातिगत जनगणना का वादा किया था, घरेलू बिजली माफ करने का वादा किया था, सामाजिक न्याय समिति रिपोर्ट लागू करने, गरीबों का इलाज फ्री में करने का वादा था. एक समान फ्री शिक्षा लागू करने का वादा था. हमने 18 महीने इंतजार किया, जब उन्होंने कहा कि हम नहीं करेंगे तब मैंने इस्तीफा दे दिया.

मान लेते हैं कि अभी आप गठबंधन के साथ हैं. लेकिन अगर अखिलेश यादव को उतनी सीटें नहीं मिलीं, जितनी में वो सरकार बना पाएं और भाजपा फिर से सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी, तब भी क्या राजभर जी भाजपा का दामन नहीं थामेंगे?

देखिए, उत्तर प्रदेश की जनता बदलाव का मन बना चुकी है. इसमें कोई शक नहीं है कि पूरी बहुमत की सरकार बनने जा रही है. ओम प्रकाश राजभर विपक्ष में बैठकर पांच साल बिता देगा लेकिन भारतीय जनता पार्टी के खेमे में जाने वाला नहीं है.

आपके गठबंधन में कुछ तो समझ बनी होगी  इस बारे में कि आपको कितनी सीटें मिल रही हैं?

गठबंधन के सभी दलों के नेताओं की अखिलेश यादव के आवास में बैठक हुई थी. बैठक में ये तय हुआ कि जिस पार्टी का जिस इलाके में प्रभाव है, पहले वहां जाकर अपने-अपने नेताओं के माध्यम से वोटरों, समर्थकों तक ये बात पहुंचाएं कि हम सरकार बनाकर जातिगत जनगणना, घरेलू बिजली बिल पांच साल माफ करेंगे. गरीबों का इलाज फ्री में इलाज करेंगे. एक समान शिक्षा लागू करेंगे. इन बातों को हम घूम-घूमकर प्रचार करेंगे.

जिस चरण में जिस पार्टी का प्रभाव है उस चरण में सूची बनती जाएगी, टिकट बंटते जाएंगे. राजभर गारंटी के साथ कह रहा है कि चौथा, पांचवां, छठवां और सातवां – हम चार चरणों में चुनाव लड़ेंगे. हमारी पार्टी को मान्यता प्राप्त दल बनाने के लिए हम चुनाव लड़ेंगे. अब आप समझ जाइए कि कितनी सीटें होंगी.

पिछली बार तो आपको आठ सीटें मिलीं थी. क्या अब की बार उतनी ही सीटें मांग रहे हैं या उससे ज्यादा चाहिए?

इसका खुलासा तो हम अभी नहीं कर सकते क्योंकि हमको बताया गया है कि कुछ चीजों का स्कोर न बताया जाए इसलिए दिक्कत होगा. इतना जरूर कह सकते हैं कि भारतीय जनता पार्टी से दुगुना से भी ज्यादा हम लड़ेंगे.

राजनीतिक विश्लेषक और सेफोलॉजिस्ट कह रहे हैं भले ही भाजपा को सौ सीटों का भी नुक़सान क्यों न हो, तब भी उसी की सरकार बनेगी.

देखिए, अपने कमरे में या शहर में बैठकर जो लोग विश्लेषण कर रहे हैं उन्हें धरातल की सच्चाई का पता नहीं है. ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव के साथ जब मऊ में रैली किया, उसी दिन न सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे देश में भूचाल आ गया. और उसी दिन तय हो गया कि भारतीय जनता पार्टी गई.

पूर्वांचल में 163 सीटों पर 12 से 22 प्रतिशत वोट हमारे साथ हैं. ये बात किसी को पता नहीं है. उसके अलावा, हमने अर्धबन्सी, बंजारा, बहेलिया, आरर, खनहार, प्रजापति, पाल, निषाद, कश्यप, धोबी, धनकार, पासी, खटिक, वाल्मिकी, पासवान, नाईं, गोंड आदि छोटी-छोटी जातियों के संगठनों, राजनीतिक संगठनों को एकजुट करने का प्रयास किया है. सभी को समझाने की कोशिश की कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ़ 9 जातियों का जिक्र है. बाक़ी जातियों का कोई जिक्र नहीं होता है. आओ, हम सब साथ मिलकर अपने हिस्से की लड़ाई लड़ेंगे.

अभी ये बात तो किसी को पता नहीं. पूरे उत्तर प्रदेश में 430 सीटों में प्रजापति का वोट है. उनके एक-एक विधानसभा स्थान पर 10 हज़ार से लेकर 40 हज़ार वोट हैं. लगभग उतने ही वोट पाल जाति के भी हैं. उतने वोट कश्यप के भी हैं. निषाद आदि जातियों के भी उतने ही वोट हैं. लेकिन उनकी गिनती नहीं है.

