जनवरी की शुरुआत तक राजस्थान, झारखंड, आंध्र प्रदेश में कोविड-19 से हुई अतिरिक्त यानी आधिकारिक आंकड़े से ज़्यादा मौतें, सरकारी संख्या से 12 गुना से अधिक थीं. रिकॉर्ड के बेतरतीब रखरखाव और लालफीताशाही के कारण हज़ारों परिवार मुआवज़े से वंचित हो सकते हैं.
नई दिल्ली: पिछले साल, जिस समय नोवेल कोरोना वायरस ने मूल से कहीं ज्यादा घातक रूप अख्तियार कर लिया था- जिसने भारत में कोविड-19 की दूसरी प्रचंड लहर को जन्म दिया- उसी समय श्रवण सिंह खुद को सुरक्षित रखने के लिए अपने घर आ गए.
सिंह को लगा कि तमिलनाडु की तुलना में, जहां वे काम करते थे, राजस्थान के सीकर में उनके कोरोना से बचने की संभावना कहीं ज्यादा है.
धोद स्थित अपने गांव पहुंचने के डेढ़ महीने बाद 14 मई को उनमें कोविड-19 के लक्षण प्रकट हुए. उनके परिवार ने उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने पर सीकर के सरकारी अस्पताल में भर्ती करवाया. 16 मई को उनकी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आई और अगले दिन वे गुजर गए.
उनके भाई जीतू सिंह ने द रिपोर्टर्स कलेक्टिव से बात करते हुए कहा, ‘यह सब बहुत ही अचानक हुआ.’ लेकिन श्रवण की गिनती कोविड से होने वाली आधिकारिक मौतों में नहीं की गई, जबकि उनकी मृत्यु सरकारी अस्पताल में इस संक्रमण से हुई थी.
जीतू ने बताया, ‘मेरे भाई के मृत्यु प्रमाण-पत्र पर मृत्यु का कारण दर्ज नहीं था. हमें अस्पताल से ऐसा कोई कागज नहीं दिया गया, जिससे यह पता चलता कि मेरे भाई की मौत कोविड से हुई.’
चूंकि कोविड पॉजिटिव रिपोर्ट के आने के बावजूद कोविड-19 को उनकी मौत का कारण नहीं माना गया, इसलिए उनकी पत्नी रीना राठौड़ कोविड-19 के मृतकों की विधवाओं के लिए राज्य सरकार द्वारा घोषित एक लाख रुपये की मदद की पात्र नहीं हो पाईं.
इस योजना की घोषणा जून, 2021 में की गई थी. मुख्यमंत्री की ‘कोरोना सहायता योजना’ के लिए आनेवाले आवेदनों की छंटनी का काम ग्राम पंचायत करती है. ग्राम पंचायत द्वारा परिवार को बताया गया कि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में श्रवण के कोविड-19 से संक्रमित होने को लेकर कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कोविड-19 से मरने वाले सभी व्यक्तियों के परिजनों को 50,000 रुपये का मुआवजा देने का वादा किया था. राठौड़ इस मुआवजे की पात्र हो सकती थीं. इसके पात्र लोगों में वे सब शामिल थे, जिनकी मृत्यु टेस्ट में कोविड पॉजिटिव आने या क्लीनिकल तौर पर नोवेल कोरोना वायरस की पुष्टि होने के 30 दिनों के भीतर हो गई थी.
हालांकि, राज्य सरकार ने प्रमाण-पत्र दिलाने के लिए हर जिले में शिकायत निपटारा समितियों का गठन किया है, लेकिन सिंह के परिवार को इसकी प्रक्रिया के बारे में जानकारी नहीं है.
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा देशभर के जिलों से जमा किए गए मृत्यु रजिस्ट्रेशन के आंकड़ों से जानकारी मिलती है कि सिंह अकेले नहीं हैं. वे उन लाखों लोगों में शामिल हैं, जिनकी मृत्यु को कोविड से होने वाली मृत्यु के आधिकारिक आंकड़ों में नहीं गिना गया था.
