सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सज़ा के तरीक़े पर सरकार से मांगा जवाब

याचिका में दी गई दलील, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार में यह भी शामिल है कि क़ैदी की सज़ा पर सम्मानजनक अमल हो ताकि मृत्यु कम पीड़ादायक हो.

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फोटो: रॉयटर्स

याचिका में दी गई दलील, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार में यह भी शामिल है कि क़ैदी की सज़ा पर सम्मानजनक अमल हो ताकि मृत्यु कम पीड़ादायक हो.

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(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मौत की सजा पाने वाले मुजरिम को मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाने के कानूनी प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर आज केंद्र से जवाब मांगा है.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मौत की सजा पर अमल के लिए मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाने के वर्तमान तरीके के खिलाफ विधि आयोग की 187वीं रिपोर्ट के आधार पर दायर जनहित याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया. केंद्र को तीन सप्ताह के भीतर नोटिस का जवाब देना है.

जनहित याचिका दायर करने वाले वकील ऋषि मल्होत्रा ने दलील दी है कि संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त जीने के अधिकार में मौत की सजा के निर्णय पर कैदी पर सम्मानजनक तरीके से अमल का अधिकार भी शामिल है ताकि मृत्यु कम पीड़ादायक हो.

याचिका में शीर्ष अदालत के अनेक फैसलों का हवाला दिया गया है जिनमें मौत की सजा पाने वाले कैदी को फांसी पर लटकाने के तरीके की आलोचना की गई है.

दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान के तहत मौत की सजा पाने वाले कैदी को उसकी गर्दन से फांसी पर लटकाने का प्रावधान है. याचिका में इस प्रावधान की संवैधानिकता को भी चुनौती दी गई है.