वोटों के समय उनकी कोई पूछ नहीं होती. निषाद, कश्यप, भील जातियों के लोगों ने आरक्षण के लिए बहुत से धरना-प्रदर्शन किए थे. और 17 दिसंबर को रमाबाई मैदान में लाखों लोग आरक्षण लेने आए.

हमारे गृहमंत्री ने उन्हें जुमला सुना दिया था. और लोरी सुनाकर चले गए. उन्हीं के सामने लोगों ने नारा दिया था कि आरक्षण नहीं तो वोट नहीं. गुस्से में लोगों ने मैदान में हज़ारों कुर्सियां तोड़ दीं. उनके गुस्से का भारतीय जनता पार्टी कैसे सामना करेगी?

भाजपा ने जातिवाद को खत्म करने का दावा करते हुए हिंदू धर्म के नाम पर सरकार बनाई और कहा कि इतने दिनों तक मुसलमानों का तुष्टिकरण होता रहा. क्या आप फिर से उत्तर प्रदेश को जातिवाद में फंसा देना चाहते हैं? क्या समाज को आप विभाजित नहीं कर रहे हैं?

देखिए, पहले तो हम हिंदू नहीं हैं. असली हिंदू तो वो होता है जिसका उपनयन संस्कार होता है, जो जनेऊ पहनता है… ऐसे करोड़ों लोग हैं जिन्हें हिंदू के नाम पर जोड़कर उनके वोट लिए जाते हैं. उत्तर प्रदेश में 1,700 थाने हैं. नाईं, गोंड, पाल, प्रजापति, भील, राजभर, चौहान, अर्धबंसी, बहेलिया, खनहार आदि जातियों से कोई भी किसी थाने के दरोगा पद में नहीं है. क्या यही हिंदूवाद है?

75 जिले हैं, एक भी डीएम इन जातियों से नहीं है. 350 तहसीलें हैं 350 एसडीएम-तहसीलदार हैं. एक भी इन जातियों से नहीं है. क्या यही हिंदूवाद है? हिंदू के नाम पर हमें इकट्ठा करके हमारे समाज का हिस्सा लूटा जा रहा है.

उत्तर प्रदेश में अगर जिलेवार बताया जाए, तो बनारस में 26 थाने हैं. एक थानेदार भी इन जातियों से नहीं है. ग़ाज़ीपुर में 26 थाने हैं. एक भी थानेदार इन जातियों से नहीं है. हिंदू के नाम पर प्लेटफॉर्म बनाकर हमें लूटा जा रहा है. हम हक़ मांगने से हमें हिंदू विरोधी कहा जाता है.

राम मंदिर बन रहा है, काशी कॉरिडोर बन रहा है. मथुरा की बात हो रही है… और आपको आरक्षण की पड़ी है.

आप बताइए, मंदिर बन जाने से क्या ग़रीबों को शिक्षा मिल जाएगी? ग़रीबों के बच्चे मास्टर, डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर बन जाएंगे? मथुरा में मंदिर बन जाने से क्या दलित समाज के लोग मास्टर-डॉक्टर बन जाएंगे? इनको शिक्षा-रोज़गार मिल जाएगा?

जिनको मंदिर से लाभ हो वो मंदिर की लड़ाई लड़े. हम शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी के लिए लड़ेंगे. हम अपने गरीब समाज के लिए आवास-शौचालय के लिए लड़ेंगे.

चुनाव आता है तो भारतीय जनता पार्टी हिंदू-मुसलमान की बात करती है. हिंदू का चश्मा पहनती है और उसे सब हिंदू दिखते हैं. इस सरकार को बनाने में मैंने ख़ुद अपनी भूमिका अदा की थी. स्वामी प्रसाद मौर्या ने भी अपनी भूमिका अदा की. दारा चौहान ने अपनी भूमिका निभाई. लेकिन क्या हुआ?

पिछड़ों का हक़ लूटा जा रहा है, क्या वो हिंदू नहीं हैं. मैं आज डंके के चोट पर कहता हूं- योगी आदित्यनाथ सरकार में ठाकुरों को तवज्जो मिल रहा है. समाजवादी सरकार में 6 डीएम थे आज 21 डीएम ठाकुर हैं. आज कोई नहीं बोल पा रहा है. योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद …. तिवारी, ब्रजेश मिश्रा, विजय मिश्रा के घरों पर छापे पड़ते हैं.