मृत्यु के आंकड़े को छिपाने के पीछे मंशा संभवतः महामारी के कुप्रबंधन के आरोपों से बचने की रही हो. हालांकि, सर्वोच्च न्यायाल के दबाव में कोविड से होने वाली मृत्यु की सरकारी परिभाषा में बदलाव हो सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि हजारों मामलों में कोविड-मृत्यु के आधिकारिक रिकॉर्ड या जरूरी कागजात की गैरमौजूदगी या अफसरशाही के मकड़जाल के कारण मुआवजे का दावा खारिज हो सकता है.
द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने आधिकारिक आंकड़ों के अतिरिक्त मृत्यु की गणना करने के लिए राजस्थान, झारखंड और आंध्र प्रदेश का चुनाव किया. इसके तहत रिपोर्ट न की गई मौतों की संख्या का पता लगाने के लिए महामारी के दौरान हुई सभी मौतों की तुलना सामान्य साल में होने वाली मौतों से की गई.
हालांकि, सामान्य से ज्यादा होने वाली सभी मौतों का कारण कोरोना को नहीं माना जा सकता है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कई मौतों के पीछे एक कारण कोविड-19 हो सकता है.
तीन राज्यों में मार्च, 2020 से जून, 2021 के बीच 2019 के उन्हीं महीनों की तुलना में 3,59,496 अतिरिक्त मौतें दर्ज की गईं. इसका अर्थ है कि भारत की 13 फीसदी आबादी में हुई (आधिकारिक से) अतिरिक्त मृत्यु लगभग आईसलैंड की जनसंख्या के बराबर थी- जबकि केंद्र सरकार के हिसाब से 4 जनवरी तक (सिर्फ) 4,82,107 मृत्यु ही हुई है.
जनवरी तक इन राज्यों में कोविड-19 से हुई मृत्यु का आधिकारिक आंकड़ा 28,609 था. हमारे आकलन के अनुसार सिर्फ इनके परिवारों को कुल 140 करोड़ रुपये मुआवजा मिलना चाहिए. अगर हम सभी अतिरिक्त मौतों को वास्तव में कोविड से हुई मौतें मानें तो यह रकम कई गुना हो जाएगी.
अतिरिक्त मौतें
अगस्त, 2021 में द रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने गुजरात में 68 नगरपालिकाओं में रजिस्टर्ड मौतों का विश्लेषण ‘वॉल ऑफ ग्रीफ’ परियोजना के तहत किया, जिसका मकसद महामारी के दौरान हुई मौतों के सबंध में सूचनाएं इकट्ठा करना तथा उसका प्रसार करना है.
सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर तैयार किए गए कलेक्टिव के आकलन के अनुसार गुजरात में मई, 2021 के पहले हफ्ते तक की महामारी की अवधि में 2.81 लाख अतिरिक्त मौतें हुईं.
इस आंकड़े को आधार बनाकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधार्थियों द्वारा किए गए अध्ययन ने 54 नगरपालिकाओं, जिनमें गुजरात की कुल 5 फीसदी आबादी रहती है, में 16,000 अतिरिक्त मौतें होने का अनुमान लगाया.
दूसरी ओर, राज्य सरकार के आधिकारिक आंकड़े में इस अवधि में पूरे सूबे में महज 10,075 कोविड-19 मृत्यु को दर्ज किया था.
इसके बाद द रिपोर्टर्स कलेक्टिव और 101 रिपोर्टर्स ने देशभर में 576 जिला प्राधिकारियों के पास आरटीआई आवेदन दायर करते हुए जिलों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों में महीनावार मौतों का आंकड़ा देने की मांग की.
छह महीने गुजर जाने के बाद सिर्फ 71 जिलों का जवाब मिल सका और उनके जवाब ज्यादातर असंगत थे- मृत्यु का मासिक आंकड़ा देने की जगह उन्होंने वार्षिक आंकड़ा दिया था और यह भी स्पष्ट नहीं था कि यह आंकड़ा पूरे जिले का था या या जिले के शहरी/ग्रामीण इलाकों का- जिसके कारण तुलना के लिए इनका इस्तेमाल करना मुमकिन नहीं था. सिर्फ 42 जिलों द्वारा मुहैया कराए गए रिकॉर्ड विश्लेषण करने के हिसाब से उपयोगी थे.
