भारत नेताजी की विरासत को आगे बढ़ाए, न कि अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए: बोस के परपोते

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते और जीवनी लेखक सुगत बोस ने करण थापर के साथ बातचीत में कहा कि अगर नेताजी जीवित होते तो धर्म संसद से मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान करने की किसी की हिम्मत नहीं होती.

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते और जीवनी लेखक सुगत बोस ने करण थापर के साथ बातचीत में कहा कि अगर नेताजी जीवित होते तो धर्म संसद से मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान करने की किसी की हिम्मत नहीं होती.

सुगत बोस और करण थापर. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: द वायर  को दिए एक साक्षात्कार में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते और उनकी जीवनी के लेखक सुगत बोस ने कहा है कि आज अगर नेताजी होते तो वे नरेंद्र मोदी सरकार के मुसलमानों के साथ किए जा रहे बर्ताव के सख्त खिलाफ होते और इसका तीखा व मुखर विरोध जताते.

प्रोफेसर सुगत बोस ने धर्म संसद की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘अगर नेताजी जिंदा होते तो किसी ने भी नरसंहार के लिए आह्वान करने की हिम्मत नहीं की होती.’

बोस हार्वर्ड विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर हैं और कलकत्ता में नेताजी अनुसंधान केंद्र के अध्यक्ष हैं. उन्होंने कहा कि नेताजी धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों पर बहुत भरोसा करते थे और समुदाय के लोगों को बड़ी संख्या में प्रतिनिधित्व प्रदान किया था.

सुगत बोस 2014 से 2019 के बीच लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस के सांसद रहे थे. सुगत बोस के मुताबिक, नेताजी 1940 में जिन्ना से मिले और उनसे कांग्रेस में शामिल होने के लिए कहा था. साथ ही यह भी कहा था कि अगर वे ऐसा करते हैं तो जिन्ना स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री होंगे. गांधी ने सात सालों बाद 1947 में आखिरी ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को भी इसी तरह का सुझाव दिया था.

बोस ने बताया कि नेताजी ने इस बारे मे अपनी किताब द इंडियन स्ट्रग्ल में भी लिखा था.
बीटिंग द रिट्रीट समारोह से हटाई गई महात्मा गांधी की पसंदीदा धुन ‘एबाइड विद मी‘ के बारे में बात करते हुए बोस ने कहा, ‘नेताजी इस धुन को पसंद करते थे.’

उन्होंने पुरानी स्मृतियां ताजा करते हुए बताया कि जब दिलीप कुमार रॉय ने कलकत्ता में यह धुन गाई तो कैसे नेताजी के आंसू निकल आए.

लगभग चालीस मिनट के इंटरव्यू में सुगत ने स्पष्ट किया कि नेताजी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस विचार से सहमत नहीं होते कि भारतीय इतिहास का मुगल काल 1,200 सालों की गुलामी का प्रतिनिधित्व करता है.

उन्होंने कहा कि नेताजी मानते थे कि उस दौर को मुस्लिम शासन के तौर पर देखना मिथ्या धारणा है. हिंदुओं और मुसलमानों ने देश पर मिलकर शासन किया था और नेताजी ने अपनी किताब ‘एन इंडियन पिल्ग्रिम’ में लिखा था कि कई प्रमुख कैबिनेट मंत्री और सेनापति हिंदू थे.

सुगत बोस ने आगे कहा कि नेताजी कभी उर्दू से दूरी नहीं बनाते और न ही उसका अनादर करते. अपनी इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) के लिए जो उन्होंने आदर्श वाक्य चुना था, उसके तीन शब्द उर्दू से थे, जो इत्तेहाद, एतमाद और कुर्बानी थे.

उन्होंने बताया कि नेताजी ने जानबूझकर आईएनए की भाषा के रूप में हिंदुस्तानी को चुना, जिसमें बहुत सारे उर्दू शब्द थे. उन्होंने जानबूझकर रोमन स्क्रिप्ट को चुना ताकि गैर-हिंदू और गैर-मुस्लिम वक्ताओं को पढ़ने में आसानी हो.

 

बोस ने समझाया कि नेताजी ने हाल ही में हरिद्वार में आयोजित ‘धर्म संसद’ में किए गए नरसंहार के आह्वान को कैसे देखा होगा. उन्होंने नेताजी द्वारा की गई सांप्रदायिकता की आलोचना और हिंदू राष्ट्र के विरोध के बारे में भी बात की.

उन्होंने इंडिया गेट में नेताजी की प्रतिमा स्थापित करने के मोदी सरकार के फैसले पर भी चर्चा की.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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