खुशी दुबे दस महीने से जेल में हैं. ब्राह्मण होने के नाते इन पर कार्रवाइयां होती हैं. और वही 25 हज़ार का इनामी योगी के….. क्रिकेट खेल रहा है. पुलिस कुछ नहीं कर पा रही है.

पूरे उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों और यादवों के खिलाफ़ कार्रवाइयां होती हैं. कुर्मी, पटेल, केंवट, मल्ला, प्रजापति निषाद आदि पिछड़ी जातियों पर कार्रवाइयां होती हैं. लेकिन योगी का बुलडोज़र ठाकुरों पर नहीं चलता. अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी ये दो ही माफिया दिखते हैं इन्हें. लेकिन और कई माफ़िया हैं उत्तर प्रदेश में. एक-एक पर सौ-सौ मुक़दमे हैं. लेकिन चूंकि वो योगी के बिरादर हैं, इसलिए उन पर कोई कार्रवाई नहीं होगी. यही है इनका हिंदूवाद.

आपका कहना है कि योगी के ठाकुरवाद में ब्राह्मणों की भी कोई जगह नहीं है. दलितों और मुसलमानों को भूल भी जाए, तो ब्राह्मणों को भी प्रताड़ित किया जा रहा है.

आप नजर उठाकर देखिएगा, 17 साल का एक ब्राह्मण लड़का एनकाउंटर में मारा गया. चार दिन पहले खुशी दुबे अपने ससुराल आती है. उस बेटी का क्या कसूर है? ब्राह्मण होने के नाते उसका पूरा परिवार ही अपराधी हो जाता है क्या? उसे जेल भेज दिया गया. क्या ये अन्याय नहीं है? और 25 हज़ार के इनामी को क्रिकेट खिलवा रहे हो? मेरे सामने जो गुज़र रहा है उसी को मैं बता रहा हूं.

हमें हिंदू का चश्मा नहीं, हमें अधिकार चाहिए, सम्मान चाहिए. हमें शिक्षा, स्वास्थ्य चाहिए. और रोज़गार चाहिए. हमें छत चाहिए और शौचालय चाहिए. हमें रोटी, कपड़ा, मकान और दवाई चाहिए. हम इसके लिए लड़ रहे हैं. हिंदू-मुसलमान हम बहुत लड़ चुके हैं.

आदित्यनाथ कह रहे हैं कि जो जुर्म करेगा, उसे सज़ा मिलेगी. हो सकता है ठाकुर जुर्म नहीं कर रहे हों उनके शासनकाल में.

106 मुकदमे हैं. लेकिन वो माफ़िया के रूप में नहीं दिखता है. जिस पर 80 मुकदमे हैं वो माफ़िया नहीं है. बुलडोज़र वहां नहीं जाएगा. 40-40 या 50-50 मुकदमे हैं ठाकुरों के ऊपर. उन पर बुलडोज़र नहीं जाएगा. वो माफ़िया नहीं दिखेगा. क्योंकि वो उनके बिरादर हैं.

मुकेश राजभर का एनकाउंटर हो जाएगा, गौरी यादव का एनकाउंटर हो जाएगा. सुजित मौर्या का एनकाउंटर हो जाएगा. लेकिन जिन पर सौ-सौ मुकदमे दर्ज हैं उनका एनकाउंटर नहीं करेंगे. उन्हें दूध पिलाते हैं.

जो बृहद ओबीसी समुदाय है, जो गैर-यादव हैं, उन्हें ये बताया जा रहा है कि मंदिर के लिए, हिंदू धर्म की रक्षा के लिए थोड़ी-सी क़ुर्बानी दे दीजिए. आरक्षण, रोज़गार, शिक्षा आदि नहीं मिलने से भी कोई बात नहीं है. ऐसे लोगों को क्या आप ये समझा पाएंगे कि उन्हें क़ुर्बानी के नाम पर बलि का बकरा बनाया जा रहा है?

ये सब लोग समझ गए हैं. महंगाई की मार से त्राहिमाम मचा हुआ है. वो महंगाई से छुटकारा पाना चाहते हैं, हिंदू नहीं बनना चाहते हैं. वो अपने बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा चाहते हैं, वो हिंदू नहीं बनना चाहते हैं. जो बच्चे पढ़-लिख गए उनके लिए नौकरी चाहते हैं. जो बेहद पिछ़ड़े हैं वो बीमार पड़ने पर मुफ़्त में इलाज चाहते हैं, हिंदू नहीं बनना चाहते हैं.

हिंदू बनकर क्या करेगा. हिंदू बनकर ही तो गया था न भाजपा में. 68,500 शिक्षक भर्ती में 27 प्रतिशत आरक्षण पिछड़ों का है. 22.5 प्रतिशत आरक्षण अनुसूचित जाति और जनजाति का है. लेकिन योगी जी ने लूट लिया. हमारे साथ अन्याय हुआ. जांच-पड़ताल हुई. पिछड़ा वर्ग आयोग ने कहा कि इन्हें आरक्षण नहीं मिला. उनके साथ अन्याय हुआ है.