इन 42 जिलों के आंकड़ों में कलेक्टिव ने आंध्र प्रदेश, राजस्थान और झारखंड के बीस जिलों के मृत्यु के आंकड़ों का विश्लेषण अतिरिक्त मृत्यु की राज्यवार संख्या का अनुमान लगाने के लिए किया. राज्यों का विश्लेषण अलग-अलग किया गया, क्योंक मृत्यु का उनका आंकड़ा ठीक-ठाक बड़ा था और यह हर राज्य की 6 से 40 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व कर रहा था.
आंकड़े क्या दिखाते हैं
मार्च, 2020 से जून, 2021 तक इन 20 जिलों के क्षेत्रों में कुल अतिरिक्त मौतों की संख्या, 2019 के इन्हीं महीनों की तुलना में 55,042 थी. यह राज्य सरकार द्वारा दिए गए इन जिलों के कोविड से होने वाली मृत्यु के आधिकारिक आंकड़े के छह गुने से ज्यादा है.
ऐसे मामलों में, जिनमें किसी जिले के हिस्सों के लिए आंकड़ा उपलब्ध था, उनमें भी हमने उन क्षेत्रों में 4 जनवरी तक अतिरिक्त मृत्यु की तुलना पूरे जिले में हुई कोविड-19 मृत्यु की संख्या से की. हमने इस आंकड़े को पूरे राज्य पर प्रक्षेपित करने (एक्स्ट्रापोलेट) करने के लिए 2011 की जनगणना के आंकड़ों का भी इस्तेमाल किया.
चलिए इसे समझते हैं.
राजस्थान में 7 फीसदी से कम आबादी में 10,438 अतिरिक्त मौतें थीं- जबकि सरकार के हिसाब से पूरे राज्य में कोविड-मौतों की संख्या सिर्फ 8,964 है. 6.4 फीसदी जनसंख्या- चार जिलों और एक नगरपालिका- पर अतिरिक्त मौतों को पूरे राज्य पर प्रक्षेपित करने पर राजस्थान में अतिरिक्त मौतों की कुल संख्या 1,62,039 निकलती है. यह राज्य की कोविड-19 मृत्यु के आधिकारिक आंकड़े का करीब 18 गुना है.
जनवरी की शुरुआत तक के आधिकारिक आंकड़ों के हिसाब से ही देखें, तो प्रति परिवार 50,000 की दर से कोविड मृतकों के परिजनों के मुआवजे के तौर पर सरकार को 44.82 करोड़ रुपये देने होंगे.
विधि सेंटर फॉर लीगल पॅलिसी में फेलो और स्वास्थ्य कानून एवं नीति की शोधकर्ता श्रेया श्रीवास्तव कहती हैं, ‘जिला स्तर पर शिकायत निपटारा समितियों का गठन एक सही दिशा में उठाया गया कदम है. लेकिन अतिरिक्त मौतों की इतनी बड़ी संख्या का मतलब है कि कोविड-19 से हुई मौतों के प्रमाण-पत्र के लिए इन समितियों के पास आने वाले आवेदनों की संख्या काफी ज्यादा होगी... उनकी शिकायतों के सही तरीके से निपटारे के लिए जरूरी है कि ये समितियां पहुंच के भीतर और पारदर्शी हों.’
इसके अलावा केंद्र सरकार की गाइडलाइंस के हिसाब से कोविड-19 प्रमाण-पत्र के लिए मृतक के परिवार को टेस्ट की रिपोर्ट जमा करानी होगी या क्लीनिकल तरीके से कोविड की पुष्टि करने वाला कोई मेडिकल रिकॉर्ड दिखाना होगा, जिससे यह पता चलना चाहिए कि उस व्यक्ति की मृत्यु टेस्ट रिपोर्ट/क्लीनिकल जांच के 30 दिनों के भीतर हुई थी.
श्रीवास्तव यह भी कहती हैं, ‘लेकिन जिस समय महामारी अपने चरम पर थी, उस दौरान ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों के कई मृतकों की पहुंच टेस्टिंग सुविधाओं तक नहीं थी, न ही उन्हें अस्पताल ही नसीब हुआ, साथ ही कई अस्पतालों ने सही तरीके से रिकॉर्ड भी संभालकर नहीं रखे. ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसे मृतकों के परिवारवाले किस तरह से मुआवजे का दावा कर सकते हैं.’
