बीते चार सालों में बिके कुल चुनावी बॉन्ड में से 92 फीसदी एक करोड़ रुपये मूल्य के: आरटीआई

स्टेट बैंक से प्राप्त जानकारी के मुताबिक़, पिछले चार वर्षों में लगभग 7,995 करोड़ रुपये के 15,420 चुनावी बॉन्ड बेचे गए. इनमें से 7,974 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के 15,274 चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए. 20 करोड़ रुपये से कुछ अधिक मूल्य के नहीं भुनाए गए बॉन्ड प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष भेजे गए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

स्टेट बैंक से प्राप्त जानकारी के मुताबिक़, पिछले चार वर्षों में लगभग 7,995 करोड़ रुपये के 15,420 चुनावी बॉन्ड बेचे गए. इनमें से 7,974 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के 15,274 चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए. 20 करोड़ रुपये से कुछ अधिक मूल्य के नहीं भुनाए गए बॉन्ड प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष भेजे गए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त जानकारी से पता लगा है कि 2018 से 2021 के बीच 18 चरणों में हुई चुनावी बॉन्ड की बिक्री में कुल बेचे गए बॉन्ड में से 92 फीसदी बॉन्ड एक करोड़ रुपये मूल्यवर्ग के थे.

चुनावी बॉन्ड की बिक्री के लिए अधिकृत भारतीय स्टेट बैंक की शाखाओं के माध्यम से अब तक 19 चरणों में चुनावी बॉन्ड की बिक्री की जा चुकी है. बिक्री का आखिरी चरण इसी साल एक से 10 जनवरी के बीच संपन्न हुआ था.

आरटीआई कार्यकर्ता कमोडोर लोकेश के. बत्रा (सेवानिवृत्त) द्वारा जुटाई गई जानकारी के मुताबिक, पिछले चार वर्षों में करीब 7,995 करोड़ रुपये के 15,420 चुनावी बॉन्ड बेचे गए. इनमें से 7,974 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के 15,274 चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए.

केवल 20 करोड़ रुपये से थोड़े ही अधिक मूल्य के बॉन्ड को नहीं भुनाया गया, बाद में इन बॉन्ड या कहें इस राशि को प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में स्थानांतरित कर दिया गया.

बत्रा द्वारा 28 अक्टूबर 2021 को दायर एक आरटीआई के जवाब में एसबीआई ने उन्हें 18 नवंबर को जानकारी उपलब्ध कराई. जिसमें बताया गया कि 2018 से 2021 के बीच 18 चरणों में उसकी 17 शाखाओं के माध्यम से चुनावी बॉन्ड बेचे गए थे.

प्राप्त जानकारी से पता लगा कि करीब 80 फीसदी बॉन्ड सिर्फ चार शहरों में बेचे गए थे. मुंबई में 26.86%, कोलकाता में 25.04%, नई दिल्ली में 14.33% और हैदराबाद में 13.86% बॉन्ड बेचे गए. इसके बाद, करीब 18% बॉन्ड अन्य चार शहरों चेन्नई, भुवनेश्वर, गांधीनगर और बेंगलुरू शहरों में बेचे गए.

एसबीआई द्वारा प्रदान की गई जानकारी से यह भी पता चला है कि बेचे गए चुनावी बॉन्डों में से अधिकांश, 92% से अधक, एक करोड़ रुपये के उच्चतम मूल्यवर्ग से थे. इनकी कुल संख्या 7,405 थी और कीमत 7,405 करोड़ रुपये.

इसके बाद नंबर आता है 10 लाख रुपये के बॉन्ड का. इनकी संख्या 5,680 रही, जबकि एक लाख रुपये वाले बिके हुए बॉन्ड की संख्या 2155, दस हजार वाले बॉन्ड की संख्या 122 और एक हजार वाले बिके बॉन्ड की संख्या महज 55 रही.

जब बात इन बॉन्ड को भुनाने या इनके नकदीकरण की आती है तो एसबीआई के जवाब से पता चलता है कि इन्हें 13 शहरों में भुनाया गया था. 5,502 करोड़ रुपये से अधिक की सबसे बड़ी राशि नई दिल्ली मुख्य शाखा में, उसके बाद हैदराबाद मुख्य शाखा में लगभग 825 करोड़ रुपये, कोलकाता मुख्य शाखा में 561 करोड़ रुपये और भुवनेश्वर मुख्य शाखा में 554 करोड़ रुपये के बॉन्ड भुनाए गए.

प्राप्त जानकारी से पता लगा है कि सबसे अधिक बॉन्ड कोलकाता (4,911) में बेचे गए, उसके बाद मुंबई (3,201), दिल्ली (2,055) और हैदराबाद (1,878) का नंबर आता है.

आर्थिक मामलों के विभाग से बत्रा को यह भी पता लगा कि कुल 6,64,250 इलेक्टोरल बॉन्ड फॉर्म छपे थे. इनमें से 2,65,000 फॉर्म एक हजार रुपये वाले बॉन्ड के थे. दस हजार रुपये वाले बॉन्ड के फॉर्म की संख्या भी इतनी ही थी.

एक लाख रुपये वाले बॉन्ड के 93,000 फॉर्म छपे थे और दस लाख रुपये वाले बॉन्ड के 26,600 फॉर्म छपे थे, जबकि एक करोड़ रुपये वाले बॉन्ड के 14,650 फॉर्म छपे थे.

आर्थिक मामलों के विभाग में यह आरटीआई बत्रा ने 28 अक्टूबर 2021 को लगाई थी, जिसका जवाब उन्हें 19 नवंबर को मिला. जवाब के मुताबिक, चुनावी बॉन्ड छपवाने में उस समय तक करीब 1.86 करोड़ रुपये का खर्च हुआ था, जिसका भुगतान वित्त वर्ष 2019-20 के बजट के तहत किया गया था.

बहरहाल, चुनावी बॉन्ड के जरिये चंदे में अस्पष्टता चिंता का विषय बनी हुई है. वर्ष 2017 में स्वयं चुनाव आयोग ने इस पर चिंता जताई थी.

2018 से सुप्रीम कोर्ट में इस संबध में कई याचिकाएं लगाई जा चुकी हैं. सुप्रीम कोर्ट चुनावी बॉन्ड पर अंतरिम रोक लगाने से दो बार इनकार कर चुका है.

राजनीतिक दल सीपीआई (एम) भी 2021 में चुनावी बॉन्ड की संवैधानिक वैधता पर सवाल खड़े करते हुए तत्काल सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी कई मौकों पर कह चुके हैं कि इस मामले में तत्काल सुनवाई की जरूरत है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)