योगी भाषण दे रहे थे कि उन्होंने पारदर्शी तरीक़े के भर्ती की है और कोई अन्याय नहीं हुआ है. फिर उसी योगी जी ने अपना जूता अपने ही सिर पर मार लिया. उन्होंने ट्वीट कर दिया कि आरक्षित वर्ग का कोटा पूरा करूंगा. पिछड़े और दलितों के 23 हज़ार पद लूटे. उन्होंने खुद स्वीकार कर लिया था कि कोटा पूरा नहीं किया. इसी तरह वो पिछड़े और दलितों को हिंदू बनाकर उनका हिस्सा लूट रहे हैं.

हम योगी से सीधे पूछते हैं कि कितने राजभरों और अन्य पिछड़ी जातियों को नौकरी मिली? उनके अधिकारी खुलेआम रिश्वत ले रहे हैं. जाति पूछकर गाली देकर भगाया जाता है. एफआईआर नहीं होता है.

मीडिया का एक बड़ा वर्ग ये कह रहा है कि ये दो मंत्रियों का कामकाज़ खराब था और इसे स्वीकार करते हुए इन्होंने इस्तीफ़ा दिया है. भाजपा खुद ये चाहती थी कि ये दूर हो जाएं ताकि चुनाव में कोई परेशानी न हो. ऐसे में जब आपके पास मीडिया का नेटवर्क नहीं है, संसाधन नहीं हैं, आप अपनी बात ओबीसी समुदाय तक कैसे पहुंचाएंगे?

हम लोग बात पहुंचा चुके हैं. ये जो बड़े चैनल हैं, बड़े मीडिया हैं उनके मालिक लोग मोदी की ग़ुलामी कर सकते हैं लेकिन उनके जो कर्मचारी हैं, वो जब गांवों में जा रहे हैं तो भाजपा के ही लोगों को बुलाकर हवा दिखा रहे हैं. गांवों में हाल ये है कि भाजपा का कोई नाम तक नहीं ले रहा है. लोग गुस्से में हैं. विधायकों को भगाया जा रहा है. किसी का कुर्ता फाड़ दिया गया, किसी को थप्पड़ मारा गया. कम से कम तीन दर्जन ऐसी घटनाएं हाल ही में हुई हैं.

हम लोग अपने समाज को बता चुके हैं. हम लोग अब ज़बानी मीडिया के जरिये काम कर रहे हैं. गांवों में अब ये बताया जा रहा है कि अगर टीवी खोलने पर मोदी या योगी या अमित शाह का फ़ोटो दिखता है तो जल्दी चैनल बदलो. कोई देखना नहीं चाहता है. योगी जी और मोदी जी का नाम जो लोग प्रेम से लेते थे अब गाली देकर ले रहे हैं.

और अगर मंत्रियों को हटाना था तो अभी कुछ समय पहले मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ था तब क्यों नहीं हटाया गया था. मीडिया वाले इस बात को नहीं बताते. अगर ये लोग पहले से इस्तीफ़ा दे देते तो इन्हें फर्जी मुकदमों में जेल में डाल देते. इससे बचने के लिए, समाज के लिए इन लोगों ने सही समय पर ये फैसला लिया है.

आखिरी सवाल, क्या और भी कुछ लोग भाजपा से बाहर आ सकते हैं?

एक सूची तो मैंने पहले ही बनाई थी. मैंने अखिलेश के साथ उनके फोटो भी खिंचवाकर रखे हैं. उदाहरण बताऊं तो आपने देखा होगा कि स्वामी प्रसाद मौर्या इस्तीफा लेकर राजभवन पहुंचने के दो मिनट के अंदर ही अखिलेश के साथ उनका फोटो सामने आ जाता है. उसी प्रकार, दारासिंह चौहान जी जब इस्तीफा लेकर राजभवन पहुंच जाते हैं, दो मिनट के अंदर अखिलेश के साथ उनका फोटो सोशल मीडिया में आ जाता है. ये पूरा एक सिस्टम बैठा दिया गया है.

कम से कम डेढ़ दर्जन कैबिनेट मंत्री जो पिछड़े, दलित समाज के लोग हैं, वो मन बना चुके हैं और 20 तारीख तक देखिएगा सब इस्तीफा दे देंगे. इनके साथ कोई रहने वाले नहीं हैं.

इस साक्षात्कार को देखने के लिए इस लिंक पर जाएं.