और उसके बाद महामारी के दौरान होने वाली ऐसी मौतें भी थीं, जिसका कारण प्रत्यक्ष तौर पर वायरस नहीं था. मिसाल के लिए जब पिछले साल कोविड-19 के मामले तेजी से बढ़ने लगे तब मरीजों से भरे हुए अस्पतालों को अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रस्त कई मरीजों को भर्ती करने से इनकार करना पड़ा, जिनमें से कुछ की मृत्यु घर में हो गई. सरकार के पास इन मौतों का रिकॉर्ड रखने कोई निश्चित तरीका नहीं है.
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में इमरजेंसी मेडिसिन के असिस्टेंट प्रोफसर डॉ. सतचित बलसारी कहते हैं, ‘एक तरीका यह है कि मेडिकल प्रमाण-पत्र में एक अलग श्रेणी बनाई बनाई जाए जिसके तहत अगर मृत्यु का कारण प्रत्यक्ष तौर पर कोविड-19 संक्रमण नहीं है, तो भी उस मौत को महामारीजन्य माना जा सकता है.’
वे आगे कहते हैं, ‘महमारी में हुई हर मौत की गणना की जानी चाहिए, लेकिन मुआवजा देना चूंकि हर सरकार के लिए एक वित्तीय सवाल है, इसलिए इस पर नीति-निर्माताओं को सोचना होगा. एक समाज के तौर पर हमें इस पर आम सहमति बनानी चाहिए कि महामारी से अप्रत्यक्ष तौर पर हुई मौतों की गिनती कैसे की जाए और किस मकसद से की जाए.’
आंध्र प्रदेश में मृत्यु पंजीकरण के आंकड़े महामारी के काल में- जून, 2021 तक, इसकी करीब 19 फीसदी जनसंख्या में 33,099 अतिरिक्त मौतों को उजागर करते हैं. यह जनवरी की शुरुआत तक राज्य के आधिकारिक कोविड मौतों के आंकड़े- 14,449 से ज्यादा है- जिसका ही मुआवजा 72.49 करोड़ रुपये बैठता है.
यह आंकड़ा चार जिलों: कुरनूल, नेल्लौर, श्रीकाकुलम और विशाखापत्तनम की शहरी आबादी और कडप्पा और विजियानगरम की पूरी आबादी से संबंधित है. इस आंकड़े को पूरे आंध्र प्रदेश पर प्रक्षेपित करें तो राज्य में अतिरिक्त मौतों का आंकड़ा 1,68,408 बैठता है, जो राज्य सरकार के आधिकारिक कोविड-19 मृत्यु आंकड़े का 11 गुना है.
यही गणना झारखंड के आठ जिलों और एक जिले की शहरी आबादी, जो कुल मिलाकर राज्य की आबादी का 39 फीसदी है, पर करने पर राज्य में हुई अतिरिक्त मौतों की संख्या 29,049 बैठती है, जो 4 जनवरी 2022 तक राज्य की कोविड मौतों के आधिकारिक आंकड़े 5,147 का पांच गुना है. इस आंकड़े के हिसाब से देय मुआवजा 25.73 करोड़ रुपये बैठता है.
मुआवजे की पहेली
सरकारों द्वारा कोविड-19 मौतों को दबाने या छिपाने के पीछे दो कारण हो सकते हैं: एक, अपनी छवि को बचाना और दो, मुआवजे का वित्तीय भार.
शुरुआत में भारत सरकार ने वित्तीय दिक्कतों का हवाला देते हुए मुआवजा देने की जिम्मेदारी को स्वीकार नहीं किया. जून, 2021 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी) (एनडीएमए) जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं, को मुआवजा या अनुग्रह राशि का भुगतान करने के लिए सरकार को दिशानिर्देश जारी करना पड़ा.
सितंबर, 2021 में एनडीएमए के दिशानिर्देशों के अनुसार कोविड-19 से मर नेवालों के परिवारों को राज्य आपदा राहत कोष (स्टेट डिजास्टर रेस्पांस फंड) से, जिसे कुल राशि का कम से कम से 75 प्रतिशत केंद्र सरकार से मिलता है, 50,000 रुपये मिलने हैं.
