अखिलेश यादव की सरकार के दो सालों में ही अपर्णा यादव को लगने लगा था कि सपा में उनका भविष्य बहुत उज्जवल नहीं हो सकता. 2014 में उनके नरेंद्र मोदी की तारीफ़ करने से शुरू हुआ सिलसिला अब जाकर उनके भाजपा में शामिल होने पर अंजाम पर पहुंचा है.
चार साल पहले की बात है लोकसभा का चुनाव चरम पर था. हरदोई की एक जनसभा में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए कहा कि उनके पास दो सौ गाड़ियां है. इसमें से कुछ चार-पांच करोड़ की है. अब इन पांच करोड़ क़ीमत की गाड़ियों की मालकिन अपर्णा यादव मोदी की ही पार्टी में शामिल हो गई हैं.
मुलायम सिंह यादव की पुत्रवधू अपर्णा यादव के भाजपा में जाने से भाजपा और सपा दोनों ख़ुश हैं. अपर्णा मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता के पुत्र प्रतीक यादव की पत्नी है. यह बात सभी जानते हैं कि अखिलेश साधना गुप्ता को पसंद नहीं करते और इसी कारण प्रतीक यादव कभी अखिलेश के करीबी नहीं बन पाए.
अखिलेश का सोचना है कि परिवार में झगड़े के एक बड़े कारणों में साधना गुप्ता की महत्वाकांक्षा भी रही है. साधना के करीबी रिश्तेदार भी अपर्णा के बाद भाजपा में चले गए हैं. अपर्णा एक ठाकुर परिवार से आती है. उनके पिता पत्रकार थे और माता नगर निगम में नौकरी करती हैं.
अखिलेश सरकार बनने के दो साल बाद ही अपर्णा को यह समझ आने लगा था कि अखिलेश यादव की सत्ता के चलते उनका भविष्य सपा में बहुत बेहतर नहीं रहने वाला. इसी कारण उन्होंने 2014 में मोदी के स्वच्छता अभियान की जमकर प्रशंसा करके अखिलेश सरकार को असहज कर दिया था.
बताया जाता है कि अखिलेश सरकार में खनन मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता का ही संरक्षण था और बड़े ज़िलों के खनन के ठेके उनके आशीर्वाद से ही तय होते थे. मुलायम सिंह इसमें ख़ामोश रहते थे और इससे यह संदेश जाता था कि गायत्री को उनका भी समर्थन है.
यही कारण था कि परिवार में विवाद बढ़ने के बाद अखिलेश ने गायत्री को अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था. इसके बाद साधना गुप्ता की नाराज़गी के कारण ही गायत्री को दोबारा मंत्रिमंडल में लेना पड़ा.
इस बीच साधना गुप्ता और उनके बेटे प्रतीक पर खनन में काफ़ी पैसा कमाने के आरोप भी लगे. जिस समय यादव परिवार में झगड़े चरम पर थे उस समय अपर्णा का झुकाव शिवपाल कैंप की तरफ़ ज़्यादा था.
2017 में साधना गुप्ता ने मुलायम सिंह से अपने बेटे प्रतीक को टिकट दिलवाने को कहा मगर अखिलेश ने साफ़ कह दिया कि प्रतीक और उनमें एक ही राजनीति में रह सकता है. बाद में इस बात पर समझौता हुआ कि अपर्णा को टिकट दिया जाए, तब कैंट विधानसभा से अपर्णा चुनाव लड़ीं और भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी से चुनाव हार गईं.
अपर्णा को लगता था कि सपा नेताओं ने उनकी मदद नहीं की और यह बात कुछ हद तक सही भी है क्योंकि यादव बिरादरी के लोग प्रतीक को नेताजी का बेटा नहीं मानते. उनके लिए प्रतीक यादव नहीं, प्रतीक गुप्ता है.
2017 के चुनाव के बाद जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने तो अपर्णा ने उनसे रिश्ते बेहतर करना शुरू किए. अपर्णा की उनकी साथ कई फोटो ने अखिलेश यादव को और नाराज़ कर दिया.
इस बीच अपर्णा और योगी की इस जुगलबंदी ने अखिलेश का गुस्सा और बढ़ा दिया और यह तय माना जाने लगा कि अब अखिलेश यादव के दरबार में अपर्णा की कभी नहीं चलेगी इसलिए इस बार जब अपर्णा ने टिकट मांगा तो अखिलेश ने साफ़ मना कर दिया.
इसके बाद अपर्णा के पास इस बात के अलावा कोई चारा नहीं बचा था कि वो भाजपा जॉइन कर लें और उन्होंने यही किया. अब देखना यह है कि क्या भाजपा अपर्णा को महत्व देगी या अपर्णा भाजपा में दूसरी मेनका गांधी बनकर रह जाएंगी.
(लेखक लखनऊ से निकलने वाले दैनिक 4 PM के संपादक हैं.)