परिवार के मेडिकल खर्चे और परिवार की सदस्य की मौत से होने वाले नुकसान की तुलना में मुआवजे की यह राशि भले ही छोटी हो, लेकिन 4 जनवरी, 2022 तक कोविड मृत्यु के आधिकारिक आंकड़े के हिसाब से ही दिए जाने वाले मुआवजे की राशि कम से कम 2,410.08 करोड़ होगी. और अगर इसमें अतिरिक्त मौतों को भी शामिल किया जाए, तो यह कहीं ज्यादा हो जाएगी.
इस दिशानिर्देश में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय मेडिकल अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की वे शर्तें शामिल हैं, जिन्हें कोविड-19 से हुई मौतों को पूरा करना होगा.
इसके तहत शर्त यह है कि व्यक्ति की मृत्यु पीसीआर टेस्ट या मॉलीक्यूलर टेस्ट या रैपिड एंटीजेन टेस्ट में कोविड पॉजिटिव आने के तीस दिनों के भीतर होनी चाहिए. इसके विकल्प के तौर पर पॉजिटिव टेस्ट परिणाम न होने की स्थिति में व्यक्ति को कोविड-19 होने की पुष्टि क्लीनिकल तरीके से होनी चाहिए. यहां भी ‘कोविड-19 मृत्यु’ में गिनती के लिए इस पुष्टि के 30 दिनों के भीतर मृत्यु की शर्त है.
अगर व्यक्ति की मृत्यु अस्पताल में या इन-पेशेंट फैसिलिटी में टेस्ट में पॉजिटिव आने के 30 दिनों के बाद भी होती है, तो भी उन्हें कोविड-19 मृत्यु में शामिल किया जा सकता है, अगर उसे भर्ती कराने से लेकर उसकी मृत्यु तक उसका इलाज उसी जगह पर हुआ हो.
और सबसे आखिरी बात, उन मामलों में जिससे मृत्यु के कारण का मेडिकल प्रमाण-पत्र उपलब्ध है, उन्हें कोविड-19 मृत्यु माना जाएगा.
इस दिशानिर्देश में शिकायत निपटारा समितियों के गठन की भी व्यवस्था की गई है. तकनीकी तौर पर इन समितियों को ‘कोविड-19 मृत्यु जांच समिति’ भी कहा जा सकता है.
इन्हें ऐसे मामलों को देखना है, जिनमें मुआवजा मांगने वालों को मृत्यु का कारण बताने वाला मृत्यु प्रमाण-पत्र नहीं दिया गया है या जो मृत्यु का बताए गए कारण से संतुष्ट नहीं हैं.
हालांकि, इस प्रक्रिया में महामारी से जुड़ी कई मौतों का छूट जाना तय है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि असली परिणाम- यहां तक कि मुआवजा योग्य मौतों के लिए भी- राज्य और जिला स्तर पर अपनाए गए तरीके की दक्षता पर निर्भर करेगा.
सोशल एकाउंटिबिलिटी फोरम फॉर एक्शन एंड रिसर्च में नेशनल रिसोर्स पर्सन खुश वछारजानी ने मुआवजे का वितरण करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा जारी मानक प्रक्रिया (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) का अध्ययन किया.
उन्होंने पाया कि प्राधिकारियों ने दिशानिर्देशों का व्यापक तरीके से प्रचार नहीं किया है और ऑफलाइन और ऑनलाइन, दोनों ही रूपों में आवेदन की प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है. इससे मुआवजे का दावा करने की प्रक्रिया की जानकारी लोगों को नहीं मिल पा रही है.
वछारजानी कहते हैं, 'जिनके पास कोविड-19 मृत्यु प्रमाण-पत्र नहीं है, उन्हें क्या करना है, इसके बारे में राज्य सरकार के दिशानिर्देश कोई स्पष्ट जानकारी नहीं देते हैं.'
वे आगे कहते हैं, 'जिन लोगों की कोविड-19 मृत्यु आधिकारिक तौर पर दर्ज है, सरकार को ही उनके परिवारों से संपर्क करना चाहिए. आवेदन करने की प्रक्रिया से गुजरने की बाध्यता सिर्फ उन लोगों के लिए होनी चाहिए, जिनके पास कोविड-19 प्रमाण-पत्र नहीं है. इसके अलावा लोगों के पास आवेदन जमा करने के और भी तरीके होने चाहिए. इससे लोग ज्यादा सरलता से इस योजना का लाभ उठा पाएंगे.'
उनकी बातें जमीनी हकीकत को बयां करती हैं.
आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले के जिला मेडिकल तथा स्वास्थ्य अधिकारी पालिवेला श्रीनिवास राव ने जनवरी में कलेक्टिव को बताया कि उनके जिले में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत मुआवजे की 6,000 के करीब अर्जियां आई हैं.
जिले में कोविड से हुई मौत का आधिकारिक आंकड़ा 1,290 है, जिसका मतलब है कि आवेदनों की संख्या आधिकारिक मौतों की चार गुनी से ज्यादा है.
राव ने बताया, ‘इनमें से करीब 1,000 लोगों को मुआवजा मिल गया है.’ साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि मुआवजे से वंचित लोग वे हैं, जो जिनकी मृत्यु कोविड पॉजिटिव आने के 30 दिनों के बाद हुई या जिनका पॉजिटिव रैपिड एंटीजेन टेस्ट रिपोर्ट किसी निजी अस्पताल या लैब का है.
(स्वास्थ्य मंत्रालय और आईसीएमआर के दिशानिर्देशों के अनुसार रैपिड एंटीजेन टेस्ट के पॉजिटिव रिजल्ट विचारयोग्य है)
19 जनवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा देने में सुस्ती के लिए राज्य सरकारों को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट में जमा कराई गई एक जानकारी के मुताबिक, 13 राज्यों में 5.67 लाख दावों में सिर्फ 3.42 लाख दावेदारों को ही मुआवजा दिया गया है.
16 दिसंबर 2021 तक राजस्थान ने सिर्फ 8,577 लोगों के मुआवजे को स्वीकृत किया है जबकि झारखंड के लिए यह संख्या शून्य है.
सुप्रीम कोर्ट ने अनुग्रह राशि के लिए उनके पास आए आवेदनों की संख्या न बताने के लिए राजस्थान सरकार की खिंचाई की और कोविड-19 मृत्यु के राज्य सरकार के आंकड़े को अविश्वसनीय बताया.
स्वास्थ्य और नीति विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड 19 मौतों के सटीक दस्तावेजीकरण के अभाव और सरकारों द्वारा अपनाए गए मुआवजा देने के अलग-अलग तरीकों ने प्रक्रियाओं का जंजाल खड़ा कर दिया है. ऐसे में मृतकों के परिजनों को निष्पक्ष तरीके से मुआवजा देने का काम प्रभावित होता है.
श्रीवास्तव कहते हैं, ‘भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य विपदाओं का सामना करने के लिए कोई ठोस कानूनी फ्रेमवर्क नहीं है. वर्तमान महामारी अधिनियिम का संबंध लोगों के अधिकारों से ज्यादा पुलिसिंग से है. आपदा प्रबंधन अधिनियम भी कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी की कल्पना नहीं करता है.
प्रक्रिया के बारे में नोट:
छोटी आबादी के लिए अतिरिक्त मौतों को पूरे राज्य पर प्रक्षेपित करने की प्रविधि को लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिकित्सक और जन स्वास्थ्य सहयोग के सह-संस्थापक योगेश जैन का कहना है:
ऐसे प्रक्षेपण से निकलने वाली संख्या वास्तविक से कम या ज्यादा हो सकती है, लेकिन 6-9 प्रतिशत आबादी एक अच्छा सैंपल है और महामारी मृत्यु-दर के पैमाने को समझने के लिए इसे पूरे राज्य पर प्रक्षेपित करना, गलत नहीं होगा.’
जिन राज्यों के आंकड़े का विश्लेषण कलेक्टिव ने किया, उनमें कई बड़े नगर निगमों और ज्यादा कोविड मृत्यु वाले सघन आबादी वाले क्षेत्रों (मसलन, जयपुर और अलवर) को शामिल नहीं किया गया, जिसके कारण हमारा आकलन वास्तविक से कम रहेगा.
आंध्र प्रदेश के डेटा में ग्रामीण आबादी को शामिल नहीं किया गया, जिसमें मामले ज्यादा होंगे, लेकिन मौतों का रजिस्ट्रेशन और उनकी रिपोर्टिंग कम हुई होगी.
(सभी लेखक रिपोर्टर्स कलेक्टिव के सदस्य हैं.)